इल्जाम सिर्फ एक पर ही क्यों..? – रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अरे रामू..! आज तुम यहां..? मां कहां गई..? आशा जी ने अपने घर के सामने सब्जियों का ठेला लगाने वाले रामू से पूछा..

वैसे वहां ठेला रामू की मां मालती ही लगाती है, पर कभी जो मालती कहीं जाती या बीमार होती, तो उसके बदले रामू ठेला लगाता… 

उस दिन भी रामू ही ठेले पर था, तो आशा जी ने उससे मालती के बारे में पूछा… 

रामू:   नहीं मां आज बीमार है… इसलिए आज मैं आ गया.. आप बताइए ना क्या दूं आपको..? 

आशा जी:   अरे तुम्हारी मां से तो मेरा अलग ही हिसाब चलता है… क्या तुम वह हिसाब जानते हो..?

रामू:   नहीं भाभी जी… हम तो मजदूरी करते हैं आप तो जानते ही हो… उसमें रोज काम नहीं होता, पर ही ठेले पर रोज सब्जियां बिकती है इसलिए इसको हम 1 दिन भी बंद नहीं करते… मां से आपका जो हिसाब चलता है, आप मुझे बता दीजिए हम भी वही लगा देंगे… 

आशा जी:   तुम अभी भी मजदूरी करते हो..? सुना था तुम्हारी मां से के तुम्हारा बेटा अच्छा कमाता है, फिर तुम्हें इस उम्र में मजदूरी करने की क्या जरूरत..? 

रामू:  हां भाभी जी… ठीक ही सुना हैं आपने… बड़े कष्ट से बेटे को पढ़ाया लिखाया, जब उसे अच्छी नौकरी मिली, तो लगा अब हमारे कष्ट चले गए और सब ठीक भी चल रहा था.. पर..? 

यह कहकर रामू चुप हो गया…

 आशा जी:   पर क्या रामू..? 

रामू:   हमने सोचा बेटा अच्छा कमा रहा है तो, अब इसकी शादी कर देते हैं और शादी के 1 महीने बाद ही वह हमसे अलग हो गया… असल में बहू बड़ी कमाल की मिल गई हमें… आते ही हमारे बेटे को बहला कर ले चली गई… अब क्या ही कहूं..? आजकल की लड़कियों के बारे में… आते ही हमारे बेटे को हमसे छीन लिया उसने… 

आशा जी थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोली, रामू फिर तो तुम्हारी पत्नी भी बड़ी कमाल की होगी..? क्योंकि तुम्हारी मां भी कह रही थी कि तुम भी कभी उनसे अलग रहने चले गए थे, अपनी पत्नी के कहने पर…

रामू:   क्या मां ने ऐसा कहा..? पर मैं तो हमेशा से ही मां के साथ रहता हूं.. फिर मां ने ऐसा क्यों कहा..? आज जाकर पूछूंगा उनसे… और वैसे भी भाभी जी, मैं क्या कोई दूध पीता बच्चा हूं या फिर इतना नासमझ हो जो कल की आई हुई, कोई मुझसे कहे चलो अपने माता-पिता को छोड़कर और मैं चला जाऊंगा… यह तो अपने ऊपर है ना..? हम किसको कितना महत्व देते हैं…? 

आशा जी:  हां बस यही मैं भी कहना चाहती हूं कि, कल की आई हुई जिस लड़की को तुम भला बुरा कह कर उस पर अपने बेटे को छिनने का #इल्जाम लगा रहे हो, यह मुमकिन कहां हो पाता अगर तुम्हारे बेटे की इसमें इच्छा शामिल नहीं होती..? हम अक्सर बहू के आते ही बेटे को खो देने के दर से जूझने लगते हैं और शायद इसी डर के वजह से हम आपसी तालमेल को मटियामेट कर देते हैं…

जिस फासले बढ़ जाते हैं और विवाद भी और अंत में वह अलगाव का रूप ले लेती है… हम हमारे घर आई उस नई लड़की को जाँचने से पहले अगर उसे सीखाने लगे या उसे अपने ही घर के सदस्य जैसा मानने लगे, तो शायद इन इल्जामों का सिलसिला खत्म ही हो जाए..

रामू बड़े गौर से आशा जी की बातें सुन रहा था कि तभी आशा जी कहती है… तुम्हारी मां ने तो कभी ऐसा कुछ भी नहीं कहा… वह तो बस तुम्हें समझाने के लिए मैंनें तुमसे झूठ कहा… पर एक कोशिश करके जरूर देखना… बहू पर इल्जाम लगाने से पहले उसे अपना बनाने का इंतजाम कर लेना.. देखना शायद यह अलगाव रहे ही ना… 

दोस्तों… हम जब भी कहीं पर सुनते हैं कि बेटा शादी के बाद बहू के साथ अलग हो गया… हम बिना कुछ भी जाने सीधा पुरा इल्जाम बहू पर लगा देते हैं और कहते हैं.. यह आजकल की लड़कियां सबके साथ एडजस्ट करना ही नहीं चाहती… पर हम उस बेटे पर इलजाम क्यों नहीं लगाते..? जो इतने दिनों तक उस परिवार में रहकर भी बीवी के एक बार कहने पर अलग हो जाता है…

अरे भाई वह तो उसका अपना घर परिवार है ना..? वह पहले भी तो वही रहता था… अब वह क्यों नहीं एडजस्ट कर पा रहा है..? जरूर उसे भी कहीं ना कहीं अपने परिवार की खामी दिख रही होगी… तभी तो वह भी अलगाव के लिए राजी हो जाता है… हर वक्त बेटा बहु गलत हो यह जरूरी नहीं

और ना ही माता-पिता बुरे हो यह भी जरूरी हो, बस मेरा कहना यह है कि तालमेल का खेल है सारा, ना की कोई प्रतियोगिता, जिसके तहत हमें किसी को हराना है… आपका क्या कहना है इस बारे में..? अपने राय कमेंट में जरूर लिखकर मुझे बताएं… 

धन्यवाद 

आपकी लेखिका दोस्त 

रोनिता कुंडु 

#इल्जाम

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