“हैलो,हां मम्मी।बोलिए,सुन रहा हूं मैं। प्लीज़ पहले रोना बंद कीजिए।हर बार बात करने से पहले ही रोने लगतीं हैं आप।कब आऊंगा,ये मत पूछिएगा?मैं भी आना चाहता हूं मम्मी।कंपनी ने इस बार भी मुझे ही प्रोजेक्ट हेड बनाया है।छह महीने के लिए बुक्ड हो गया हूं।”जयेश बोले जा रहा था,और प्रतिमा की आवाज निकल ही नहीं रही थी।जयेश को अपनी ग़लती का अहसास हुआ तो थोड़ा नरम लहजे में बोला”मम्मी,नाराज हो क्या तुम भी मुझसे?”
अब प्रतिमा बोली”मैं भी नहीं, सिर्फ मैं ही नाराज़ हूं तुझसे।”
“क्यों मिस्टर हिटलर अब नाराज नहीं हैं क्या मुझसे?”जयेश ने ताना मारते हुए पूछा तो प्रतिमा ने कहा”हां रे,अब मिस्टर हिटलर लेट हो गएं हैं।”
जयेश कुछ समझा नहीं “क्या मतलब मम्मी?लेट हो गएं हैं?किस चीज के लिए वो लेट हो गएं हैं?”
प्रतिमा ने कहा”नाराज तो वो कभी थे ही नहीं तुझसे,बस यह बात समझा ना सके तुझे।तू भी समझ ही नहीं पाया।सख़्त चेहरे के पीछे का अबोध बाप तुझे कभी दिखा ही नहीं,अज्जू।तेरे पापा कल दिवंगत हो गए।पिछले पंद्रह दिनों से अस्पताल में भर्ती थे।कल रात सारे मोह -माया को छोड़ कर शांति में विलीन हो गए।”
जयेश चीखते हुए बोला”मम्मी,ऐसा मजाक मत करो प्लीज।मैं जानता हूं मिस्टर हिटलर की ही यह कोई नई चाल है।कभी नहीं सुधरेंगे ना वो।तुम अपने पति के संग मिलकर मुझे मत सताओ मम्मी।”प्रतिमा ने गंभीर होकर कहा”मैंने बहुत बार कहा उनसे,तुझे खबर करने के लिए।मुझे अपनी कसम देकर चुप करवा दिया।बोले कि अभी बताने से इतनी जल्दी आ भी नहीं पाएगा,
परिवार को छोड़कर।रहने दो।मैंने तेरे छोटे चाचा के बेटे ,मन्नू से सारी रस्में पूरी करवाई।उनकी भी यही इच्छा थी।बहुत बड़ा सहारा था वो तेरे पापा का।सारे काम कर देता था उनके।आखिरी समय में भी वही सिरहाने खड़ा था।तुझे आज बता रही हूं।तेरहवीं पर एक छोटा सा समारोह रखा है घर पर।अगर हो सके,तो आने की कोशिश करना।
“प्रतिमा ने फोन रख दिया तो जयेश धम से सोफे पर बैठ गया।पत्नी मारथा ने आकर पूछा तो जयेश ने पापा के जाने की खबर दी।मारथा ने तुरंत अपने बेटे को बुलाया और दादाजी के गुज़र जाने की बात बताई।जयेश हैरान हो रहा था मारथा को देखकर।अनवरत रोए जा रही थी वह।ऐसा लग रहा था उसी के पापा नहीं रहे।
उसके पापा तो बचपन में ही गुजर गए थे।जयेश पहली बार जब कंपनी की तरफ से आया था कनाडा,तो मारथा के साथ ऑफिस में ही परिचय हुआ था।उसके व्यक्तित्व ने तो प्रभावित किया था,परंतु उसकी सादगी पर मिट गया था जयेश।मारथा से शादी करने पर इस देश में रहने का ग्रीन कार्ड भी मिल जाएगा।छुट्टियों में मारथा को लेकर ही आया था भारत। मम्मी पापा को मिलवाया था मारथा से।पराए देश की पराए धर्म को मानने वाली मारथा के मीठे व्यवहार ने मोह लिया था प्रतिमा और उनके पति का मन।
गोविंद जी(जयेश के पिता)ने परिवार वालों के साथ विचार विमर्श करके मारथा और जयेश को शादी करने की स्वीकृति दे दी।जयेश से तो कुछ नहीं बोले थे वे,पर मारथा से कहा था “देखो बेटा तुम्हारी परवरिश दूसरे देश,दूसरे धर्म और दूसरी जाति में हुआ है।क्षणिक आवेग में आकर एक दूसरे का जीवन साथी बनने की मत सोचना।मेरा बेटा अगर तुम्हें सच में प्यार और सम्मान देता है,तभी उससे शादी करना।नहीं तो मना कर देना।विदेश में बसने के लिए तुम्हारा सहारा लेने वाला आदमी एक अच्छा पति नहीं बन पाएगा कभी।”
जयेश को उस दिन भी पापा हिटलर ही लगे थे। मम्मी ने तब समझाया था”अज्जू,उनकी हर बात का गलत मतलब मत निकाला कर ।वो दिल के बुरे नहीं हैं।कभी तो उनके पास बैठ कर बात कर लिया कर।”
“हां मम्मी,मैं ही ग़लत मतलब निकालता हूं।बचपन से आजतक कभी भी मेरी खुशी उनसे देखी गई है भला?जब साइकिल मांगा तो बोले,आठवीं के बाद। लैपटॉप मांगा तो बोले ग्रैजुएशन के बाद।बाइक मांगी तो बोले “नौकरी लग जाए।अब नौकरी करके मैं खुद ही अपने शौक पूरे करूंगा।एक बार शादी कर लूं,वहीं रह जाऊंगा।मेरा मनहूस मुंह फिर देखना नहीं पड़ेगा इन्हें।तुम्हें भी ले चलूंगा अपने साथ।रहने देना मिस्टर हिटलर को अकेले।”
प्रतिमा हंसकर कहती “मैं तेरे पापा को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली।जिस दिन तू बाप बनेगा ना,तब जानेगा कीमत बाप की।बचपन से अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाई है इन्होंने।तेरे दादाजी मरते समय चार भाई -बहनों का हांथ इनके हांथ में दे गए थे।कम उम्र में ही पिता बन गए थे ये अपने भाई -बहनों के।नौकरी के साथ-साथ खेती बाड़ी की जिम्मेदारी भी संभालते थे।
नौकरी कर पाएं इसलिए बबुआ(अनाथ) को रखा था गांव में।मुझसे शादी करके मुझे भी तब तक अपने पास नहीं बुलाया जब तक तेरे चाचा और बुआ पढ़ लिख ना गए।सबकी शादी ब्याह करी।सबका परिवार बसाया है इन्होंने।तुझे अलग से कुछ ज्यादा नहीं दिया ताकि भाई के बच्चों को बुरा ना लगे।
तेरे भविष्य के लिए पूरी व्यवस्था करके रखें हैं।तेरी आदत ना बिगड़े,तभी तेरी फरमाइश पूरी नहीं करते थे।जब भी गुस्सा करते या मारते तुझे,रात भर तेरे सिरहाने ही बैठे रहते।”जयेश तब बात काटकर बोला “तुम्हें कभी पापा में कोई बुराई दिखी है,जो आज दिखेगी।”चला आया था वह कनाडा,कंपनी की तरफ से।पापा की देखभाल के लिए तो हैं ना भाईयों के बच्चे।तीन साल से जा नहीं पाया था देश।मारथा ने कई बार कहा भी”मम्मी -पापा से मिल आतें हैं चलो।”जयेश ही प्रमोशन के चक्कर में छुट्टी नहीं ले पा रहा था।
फ्लाइट से उतर कर टैक्सी में बैठे जयेश को उसके बेटे ने कार्ड देकर किस किया। कार्ड खोलकर देखा तो लिखा था”हैप्पी फादर्स डे डैड।”जयेश बेटे को सीने से लगाकर रोने लगा।बेटे को सीने से लगाते ही लगा,पापा ने कसकर भींचा हुआ है उसे।घर पर भीड़ थी।सारा परिवार रो रहा था।जयेश के छुट्टी ना मिलने की मजबूरी सभी को पता थी।पापा के फोटो के पास जाकर बेटे का दिया कार्ड रखकर जयेश बोला”हैप्पी फादर्स डे पापा।”
प्रतिमा चुपचाप हांथ में कुछ लिए बैठी थी।जयेश ने मां को जैसे ही गले लगाया ,वो लुढ़क गई उसी की बांहों में।हांथ में उनकी हाथों से लिखे बहुत सारे खत , जन्मदिन के कार्ड, फादर्स डे के कार्ड थे।जयेश हतप्रभ रह गया। मम्मी ने इन सालों में उसकी तरफ से ये सब पापा को भेजतीं रहीं,ताकि हिटलर को दुख ना हो।शायद इसीलिए पिछली बार भी वीडियो कॉल पर ये नहीं कहा उन्होंने कि कब आएगा?।
आज पापा के किए हुए सारे वादे पूरे हुए थे।जो पढ़ना चाहता,पढ़ाया।जहां नौकरी करनी चाही,करने दी।जिससे शादी करनी चाही,करवाई।अपने जीवन भर की जमा-पूंजी अपने भाई के -बहनों के बच्चों और जयेश और जयेश के बेटे के नाम कर के गए थे।सारी ज़िंदगी पति की कीमत पहचानने वाली अर्धांगिनी भी आज उन्हीं के पास जाकर मुक्त हो गई।अब जयेश किसे हिटलर कहेगा,किससे नाराज रहेगा?
बेटे के लिपटकर रोने से जयेश की तंद्रा भंग हुई।मां से लिपटकर बोला”सच कहती थी तुम मम्मी,बाप बनकर ही बाप की कीमत समझ में आती है।
शुभ्रा बैनर्जी