ससुराल छोड़ कर आई है… अपने साथ-साथ पूरे खानदान की इज्जत को मिट्टी में मिला दिया इसने… इसलिए कहती थी… मत पढ़ा इसे इतना, पर मेरी बात तो इस घर में सबको ज़हर लगती है… अब भुगतो..!
शांति जी ने अपने पूरे परिवार के सामने कहा…
शांति जी के परिवार में, उनके पति नरेंद्र जी, बड़ा बेटा विनोद, उसकी पत्नी आरती, छोटा बेटा प्रमोद और उसकी पत्नी नंदनी रहते थे… विनोद और आरती की दो बेटियां मीरा और मधु थी और प्रमोद और नंदिनी का एक बेटा राजू था…. विनोद और प्रमोद अपना खानदानी व्यापार चलाते थे…
विनोद की बड़ी बेटी मीरा की शादी हुए बस एक ही साल हुआ था और वह अपने ससुराल में झगड़ा कर, अपने मायके वापस आ गई थी… यहां उसकी दादी शांति जी उसी के बारे में कह रही थी… शांति जी बहुत कुछ कहे चली जा रही थी… और मीरा बस रोए चली जा रही थी…
शांति जी: क्यों रे..? झगड़ा किस घर में नहीं होता…? पर हर कोई, अगर ऐसे ही घर छोड़ कर आ जाए… तब तो हो गया…
मीरा सिसकते हुए… दादी..! मैंने बहुत कोशिश की उस घर के अनुसार खुद को ढालने की, पर नहीं हो पाया… वहां मैं एक सामान की तरह हूं बस… जिसकी जब जरूरत हुई, इस्तेमाल किया, नहीं तो एक लात मारकर किनारे कर दिया… वहां मेरी कोई इज्जत नहीं…
दादी: हाय रे इज्जत..! बड़ी आई इज्जत पाने वाली… हम औरतों को बहुत कुछ सहना पड़ता है… इन छोटी-छोटी बातों पर अगर सभी औरतें ऐसा ही करने लगी, फिर तो इस दुनिया में कभी कोई घर बसे ही ना….
मीरा की मां (आरती): मां जी..! यह कैसी बातें कर रही हैं आप..? आप भी तो एक औरत है… फिर कैसे आप इसकी तकलीफ देख नहीं पा रही..? जहां अपनी कोई इज्जत नहीं, वहां जिंदगी नर्क से ज्यादा कुछ नहीं होती..
इस कहानी को भी पढ़ें:
सारे फ़र्ज बहू के ही क्यूं? – कुमुद मोहन
शांति जी: बेटी तो बेटी.. अब मां भी बोल पड़ी… क्या इसी दिन के लिए इतने पैसे खर्च करके, ब्याहाया था इसे… खुद की एक और बेटी भी ब्याहनी है.. यह मत भूलना… अभी भी वक्त है इसे समझा-बुझाकर इसके ससुराल भेज… वरना इस घर की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी और मधु के लिए कोई अच्छा रिश्ता भी ना आएगा… यह कहकर शांति जी वहां से उठ कर चली जाती है…
फिर अगले दिन…
शांति जी: अरे..! बहू… सुबह से जगी बैठी हूं… अभी तक एक कप चाय किसी ने नहीं पूछा… क्या बात है…? अपनी बेटी का बदला मुझसे ले रही हो क्या…? इतने में शांति जी की छोटी बहू नंदनी चाय लेकर आती है…
शांति जी: क्या बात है..? चाय मांगती नहीं तो मिलती नहीं क्या…?
नंदनी: मां जी..! इतना चिल्लाने से तो बेहतर होता, आप खुद ही अपने लिए चाय बना लेती…
शांति जी: अरे यह कैसी बातें कर रही हैं…? यह कोई तरीका है अपनी सास से बात करने का..? आने दे आज प्रमोद को, वही तेरी खबर लेगा…
शाम को जब शांति जी प्रमोद को यह सारी बताती बातें बताती है…
प्रमोद: क्या मां..? इतनी उम्र हो गई है, यह नहीं कि भजन कीर्तन में मन लगाए… बस… जब देखो बहुओं के पीछे पड़ी रहती है….
इस कहानी को भी पढ़ें:
मुखोटे – डा.मधु आंधीवाल
शांति जी तो प्रमोद के इस बात से हैरान ही हो गई… अब तो आए दिन हर कोई शांति जी से ऐसे ही बातें करता है… यहां तक कि उनके पति नरेंद्र जी भी..
1 दिन शांति जी सबको बुलाकर कहती है…. मैं अब हमेशा के लिए आश्रम जा रही हूं… वैसे भी इस घर में अब तो ना मेरी कोई कदर है और ना ही इज्जत और जहां कोई इज्जत नहीं, वहां रहना दम घुटने जैसा होता है…
आरती: मां जी..! इस घर को आपने अपना पूरा जीवन दे दिया… पर फिर भी कुछ दिनों की बेरुखी ने आपको एक पल में इस परिवार को छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया… ज़रा सोचिए… मीरा को तो उस घर पर गए एक ही साल हुआ हैं.. और उसे वहां सिर्फ अपमान मिला, तो वह कैसे उस परिवार से खुद को जोड़ पाएगी..? आपने अभी-अभी कहां… जहां इज्जत नहीं, वहां दम घुटने लगता है… तो मीरा का भी तो वहां दम घुटता होगा ना..? आपको हम कह कर यह बात समझा नहीं पाते, इसलिए हमने यह नाटक किया… ताकी आप मीरा की तकलीफ को समझ पाए…
हम पहले तो अपनी बेटियों की तकलीफ समझते नहीं और बाद में फिर अफसोस करने के अलावा कुछ बचता नहीं…
शांति जी रोते हुए… माफ कर दे मेरी बच्ची..! एक औरत होकर भी तेरी तकलीफ देख नहीं पाई.. माफ कर दे अपनी दादी को….
मीरा अपने दादू की और देखकर कहती है… थैंक्यू दादू…!
शांति जी हैरान होकर.. तू इन्हें क्यों थैंक यू कह रही है…?
मीरा: क्योंकि यह सारा नाटक इन्हीं का बनाया हुआ है…
शांति जी: हां… मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था… क्योंकि जब नाटक की बात हो… इनसे बेहतर कोई हो ही नहीं सकता…. मुझे तो शक होता है… आप हमेशा से कहते हैं कि आप मेरी बहुत इज्जत करते हैं… कहीं वह भी नाटक तो नहीं..?
नरेंद्र जी: समझदार को इशारा ही काफी है….
सभी हंस पड़ते हैं….धन्यवाद
#इज्जत