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आज फिर मालती ने अपनी आदत से मजबूर होकर फोन पर हंसते हुए सामने वाले से कहा -अरे आओ,मज़ा आ जाएगा।सब मिल कर धमाल करेगे और ऐसा करना साथ मे शिखा और मणि को भी ले आना।बहुत दिनों से कोई पार्टी नही हुई।हंसते हुए मालती ने फोन रखा ही था कि राहुल ने टोकते हुए कहा -क्या मम्मी अब किसको न्योता दे दिया!न्योता दे दिया मतलब?मतलब ये कि आपकीं आदत ही पड़ गयी है कि इसे बुलाओ ,उसे बुलाओ।और कोई आ जाये तो क्या क्या खिला दे,क्या बना दे..तो इसमे बुराई क्या है?मुझे अच्छा लगता है स्वागत सत्कार करना नेहमानो का…मालती ने तेज़ी से कहा.
मालती बहुत आकर्षक और व्यवहार कुशल है।घर मे हो या किसी भी पार्टी में,हर महफ़िल की जान रहती है।घर को सजाना हो या किसी का भी अचानक आगमन हो…चुटकियों में नाश्ता या तरह तरह के पकवान बनाने में महारत हासिल थी।मजाल है कि कोई यू ही बिना खाये पिये घर से चले जाएं।शानो शौकत की शौकीन ,बड़ी ही नफासत से घर का कामकाज सम्हालने वाली मालती के बेटे की शादी कुछ ही साल पहले हुई थी,पर उसी साल मालती को अपने पति का अचानक बिछोह सहना पड़ा।
महिलाये कितनी भी साहसी हो या कितनी भी मजबूत हो,पर पति के न रहने पर मन कमज़ोर तो हो ही जाता है।लेकिन अपनी सारी संवेदनाओं को अपने ज़हन में छिपाए मालती सबसे हंसते बोलते ही जीवन बिता रही थी ।
मालती अपना खाली समय भी आस पड़ोस की सहायता करते हुए,किसी की शादी ब्याह की तैयारी करने में या कुछ न कुछ रचनात्मक कार्य करते हुए ही बिताया।और करे भी क्या इस उम्र में!पति की पेंशन ही बहुत थी बाकी की ज़िंदगी बिताने के लिए…
पर आज राहुल के टोकने से मालती हड़बड़ा गयी।राहुल ने कहना जारी रखा…मम्मी आपको समझना चाहिए कि मैं और प्रीति दोनो ही काम कर रहे है।आपका हाथ कौन बंटायगा।बिना बात घर मे भीड़ इकट्ठा करना और गपशप करना।बस यही आपने जीवन भर किया।न मालूम कितने पैसे बर्बाद कर दिया मेहमान नवाजी में …अब कोई पूछता भी है.?इन सब के चक्कर मे हम लोगो की पढ़ाई में भी ध्यान नही दिया …नही तो और कही होते…मालती सुन रही थी शांत चित्त से और सोच रही थी.. मैं तो कभी कर्तव्यों से पीछे नही हटी …चाहे मायका हो या ससुराल…सभी नंदो की शादी करना हो या देवर का व्यापार जमाना हो…सब एक कर दिया…तो क्या अपनी कर्तव्य परायणता और दूसरों को खुश करने के चक्कर मे अपने बच्चों पर ध्यान नही दे पाई।ये तो वो कभी सोच भी नही सकती थी।बच्चे तो अच्छी नौकरी में है।अभी तक अपने पिछले जीवन को सोच कर यही संतोष होता था कि मैंने हमेशा सबका साथ दिया ।सिर्फ अपनी ज़िंदगी ही नही जिया…पर राहुल की बात सुनकर लगा जैसे किसी ने ऊंचे स्थान से धक्का दे दिया हो।इतना कुछ करने के बाद भी उसे क्या मिला…हासिल आयी शून्य..
श्रद्धा निगम–
स्व रचित