” नही नही मुझे होली नही खेलनी मेरे ऊपर रंग मत डालना ।” वाणी पर जब उसके देवर अनुज ने रंग डालना चाहा तो वो चिल्ला कर बोली।
” ये कैसे बात कर रही हो बहू तुम तुम्हारी पहली होली है ससुराल में और फिर देवर का तो हक होता है भाभी को रंगने का !” वाणी की सास नर्मदा जी थोड़े रोष से बोली।
” हां वाणी ये तो रंगों और खुशियों का त्योहार है तुम खुशी खुशी इसे मनाओ क्यों गुस्सा दिखा रही हो। आज तो छोटी होली है कल तो कितने लोग आएंगे रंग लगाने तब क्या करोगी तुम !” वाणी के पति अतुल ने उसे समझाया।
” नहीं…मुझे नही खेलनी मतलब नहीं खेलनी और मेरी मर्जी के खिलाफ कोई मुझे रंग नही लगा सकता !” वाणी ने गुस्से में कहा और अपने कमरे में चली गई। अनुज रंगों भरे हाथ धोने चला गया भाभी के साथ होली खेलने का उत्साह जो मर गया था। इधर नर्मदा जी बहुत देर तक बड़बड़ करती रही। अतुल को वाणी का व्यवहार समझ नही आ रहा था जबकि वाणी एक समझदार पत्नी , जिम्मेदार बहू है और अपने देवर को भी भाई सा प्यार करती है।
अतुल एक मनोचिकित्सक है उसे वाणी का गुस्सा सामान्य नही लगा इसलिए वो मामले की तह तक जाने के लिए वाणी के पीछे पीछे कमरे में आया।
” देखो अतुल मैने बोला है ना मुझे नही खेलनी होली बात खत्म !” अतुल को आया देख वाणी बोली।
” ठीक है मत खेलो मैं कौन सा तुम्हे फोर्स कर रहा हूं पर तुम्हारा पति होने के नाते ये जानना तो मेरा हक है ना कि तुम्हे रंगों से इतनी नफरत क्यों है क्या पता मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं!” अतुल वाणी के पास बैठते हुए बोला।
” बस मुझे रंग नही पसंद और कोई बात नही है !” वाणी अतुल से नजरें चुराती हुई बोली।
” वाणी …मेरी तरफ देखो जरा …क्या बात है मुझे बताओ एक पति के नाते न सही एक दोस्त एक डॉक्टर के नाते ही सही !” अतुल उससे बोला।
अतुल की आंखों में जाने वाणी को क्या नजर आया कि वो अतुल से लिपट कर रोने लगी। अतुल ने उसे रोने दिया और उसकी पीठ सहलाता रहा।
” अतुल तुम्हे पता है पहले मुझे होली बहुत पसंद थी पर जब मैं कॉलेज में थी तब मोहल्ले के कुछ मनचले लड़कों ने रंग में जाने क्या मिलाकर लगाया कि मेरा सारा चेहरा जलने लगा और मैं बहुत तड़पी मम्मी ने ठंडा पानी बर्फ सब लगाया पर कुछ आराम नहीं हुआ। मैं सारी रात तड़पती रही अगले दिन डॉक्टर को दिखाया तब उसने बताया रंग में खतरनाक कैमिकल मिले हुए थे जिससे आंखों की रौशनी तक जा सकती थी। डॉक्टर ने दवाइयां दी तब जाकर महीने भर में मेरा चेहरा ठीक हो पाया पर तबसे मैने खुद को इन होली के रंगों से बिल्कुल दूर कर लिया और कसम खाई कभी होली नही खेलूंगी !” अतुल के गले लगे हुए वाणी ने सुबकते हुए कहा।
” वाणी कुछ मनचलों की गलती की सजा तुम खुद को और अपने अपनों को तो नही दे सकती ना । अनुज का कितना मन था तुम्हे रंग लगाने का और तुमने उसे झिड़क दिया…!” अतुल बोला।
” मुझे खुद इस बात का अफसोस है कि मैने अनुज से ऐसे बात की पर रंग देखते ही मुझे वही वाक्या याद आ गया । मायके में तो मैं कमरा बन्द किए बैठी रहती थी पर ससुराल में त्योहार के दिन ये तो संभव नहीं पर रंग देखते ही मैं गुस्से में पागल हो जाती हूं !” वाणी दुखी हो बोली।
अतुल प्यार से बहुत देर तक वाणी को समझाता रहा या ये कहो उसकी काउंसलिंग करता रहा।
” चलो वाणी अभी सो जाओ बाकी बात कल करेंगे !” घड़ी देखते हुए अचानक अतुल बोला और दोनो लेट गए। थोड़ी देर बाद अतुल तो सो गया पर वाणी अतुल की बातों को सोचती रही।
अगले दिन समय से उठ वाणी रसोई में पकवान बनाने में जुट गई सबने नाश्ता किया और बाहर आ गए क्योंकि वो नही चाहते थे कोई रिश्तेदार या दोस्त आकर वाणी को रंग लगाए।
अनुज एक तरफ उदास बैठा था क्योंकि उसके सभी दोस्त भाभियों के साथ होली खेलते है और एक वो है की उसकी भाभी को रंगों से ही नफरत है।
” बुरा ना मानो होली है !” तभी अनुज के पीछे से किसी ने उसके गाल पर रंग लगाया और बोला। जैसे ही अनुज ने पलट कर सामने वाले को रंग लगाना चाहा सामने वाणी को देख हाथ रोक लिए।
” हाथ क्यों रोक लिए अनुज अपनी भाभी को रंग नही लगाओगे ?” वाणी ने प्यार से उसका हाथ पकड़ कर कहा।
अनुज हैरानी से वाणी को देख रहा था पास खड़ा अतुल मुस्कुरा दिया रात का उसका समझाना रंग लाया और वाणी का रंगों से डर खत्म हो गया था।
” देख क्या रहा है अनुज भाभी के साथ पहली होली है जम कर खेल !” अतुल बोला। पर अनुज की अभी भी हिम्मत नही हो रही थी रंग लगाने की।
” अपनी भाभी को माफ नही करोगे अनुज ।” वाणी ने अनुज की झिझक देख कानों पर हाथ लगा बोला।
” अरे भाभी प्लीज माफी मत मांगिए …!” ये बोल अनुज ने वाणी के रंग लगा उसके पैर छू लिए।
वाणी के माफी मांगने पर नर्मदा जी के मन से भी कल की बात की खटास मिट गई और फिर सबने जी भर कर होली खेली।
आज होली के रंगों में वाणी के मन से अतीत की कड़वी यादें मिट गई । असल मे अतुल के रात समझाने पर वाणी ने सोचा अतीत को याद कर जिंदगी बेरंग करने से अच्छा है जिंदगी मे फिर से रंग भरे जाये। आज उसकी जिंदगी मे अतीत की दुःखद याद मिट गई और ससुराल की पहली होली की सुखद यादें जुड़ गई।
दोस्तों कुछ लोग होली के बहाने घटिया कैमिकल मिले रंग लगा खुद तो मजा लेते पर ये किसी के लिए जिंदगी भर की सजा बन जाता है जो बहुत गलत है। साथ ही अगर किसी के साथ ऐसा दुखद हादसा हो भी तो उसे उससे बाहर आने का प्रयास करना चाहिए ना की खुद को एक कोने में छिपा लेना चाहिए। आखिर होली तो त्योहार ही खुश रहने और खुशियां बांटने का त्योहार है।
कैसी लगी आपको कहानी बताइएगा जरूर?
इसके साथ ही आपको रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएं। हैप्पी होली सेफ होली।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल