कोमल आँगन के बीच मे बैठी थी उसके हाथो मे मेहंदी रचाने वाली मेहंदी रचा रही थी। उसे चारो तरफ से भाभिया बहने,बुआए और मौसिया घेर कर बैठी थी।आज कोमल की मेहंदी है इसलिए सभी उससे चुहलबाजी कर रही थी। कोमल शर्माती सकुचाती बीच बीच मे उनके मज़ाक पर मुस्कुरा रही थी।उसकी बुआ की बहू ने कहा दीदी तुम तो बहुत भाग्यशाली हो ननद है ही नहीं
और सास भी विधवा है तुम्हे तो कोई रोकने टोकने वाला ही नहीं होगा। तुम्हारे तो खूब मजे है,दूल्हे राजा को जैसे नचाओगी वैसे नाचेंगे।यह सुनकर बुआ ने अपनी बहू को सुनाते हुए कहा हाँ हम तो जैसे तुम्हे गर्म सलाखो से दागते है।
जो मर्जी होती है वही तो करती हो।अरे! नहीं माँ जी मेरे कहने का मतलब यह नहीं था. मै तो कह रही थी कि विधवा सास है तो थोड़ा तो दब कर रहेगी ही और कोई बात नहीं है बहू ने अपनी सास को गुस्साते हुए देखकर कहा।
सभी ने बुआ की बहू की हाँ मे हाँ मिलाते हुए कहा बहू सही तो कह ही रही है ससुर के नहीं रहने पर सास का स्वभाव तो थोड़ा नर्म होता ही है।ऐसे ही हँसी – मज़ाक,ताने – उलाहने के मौहौल मे कोमल का विवाह सम्पन्न हो गया और वह विदा होकर ससुराल चली आई।
लोगो की हँसी मे कही गईं बात कोमल के मन मे घर कर गईं थी उसे लगता था कि वही घर की मालकिन है। वह जो कहेगी वही इस घर मे होगा। कोमल का पति बैक मैनेजर था। वह जब दश वर्ष का था तभी उसके पिता की मृत्यु हो गईं थी। अभी वह चाचा के घर मे रहता था। उसके चाचा ने ही उसका विवाह किया था।
बस इतनी ही बाते कोमल और उसके घरवालों को उसके बारे मे पता थी। विवाह के पांच दिन बाद कोमल का पति अपनी माँ से यह कहकर कि अगले माह उसे क्वाटर मिल जाएगा तब वह आकर उन्हें और कोमल को लेकर जाएगा,वह अपनी नौकरी पर चला गया।अगले माह जाने के वक़्त उसकी माँ ने कहा कि वह क्या करने जाएगी,तुम दोनों जाओ और जाकर अपनी गृहस्थी बसाओ।
मै तो तुम्हारे चाचा चाची के साथ यही रहूंगी। पर बेटे ने बात नहीं मानी और माँ को और पत्नी को लेकर नौकरी पर चला आया। यहाँ पर कोमल ने पूरा घर संभाल लिया. सुबह उठती चाय बनाकर पति और सास को देकर खुद पीती फिर नहा धोकर नाश्ता बनाती पति का बैंक नजदीक ही था तो वह दोपहर मे खाना खाने घर पर आ जाता
फिर तीनो मिलकर खाना खाते थे। बाहर से सब सही ही चल रहा था, परन्तु इन छह माह मे कोमल ने एकबार भी अपनी सास से यह नहीं पूछा था कि खाने मे क्या बनाऊ, आपको क्या पसंद है या आपके बेटा को क्या पसंद है। उसे जो पसंद होता वह वही बनाती थी। उसकी सास या पति को इससे कोई दिक्कत भी नहीं था,
पर एक दो बार जब सास ने रसोई मे जाकर कुछ बनाने की कोशिश किया था तो कोमल ने उनसे यह कहकर की मै बना दूंगी उन्हें बनाने से मना कर दिया था। यह बात उसकी सास को अच्छी नहीं लगी फिर तो उसके बाद उसकी सास ने भी बनाने की कोशिश नहीं किया।आज कोमल के पति का जन्मदिन है कोमल ने सोचा कि रात को वह पति से यह कहकर कि हम दोनों बाहर खाने चलते है
पति के साथ बाहर खाने पर जाएगी।इसलिए उसने दोपहर मे ज्यादा खाना बना दिया कि सास रात मे यही खा लेंगी।उधर सास को उसकी योजना के बारे मे कुछ भी नहीं पता था तो उन्होंने मुंग दाल का हलवा बनाने के लिए दाल को भींगो दिया।
जब शाम की चाय बनाने के लिए कोमल रसोई मे गईं तो उसने भींगे हुए दाल को देखकर सास से पूछा आपने किससे पूछकर इसे भिगोया है।सास ने कहा बहू बबुआ को इसका हलवा पसंद है और आज उसका जन्मदिन है तो मैंने सोचा इसे बनाउंगी। मेरी रसोई मे क्या बनेगा यह मै तय करूंगी। आइंदा कुछ भी करने से पहले मुझसे पूछ लीजिएगा।
वैसे हमदोनो आज बाहर खाना खाने जाएंगे इसलिए कुछ बनाने की आवश्यकता नहीं है। दोपहर का खाना बचा है आप वह खा लीजिएगा। जब बहू यह सब अपनी सास से कह रही थी और उसकी सास गरदन झुकाए सुन रही थी तभी कोमल का पति आज बैंक छुट्टी के पहले बाहर जाने का सोचकर जल्दी छुट्टी लेकर आ गया।आकर उसने अपनी पत्नी की बाते सुनी
उसने अपनी पत्नी को कुछ नहीं कहा, पर रोते हुए माँ से कहा माँ मै एक अच्छा बेटा नहीं बन सका। नहीं बेटा ऐसा मत कहो तुम तो मेरे बहुत ही अच्छे बेटे हो माँ ने अपने बेटे के आँसू पोछते हुए कहा। अच्छा बेटा होता तो तुम बहू की इतनी बाते सुनती? तुरंत बहू को डांट कर कहती तुम्हारी रसोई? यह मेरी रसोई है, पर तुमने ऐसा नहीं कहा, क्योंकि तुम्हे मुझपर भरोसा नहीं था।
तुमने सोचा कि मै अपनी पत्नी का साथ दूंगा। पिताजी के मरने के बाद मैंने आपको कभी दादी के हाथ की कठपुतली तो कभी मामी के हाथ की कठपुतली तो कभी चाची के हाथ की कठपुतली बनते देखा है। जिसे जब आपकी जरूरत पड़ी तब उसने आपको अपने यहाँ बुला लिया
और आपसे अपने घर के सारे काम करवाए, अपने बच्चो का पालन पोषण करवाया और नहीं तो यह भी एहसान दिखाया कि तुम माँ बेटे को पाल रहे है पर माँ उनके यहाँ जितना काम तुम करती थी उतना तो किसी गैर के यहाँ करती तो इतने पैसे मिल जाते जिससे हम माँ बेटे का जीवन आराम से चल जाता। पढ़ाई भी मैंने सरकारी स्कूल मे ही किया जहाँ पैसे तो नहीं ही लगते है
साथ ही किताब,कॉपी, स्कूल यूनिफार्म आदि फ्री मे मिलते है फिर भी तुमने उनका एहसान माना और जिसने जैसे कहा वैसे किया, पर अब नहीं अब तुम्हे मै तुम्हारे बहू के हाथो की कठपुतली नहीं बनने दूंगा। यह घर तुम्हारा है,तुम्हारे बेटे का, इसे जैसे चाहो सजाओ,संवारों, जो चाहे बनाओ, खाओ
और जिसे चाहे खिलाओ। अब तो अपने अंदर कमाऊ बेटे की माँ होने का गर्व भरो।तुम्हारा अपना घर है अपने घर की मालकिन हो इसका एहसास अपने अंदर जगाओ।फिर उसने अपनी पत्नी से कहा तुम्हे किसने कह दिया
कि तुम इस घर की मालकिन हो? इस घर की मालकिन मेरी माँ है। तुमने क्या सोचकर मेरी माँ से कह दिया कि सुबह का बचा खाना खा लेना? बाहर खाना खाने जाना है इसीलिए मै जल्दी छुट्टी लेकर आ गया। पर हम दोनों जाएंगे यह कैसे तुमने सोचा? हम तीनो जाएंगे। बहू ने सर नीचे झुका लिया।
शब्द —– कठपुतली
लतिका पल्लवी