गुरुर – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” पापा आपको आपके पैसो का बहुत गुरुर है ना तो रखिये इन्हे संभाल कर नही चाहिए मुझे , आपको अपने बेटे से ज्यादा पैसे प्यारे है इसलिए बेटे की खुशी कोई मायने नही रखती आपके लिए कैसे पिता है आप  !” तनुज के इतना बोलते ही सकते मे आ गये पिता राजेश और माँ सविता।

” ये कैसे बात कर रहा है तू अपने पिता से संस्कार भूल चुका है तू !” सविता गुस्से मे बोली।

” और ये जो भूल चुके है कि मैं इनका बेटा हूँ अरे जरूरतें पूरी नही कर सकते तो पैदा ही क्यो किया ?” तनुज चिल्ला कर बोला।

” जरूरतें और शौक मे अंतर होता है तनुज , हर माता पिता अपने बच्चो की जरूरतें पूरी करने को जी जान लगा देते है किन्तु शौक पूरे करना हर माँ बाप के बस मे नही होता इसलिए वो अपने बच्चो को काबिल बनाते है जिससे वो अपने शौक खुद पूरे कर सके तू भी बन काबिल फिर करियो अपने शौक पूरे !” सविता बोली पर तनुज कहा सुनने वाला था वो तो गुस्से मे पैर पटकते बाहर चला गया। 

इधर राजेश आँखों मे आँसू लिए सोफे पर बैठे शून्य मे निहार रहे थे । अपने अठारह साल के बेटे के कहे शब्द तीर बनकर उनकी छाती को भेद रहे थे । क्या कुछ नही किया इस बेटे के लिए उन्होंने । शादी के पांच साल बाद तक भी जब माता पिता बनने का सौभाग्य नही मिला दोनो को तो कितने मंदिरो मे माथा टेका , कितने व्रत , हवन किये तब जाकर शादी के आठवें साल तनुज पैदा हुआ । कितना खुश हुए थे दोनो । सिमित आमदनी मे तनुज को हर सुविधा देने के चककर मे दूसरे बच्चे का भी नही सोचा राजेश और सविता ने ,

पर शायद यही गलती कर गये वो । इकलौता बेटा होने और हर सुविधा मिलने के कारण वो स्वार्थी होने लगा । जबकि वो सुविधा जुटाने मे राजेश जी दिन रात मेहनत करते , ओवर टाइम लगाते । लेकिन तनुज को इससे कोई मतलब नही था उसकी मांगे दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी और अब तो हद ही हो गई

जबसे तनुज ग्यारहवीं मे आया स्कूल मे कुछ अमीर और बिगड़े लड़को की सोहबत मे पड़ गया । उनके फोन देख तनुज ने भी स्मार्ट फोन की मांग रख दी जिसे राजेश ने पूरा भी कर दिया पर अब उसे बाइक चाहिए थी राजेश और सविता पहले तो कम उम्र का होने के कारण टालते रहे किन्तु अब तनुज अठारह साल का हो रहा था तो उसे अब बाइक चाहिए ही चाहिए थी जबकि राजेश जी ने जो पैसा बचाया था वो उसकी उच्च शिक्षा के लिए था।

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आज तनुज जिद पर अड़ गया राजेश और सविता ने उसे समझाया भी कि कॉलेज तक आते आते बाइक दिला देंगे क्योकि अभी तो बारहवी मे है वो और स्कूल मे बाइक ले जाने की मनाही है । इसपर तनुज का तर्क था उसके दोस्त भी तो स्कूल से बाहर बाइक खड़ी करते है वो भी कर देगा पर बाइक लेकर रहेगा । मना करने पर उसने पिता को इतना कुछ सुना दिया।

” सुनो जी आप दुखी मत होइए तनुज तो बच्चा है बचपने मे बोल गया वो !” पति को दुखी देख सविता उसके पास आई और बोली। 

” सविता मेरा तनुज बोलता है मुझे पैसे का गुरुर है , पर वो ये नही जानता उसका बाप एक लाचार बाप है जो हर महीने उसके खर्च पूरे करने को अपनी जरूरतों मे कटौती करता है ।” राजेश रोते हुए बोला।

” आप क्यो मन छोटा कर रहे है अपना , समझ जायेगा तनुज मैं प्यार से समझाऊंगी ना उसे !” कहने को तो सविता कह गई पर उसे भी तनुज की बात बहुत बुरी लगी थी। 

” सविता कितने जतन किये थे तनुज को पाने के लिए हमने और जब वो हमारी जिंदगी मे आया था कितना खुश हुए थे हम , तभी सोच लिया था इसके लिए सब कुछ करूंगा भले मुझे कितनी मेहनत करनी पड़े , खुद संघर्ष करना पड़े पर इसको सब कुछ दूंगा , अच्छी शिक्षा , खिलौने जो भी इसकी जरूरत होगी सब । पर मैं कितना मजबूर बाप हूँ अपने इकलौते बच्चे की जरूरतें नही पूरी कर पा रहा जिसके कारण वो मुझसे दूर होता जा रहा है  !” राजेश रोते हुए बोला।

” आपने उसकी हर जरूरत पूरी की है जानती हूँ उसके लिए आप कितनी मेहनत करते है खुद ने आपने कबसे नए कपड़े नही लिए पर उसे हर त्योहार पर दिलाते है , उसके लिए पैसे बचाने को कितना पैदल चलते है , सब जानती हूँ मैं कैसे उसकी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए एक एक पैसा जोड़ रहे है आप जिससे कल को वो आपकी तरह मजबूर ना हो , तनुज ने आपका संघर्ष भले नही देखा मैने देखा है मैं साक्षी हूँ उसकी फिर आप क्यो जी छोटा कर रहे हो !” सविता उसे गले से लगा चुप कराते हुए बोली। 

” नही सविता ये सब संघर्ष व्यर्थ है अगर आपका बच्चा आपसे खुश नही । मैं हर परेशानी झेल सकता हूँ पर उसकी नफरत नही और आज मैने अपने बेटे की नज़र मे नफरत देखी है । एक पिता अपने बच्चो की खुशी के लिए सब करते है और मैं एक बाइक नही दिला पा रहा कैसा पिता हूँ मैं । मै अच्छा पिता नही हूँ , नही हूँ मैं अच्छा पिता !” राजेश फूट फूट कर रो दिया ।

” किसने कहा आप अच्छे पिता नही है आप तो बेस्ट पापा है मैं ही अच्छा बेटा नही हूँ जो एक पिता का त्याग नही समझ पा रहा मुझे माफ़ कर दो पापा !” तभी दरवाजे पर खड़ा तनुज बोला उसकी आँख मे भी आँसू थे क्योकि वो अपने माँ बाप की सारी बाते सुन चुका था । 

” बेटा तू !” राजेश बस इतना बोला। 

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” हां पापा मैं आपका नालायक बेटा ..वो तो अच्छा हुआ मैं अपना फोन यहाँ भूल गया जिसे लेने आया तो आप दोनो की बातें सुनी , वरना मैं तो समझ ही नही पाता एक माँ बाप अपने बच्चो के लिए कितना त्याग करते है !” तनुज पिता के कदमो मे बैठता हुआ बोला। 

” नही बेटा वो तो हर माँ बाप का फर्ज होता है !” राजेश बोला।

” और बच्चो का फर्ज !!! उसका क्या क्या उनका फर्ज सिर्फ माँ बाप से जिद करना ही होता है बिना परिस्थितियों को समझे ।” तनुज पिता की गोद मे सिर रख रोने लगा।

” बेटा मैं तुझे जल्दी बाइक लाकर दे दूंगा तू चिंता ना कर बस मुझे थोड़ा वक़्त दे बेटा क्योकि जो पैसे मेरे पास है उससे तेरी इंजीनियरिंग की फीस भरना ज्यादा जरूरी है । तूने बोला मुझे पैसे का गुरुर है हां है बेटा मुझे पैसो का गुरुर क्योकि वो जोड़ा हुआ पैसा ही मेरे बेटे को सिर उठा कर जीना सिखाएगा !” राजेश तनुज को गले लगाते हुए बोला।

” पापा आप बस कुछ साल मेरी जरूरतें पूरी कीजिये शौक तो अब मैं आपके पूरे करूंगा अपनी कमाई से । बाइक तो अब कैंसिल क्योकि अब तो खुद की कमाई से कार लूंगा और अपने माता पिता को उसमे घुमाऊंगा । मैने जो आपका और माँ का दिल दुखा कर गुनाह किया है उसका पछतावा यही होगा कि आप अपने बेटे पर गुरुर करे एक दिन । और वो दिन अब मुझे लाना है बस आप मुझे माफ़ करके मेरे सिर पर अपना आशीर्वाद भरा हाथ रख दीजिये !” तनुज बोला। 

” बेटा तू मेरा गुरुर कल भी था आज भी है और कल भी रहेगा , चल अब रोना बंद कर खाना भी नही खाया तूने भूख लगी होगी !” राजेश जी उसके आँसू पोंछते हुए बोले । जवाब मे तनुज भी पिता के आँसू पोंछने लगा । ये सब देख सविता की आँखों मे खुशी के आंसू आ गये ।

दोस्तों कुछ युवा होते बच्चे दोस्तों की देखादेखी अपने माता पिता से ऐसी मांग रख देते है जो हर माता पिता के बस मे नही होता । अपने बच्चो के सुखद भविष्य के लिए वो पाई पाई जोड़ते है जिसे बच्चे समझ नही पाते । वो जुड़े हुए पैसे का उन्हे गुरुर नही होता एक तसल्ली होती है कि उनके बच्चो की राह मे कोई अडचन नही आएगी । ऐसे मे बच्चो का फर्ज है वो माता पिता के त्याग को समझे और अपना भविष्य बनाये जिससे माता पिता को अपने बच्चो पर गुरुर करने का मौका मिले क्योकि बच्चे ही माता पिता की दौलत होते है । 

 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

#पैसे का गुरुर

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