घर दीवार से नहीं परिवार से बनते हैं – मधु वशिष्ठ

घर दीवार से नहीं परिवार से बनते हैं सुमित्रा गुस्से में वर्मा जी से चिल्ला कर बोली। बंटी का दोस्त और  दीप्ति की सहेलियां भी घर से जा रही थी और दीप्ति उतरा हुआ मुंह लेकर खाने की प्लेटें सिंक में डाल रही थी। 

      आइऐ आपको वर्मा जी के परिवार के बारे में बताते हैं। वर्मा जी ने इस सोसाइटी में अभी साल भर पहले ही फ्लैट लिया है। इससे पहले वर्मा जी दिल्ली में ही सोसाइटी से थोड़ी दूर  ग्रामीण इलाके में संयुक्त परिवार में रहते थे। वर्मा जी की अपनी फार्मेसी थी। संयुक्त परिवार में उनके बड़े भाई का स्क्रैप का बिजनेस था। वर्मा जी के पिता और माता जी ने घर में ही पिछले हिस्से में एक डेली नीड स्टोर खोला हुआ था जिसमें कि  रोजमर्रा की जरूरत की चीजें मिल जाती थी।

वहां बड़े भाई के कॉलेज जाने वाले बच्चे और बहनों का भी आना-जाना लगा ही रहता था। घर में क्योंकि बड़े भैया का स्क्रैप का बिजनेस था तो छत पर और भी बहुत सारी जगह पर अक्सर सामान पड़ा ही रहता था। कोरोना काल में वर्यों कि दुकान पर काफी बिक्री हुई थी और कुछ उनके पास अपना जोड़ा हुआ पैसा भी था और कुछ लोन लेकर उन्होंने अलग अपना सोसाइटी में एक 3BHK  घर ले लिया था। 

        सोसाइटी में सुमित्रा के व्यवहार से सभी प्रभावित थी।  सुमित्रा को भरे पूरे परिवार में एडजस्ट कर के रहने की आदत थी यहां सोसाइटी में भी वह सब का काम करने के लिए सदा तत्पर रहती थी तो आस पड़ोस से  सबका उसके घर में आना जाना था। वर्मा जी ने अपने सोसाइटी वाले घर को  बहुत अच्छे से सजाया था। उनके दोनों बच्चे भी सोसाइटी में आकर बहुत खुश थे क्योंकि यहां उन्हें भी खेलने और बातें करने के लिए बहुत से दोस्त मिल गए थे।

सबसे बड़ी खुशी तो बच्चों को यह लगती थी कि यहां पूरा घर उनका अपना ही है वह कहीं पर भी  अपना सामान रख सकते थे।यहां उन्हें पुराने घर के जैसे अपने दो कमरों में ही सीमित नहीं रहना था। बाहर सोसाइटी का इतना बड़ा पार्क गाड़ी ,साइकिल रखने के लिए बाहर एक अलग शेड मिला हुआ था।  स्कूल की बस इस सोसाइटी के अंदर से ही जाती  थी।

       वर्मा जी का अपने घर में आने का जब सपना पूरा हो गया तो वह इस घर को बहुत सुंदर ही बने देखना चाहते थे। उन्हें बहुत बुरा लगता था जब बच्चे सामान फैलाते थे या कि   उनकी सनक के अनुसार ही घर साफ नहीं होता था। वह हमेशा कहते थे कि मैं पड़ोस वाले गुप्ता अंकल के घर जब जाता हूं तो उनकी सलीके से रखी हुई हर चीज देखकर अपना महंगा सामान भी हमेशा कमतर ही लगता है। 

   ऐसा ही उस दिन भी हुआ था 

सोसाइटी में नीचे वाला फ्लैट  जयपुर से एक परिवार ने खरीदा था। पड़ोस वाली शांति भाभी और मिसिज़ भसीन उन नीचे जयपुर वाली भाभी को ही सुमित्रा के पास मिलाने के लिए लाई थी। जयपुर वाली भाभी जी जयपुर की चुनरी इत्यादि भी बेचने के लिए रखती थी। सब महिलाएं ऐसी ही बात कर रही थी कि सुमित्रा ने उन्हें  नए महंगे वाले टी.सैट में चाय पिलाई थी और कुछ पकोड़े भी बनाए थे। दीप्ति के दसवीं के पेपर थे वह भी अपनी सहेलियों के साथ घर में ही पड़ रही थी तो सुमित्रा ने दीप्ति को भी कुछ पकोड़े इत्यादि दिए थे।

बंटी भी अपने दोस्त के साथ कमरे में बैठकर पकोड़े खा रहा था। सारी महिलाएं चाय पीकर बाहर निकली ही थी कि वर्मा जी घर में घुस गए। घर में आने के बाद इस तरह से निकला हुआ महंगा टी.सैट  और हर जगह फैले हुए बर्तन और बंटी के खिलौने देखकर उन्हें बहुत जोर से गुस्सा आया। वह गुस्से में सुमित्रा पर चिल्लाए ही थे कि कमरे में बैठी हुई दीप्ति की सहेलियां भी अपने घर जाने लगी इससे दीप्ति को बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। 

       यह सब देखकर सुमित्रा को बहुत बुरा लगा और वह भी चिल्ला कर वर्मा जी से बोली कि घर परिवारों से बनते हैं ना कि दीवारों से मैंने अपनी जिंदगी के इतने साल उस कबाड़नुमा घर में आराम से इसलिए काट लिए क्योंकि मुझे घर के लोगों से प्यार था अगर दीवारों से होता तो उस कूड़ा घर में एक दिन भी नहीं रह सकती थी।

हर समय महंगे सामान ,महंगे सोफे का ताना देते रहते हो हमने कब कहा हमें महंगा सामान चाहिए ?हमें कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ ऐसी जगह चाहिए जहां पर कि बच्चे शांति और सुकून से जी सकें। गुप्ता जी के सारे बच्चे बाहर रहते हैं घर में केवल अंकल आंटी ही है तो उनका घर कौन फैलाएगा? 24 घंटे रहने वाली उनकी कामवाली के पास में एकमात्र काम उनका घर ही तो साफ करना है। रिटायर्ड गुप्ता दंपति तो बिस्तर से ही बहुत कम उठ पाते हैं। 

           बंटी का डरा हुआ चेहरा और दीप्ति का रुआंसा मुंह देखने के बाद वर्मा जी को भी अच्छा नहीं लगा। सुमित्रा के जोर से चिल्लाने से वह भी चुप हो गए और बोले मैं यह थोड़ी ही कहता हूं कि तुम घर का सामान इस्तेमाल ना करो। अरे घर तो तुम सबका ही है बस थोड़ा सा साफ रखने को ही तो बोलता हूं।

सुमित्रा गुस्से में कुछ नहीं बोली तो वर्मा जी ने कहा अच्छा बाबा माफ कर दो आगे से कुछ नहीं कहूंगा ,मुझे पता है तुम सब बहुत काम करते हो। अब जो पकोड़े बने हैं मुझे भी दोगी या नहीं ?  उनके इस तरह से बोलने से सुमित्रा भी चुप हो गई और घर का माहौल थोड़ा हल्का तो हो गया था। माहौल हल्का होता हुआ देख वर्मा जी बोले अरे मैं तुम सबसे बहुत प्यार करता हूं तुम्हारी सुविधा के लिए ही तो यह घर है बस थोड़ा सा साफ रअअअअअअख लिया करो फिर सब की ओर देखकर वह खुद ही मुस्कुरा दिए। 

      पाठकगण आपको नहीं लगता कई बार हम घर को होटल बनाने के चक्कर में अपने लोगों को कितना तनाव देते हैं?

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।

घर दीवार से नहीं परिवार से बनते हैं प्रतियोगिता के अंतर्गत

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