हेयर ड्रायर – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  हम लड़कियाँ जब स्कूल से काॅलेज़ में आते हैं..फ़्राॅक से एकाएक सलवार-सूट परिधान में खुद को बहुत बड़ा और फ़ैशन की सभी वस्तुओं का उपयोग करने के काबिल समझने लगते हैं।मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था।मेरी अलमारी के रैक पर किताब- कपड़ों के साथ-साथ सेंट और नेलपाॅलिश की शीशियाँ भी नजर आने लगीं थीं।

     उन्हीं दिनों मैंने एक फ़िल्म में किसी अभिनेत्री को एक यंत्र से बाल सुखाते देखा।तब समझ में आया कि बाल जैसी तुच्छ चीज को भी सुखाने के लिए कोई उपकरण होता है।जिस केश को कवि- गीतकार काली घटा और बलखाती नागिन की उपमा देते हैं, उसे तो पार्लर वाली सेकेंड भर में अपनी कैंची से कतरकर कचरा बना देती है, तो फिर बाल मूल्यवान तो रहे ही नहीं।

     खैर, तो बात हो रही थी बाल सुखाने वाले यंत्र की।फ़िल्म के एक दृश्य के संवाद में अभिनेत्री ने उस यंत्र को हेयर ड्रायर कहा तब हमें इतना ही समझ में आया कि हेयर ड्रायर को हिरोइन लोग ही इस्तेमाल करतीं हैं।

      कुछ समय बाद हमारे हाॅस्टल में एक नई लड़की का आगमन हुआ।उसके हाव-भाव से ही स्पष्ट हो गया था कि वो किसी रईस की साहेबज़ादी हैं।एक दिन गलती से मेरी सहेली सुधा उसके कमरे में चली गई।उस वक्त साहेबज़ादी उसी उपकरण से अपने गीले बालों को सुखा रही थी।सुधा मेरे पास आकर अपनी आँखें बड़ी करके बोली,” विभाऽऽऽऽऽऽऽ.., उसके पास हेयर ड्रायर है।”

     मैंने भी उसी अंदाज़ में कहा,” अच्छा…!” उस दिन मेरे दिमाग में बैठ गया कि हेयर ड्रायर को अमीर घराने की बेटियाँ ही इस्तेमाल कर सकतीं हैं,मध्यमवर्गीय परिवार की मुझ जैसी बेटी तो उसकी कल्पना भी नहीं कर सकती।

       शिक्षा पूरी हो गई तो मेरा विवाह एक सरकारी कर्मचारी के साथ हो गया।जो मिला..जितना मिला, सबमें खुश।समय के साथ हमने फ़्रिज, गीजर, ओवन, एसी जैसी आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया लेकिन हेयर ड्रायर को अपने घर में न ला सकी।

दरअसल वो हमारे दिमाग में ही नहीं था क्योंकि उन दिनों थे हमारे काले-घने लंबे बाल, जिसकी धुलाई होने के बाद सुखाने के लिए तौलिया, पंखे की हवा और सूर्य देवता का ताप पर्याप्त था।

     समय बीतता गया।बच्चे बड़े हो गये..पति रिटायर और मैं पचपन पार कर गई।एक दिन खरीदारी करने के लिए मार्ट गई।लिस्ट वाली चीज़ें ट्राॅली में रखकर मैं electronic section की तरफ़ गई तो मेरी निगाह hair dryer के बाॅक्स पर पड़ी।

दबी इच्छा जाग्रत हो उठी।सोचा, खरीद नहीं सकती हूँ तो क्या हुआ।देख तो सकती हूँ..छूकर उसके एहसास को महसूस तो कर सकती हूँ।बस मैंने बाॅक्स नीचे उतारा..जिज्ञासावश कीमत देखी तो 499rs मात्र.. देखकर मेरी आँखें फटी की फटी रह गई।सिर्फ़ पाँच सौ रुपये के हेयर ड्रायर के लिए मैंने…।

मोदी जी ने 2016 में नोटबंदी करके एक अच्छा काम किया था।अब हमें पर्स में रुपये हैं या नहीं, इसकी चिंता नहीं करनी पड़ती है।एक कार्ड है ना…बस खरीद लो।मैंने भी हेयर ड्रायर खरीद लिया।घर आकर बेटे को दिखाते हुए बोली,” अब मैं भी अमीर हो गई।” 

                              विभा गुप्ता

                           स्वरचित, बैंगलुरु

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