राधा गरीब मां-बाप की बेटी थी और गरीब घर में ही ब्याही गई।पति रमेश पढ़ाई नहीं कर पाए थे,पिता को लकवा मार देने के कारण।राधा शादी से पहले साड़ी के शोरूम में नौकरी करती थी।एक रिश्तेदार की शादी में सास ने उसे पसंद कर लिया था अपने बेटे के लिए।
रमेश तब हैदराबाद में किसी निजी कंपनी में नौकरी करते थे। ससुर मिस्त्री का काम करते थे।रोज़ का कमाना और रोज का खाना।रमेश और राधा हैदराबाद में सुखी थे,हर महीने पैसे भेजते थे घर में।
पहला बच्चा होने पर जैसे ही राधा मायके आई,रमेश का काम से मन उचट गया।डिलीवरी से एक महीने पहले ही काम-काज छोड़ कर आ गए थे,और बेटी हो जाने के बाद फिर गए ही नहीं।एक मिनट के लिए बेटी को नहीं छोड़ते थे।पिता की कोई आय थी नहीं तो रमेश भी घर पर रहकर दिहाड़ी मजदूरी करने लगे।
राधा ने जिस उज्जवल भविष्य के सपने देखे थे अपनी बेटी के लिए,वो सारे अब असंभव लगने लगे।सीमित कमाई के कारण घर खर्च में कटौती होते-होते बच्ची के दूध के भी लाले पड़ने लगे।बुरी संगत में पड़कर रमेश की आदतें भी बिगड़ने लगी।सास और ससुर राधा को जली-कटी सुनाने लगे।
राधा जब रमेश से अच्छी नौकरी ढूंढ़ने की बात करती तो वह भी सुनाने में कुछ कमी नहीं करता था। बेटी (अंतरा)अब तीन साल की हो रही थी।स्कूल में नाम लिखवाने की बात पर सभी घर वाले राधा के खिलाफ हो गए।
रमेश राधा को उसके मायके छोड़ गया।मायके में भी कितने दिन रहती,भाभी ताने देने लगी।हारकर राधा ससुराल पहुंची और घरों में बर्तन धोने का काम करने लगी।महीना खत्म होते ही रमेश राधा से पैसों की मांग करता,पर राधा ने साफ-साफ कह दिया था कि वह अंतरा को पढ़ाने के लिए काम कर रही है।
देर रात तक अंतरा को पढ़ाती थी राधा।सास रोज़ सुनाती”बड़ी कलेक्टर बनाने पर तुली है बेटी को,ये नहीं कि कुछ काम काज सिखा दे।”राधा अब गूंगी और बहरी बन चुकी थी।बेटी इस साल नवमी में थी।ट्यूशन भी लगवा दिया था राधा ने,ख़ुद पैसे जुगाड़ कर के।
रमेश पीकर आता और अपनी मां के साथ मिलकर खूब बातें सुनाता।राधा को अब कुछ भी बुरा नहीं लगता था।अंतरा की हर जरूरत वह पूरा करती।उसके पहनावे, खान-पान का पूरा ध्यान रखती थी वह।
नवमीं में अच्छे नंबरों से पास होने पर अंतरा ने राधा से पैसे मांगे,अपनी सहेलियों को फुल्की खिलाने के लिए।शाम को काम से लौटते हुए राधा को ऑटो में अंतरा जैसी लड़की दिखाई दी किसी लड़के के साथ।राधा ने झट ऑटो में बैठकर पीछा किया तो,अंतरा किसी लड़के के साथ मॉल में जा रही थी।
राधा बाहर ही इंतज़ार करती रही।तीन घंटे बाद जब अंतरा उस लड़के के साथ बाहर आई,राधा को देखकर घबरा गई।राधा ने पहली बार एक जोरदार तमाचा अंतरा के मुंह पर मारा और उस लड़के से बोली”तुम रईस लोग हम जैसे गरीबों से क्यों दोस्ती करते हो?
तुम्हें शायद मालूम नहीं बेटा,अंतरा की मां तुम जैसे अमीरों के घरों में बर्तन धोती है।अंतरा से दूर रहना तुम।”
अंतरा ने जैसे ही कुछ बोलना चाहा,राधा उसे खींचकर अपने साथ ले आई।घर में सभी रास्ता देख रहे थे।अंतरा को इतनी रात राधा के साथ देखकर सास शुरू हो गई”देखा,मैं ना कहती थी,मत पढ़ा इतना।पर निकल आएंगे इसके,पर तू ही नहीं मानी।अब देख ले फल।”राधा कुछ नहीं बोली।
रमेश ने भी अपनी मां के सुर में सुर मिलाया और जली-कटी सुनाने लगा।राधा अब भी कुछ नहीं बोली,पर जैसे ही सास ने कहा कि कल से अंतरा का स्कूल जाना बंद,राधा अपने बस में नहीं रह सकी।अंतरा से कहा उसने”बेटा , ज़िंदगी भर मैं सबकी जली-कटी सुनती रही,कभी मुंह नहीं खोला।मैं तुझे एक अच्छी जिंदगी देना चाहती थी।
मैं नहीं पढ़ पाई इसलिए आज मेरी यह दुर्दशा है।तू तो मेरी हिम्मत थी,तेरा चेहरा देखकर मैं जीती रही आज तक।आज तूने भी मुझे फेल कर दिया।तुझे एक अमीर लड़के में ऐसा क्या मिल गया जो मेरे और अपने सपनों की परवाह नहीं की तूने।
मैंने तो तुझे उड़ने के लिए पूरा आसमान देना चाहा था और तू अपनी ही लालसा में कैद हो गई।आज मैं हार गई,तेरे पापा और दादी ठीक कहते थे,जमीन पर रहकर आसमान के सपने नहीं देखना चाहिए।अब तुझे कुछ करने की जरूरत नहीं,मैं ही तेरा नाम कटवा दूंगी प्रिंसिपल दीदी से बोलकर।अरे,एक बाई की लड़की कभी पढ़-लिखकर कलेक्टर बनती है कहीं???”
अंतरा राधा के पैरों में गिर पड़ी और रोते-रोते बोली”मां,मैं ना तो तुम्हारे आंसुओं को भूली हूं,ना ही सपनों को।मेरे कारण जितना तुमने सहा है मैं कुछ भी नहीं भूली।मैं अपने लक्ष्य से कभी नहीं भटकूंगी,आज के बाद मैं कभी। किसी दोस्त के साथ नहीं जाऊंगी घूमने। तुम्हें अब मेरी वजह से कुछ नहीं सुनना पड़ेगा।एक कामवाली की बेटी भी कलेक्टर बनकर दिखाएगी।”
शुभ्रा बैनर्जी
#जली कटी सुनाना