हमें भी अपनाओ – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” बधाई हो बधाई ललना ने जन्म लिया बधाई हो बधाई !” आँगन मे किन्नरों ने नाचना शुरु कर दिया था । नाचते भी क्यों ना आखिर पांच साल बाद मुस्कान ने बेटे को जन्म दिया था । बहुत खुश थी मुस्कान की सास शर्मिला जी पर साथ ही तनाव मे भी थी क्योकि किन्नरों की बढ़ती मांगो के बारे मे अच्छे से जानती थी वो और इस वक्त नोट बंदी के कारण वैसे ही पैसों की किल्लत थी घर मे । 

” ला सेठानी पूरे एक लाख रूपए ले आ बहुत समय बाद घर मे खुशी आई है !” नाचते नाचते एक किन्नर जो उन किन्नरों की सरदार थी बोली। 

” क्या …एक लाख रुपए दिमाग़ तो सही है तुम्हारा !” शर्मिला जी हैरानी से बोली ।

” आय हाय सेठानी तुम तो ऐसे कर रही हो जैसे मैने तुमसे तुम्हारा राज पाट मांग लिया । पोते की खुशी के आगे एक लाख की क्या औकात ।” किन्नर बोली।।

” नही नही एक लाख बहुत ज्यादा है बेटे की शादी मे तो तुम 21 हजार मे मान गई थी अब इतना मुंह फाड़ रही हो !” शर्मिला जी तनिक गुस्से मे बोली। 

” कब की बात कर रही हो सेठानी 6 साल पहले की बात है वो और वैसे भी बेटे की शादी से बड़ी खुशी पोते का मुंह देखना होता है जो सबको नसीब नही होता । चलो ज्यादा नही तो 51 हजार ले आओ इससे एक रुपया कम ना लूंगी मैं !” किन्नर ताली बजाती हुई बोली । 

” नही नही बस 21 हजार बहुत है !” चेक बुक लाती शर्मिला जी बोली। 

” सेठानी चेक नही नगद वो भी पूरे 51 हजार जल्दी ला वरना अभी कपड़े उतारती हूँ फिर सोच लियो तेरी कितनी बेइज्जती होगी आई बड़ी हुँह !” किन्नर अब सीधा धमकी पर आ गई । 

” देखो ये धमकी देना बंद करो पहली बात तो नोट बंदी चल रही ऐसे मे इतना नगद किसी के पास नही है दूसरा 51 हजार बहुत ज्यादा है अपनी हद मे रह मांग रखो तुम !” शर्मिला जी गुस्से मे बोली। अंदर ही अंदर वो डरी भी हुई थी । पड़ोसियों का जमघट लगना शुरु हो गया था । 

” ना सेठानी 51 से एक कम ना वो भी नगद वरना लड़कियों चलो घाघरा उठाओ !” ताली बजाती किन्नर बोली।

” नही नही ऐसा मत करो चलो अंदर बैठ कर आराम से बात करते है ना !” शर्मिला जी हाथ जोड़ते हुए बोली। 

” क्या बात करेगी चल ..रुको लड़कियों जरा इसकी बात भी सुन लूं !” ये बोल वो किन्नर शर्मिला जी के साथ अंदर आ गई । 

” देखो मेरे पास इतने पैसे नही है बहू के बच्चा ऑपरेशन से हुआ है उसमे ही इतना खर्च आ गया । पड़ोस के बाकी घरो से तुमने 11 या 21 हजार लिए थे तो मुझसे इतने क्यों ?” अंदर आ शर्मिला जी बोली उनकी आँखे भर आई थी पोता होने की खुशी अब चेहरे से गायब थी उसकी जगह अब बेइज्जती का डर था। 

” उन सबके एक साल मे पोता हो गया तेरे पाँच साल मे हुआ उसका फर्क नही है क्या !! चल ऐसा कर 31 हजार दे दे अभी के अभी नगद वरना जो होगा तुझे पता है इससे ज्यादा कम तो मैं करूंगी नही और ये चेक को तो तू अपनी जेब मे डाल ले !” ये बोल किन्नर ने चेकबुक शर्मिला जी के ब्लाउज मे घुसेड़ दी । शर्मिला जी समझ नही पा रही थी वो इतना पैसा नगद कहा से लाये सरकार ने बैंक से पैसा निकालने की लिमिट ही इतनी कम रखी है । बेटा और पति काम के सिलसिले मे पास के शहर गये थे किससे मदद मांगे वो । 

उन्होंने अंदर जा सब पैसे टटोले तो बस पांच हजार थे । उन्होंने बहू से पूछा तो छह हजार उसके पास निकले अभी भी बीस हजार कम थे । उन्होंने फिर एक बार किन्नर से विनती की के 11 हजार नगद और बाकी चेक ले ले पर वो तैयार नही थी। 

बेबसी मे शर्मिला जी पड़ोसियों से मदद मांगने गई किसी ने बड़ी मुश्किल 2-3 हजार दिये किसी ने मना कर दिया । अब 21000 इकट्ठा हो गये पर दस हजार अब भी कम थे । वो सडक के एक तरफ खड़ी रोने लगी। 

” क्या हुआ आंटी जी ?” तभी उसकी किरायेदार रक्षा बाज़ार से आई और पूछने लगी। 

” बेटा …!!” शर्मिला जी ने रोते रोते सब बात कह दी। 

” अरे आंटी आप क्यों डर रहे हो उतारती है कपड़े उतारने दो ऐसे इनकी धमकी से डर इनकी मांगे पूरी करना गलत है !” रक्षा बोली। 

” नही बेटा मोहल्ले मे इज्जत है हमारी अगर ये तमाशा हुआ तो बहुत बदनामी हो जाएगी बस किसी तरह 10 हजार का प्रबंध हो जाता तो ये मुसीबत टल जाती। 

” आंटी जी बदनामी का डर दिखा कर ही तो ये ऐसे करती है खैर ये लीजिये दस हजार रूपए बेटी की ca कोचिंग की फीस जानी है उसके लिए प्रबंध किया था मैने भी आप फिलहाल इनसे काम चलाइये मैं फीस कुछ दिन बाद दे दूंगी !” रक्षा शर्मिला जी के हाथ मे दस हजार रुपए रखती हुई बोली। 

उन दस हजार रुपयों को देख शर्मिला जी की आँखों मे चमक आ गई वो जल्दी से घर की तरफ भागी । रक्षा शर्मिला जी को देख सोचने लगी जिस महिला ने हमेशा दूसरों की मदद की है वो आज कितनी लाचार नज़र आ रही है । सरकार क्यों नही इन किन्नरों की भी एक निश्चित रकम फिक्स कर देती जिससे लोग इनके आगे इतने लाचार ना बने । अपनी खुशी से हर कोई देना चाहता है पर यहाँ बात जबरदस्ती की हो जाती है।

खैर किन्नरों को पैसे दे दिये और वो खुशी खुशी चली गई । पीछे रह गई एक बेबस दादी जो अभी कुछ देर पहले पोता हुए की खुशी मना रही थी और अब चिंतित थी सबके पैसे जो लौटाने थे। खैर बुरा वक्त बीता और शर्मिला जी ने सबके पैसे भी लौटा दिये किन्तु इस घटना ने उनके मन मे किन्नरों के प्रति एक क्षोभ , गुस्सा और डर पैदा कर दिया । अब कहीं भी किन्नर नज़र आते उन्हे तो वो खुद मे सिमट जाती मानो किन्नर उन्हे फिर घेर लेंगे । कहीं किन्नर मनचाही रकम ना मिलने पर खुद को निर्वस्त्र जब कर रहे होते तो उन्हे लगता किन्नरों के कपड़े नही उनकी खुद की इज्जत सरे बाज़ार उतर गई है। 

कहते है वक्त हर घाव भर देता है पर वो शायद शरीर के घाव होते है दिल पर लगे घाव को कोई वक्त नही भर सकता । वक्त गुजरता रहा और गुजरते वक्त के साथ शर्मिला जी के अंदर किन्नरों को ले डर कम होने का नाम नही ले रहा था । एक दिन शर्मिला जी बहू और पोते के साथ बाजार से वापिस आ रही थी क्योकि उनकी बेटी की ननद की शादी थी इसलिए वो अपनी तरफ से देने के लिए उपहार लेने बाजार गई थी । वापसी मे सुनसान जगह पर कुछ गुंडों ने लूटपाट के इरादे से शर्मिला जी पर हमला कर दिया उनकी और उनकी बहू की चेन , पर्स सब लूट लिए । शर्मिला जी की बहू तो बेटे को संभालने मे लगी थी पर शर्मिला जी लुटेरों से मुकाबला कर रही थी । खून पसीने की कमाई को ऐसे लूटते देख जाने कहाँ से उनमे हिम्मत आ गई थी । उस वक्त उस जगह से दो तीन लोग निकल रहे थे पर वो कहते है ना आजकल दूसरे के मामले मे कोई नही पड़ना चाहता तो सब साइड से निकल कर जा रहे थे । शर्मिला जी चेन छोड़ने को तैयार नही थी अपनी जान की परवाह किये बिना वो लुटेरों से लोहा ले रही थी ।

तभी अचानक एक लुटेरे ने शर्मिला जी पर चाकू का वार किया शर्मिला जी कटे वृक्ष जी गिरने ही वाली थी कि दो मजबूत बांहों ने उन्हे थाम लिया । तभी वहाँ कुछ शोर सुनाई पड़ा और अपनी बंद होती आँखों से शर्मिला जी ने देखा कुछ किन्नर लुटेरों पर टूट पड़े थे । जिस किन्नर ने शर्मिला जी को थामा था वो उन्हे बाजुओं मे उठा भागा जा रहा था बस इतना देखा शर्मिला जी ने फिर उन्हे होश नही रहा जब होश आया तो खुद को अस्पताल मे पाया।

“नर्स मैं ..आह….!” होश मे आने पर सामने नर्स को देख शर्मिला जी बस इतना बोली।

” आपको होश आ गया मैं आपके घर वालों को बता देती हूँ बेचारे कबसे परेशान है !” नर्स मुस्कुराते हुए बोली और बाहर चली गई ।

” बहू तुम ठीक हो ना तुम्हे तो उन लुटेरों ने कुछ नही किया और मुन्ना वो तो ठीक है ना  ?” अपने घर वालों को सामने देख शर्मिला जी ने पहला सवाल अपनी बहू से किया ।

” मांजी मैं और मुन्ना बिल्कुल ठीक है और ईश्वर का धन्यवाद जो उसने सही समय पर इन किन्नर दीदी को भेज दिया था हमारी रक्षा को वरना जाने क्या हो जाता । कितना खून बह गया था आपका मैं तो डर के मारे कुछ कर ही नही पा रही थी । ये ही आपको उठाकर यहाँ तक लाई यहाँ तक की अपना खून तक दिया कितनी मुश्किल से डॉक्टर माने इनका खून आपको चढ़ाने को हम भी मजबूर थे क्योकि आपका खून किसी से मैच नही हो रहा था !” उनकी बहू एक सांस मे सब बोल गई। इतने मे पुलिस आई जो शर्मिला जी का बयान लेना चाहती थी उनकी बहू का ब्यान वो पहले ही ले चुकी थी । शर्मिला जी ने जो हुआ वो उन्हे बता दिया। उनके साइन ले पुलिस चली गई।

शर्मिला जी ने एक नज़र अपने परिवार पर डाली तो देखा उनके परिवार वालों के साथ वहाँ एक किन्नर भी खड़ी है वो समझ गई यही वो किन्नर है जिसने उनकी जान बचाई है । एक बार को तो शर्मिला जी का डर लौटने लगा और वो नज़र चुराने लगी पर बहू की कही बात पर गौर करने के बाद उन्होंने जब उस किन्नर की तरफ देखा तो उसकी आँखों मे अपने लिए चिंता देख उन्हे अजीब लगा। 

धीरे धीरे शर्मिला जी ठीक हो रही थी वो किन्नर जिसका नाम चम्पा था वो रोज शर्मीला जी को देखने आती हालाँकि अपने डर के कारण शर्मिला जी उससे ज्यादा बात ना कर पाती थी । 

” क्या बात है बहन तुम्हे मेरा यहाँ आना अच्छा नही लगता क्या ? अगर ऐसा है तो मैं कल से नही आउंगी !” एक दिन चम्पा शर्मिला जी को सहमा सा देख बोली।

” नही नही दीदी ऐसी बात नही है !” शर्मिला जी की जगह उनकी बहू बोली। 

” बाबू इंसान की नज़र देख पहचान जाती है ये चम्पा और तेरी सास की नज़र मे मेरे लिए नफरत सी नज़र आती है । माना हम किन्नर है पर अछूत नही !” चम्पा हाथ नचा कर बोली। 

” दीदी ये नफरत नही है खौफ है जो मांजी की नज़र मे पिछले एक साल से है …असल मे जब मुन्ना हुआ था तब ..!” शर्मिला जी की बहू ने अतीत का किस्सा कह सुनाया । ” बस यही वजह है कि मांजी आपको देख सहम जाती है । 

” बहन तुम्हारी बिरादरी मे भी तो अच्छे के साथ बुरे लोग होते होंगे कभी ना कभी तुम्हारा ऐसे लोगो से सामना भी हुआ होगा तो क्या तुम अपनी बिरादरी के लोगो से भी खौफ खाती हो ? ” चम्पा ने शर्मिला के हाथ पर हाथ रखकर पूछा । एक बार को तो शर्मिला जी ने अपना हाथ हटाना चाहा पर फिर कुछ सोच कर रुक गई । 

” पर मैं वो अपमान भूल नही पा रही !” शर्मिला जी मुंह नीचा कर धीमी आवाज़ मे बोली। 

” अपमान तो हमने भी बहुत झेला है तुम्हारी बिरादरी के लोगो के हाथों। अरे इससे बड़ा अपमान क्या होगा कि हमें तो हमारे घर वालों तक ने दुत्कार दिया । कोई किन्नर इज्जत से जीना चाहे पढना चाहे तो भी तुम्हारा समाज उसे ये करने नही देता तो मजबूरी मे उसे इसी पेशे मे आना पड़ता है हां कानून ने आज हमें अधिकार दिये है पर आपकी बिरादरी ने नही !” चम्पा दुखी हो बोली।

” पर बिना किसी की मजबूरी समझे यूँ पैसो के लिए बेइज्जत करना तो गलत है ना ..जबकि हम लोग अपनी खुशी से खुद देते है पर ज्यादा की मांग करना ब्लैकमेल करना ये सब गलत है !” शर्मिला जी डरते हुए बोली क्योकि उन्हे अभी भी थोड़ा डर लग रहा था। 

” बिल्कुल गलत है इसलिए मैं तो खुद चाहती हूँ सरकार एक निश्चित रकम हमारे लिए भी फिक्स कर दे जिससे हमें भी अपमान ना सहना पड़े । वैसे तुम्हे सही बताऊं बहन आजकल जो किन्नर नही है वो भी किन्नर बने बैठे जिससे मेहनत ना करनी पड़े ऐसे लोग ही ज्यादा ब्लैकमेल करते है ।” चम्पा बोली ।

” हो सकता है आपकी बात सही हो पर हम लोगो को ऐसे बहुत अपमान सहना पड़ता है । हम खुद उन्हे खुशी मे शामिल कर रहे तो बड़ा दिल कर उन्हे भी जो मिल रहा ले लेना चाहिए। मांजी उस वक्त कितना गिड़गिड़ाई थी उनके सामने वो चेक देने को तैयार थी पर उन लोगो को तो नगद चाहिए था सब  !” इस बार शर्मिला जी की बहू बोली ।

 “बहन हमारा किन्नर होना हम पर धब्बा है हम लोग खुद नही चाहते अगले जन्म मे हम दुबारा किन्नर बने जिनको मरने के बाद भी रात के अंधेरे मे ले जाया जाता है इसलिए हम लोगो का दिल नही दुखाती । बल्कि मैं तो कहती हूँ हम लोगो को सब अधिकार दो जिससे हम भी इस नर्क की दुनिया से बाहर निकले । हम भी आपकी तरह है , हमारा भी खून लाल है फिर सिर्फ ईश्वर की दी एक कमी के कारण हमें हीन समझना गलत है । सब लोग अपना बड़ा दिल कर हमें अपनाये हमें देख नाक मुंह ना सिकोड़े सिर्फ मर्द औरत की बराबरी की बात ना हो हमें भी उसमे शामिल किया जाये फिर देखो हम भी किसी से कम नही है !” चम्पा नम आँखों से बोली।

” ईश्वर करे वो दिन जरूर  तब तक आपकी बिरादरी के हर इंसान को ईश्वर सद्बुद्धि दे । वैसे आपसे मिलकर आपको जानकर मुझे अच्छा लगा  !” शर्मिला जी चम्पा का दर्द समझ उसके कंधे पर हाथ रखती बोली। 

” और आपकी बिरादरी के हर इंसान को भी !” चम्पा नम आँखे होने के बाद भी मुस्कुरा दी ।

कुछ दिन मे शर्मिला जी ठीक हो घर आ गई तब तक चम्पा उन्हे देखने रोज आती थी। अब शर्मिला जी को चम्पा से डर नही लगता था उन्हे चम्पा भी खुद के जैसे लगती थी । शर्मिला जी के घर आने के बाद भी उन्होंने चम्पा को घर बुलाया क्योकि उनकी रगों मे चम्पा का भी खून था तो वो उन्हे अपनी सी लगती थी ।

दोस्तों ये कहानी मैने किसी के अनुरोध पर लिखी है।  आपकी इसपर क्या राय मैं नही जानती इसलिए आपसे अनुरोध है अपनी राय रखिये पर गलत कमेंट मत कीजिये

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

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