अदालत परिसर का दृश्य| न्याय की आस में बैठा पीड़ित पक्ष व अपना पक्ष रखने के प्रयास में अभियुक्त की वकील | वाद- प्रतिवाद का दौर अब समाप्त हो चुका था व फ़ैसले की घड़ी आ गई थी | ‘ऑर्डर- ऑर्डर’ कह कर न्यायधीश पुरूषोत्तम दास ने अदालत को तो शांत कर दिया था, परंतु अपने भीतर के झंझावात को शांत न कर पाये | वजह सबूतो व गवाहों का अभाव नहीं, वजह थी अभियुक्त स्वयम्|
रंजू | हाँ यही नाम था उसका| रंजू घर-घर जाकर झाड़ू पोछा बरतन इत्यादि का काम करती थी | रंजू की सारी उम्मीद थी उसकी बेटी संजू | परंतु आख़िर वो वजह क्या थी कि रंजू आज अदालती कटघरे में खड़ी थी ?
एक शराबी पिता के घर जन्मी 7 संतानों में से एक थी रंजू| माँ का चेहरा तो याद भी नहीं था उसे क्योंकि ये अभागे सात भाई- बहन कहीं बुआ कहीं चाची के घर में बेगार किया करते थे| रंजू का नंबर अपनी बुआ विमला के यहां लगा था | आए दिन यही सुनती आई थी रंजू कि ” काम की ना काज की, दुश्मन अनाज की |
” सोचती थी रंजू कि कौनसा काम नहीं किया उसने | सबसे पहले उठ कर सबसे बाद में सोना | पूजाघर में दीया जलाने से ले कर बुआ के बच्चों को स्कूल लाने ले जाने से ले कर हर काम में अकेली लगी रहती थी रंजू | रंजू के 13 वर्ष की होते ही बुआ ने उसके ब्याह की रट लगा दी थी व 16 वर्ष की होते ही उससे दुगुने उम्र के राजेश से शादी कर ही सांस ली | यहां भी उसका पिता वाला ही इतिहास दोहराया गया व रंजू की स्याह जिंदगी में एक नया अध्याय जुड गया | पति की मार – पिटाई, सास ननद के ताने |
पड़ोस की औरतो से पता चला कि राजेश व उसकी माँ हेमलता ने उसकी पहली पत्नी सरिता की हत्या कर दी थी व रंजू से शादी की एवज़ में उसकी बुआ विमला को 80,000 रुपए नकद दिए थे | दुःख भरी जिंदगी में एक ही उम्मीद की किरण थी उसकी बेटी संजू | संजू के लड़की होने के कारण बहुत नाक भौं सिकोडा था पति, सास ननद ने| उसके भरण पोषण तक से ये कह कर हाथ पीछे खीच लिए गए थे कि लड़की है | आगे ब्याह शादी के खर्च का हवाला दिया गया था व कह गया कि लड़का होता तो अपने बाप के बुढ़ापे का सहारा बनती |
रंजू ने ठान लिया था कि अपनी बेटी को पढाएगी, लिखाएगी और बड़ा आदमी बनाएगी | पास ही के स्कूल में दाखिला करा दिया था और झाड़ू पोंछा कर अपना और अपनी बेटी का लालन पालन शुरू कर दिया | सब कुछ ठीक चल रहा था पर एक दिन रंजू ने देखा कि स्कूल से आने पर उसकी सास व ननद संजू को खाना माँगने पर मार पीट रही थी व घर का काम करने को कह रही थी |
ये देख रंजू ने अपनी सास व ननद से साफ शब्दो में कह दिया कि अपनी बेटी पर किसी भी अत्याचार सहन नहीं करेगी| प्रत्युत्तर में बेशर्मी से हंसते हुए उन दोनों ने कहा था ,” तुझे हमारी जरूरत है, हमें तेरी नहीं| अरे लड़की के साथ कुछ ऊँच- नीच हो गई तो कौन थामेगा इसका हाथ?” उस दिन से रंजू ने फैसला किया कि अब और यहां नहीं रहेगी व एक छोटा सा किराये का कमरा ले कर अलग रहने लगी | रोज़ के दिनों में तो वह काम पर चली जाती और संजू स्कूल |
रविवार व छुट्टी के दिन वह संजू को अपने साथ ले जाती | सब कुछ ठीक चल रहा था अगर उस दिन बड़ी कोठी वाले साहब ने संजू के साथ घटिया हरकत न की होती | हमेशा की तरह अपना झोला वगैरा आंगन में रख, संजू को आंगन में छोड़, झाड़ू पूछे में लीन थी रंजू जब ‘माँ-माँ’ की एक घुटी सी चीख सुनाई पड़ी | आंगन पहुंची तो वहां संजू को न पा कर अनिष्ट की आशंका से उसने सारा घर छान मारा |
स्टोर रूम के बाहर संजू की पायल देख दरवाजा बंद देख कर ज़ोर से धक्का दे कर उसने जो देखा, उससे उसकी अंदर की माँ पार्वती माँ काली में परिवर्तित हो गई और संहार कर डाला उस रक्तबीज का जो उसकी नन्हीं सी कली को मसलने पर तुला था | अंदर हवेली का अधेड़ मालिक संजू को चॉकलेट देने के बहाने यहां -वहां छूने का प्रयास कर रहा था| सुबह रंजू द्वारा की गई चोटियाँ भी खुल गयी थी|
भय से आक्रांत बच्ची ‘माँ- माँ ‘ पुकार रही थी| ये देख कर रंजू का खून खौल गया व उसने ज़ोर से उस नराधम को धक्का दे कर वहां पड़े रॉड से उस पर ताबड़तोड़ प्रहार कर डाले| उस पापी को संभलने का मौका भी नहीं मिला और वह वही ढेर हो गया | कोलाहल सुन वहां मौजुद घर के सभी लोग आ गए व हत्या में प्रयोग किये गये हथियार के साथ रक्तरंजित हाथो सही गिरफ़्तार कर ली गई थी रंजू |
मामले की गंभीरता को देखते हुए ये मुकदमा फास्ट ट्रैक न्यायलय को दे दिया गया था| जहां विरोधी पक्ष के वकील का मानना था कि रंजू एक शातिर अपराधी है व कड़ी से कड़ी सज़ा की अधिकारी है, वही रंजू की मार्मिक कहानी सुन उसका केस लडने वाली वकील अनुप्रिया का मत था कि ये सब केवल आत्मरक्षा में किया गया था व रंजू को मामूली सी सजा दे कर रिहा कर दिया जाए|
जज द्वारा सफाई मांगने पर रंजू ने बस इतना ही कहा था,” जज साहब | हम पढ़े लिखे तो हैं नहीं | ये
कानूनी दाव पेंच हमारी समझ से परे हैं| जब छोटे थे , तो बुआ ने हमारे भाग्य का फैसला किया| अपनी बिटिया के लिए हमने एक फैसला लिया | अपनी नन्ही सी कली को रौंदने वाले के लिए भी हमने एक फैसला लिया और अब हमारे भाग्य का फैसला आपके हाथों में है |
ये सुन न्यायधीश श्री पुरूषोत्तम दास के होंठ मानो सी
गए, जीभ तालु से चिपक गई, कलम ने साथ छोड़ दिया व किंकर्तव्यविमूढ़ से वे शून्य में ताकने लगे|
द्वारा
अदिति महाजन