“घर को घर बनाया उसने” – ज्योति आहूजा : Moral Stories in Hindi

अवनी और जतिन की लव मैरिज है। अवनी बहुत ही सुंदर और साथ ही दिल की भी बहुत अच्छी थी। उधर जतिन भी गुड लुकिंग, स्मार्ट एवं अच्छी कंपनी में कार्यरत था। पहली बार अवनी और जतिन की मुलाकात कॉलेज में हुई थी, जहां जतिन अपने एमबीए का आख़िरी साल पूरा कर रहा था। वहीं अवनी ने एमबीए के पहले साल में दाखिल लिया था।

पहली बार अवनी को देखते ही जतिन उसे अपना दिल दे बैठा। उस दिन अवनी के बैच की फ्रेशर्स पार्टी थी। गुलाबी रंग की साड़ी पहने अवनी बेहद खूबसूरत लग रही थी। जतिन उससे बात करने का मौका ढूंढने लगा। दूर से ही उसे निहार रहा था। तभी उसे अवनी में एक बहुत ही दिलचस्प बात नज़र आई। वह स्वयं बहुत खूबसूरत होने के बावजूद अपने इर्द-गिर्द जितनी लड़कियों से मिल रही थी, सभी की बहुत तारीफ कर रही थी।

“हेलो रूबी। बहुत सुंदर लग रही हो तुम।”

अरे कहां? अभी तेरे आगे हम कहां टिक पाते हैं? रूबी ने कहा।

तभी “अरे नहीं नहीं! सब अपनी जगह बहुत सुंदर होते हैं। बस उन्हें एहसास कराते रहना चाहिए कि वे खास हैं कि उनकी तारीफ की जाए। तारीफ बनावटी नहीं होनी चाहिए। मैं तो इसी बात में विश्वास करती हूं। झूठी तारीफ भी किसी की पकड़ना बखूबी जानती हूं।”

 और अवनी खिलखिला कर हंस पड़ी थी। अवनी की बातें कुछ देर तक जतिन के कानों में भी गूंज रही थी।

तो मोहतरमा खूबसूरत होने के साथ-साथ खूबसूरत दिल की भी मलिका है। जतिन ने अपने आप से कहा।

उसी दौरान पार्टी चलती रही। सारे सीनियर (जतिन का बैच) अपने जूनियर्स को मिल रहे थे। उसी समय दोनों में बातचीत शुरू हुई।

दोनों ने एक दूसरे के नंबर अदला-बदली किए और बातों का सिलसिला शुरू हो गया।

बातों-बातों में दोनों ने अपने परिवार के बारे में बताया।

अवनी ने बताया कि उसके परिवार में सब बहुत खुश मिजाज हैं, एक दूसरे से हंसी मजाक करने वाले एक दूसरे की दिल खोलकर तारीफ करने वाले लोग हैं। उनका मानना था — तारीफ केवल मात्र किसी के गुणों की बड़ाई करना नहीं है, अपितु उस व्यक्ति को यह दर्शाना भी है कि उसके पास एक हुनर है जिसे वह बहुत अच्छे से अपने जीवन में इस्तेमाल कर रहा है।

तारीफ एक माध्यम है जो दिलों को दिलों से जोड़ती है। सामने वाले को एहसास कराती है कि हम तुमसे बहुत प्रेम करते हैं। तुम्हारी अच्छाइयों को हम तहे दिल से स्वीकारते हैं।

और साथ ही साथ यह उस व्यक्ति के मनोबल को और बढ़ाता भी है।

पापा तो ये भी कहते हैं कि किसी की सच्चे हृदय से की गई तारीफ यदि किसी का रक्त दोगुना करें तो यह भी एक प्रकार का रक्तदान है।

अवनी ने जतिन से कहा।

खूब बातें करने वाली जिंदादिल अवनी ने अपने मन की सारी बातें जतिन को बता दी।

“तभी तुम भी ऐसी हो। दिल खोलकर हंसती हो। बातें करती हो। सभी के गुणों को तुरंत पकड़कर उनकी तारीफ भी करती हो।” जतिन ने अवनी को कहा।

जतिन ने भी अपने परिवार के बारे में संक्षिप्त में अवनी को जानकारी दी। उसके परिवार में मम्मी-पापा, बड़े भैया जो कि पापा के साथ ही आगरा में बिजनेस करते हैं। भैया की शादी को 2 साल हो गए हैं और भाभी का नाम शिखा है।

इसी तरह समय बीतता गया। जतिन की एमबीए फाइनल होते ही प्लेसमेंट कंपनी के द्वारा उसे नौकरी मिल गई और अगले 1 साल बाद अवनी की एमबीए भी पूरी हो गई।

दोनों ने अपने-अपने परिवारों को एक दूसरे के बारे में बताया और उनकी धूमधाम से शादी हो गई और अवनी बहु बनकर ससुराल आ गई।

अवनी की शादी को एक महीना हो चला था। अवनी को ससुराल में चहल-पहल मानो ना के बराबर लगती थी।

एक दिन रात के खाने पर “ अवनी ने शिखा से कहा” वाह भाभी  आपने क्या शाही पनीर बनाया है।

मुझसे तो रहा नहीं जा रहा। मैं तो एक रोटी और लूंगी। 

यह सुनते ही अवनी की जेठानी शिखा के चेहरे पर जो रौनक देखने को मिली, उस चमक के आगे सब फीका था।

“सच में बहुत स्वाद बना है क्या पनीर?” शिखा ने पूछा।

“पनीर क्या, आप तो सब बहुत अच्छा बनाते हो। महीने से देख रही हूं ना।”

अवनी ने शिखा से कहा।

आज तक इन 2 सालों में शिखा की तारीफ कभी किसी ने नहीं की थी। तारीफ सुनने की आदत जो नहीं थी उसे।

अगले दिन शिखा अवनी के कमरे में आई —

“कल मुझे बहुत अच्छा लगा तुम्हारे मुंह से अपनी तारीफ सुनकर। तुम्हारा धन्यवाद।”

“अरे भाभी आप सच में तारीफ की हकदार हो।” अवनी ने कहा।

“दरअसल यहां कोई किसी की तारीफ नहीं करता। पर हां खाने में कुछ कम ज्यादा हो जाए तब अवश्य सभी कह देते हैं।

वैसे सभी बहुत अच्छे हैं। किसी प्रकार की यहां कोई कमी नहीं है। परंतु सब अपने में मस्त रहते हैं। कोई किसी से ज्यादा बातचीत तक नहीं करता। और तो और शादी की सालगिरह और जन्मदिन पर भी कोई एक दूसरे को बधाई तक नहीं देता। वह दिन भी आम दिनों की तरह ही बीतता है। हंसी मजाक, तारीफ तो खास बिल्कुल भी नहीं।”

शिखा ने अवनी को बताया।

“तो घर आकर सभी टाइम कैसे पास करते हैं। उन्हें बोरियत नहीं होती। ख़ैरकोई बात नहीं।”

अवनी ने कहा।

जेठानी शिखा की बातों से और काफी कुछ पति जतिन के द्वारा बताई गई बातों से अवनी काफी कुछ घर का माहौल समझ गई थी।

उसके हृदय में अनेक विचार उठ उठ कर जन्म ले रहे थे।

“क्या करूं? मैं बहू हूं। इस माहौल में स्वयं को ढाल लूं या एक सकारात्मक कोशिश करूं कि सभी एक दूसरे के संग थोड़ा हंसी ठिठोली करें, आपस में बातचीत करें, अच्छे कार्यों के लिए एक दूसरे की प्रशंसा करें।”

आख़िर यह घर है कोई मक़ान तो नहीं और घर घर वालों से बनता है। उनकी चहल-पहल और रौनक से बनता है। रहना वैसे भी है परंतु यदि इस तरह से रहेंगे तो जीवन जीने में और मजा आएगा।

ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, नहीं कोई मानेगा या मुझे सुना दिया जाएगा। पर हो सकता है इसके विपरीत भी हो जाए।

आख़िरकार उसने निर्णय कर ही लिया कि वह दूसरा रास्ता अपनाएगी।

उसने पति जतिन को अपने दिल के विचारों से अवगत कराया और कहा —

“घर के माहौल को बदलने में मैं एक कोशिश जरूर करूंगी। जिसमें आपको मेरा साथ देना है। हम दोनों मिलकर बदलाव लाने की कोशिश करेंगे।”

तब जतिन ने अवनी से कहा। “तुम अभी अभी इस घर में आई हो । रहने दो ना कुछ करने की ज़रूरत नहीं । जैसा है वैसा ही चलने दो।”

इस पर अवनी ने कहा, आप भूल रहे हैं पतिदेव, ये अब मेरा परिवार भी है, तो इस परिवार की खातिर मैं एक बार तो कोशिश अवश्य करूँगी।

जतिन ने अवनी का साथ देने का मन बना लिया।

 समय के अनुसार अवनी की कोशिश कुछ रंग ला रही थी।

अब सब फिर भी एक दूसरे की खूबी की प्रशंसा करने लगे थे।

एक दूसरे के साथ फिर भी अब हंसी के साथ समय बिताने लगे थे।

शादी की सालगिरह हो या जन्मदिन — बाहर खाना खाने जाने का रिवाज अवनी के आने के बाद ही शुरू हो गया था, जिससे घर के सदस्य कहीं ना कहीं अब खुश भी थे।

घर में आए इस बदलाव को देख अब जतिन और अवनी काफी प्रसन्न थे।

इसी के तहत जब एक दिन सभी शादी समारोह के लिए तैयार हो रहे थे, तभी अवनी के ससुर जी सास सुगंधा जी को तैयार हुए देख अनायास बोले —

“ऐ मेरी ज़ोरा जबी, तुझे मालूम नहीं, तू अभी तक है हसीन और मैं जवान, तुझ पर कुर्बान मेरी जान मेरी जान।”

पति के इस उम्र में तारीफ वाले सुंदर शब्द सुनकर सुगंधा जी के गालों पर बरसों बाद जो लाली आई थी वह देखने योग्य थी। वह शर्मा गई थी।

यह देख सभी जोर से ताली बजाने लगे।

यह सब देख अवनी के पति जतिन प्यारी निगाहों से अवनी को आंखों के इशारे करने लगे, मानो यह कह रहे हों —

“तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। इस घर को घर से आशियाना बनाने के लिए।”

और अवनी शर्माकर अपनी पलकों झुका लेती है।

ज्योति आहूजा

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