कभी-कभी जीवन ऐसे फैसलों के मोड़ पर खड़ा कर देता है, जहाँ दिल की आवाज़ को दबाकर सिर्फ ज़िम्मेदारी की राह चुननी पड़ती है। ऐसे ही एक मोड़ पर खड़ी है आईपीएस अधिकारी मानवी सिन्हा । लोग उसे ‘पत्थरदिल’ कहते हैं —न चेहरे पर कोई भाव, न शब्दों में कोई कोमलता। वह कानून की किताबों से नहीं, अपने आत्मविवेक से फैसले करती है। अफसर के रूप में वह आदर्श है पर माँ के रूप में…? यह प्रश्न अब उसके सामने पूरे वज़ूद के साथ खड़ा है।
लखनऊ में उसकी नई पोस्टिंग हुई है। शहर में हाल के दिनों में नशे और अवैध कार रेसिंग का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है। कई मामलों में रसूखदार घरों के बच्चे शामिल होते पर दबाव में सबकुछ दबा दिया जाता। एक रात, गश्त पर निकली पुलिस टीम को सूचना मिली कि एक स्कूटी को तेज रफ़्तार कार ने टक्कर मारी है और लड़की की मौके पर ही मौत हो गई है। कार ड्राइवर फरार हो गया है ।
मानवी खुद घटनास्थल पर पहुँची। उसकी निगाहें तुरंत कार के टायर के निशानों, आसपास लगे कैमरों और चश्मदीदों पर टिक गईं। लड़की मर चुकी है मामला गंभीर है। केस को उसने व्यक्तिगत रूप से देखने का निर्णय लिया।
जांच के दो दिन बाद सीसीटीवी फुटेज के आधार पर जैसे ही कार का नंबर ट्रेस हुआ उसके भीतर सन्नाटा फैल गया। गाड़ी उसके घर के गैराज में खड़ी हुई उसकी व्यक्तिगत कार निकली। फुटेज को गौर से देखने पर पता चला कि कार चला रहा लड़का और कोई नहीं उसका अपना बेटा मनस सिन्हा था।
सत्रह साल का मनस जो बारहवीं का छात्र है आम लोगों की नज़र में शांत और अनुशासित बच्चा है। घर में माँ की कठोरता और भावनात्मक दूरी ने उसके भीतर विद्रोह का बीज कब बो दिया मानवी को मालूम ही नहीं चला। । दोस्तों के साथ रेसिंग और मस्ती से वंचित मनस ने उस रात चोरी-छुपे कार निकाली और लापरवाही में किसी की जान ले बैठा।
मानवी के सामने अब दो रास्ते हैं —एक माँ का दिल और एक अफसर का कर्तव्य। एक तरफ खून का रिश्ता है दूसरी तरफ कानून की मांग। पूरी रात उसने खुद को अपने कमरे में बंद रखा। वर्दी दीवार पर टंगी हुई है और बेटे की तस्वीर सामने मेज पर रखी। सुबह तक वह एक फैसला ले चुकी थी।
अगले दिन उसने केस फाइल पर दस्तखत किए – मनस सिन्हा पर गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए।
महकमे में सनसनी फैल गई। अफसरों की आँखों में अविश्वास उभरा —क्या कोई माँ अपने बेटे को इस तरह गिरफ़्तार कर सकती है?
मीडिया में उसे “लौह नारी” कहा गया। सोशल मीडिया पर कोई उसे ‘कठोर’ कह रहा था, तो कोई ‘न्याय की मूर्ति’
कोर्ट में जब मनस पेश हुआ उसके चेहरे पर गुस्सा था। उसने बयान दिया—“मेरी माँ ने कभी मुझसे प्यार नहीं किया। वो हमेशा एक अफसर रहीं माँ नहीं! उनके सीने में ममता भरा दिल नहीं है वो एक पत्थर दिल औरत हैं। आज उन्होंने साबित कर दिया कि मैं उनके लिए सिर्फ एक केस फाइल हूँ।”
मनस को बाल सुधार गृह भेजा गया।
मानवी कोर्ट के गलियारे में खड़ी रही। न कोई जवाब दिया और न कोई आंसू ढलका । पर भीतर एक तूफान है जो उसने किसी को दिखाया नहीं।
कोर्ट से घर लौटी मानवी तन मन दोनों से ही निढाल हो चुकी है। अपने रूम में अकेले बैठे बैठे मानवी बीते वक़्त में विचरने लगी — पति की आकस्मिक मृत्यु के बाद मानवी ने खुद को बेटे की परवरिश और अपने कर्तव्य में बाँट लिया था। उसने कभी बेटे को सामने से प्यार दिखाया नहीं हमेशा एक सख़्त माँ बनकर परवरिश की। हाँ! बेटे को अपने ढंग से हर खतरे से बचाने की कोशिश की उसने। शायद वही सख़्ती आज उसकी सबसे बड़ी गलती बन गई है कि मनस ने चोरीछिपे कार चलाई और ये एक्सीडेंट बैठा। शायद उसे मनस से सिर्फ सख़्ती से ही नहीं बल्कि मुलामियत से भी पेश आना चाहिए था ताकि बेटा अपने मन की बातें बता सके। बहरहाल अभी जो मनस से जो गलती या गुनाह हुआ उसकी सजा तो उसे काटनी ही है।
मनस को बाल सुधार गृह में उसकी माँ का लिखा एक पत्र मिला—
“बेटा मनस ,
जब तू जन्मा था, तेरी पहली रुलाई सुनकर मैंने तुझे सीने से लगाया था। उस पल मैंने वादा किया था कि तुझे सबसे सुरक्षित रखूँगी। तेरे पापा के असमय चले जाने से वक्त ने मुझे मजबूर किया कि मैं एक माँ से पहले एक अफसर बनूँ। तेरी सुरक्षा को लेकर मैं हमेशा सतर्क रही इन सब में कब मैं एक कठोर माँ बनती चली गई मुझे पता नहीं चला। शायद तू मुझसे अपनी बात खुलकर नहीं कर पाया कभी पर ये वादा है तेरी माँ का कि तेरे लौट आने के बाद हम दोनों में कोई दुराव या अजनबीपन नहीं रहेगा। हम आपस में सभी बातें शेयर करेंगे।
आज तू मुझसे नफरत करता है, समझता है मैंने तुझे त्याग दिया। पर जो मैंने किया, वो तुझे भविष्य में शर्मिंदा नहीं, गर्वित करेगा। आज अगर मैं तुझे बचा लेती, तो क्या तू खुद को कभी माफ कर पाता? मैं जानती हूँ, तू टूट गया होगा, पर यकीन कर बेटा, अब मैं भी हर रात बिखर जाती हूँ।
मैं तुझसे बेहद प्यार करती हूँ।
तुम्हारी माँ
मनस की आँखें छलक आईं। पहली बार उसे माँ की कठोरता के पीछे छुपी ममता दिखाई दी। उस दिन वो रोया, ज़ार ज़ार रोया अपनी माँ के लिए, उसे हमेशा एक पथरदिल माँ समझने के लिए।
छह महीने बाद, मनस को रिहा किया गया। बाहर माँ उसका इंतज़ार कर रही थी। वही सख्त चेहरा, लेकिन आँखों में एक अलग सी नमी थी। मनस दौड़कर उनके गले लग गया।
मानवी ने धीरे से कहा, “गलती की सज़ा जरूरी थी, पर अब तू सुधर गया है, यही मेरी सबसे बड़ी जीत है।”
उस दिन दोनों के बीच कोई कानून नहीं था, कोई आरोप नहीं था, सिर्फ एक रिश्ता था—मजबूत, समझा हुआ और हालातों की कसौटी पर परखा हुआ
धन्यवाद।
प्रियंका सक्सेना ‘जयपुरी’
( मौलिक व स्वरचित)
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