निहारिका की आदत थी कि वह हमेशा अपनी मांग में बिदीं लगाती थी। पार्थ को निहारिका की यह छोटी सी आदत बहुत पसंद थी। जब भी निहारिका बिना बिदीं के होती, पार्थ उसे देखकर तुरंत कहता, “निहू, तुमने बिदीं क्यों नहीं लगाई? तुम बिदीं में बहुत सुंदर लगती हो।” पार्थ का यह प्यार भरा आग्रह निहारिका को मुस्कुराने पर मजबूर कर देता। निहारिका जानती थी कि बिदीं लगाने का यह नियम उसके और पार्थ के बीच का एक प्यार भरा इशारा था। उसे पता था कि यह पार्थ के लिए सिर्फ एक श्रृंगार नहीं, बल्कि उसके प्यार का प्रतीक था।
एक दिन ऐसा आया, जब पार्थ अपने बच्चों और निहारिका को छोड़कर हमेशा के लिए इस दुनिया से चला गया। उस दिन निहारिका की दुनिया जैसे उजड़ गई। वह टूट गई थी, लेकिन उसने खुद को किसी तरह संभाला, क्योंकि उसे अपनी जिंदगी में पार्थ की निशानियों – अपने दो छोटे बच्चों – का ख्याल रखना था। उसके लिए यह एक कठिन दौर था। जीवन में एक ऐसा मोड़ आया था, जहाँ से सब कुछ अंधकारमय प्रतीत हो रहा था। परंतु पार्थ की यादों के सहारे और उसके सास-ससुर के प्यार और सहयोग से उसने अपने आपको संभाला।
निहारिका जानती थी कि पार्थ की खुशी के लिए उसने बिदीं लगाना कभी नहीं छोड़ा। यह उसकी और पार्थ के बीच के उस अटूट प्यार का प्रतीक था, जो समय के साथ नहीं टूटा था। उसके सास-ससुर ने भी कभी उससे बिदीं लगाने की परंपरा को लेकर कोई सवाल नहीं किया। वे समझते थे कि यह निहारिका के दिल की आवाज़ है, जिसे वह बिना किसी दबाव के निभा रही है। उन्होंने अपने बेटे के जाने के बाद भी निहारिका का ख्याल रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी और उसे हमेशा अपने प्यार और समझ से सहारा दिया।
समय बीतता गया, लेकिन समाज की सोच इतनी जल्दी बदलने वाली नहीं थी। निहारिका को समाज के लोगों से ताने सुनने पड़ते थे। लोग उसे देखकर बात-बात पर सवाल करते, उसके साज-संवार पर उंगलियां उठाते। उसके ससुराल वाले जानते थे कि समाज क्या सोचता है, लेकिन उन्होंने कभी इन बातों को निहारिका पर हावी नहीं होने दिया।
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कुछ समय बाद निहारिका की ननद के देवर की शादी थी। पूरे परिवार के लिए यह खुशी का अवसर था। निहारिका भी इस खुशी में शामिल थी। उसकी ननद और ससुराल वालों ने उसे इस खुशी का हिस्सा बनाने का पूरा प्रयास किया। शादी के माहौल में सभी रिश्तेदार और घरवाले एक जगह इकट्ठा हुए थे। माहौल में खुशी और उत्साह था। निहारिका की ननद ने उससे आग्रह किया कि वह मेहंदी लगवाए, ताकि शादी की रौनक में चार चांद लग सकें।
शुरुआत में निहारिका झिझक रही थी, लेकिन अपनी ननद के आग्रह को ठुकरा नहीं सकी। वह मेहंदी लगवाने के लिए बैठ गई। उसकी आंखों में एक हल्की चमक थी, जैसे उसे अपनी जिन्दगी में थोड़ी सी रंगत मिल गई हो। लेकिन खुशी के इन पलों में भी समाज के ताने और तानों की परछाई उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी। उसकी बुआ सास, जो इस अवसर पर आई थीं, उन्होंने निहारिका को देखकर कहा, “अरे, बिदीं तो तुम पति के लिए लगाती हो, मेहंदी अब किसके लिए लगवा रही हो?”
यह सुनकर निहारिका के चेहरे की खुशी अचानक गायब हो गई। उसकी आंखों में आंसू आ गए, और उसने अपना हाथ पीछे खींच लिया। उसे ऐसा लगा जैसे उसकी खुशी पर किसी ने आघात कर दिया हो। वह फिर से उसी दर्द को महसूस करने लगी, जिससे वह मुश्किल से उबर पाई थी। उसे लगा जैसे उसका जीवन समाज के सामने तमाशा बनकर रह गया है, जहां उसकी हर छोटी-सी खुशी पर सवाल खड़े किए जाते हैं।
तभी उसकी सास और ननद वहां आ गईं। उसकी सास ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बुआ सास की ओर देखा। उन्होंने दृढ़ता से कहा, “हमारी बहू वो सबकुछ करेगी जो उसे अच्छा लगता है। मुझे भी अपने बेटे के जाने का दुख है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमारी बहू अपनी खुशियों को छोड़ दे। उसकी जिन्दगी का तमाशा नहीं बनेगा, और हम ऐसा कभी नहीं होने देंगे।”
उनकी यह बात सुनकर निहारिका को जैसे एक नया सहारा मिला। उसकी सास के ये शब्द उसके लिए संजीवनी की तरह थे। उसे यह महसूस हुआ कि चाहे समाज कुछ भी कहे, उसका परिवार उसके साथ है। उसके सास-ससुर ने जिस तरह से उसे सहारा दिया और समाज के तानों का सामना किया, उससे उसे एक नई ऊर्जा मिली। वह जान गई कि उसकी जिन्दगी सिर्फ दुख और तानों के लिए नहीं है। उसे अपनी जिन्दगी जीने का पूरा हक है, और उसका परिवार उसे हर हाल में सहयोग देगा।
निहारिका के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आई। वह फिर से मेहंदी लगवाने के लिए बैठ गई। उसकी सास ने उसका हाथ पकड़कर मेहंदी लगवाया। वह उन्हें देख रही थी और मन ही मन उनका धन्यवाद कर रही थी। वह समझ गई थी कि उसकी जिन्दगी सिर्फ एक सामाजिक परंपरा या तानों की मोहताज नहीं है। उसकी सास ने उसे जीवन का एक नया मकसद दिया, एक नई दिशा दिखाई।
उसने मन ही मन यह निश्चय किया कि अब वह समाज की बातों को खुद पर हावी नहीं होने देगी। वह अपनी बेटी के साथ एक नई शुरुआत करेगी और अपने जीवन को अपने तरीके से जिएगी। उसकी सास ने उसे एक नई शक्ति दी थी, एक ऐसा सहारा, जिससे वह अपने जीवन को खुशी और आत्मसम्मान के साथ जी सके।
निहारिका के लिए यह एक नई शुरुआत थी। वह अब अपनी सास के प्यार और सहारे के साथ अपने जीवन को फिर से संवारने के लिए तैयार थी।
मौलिक रचना
गुरविंदर टूटेजा