हर घर की कहानी – डॉ ऋतु अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

   मोहिनी, आकर्ष को लेकर घर लौटी तो पाया कि दोनों ननदें आई हुई थीं। दोपहर के दो बज रहे थे। जब मोहिनी, आकर्ष को लेने स्कूल गई थी तब तक तो कोई भी नहीं आया था और न ही सासू माँ अंजू ने ऐसा कुछ ज़िक्र किया कि दोनों ननदें आने वाली हैं। ख़ैर, उन्हें प्रणाम कर मोहिनी, आकर्ष का बैग कमरे में रखने के लिए जाने लगी।

         “मोहिनी! पहले नीता और मीता को ठंडा पानी पिलाओ।दोनों इतनी धूप में चलकर आ रही हैं और फिर सबके लिए कुछ शरबत बना लो।” अंजू ने कहा।

          “मम्मी जी! ज़रा आकर्ष के कपड़े बदल दूँ। वह पसीने में तर-बतर हो रहा है।” मोहिनी ने उत्तर दिया।

        “वह तो तुम बाद में भी कर सकती हो। देखती नहीं कि यह दोनों धूप में आई हैं। पता भी है, बाहर कितनी गर्मी है।”अंजू चिढ़कर बोली।

         ” हाँ! मुझे क्या पता कि बाहर कितनी धूप है। मैं तो छाँव में 

चलकर आई हूँ न। क्या मम्मी जी मेरे पीछे से इन्हें पानी भी नहीं पिला सकती थीं। ख़ुद तो तीनों मज़े से ए.सी. की ठंडी हवा में बैठी हैं।”मोहिनी ने मन में सोचा पर प्रत्यक्षत: वह सबके लिए ठंडा पानी ले आई। फिर आरव के कपड़े बदल कर शरबत और बिस्कुट, नमकीन सबको परोस दिए।

                 “मोहिनी! मीता और नीता के लिए भी खाना बना लेना।” अंजू ने आवाज़ दी।

                   “जी!” कहकर मोहिनी रोटियाँ सेंकने लगी।

           “क्या भाभी! आपको तो पता था कि हम आने वाले हैं फिर भी आपने सिर्फ दाल,चावल और रोटियाँ ही बनाई हैं। कुछ सब्जी, रायता और मीठा तो बना ही लेतीं।” मीता ने कहा।

         “अरे! भाभी इतना कहाँ सोचती हैं? उन्होंने तो सोचा होगा कि बस रूखा-सूखा खिलाकर अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाएँगीं।”नीता ने नहले पर दहला मारा।

           “पर दीदी! मुझे तो आप लोगों के आने के बारे में पता ही नहीं था और मम्मी जी ने मुझे बताया भी नहीं था।” मोहिनी विस्मय से भर गई कि उसकी सास को अपनी बेटियों के आने के बारे में पहले से ही पता था पर उसे कुछ नहीं बताया गया था। 

        “अरे! मुझे याद नहीं रहा और क्या हो गया अगर नहीं बताया तो। ऐसा कर तू दो सब्जियाँ, रायता और सूजी का हलवा बना ले पर उससे पहले थोड़े से पोहे बना ले क्योंकि खाना तैयार होने में तो देर लगेगी और इन दोनों को भूख लगी होगी।”सोफे पर बैठे-बैठे ही अंजू ने फ़रमान ज़ारी कर दिया।

            “मम्मी जी! पहले मैं आकर्ष को दाल- चावल खिला दूँ, उसके बाद फटाफट खाना तैयार कर देती हूँ।” कहकर मोहिनी आकर्ष के लिए प्लेट लगाने लगी।

          “अरे! उसमें तो बहुत समय लगेगा, तब तक क्या हम सब भूखे बैठे रहेंगे? तू आकर्ष को मेरे पास बिठा दे और इसे थोड़े से बिस्कुट दे दे, जब खाना तैयार हो जाएगा तो यह भी हमारे साथ ही खा लेगा।” अंजू ने कहा पर तब तक मोहिनी, आकर्ष के लिए दाल-चावल ले आई और उसे खिलाने लगी।

          खाना खिलाने के बाद मोहिनी ने आकर्ष को सुला दिया और पोहे बनाने रही। सभी को पोहे परोसकर मोहिनी खाने की तैयारी में लग गई। अंजू, नीता और मीता पोहे खाने लगे पर उन्हें यह तक ध्यान नहीं रहा कि आकर्ष को लाने के बाद से मोहिनी ने अब तक एक गिलास पानी भी नहीं पिया है।

             सब्जियाँ तैयार करने के बाद मोहिनी हलवे के लिए सूजी भून रही थी कि अचानक उसे ज़ोर का चक्कर आया और वह गिर पड़ी। आवाज सुनकर मीता,नीता भागी हुईं रसोई घर में आईं। मोहिनी को बेहोश देखकर वह दोनों घबरा गईं और अपने भाई अमर्त्य को फोन कर दिया।

अमर्त्य जल्दी ही डॉक्टर को लेकर आ गया। चेकअप के बाद डॉक्टर ने बताया कि अत्यधिक गर्मी और डिहाइड्रेशन की वजह से की वज़ह से ऐसा हुआ है। मरीज ने काफी समय से पानी नहीं पिया है। मोहिनी को थोड़ा चेत हुआ तो उसने अमर्त्य को सारी बात बताई।

          “अरे! ऐसा तो हो ही जाता है। हम भी तो काम करते थे। इसमें इतनी क्या बड़ी बात हो गई।” अंजू अपनी ग़लती सामने आते देख बोली।

           “सही कह रही हो मम्मी! आप भी तो ऐसे ही काम करती थी। तभी तो आज तक दादी को कोसती हो। पर आप भी अपनी बहू के साथ बिल्कुल वही कर रही हो। सच है मम्मी, समय चाहे कितना भी बदल गया है पर सास को बहू की तकलीफ़ कभी नहीं दिखाई देती।” कहकर अमर्त्य,मोहिनी के लिए शिकंजी बनाने चला गया।

स्वरचित 

डॉ ऋतु अग्रवाल

मेरठ, उत्तर प्रदेश

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