Moral stories in hindi : ” ये तू क्या कह रही है रागिनी..! नेहा का फिर से विवाह..!तू जानती नहीं कि हमारे समाज में विधवा-विवाह स्वीकार्य नहीं है।और फिर लोग क्या कहेंगे?” माधव जी बेटी पर चिल्लाये।
” लेकिन पापा…ये भी तो सोचिये…”
” अब कुछ सोचना- समझना नहीं है।” कहकर वे टहलने के लिये चले गये।
नेहा रागिनी की भाभी और माधव जी बहू थी।चार साल पहले नेहा के भाई ऋषभ से उसका ब्याह हुआ था।माधव जी सरकारी दफ़्तर के मुलाज़िम थें।अपनी सीमित तनख्वाह में ही उन्होंने अपने दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई।उन्होंने ग्रेजुएशन के बाद रागिनी का विवाह अपने परिचित के बैंककर्मी बेटे से कर दिया।लेक्चरर ऋषभ ने जब अपने मित्र की बहन नेहा को पसंद किया तो उसके सरल हृदय माता-पिता ने सहर्ष नेहा को अपनी बहू स्वीकार कर लिया।
रागिनी और नेहा में उम्र का फ़ासला न होने के कारण दोनों ननद-भाभी कम, सहेलियाँ अधिक थीं।परिवार के स्नेह और पति के प्यार में एक वर्ष कैसे बीत गया, नेहा को पता ही नहीं चला।
एक दिन नेहा किचन में काम कर रही थी कि अचानक उसे चक्कर आ गया।सब लोग घबरा गये कि नेहा को क्या होगा? थोड़ी देर बाद उसने सास नंदा जी से जी मितलाने की शिकायत की तो उनकी अनुभवी आँखों ने समझ लिया कि उन्हें दादी कहकर पुकारने वाला आने वाला है।
ऑफ़िस से आने के बाद ऋषभ नेहा को लेकर हाॅस्पीटल किया।डाॅक्टर ने चेकअप करके नेहा की प्रेग्नेंसी कन्फ़र्म की तो ऋषभ की खुशी का ठिकाना न रहा।सभी नेहा का बहुत ख्याल रखते थें।रागिनी भी बुआ बन रही थी।उसने तो अपनी माँ से कह दिया था कि तुम्हें पोता हुआ तो गले का हार लिये बिना भतीजे को गोद में नहीं लूँगी।तब ऋषभ ने कहा था, ” माँ को क्यों कहती हो रागू…तेरा भाई अभी है ना…।”
फिर न जाने कैसे…, इस हँसते- खेलते परिवार को किसी की नज़र लग गई।नेहा की प्रेग्नेंसी का पाँचवाँ महीना चल रहा था।नेहा का जन्मदिन भी निकट था।ऋषभ उसे उपहार में हीरे की अँगूठी देना चाहता था।जन्मदिन से दो दिन पहले दोनों ज्वेलर्स के पास गये।अँगूठी का आर्डर देकर दोनों ने टिक्की चाट खाई, काॅफ़ी पी और रेस्ट्रां से निकलकर ऋषभ अपनी कार पार्किंग से निकालने जा ही रहा था कि तेजी-सी आती एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी।नेहा ऋषभ के पास जाने के दौड़ी तो उसे ठोकर लग गई।वह दर्द-से कराह उठी।
लोगों ने उसके घर खबर की और एंबुलेंस बुलाकर दोनों को हाॅस्पीटल पहुँचाया गया।बेटे-बहू की हालत देखकर नंदा जी तो रोने लगी।माधव जी पत्नी को ढ़ाढस बँधा रहें थें लेकिन अंदर ही अंदर तो वे स्वयं भी रो रहें थें।ऑपरेशन थियेटर से डाॅक्टर को निकलते देख रागिनी दौड़ी,” डाॅक्टर साहब..भईया.. भा..”
” साॅरी..आपके भाई को तो हम बचा नहीं सके और…।”
” और क्या..?” रागिनी चीखी।
” नेहा का बच्चा भी नहीं रहा।” रागिनी के कंधे पर हाथ रखते हुए डाॅक्टर बोले और अपने कमरे में चले गये।
पल भर में ही सब कुछ खत्म हो गया था।माधव जी के परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।जवान बेटे की मौत….,हे भगवान! दुश्मन को भी ऐसे दिन न दिखाये।नेहा की आँखों से तो आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहें थें।दिन तो जैसे-तैसे वह काट लेती लेकिन रात…, उसका अपना ही कमरा उसे काट खाने को दौड़ता था।कुछ दिन पहले ही तो ऋषभ उससे कह रहा था कि बेटा हुआ तो र अक्षर से नाम रखेंगे और बेटी हुई तो न अक्षर से लेकिन अब तो सब खत्म….,वह सिसकने लगती।
छह महीने तक माधव जी अपने दफ़्तर जाते रहें तो बहू की मनःस्थिति से अनजान रहें लेकिन सेवानिवृत होने के बाद सुबह से शाम तक नेहा उनकी आँखों के सामने रहती।दिन-भर ‘पापाजी-पापाजी’ कहने वाली अपनी बहू को एक पत्थर की मूरत बनते देख उनका कलेजा बहुत दुखता था।चाहते थें कि वह सबसे मिले-जुले,पहले की तरह ही हँसे-बोले।
रागिनी के देवरानी की गोद-भराई थी।माधव जी सपरिवार गये थें।रागिनी ने नेहा को भी तिलक लगाकर बधाई देने को कहा तो वहाँ बैठी महिलाओं में से एक ने झट-से कहा,” अरे…ये क्या अपशगुन कर रही हो रागिनी।इसने तो पति-बच्चे..दोनों को…..।” आगे नेहा सुन नहीं पाई।घर आकर वह बहुत रोई और तब माधव जी ने एक निर्णय लिया।
अगले दिन उन्होंने नेहा से कहा कि अपने सभी सर्टिफिकेट्स तैयार कर लो।मेरे एक मित्र के स्कूल में टीचर की वैकेंसी है, आज चलकर मिल लेते हैं।
स्कूल जाने और बच्चों के बीच रहने से नेहा फिर से हँसने-बोलने लगी थी।सुबह सास का हाथ बँटा देती थी और स्कूल से आकर उन्हें आराम करने को कह देती।रागिनी आती तो उससे स्कूल और अपने विद्यार्थियों की ढ़ेर सारी बातें करती।
नेहा के स्कूल में ही आदित्य भी गणित पढ़ाते थें।बच्चों की पिकनिक पर ही उसकी आदित्य से मुलाकात हुई थी।एक-दो मुलाकातों के बाद नेहा ने उन्हें अपने बारे में बताया ,तब आदित्य ने भी बताया कि वह एक अनाथालय में पला-बढ़ा है।आज भी अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा उस अनाथालय को देकर वह अपना फ़र्ज़ पूरा कर रहा है।
एक दिन ऑटोरिक्शा की हड़ताल थी तो आदित्य नेहा को अपनी स्कूटी से ड्राॅप करने आ गया।नंदा जी ने देखा पर कुछ कहा नहीं।लेकिन जब अगले दिन भी नेहा आदित्य के साथ आई तो उन्हें अच्छा नहीं लगा।उन्होंने रागिनी से कहा कि आग को हवा देने से घर जलने का डर रहता है।
रागिनी बोली,” माँ…, आप तिल का ताड़ मत बनाइये, मुझे नेहा से बात तो करने दीजिये।रागिनी ने उससे पूछा कि आदित्य तुम्हें पसंद है? विवाह करना चाहती हो?
जवाब में नेहा ने कुछ नहीं कहा,बस अपने अँगूठे से ज़मीन कुरेदती रही।रागिनी समझ गई। वह आदित्य से भी मिली और तब उसने दोनों को मिलाने का निश्चय किया।अपने पिता से उसने यही कहा कि दोनों अकेले-अकेले अधूरे हैं।दोनों मिल जाएँ तो पूरे हो जाएँगे।फिर जब तक आप हैं, नेहा सुरक्षित है लेकिन फिर…।इसलिये आप आदित्य के साथ नेहा का विवाह करा दें तो…।लेकिन माधव जी ने उसकी बात सुनी ही नहीं और अपना फ़ैसला सुनाकर चले गयें।
नेहा खुश हो गई थी लेकिन ससुर की बातें सुनकर फिर से वह दुख के गहन अंधेरे में डूब गई और जब रागिनी को देखा तो उसके गले लगकर फूट-फूटकर रोने लगी।आँसुओं से तर नेहा का चेहरा देखकर रागिनी की आँखें भी नम हो गई।उसने इतना ही कहा,” धीरज रखो नेहा…,मैं हूँ ना…।”
कुछ दिनों के बाद माधव जी को पता चला कि उनके मित्र श्यामकिशोर के छोटे बेटे का देहांत हो गया।सुनकर उनका मन बहुत दुःखी हुआ।उनसे मिलने गये तो श्यामकिशोर मित्र के गले लगकर रोने लगे।रोते हुए कहने लगे कि बहू ने तो अभी ज़िंदगी का कोई सुख नहीं देखा भी नहीं था कि कुदरत ने उसके सभी रंग फ़ीके कर दिये।उसका जीवन…।तब माधव जी बोले,” दुखी न हो…बहू का फिर से विवाह करा देना….।
” अच्छा..! मुझे तो नसीहत दे रहे हो..,तो खुद उस पर अमल क्यों नहीं करते।”
माधव जी चुप रह गये।अपने घर आकर रात भर करवटें बदलते रहें।पत्नी बोली,” क्यों परेशान हो रहें हैं? रागिनी की बात क्यों नहीं मान लेते? आखिर अच्छी ज़िंदगी जीने का हक तो नेहा का भी है।ज़रा सोचिये..
हमारे बाद उस मासूम का क्या होगा।नेहा का घर फिर से बस जाये, वही तो हमारा तीरथ होगा।”
” हाँ…मैं भी यही सोच रहा था कि….”
” अब कुछ मत सोचिये और कल जाकर आदित्य से बात कीजिये।”
सुबह-सुबह ही माधव जी ने फ़ोन करके बेटी को खुशखबरी सुनाई।आदित्य से मिले और बोले कि तुम्हारी कोई इच्छा या डिमांड हो तो…।
” एक ही इच्छा है कि मैं आपको माँ-बाबूजी बोलूँ और आपका आशीर्वाद हमें सदैव मिलता रहा।” कहकर आदित्य माधव जी के चरण-स्पर्श करने को झुका तो उन्होंने आदित्य को अपने सीने से लगा लिया।
विवाह में श्यामसुंदर भी शरीक हुए।उन्होंने माधव जी से क्षमा माँगी तो वो हँसते हुए बोले,” मित्र.. आपने तो मेरी आँखें खोल दी तभी तो आज यह शुभ दिन आया है।”
श्यामकिशोर बोले,” अगले माह मेरे घर भी बारात आयेगी और बहू को बेटी बनाकर विदा करूँगा।आप ज़रूर आइयेगा।”
” भई वाह….!” हा-हा करके माधव जी हँसने लगे, तभी दुल्हन बनी नेहा और दूल्हा बना आदित्य उनसे आशीर्वाद लेने के लिये झुके तो उन्होंने दोनों को अपने सीने-से लगाते हुए भावविभोर हो उठें और उनकी आँखें छलक उठीं।
विभा गुप्ता
# आँसू स्वरचित
परंपराएँ और रीति-रिवाज जीवन में खुशियाँ देने के लिये होती हैं।अगर उनसे अपनों के जीवन में दुख और अंधकार छाने लगे तो उसे छोड़ देना चाहिए।जब उजड़ी हुई बगिया को फिर से हरा- भरा किया जा सकता है तो मानव-जीवन को क्यों नहीं? इसी विचार को मानते हुए माधव जी ने अपनी विधवा बहू का पुनर्विवाह कराकर उसका जीवन खुशियों से भर दिया।