जीवन संध्या – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi

“तुम्हें कितनी बार कहा दरवाजे पर खड़ी ना मिला करो”

सुरेश जी ने घर का गेट खोल कर अंदर आते हुए सीमा जी से कहा!”इतनी ठंडी हवा चल रही है और बिना शाॅल लिए बाहर खड़ी हो! चलो अंदर चलो”,और कुर्सी पर पड़ा शाॅल सीमा जी को उढ़ाकर उन्हें हाथों का सहारा देकर अंदर ले जाते हुए बोले!

सीमा जी घबराई सी कहने लगी’तुम तो जानते हो ना!जब भी अकेले घर से निकलते हो मेरी जान अटकी रहती है जब तक सही सलामत घर वापस नहीं आ जाते!”

“अरी भागवान! मुझे कुछ नहीं होगा ,मेरी इतनी फिकर ना किया करो,बेकार में खुद भी परेशान होती हो और मुझे भी परेशान करती हो!इतना ही था तो फोन कर लेती”

“फोन कैसे करती?जानती थी दोनों हाथों में सामान होगा और फोन जेब में,कहां सामान रखते कैसे फोन सुनते?फिर जितनी देर का बता कर जाते हो उतने टाइम में नहीं लौटते तो मन जाने कैसे कैसे बुरे बुरे खराब ख्याल आने लगते हैं”

“अरे मेरी सीमा जी आप भी ना!अरे रास्ते में कोई परिचित मिलेगा और हाल चाल पूछेगा तो आगे से उसे कह दूंगा भाई मुझे मत रोको अगर पांच मिनट भी देर से घर पहुंचा तो हमारी श्रीमती जी का बी.पी. बढ जाएगा और वे हमें ढूंढते हुए यहीं आ जाऐंगी!”कहकर सुरेश जी हो हो कर हंस दिये!

“अच्छा!ये क्या है दिखाओ?”सीमा जी की शरारती नजरों से सुरेश जी साथ लाया पैकट छुपा न सके 

फौरन हाथ आगे करके बोले”तुम्हें इमारती पसंद है ना ?गर्म बनती दिखी तो ले आया!अब जल्दी से अपनी मसाले वाली चाय बना दो तो मजा आ जाए “!

“क्या जरूरत थी लाने की?तुम्हारी सुगर बढ़ गई तब?”‘

“अरे भई तुम्हें कुछ पसंद हो और मैं ना लाऊं ऐसा हो सकता है क्या?”

दोनों अपनी छोटी छोटी नोंक झोंक में बहुत खुश थे!

सुरेश जी सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे ! पेंशन से दोनो का गुजारा ठीक-ठाक हो जाता था!

दोनों बच्चों मयंक और सिया की पढ़ाई लिखाई,खाने खिलाने में उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी! सीमा जी को भी हमेशा अच्छा खिलाया पिलाया!

बेटा मयंक भी एम.बी.ए कर एक मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे पद पर कार्यरत था!

रिटायर्मेंट के पहले ही उन्होंने सिया का ब्याह भी एक डॉक्टर से कर दिया था!

कुल मिलाकर उनके ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं थी!छोटा सा घर भी उन्होंने पहले ही बनवा लिया था!

मयंक की कंपनी की एक ब्रांच उनके अपने शहर में भी थी!सुरेश जी सीमा जी बहुत खुश थे कि अब मयंक अपना ट्रांसफर वहीं करा लेगा जिससे वे सब साथ रहेंगे,पर बहू रीमा को सास-ससुर के साथ रहना पसंद नहीं था!हालाँकि न तो सुरेश जी ना ही सीमा जी बहू बेटे के किसी भी मामले,पहनने ,ओढने,खाने पीने में कोई दख़लअंदाजी करते थे ! रीमा की जिद पर मयंक ने ट्रांसफर दूसरे शहर करा लिया!

शुरु में तो मयंक होली दिवाली थोड़े दिन की छुट्टी में रीमा को लेकर आ भी जाता था!फिर धीरे धीरे उसने कहना शुरू कर दिया कि आप लोग ही आ जाया करिये! सुरेश और सीमा जी को बेटे के घर जाकर बहू का अनवान्टेड रवैया अपनी इज्ज़त से समझौता सा लगता! धीरे धीरे उन्होंने उसके घर जाना भी छोड़ दिया!

चाहता तो मयंक अकेला कभी मां-बाप के पास एकाध दिन को आ सकता था पर रीमा के घर क्लेश के कारण कभी आता नहीं था!

मयंक कभी-कभार फोन पर बात कर लेता वह भी घर से नहीं ऑफिस जाकर बस औपचारिक सी!

सुरेश जी और सीमा को यह बात समझ नहीं आ रही थी कि उनका बेटा आखिरकार किस वजह से बहू से डरता है जबकि वह उससे ज्यादा होशियार पढ़ालिखा है!जाने कैसे रीमा ने उसे इतना दबा दिया कि मयंक को अपने बूढ़े मां-बाप का भी ध्यान नहीं!

बच्चों की पढ़ाई ,मां की बीमारी,बहन की पढ़ाई और उसका ब्याह ऊपर से काम की व्यस्तता की वजह से सुरेश जी अपने मन की एक इच्छा कभी पूरी नहीं कर पाए! अपने ब्याह से पहले से उन्होंने सोच रखा था वे अपनी पत्नी को खूब घुमाऐंगे!इसी वजह से वे अपने खुद के लिए फिजूल खर्ची बिल्कुल भी नहीं करते थे!

एक बार सुरेश जी ने सोचा इस उम्र में अकेले तो वे सीमा जी को घुमाने ले जा नहीं पाऐंगे, बेटा तो आऐ दिन टूर पर रहता है ,अक्सर बहू को भी साथ ले जाता है क्यूं ना उससे ही कहूं कि उसकी मां को भी कहीं घुमा लाते हैं ,अबकी बार कहीं आसपास का प्रोग्राम बने तो हमें भी साथ ले चले सबका खर्च मैं ही उठा लूंगा!

सोचकर बेटे का फोन आया तो उन्होंने अपने मन की बात कह दी!

बेटे ने कहा”हां पापा!मां कभी हवाई जहाज में भी नहीं बैठी,इस बार मुझे दुबई जाना है!देखता हूं प्रोग्राम बनाता हूं”

सुरेश जी ने जब सीमा जी से मयंक के फोन का जिक्र किया तो सीमा जी की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा,उनके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे ,उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि वे हवाई जहाज में बैठकर दुबई जाऐंगी!एक तो हवाई जहाज की सैर वो भी विदेश यात्रा!

उन्हें अपने भाग्य पर विश्वास नहीं हो रहा था!

उनकी आँखों से जैसे नींद ही उड़ गई! रात भर वे दुबई के सपनों में खोई रहीं!क्या पहनूंगी,क्या क्या ले जाऊंगी कैसे घूमूंगी के खयालों में डूबती उतराती रहीं!

सीमा जी के कान हर वक्त फोन की घंटी पर लगे रहते जाने कब मयंक दुबई के प्रोग्राम की खबर दे!

सीमा जी के लिए एक एक पल भारी हो रहा था दो दिन इंतजार करने के बाद सुरेश जी ने सीमा के कहने पर मयंक को फोन किया तो उसने झिझकते हुए बताया कि दरअसल रीमा उन लोगों के साथ जाकर अपना ट्रिप बर्बाद नहीं करना चाहती थी !इसीलिए वे लोग दुबई आ गए! 

मयंक बोला “आप परेशान ना हो,मां का प्रोग्राम फिर कभी बना लेंगे!

सीमा और सुरेश जी की इच्छा मन की मन में ही रह गई. 

अब उन दोनों ने अपने मन को समझा लिया कि मयंक रीमा के कहे में ही चलेगा उससे कोई उम्मीद रखना बेकार है!

अगर कभी वे मयंक से अपनी बीमारी का बता भी देते तो वह.नसीहत देने लगता”बाज़ार का कुछ मत खाईये या ज्यादा घूमा फिरी मत करिये,डाक्टर को दिखा लीजिए ,दवाई टाइम से लीजिए! 

फिर उन्होंने बताना भी छोड़ दिया!

बेटी तो पराई थी कभी-कभार 

उनके सुख दुख में खड़ी भी हो जाती!पर उसका अपना घर ,सास-ससुर और पति को छोड़कर बार बार आना संभव नहीं था!

सुरेश जी तो पहले ही से सीमा के खाने पीने और दवाई आदि का ख्याल रखते थे ,उनके साथ घर के कामों में भी हाथ बंटाते थे!अब मयंक के रवैये से वे और भी सतर्क हो गए! 

वे सीमा जी से बोले”अब हम दोनों को ही अपनी बाकी बची ज़िन्दगी एक दूसरे के सहारे ही काटनी है!जब अपना खून ही अपना नहीं तो दूसरों से क्या उम्मीद रखनी”!

पर उम्र बढ़ने के साथ साथ दोनों का शरीर शिथिल पडता जा रहा था!

वैसे तो वे दोनों योग और वाॅक वगैरह करके अपने तन-मन से स्वस्थ थे फिर भी सीमा जी का दिल हर वक्त घबराता,उनको रात भर नींद नहीं आती कि अगर सुरेश जी को कुछ तकलीफ हुई तो आधी रात वे किसे बुलाएंगी,कहां लेकर जाऐंगी?एक अनजाना सा डर उन्हें सताया करता!

यही सोचकर अगर कभी वे सुस्त होती तो सुरेश जी उन्हें ढाढस बंधाकर कहते”इतना मत सोचा करो!जब मैं तुम्हारे साथ हूं तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है!”

नींद ना आऐ तो हनुमान चालीसा पढ लिया करो या मेडिटेशन कर लो जैसे रोज सुबह करती हो!”

वे हर संभव हर तरह से सीमा जी को खुश रखने की कोशिश करते!

सीमा जी सुरेश जी से कहती “मेरे जाने के बाद ” फौरन सुरेश जी हंस कर कहते “कहां जा रही हो”?सीमा जी कहती हर वक्त मजाक मत किया करो,मेरे मरने के बाद अपने घर में अकेले ही रहन लेना बेटा-बेटी के साथ नहीं.मैं काम वाली को सब समझा ,सिखा दूंगी “!

सुरेश जी कहते “अगर मैं पहले चला गया तो क्या तुम बच्चों के पास दुर्गति कराने चली जाओगी,अकेले कैसे रहोगी मैं यही सोचकर परेशान हूं!”कभी कभी वे दोनों कहते कुछ ऐसा हो जाए जो दोनों एक साथ चले जाएं!

एक अजीब सी इनसिक्योरिटी सी हर वक्त दोनों के दिमाग पर छाई रहती!

उम्र के साथ साथ कभी दांत,आंखों,बी.पी.डायबिटीज या गठिया और अस्थमा की परेशानियां दोनों को गाहे बगाहे सताती!अकेले ही टेस्ट कराते,डाक्टर को दिखाते ,दवाई लाते!इसके साथ साथ घर का रोजमर्रा का सामान सबकुछ करना पड़ता! 

खैर दिन बीतते रहे!सुरेश और सीमा जी एक दूसरे का ख्याल रख ,आपस में खुश रह किसी तरह अपने दिन काटते रहे!

मयंक पहले की तरह होली दिवाली,नये साल या बर्थ डे एनिवर्सरी पर जैसे और रिश्तेदार फोन करते वैसे ही फोन कर औपचारिकता पूरी कर देता!कभी-कभार रीमा भी मयंक के बहुत कहने पर सास-ससुर से बात कर लेती!

फिर एक दिन सीमा जी को दिल का दौरा पड़ा,सुरेश जी उन्हें अस्पताल ले गए मयंक को फोन किया तो वह आ तो गया!उसे देखकर सीमा जी की तबीयत सुधर सी गई तो मयंक ने सुरेश जी से कहा “आपने बेकार में ही मुझे दौड़ा दिया,मां ठीक-ठाक तो हैं!”वह सुबह सुबह वापस चला गया!

सीमा जी के पुत्र मोह के कारण ही शायद मयंक को देखने को ही उनके प्राण अटके थे,उसी दिन वे चली गई गईं! 

फौरन वापस आने की वजह से मयंक बौराया सा हो गया!सीमा जी का अंतिम संस्कार कर सुरेश जी से बोला”अब आप ये घर बेचबाच कर मेरे साथ चलने की तैयारी करें,मेरे लिए बार बार भाग कर आना संभव नहीं है”!

“पर बेटा अभी तो तुम्हारी मां की तेरहवीं,चौथा करना है,अभी कैसे?”उनकी बात पूरी होने से पहले ही मयंक गुस्से से बोला”बाकी काम तो वहां भी हो सकते है”!

सुरेश जी “बेटा अभी तो उसकी चिता की राख भी ठंडी नहीं हुई,मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगा!”

“तो रहिये आप यहीं,आगे से मुझसे किसी तरह की उम्मीद मत रखिये!”कहकर मयंक वापस चला गया!

सुरेश जी तो पहले ही सीमा के जाने से व्यथित थे मयंक के रुखे व्यवहार से उन्हें तोड़कर रख दिया!अपने ही खून का ऐसा रवैया जो सहा भी ना जाए किसी से कहा बिना जाऐ!

मयंक तो मुँह फेर कर चला गया!

बेटी,कुछ सगे संबंधियों पड़ोसी और दोस्तों ने उन्हें ढाढस बंधाकर हिम्मत दिलाई! 

धीरे धीरे उन्होने अपनी ज़िन्दगी की नयी शुरूआत की!

एक कमरा,बाथरूम और किचन अपने पास रख बाकी के दो कमरे एक छोटा सा किचन बनवाकर एक छोटे परिवार को किराए पर दे दिया!

रजत उसकी पत्नि बेला और तीन साल की बेटी आद्या!

रजत और बेला सीधे सादे शांत लोग थे!धीरे धीरे वे चारों एक परिवार की तरह हो गए! सुरेश जी किराए की जगह खाना उन दोनों के साथ खाने लगे!रजत और बेला के साथ रहने से सुरेश जी को सहारा मिल गया!

कभी कभी वे सोचते अपनी औलाद से तो ये अनजान लोग अच्छे हैं जो मेरे सुख दुख में साथ दे रहे हैं!

वे आद्या को पढ़ाते उसे घुमाने ले जाते!तब वे सोचते अपने पोता पोती के साथ तो खेल नहीं सके शायद भगवान ने आद्या के रूप में यह अवसर दे दिया!

सीमा के जाने के बाद सुरेश जी की जीने की इच्छा मर सी गई थी!ऊपर से वे हंसते मुस्कुराते पर अंदर ही अंदर वे खोखले हो रहे थे!

मयंक ने एक दो बार फिर घर बेचने की बात की क्योंकि वह एक फ्लैट लेना चाह रहा था! पर सुरेश जी ने मना कर दिया!

वे अक्सर बीमार रहने लगे!अपनी देखभाल के लिए एक लड़का रख लिया!

एक दिन उन्होंने अपनी वसीयत बनवाई! जिसमें लिखा कि उनके मरने के बाद सीमा जी का जो भी थोड़ा-बहुत जेवर है वह उनकी बेटी को मिले!क्योंकि उसका सारा जेवर उसके सास-ससुर ने रख लिया था!

घर मयंक के नाम कर दिया! कुछ पैसा रजत के पास अपने दवा,काम वालों की तनख़्वाह और खर्च के लिए रखकर बाकी बचा पैसा आधा आधा बेटा बेटी को देने का लिख दिया !

पचास हजार रूपये का एक फिक्स्ड डिपॉजिट आद्या के नाम बनवा दिया!

मयंक के नाम एक चिट्ठी लिखकर सारे कागज़ात रजत के पास रखा दिये!

उन्होेंने रजत को कह दिया”मैं बीमार हो जाऊं तो अस्पताल मत ले जाना,मुझे वेंटिलेटर पर मत रखवाना!मेरे मरने के बाद मयंक को भागकर न आना पडें इसलिए मेरा अंतिम संस्कार इलेक्ट्रिक क्रीमेशन से करा देना

सुरेश जी ने मयंक को लिखा 

प्रिय बेटा

सदा खुश रहो

तुम कहते थे घर बेच दो पर अपने जीते जी मैं ऐसा नहीं कर पाया क्यूंकि यही एक घर मेरी पूरी ज़िन्दगी की जमा पूंजी है!इसे मैने और तुम्हारी मां ने बड़े अरमान और चाव से बनवाया था!यहां हमने जाने कितने पतझड और बसंत देखे थे !

बहुत सी खट्टी मीठी यादें इस घर से जुड़ी हैं !इस घर का कोना कोना हमारे प्रेम का गवाह है!तुम्हारा और सिया के जन्म तुम दोनों को बढते देखना लाड-प्यार इन्ही सब में हमारी जान बसी थी!अब जब सीमा ही नहीं रही मेरा मन भी उचट गया है!

अपनी ज़िन्दगी हमने जैसी भी हंस रोकर काट ली ,आज ज़िन्दगी के आख़री सफर में बस एक टीस जो मुझे और तुम्हारी मां को सालती रही वह ये कि जो सपना हमने तुम्हारे साथ रहने,तुम्हारे बच्चों के साथ खेलने का देखा था शायद हमारी किस्मत में नहीं था!

मैने बचपन से अबतक तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश की थी !इसीलिए यह घर तुम्हारे नाम कर रहा हूं!मै नहीं चाहता कि मरने के बाद मुझे मलाल रहे कि तुमने कुछ मांगा और मैंने मना कर दिया!

मां-बाप उम्र से बूढ़े नहीं होते औलाद का बेपरवाह रवैया उन्हें असमय बूढ़ा कर देता है!ये बात याद रखना!एक बात और अपने बच्चों से कभी कोई अपेक्षा मत रखना!

जिन लोगों ने हम दोनों का अकेलापन और परेशानी के दिन देखे थे उन्होंने सलाह दी थी कि ये घर मैं किसी अनाथाश्रम को दान कर दूं! पर मरने के बाद बच्चों की दी हुई बद्दुआ से चैन नहीं पा सकूंगा!यही सोचकर मैं उनकी बात नहीं मान सका!

कुछ बुरा लगा हो तो माफ करना!

पापा.

स्वरचित-मौलिक 

कुमुद मोहन 

#ढलती सांझ

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