एक रिश्ता – के कामेश्वरी

सुलोचना ने आवाज़ लगाई- दुर्गा कहाँ है अभी तक कपड़े घड़ी करना हुआ है या नहीं?क्या कर रही है? सो गई है क्या ?

दुर्गा ने उनकी बातें सुनकर भी अनसुनी कर दी थी । माँ उसके कमरे में पहुँची और उसे सोते देख कर उस पर चिल्लाने लगी थी । उनकी कर्कश आवाज़ सुनते ही दुर्गा की नींद खुल गई थी । 

सुलोचना ने कहा— दुर्गा कितनी बार तुमसे कहा था कि सारा काम ख़त्म करना है फिर भी तुम मेरी बात मानती नहीं हो । चलो उठो कपड़े घड़ी करो और रात का खाना भी बना देना मुझे सत्संग में जाना है । 

दुर्गा माँ से शिकायत करने लगी थी कि आप हमेशा मुझसे ही काम कराती हैं। पाँच पाँच भाइयों की अकेली बहन हूँ फिर भी कोई मेरी मदद नहीं करता है और आप उन से भी कहिए ना मेरी मदद करने के लिए मैं अकेली ही सारा काम क्यों करूँ । सुलोचना जी अपनी बेटी दुर्गा की बात कभी नहीं सुनती थी । 

उनके विचार से लड़कियाँ परायाधन होती हैं और दूसरे घर चली जाएँगी उन्हें घर के सारे काम आने चाहिए नहीं आए तो भी इस तरह से काम सिखाया जाना चाहिए कि लड़की के ससुराल वालों को कोई शिकायत ना हो। इसलिए वे दुर्गा से ही सारा काम कराती थी । 

दुर्गा पाँच भाइयों के बीच एक अकेली संतान थी परंतु सुलोचना उसे पेंपर नहीं करती थी । भाई उससे बहुत प्यार करते थे लेकिन काम करने के समय सब दुर्गा पर छोड़ देते थे। घर में सब भाई बहन मिलकर खाना खाते थे । भाई सब उठकर चले जाते थे दुर्गा ही सबके झूठे प्लेट उठाकर धोकर रखती थी । वैसे ही कपड़े बाई धोती थी परंतु पूरे कपड़ों को पानी में डुबोकर फिर से निचोड़कर सुखाने का काम भी दुर्गा का था । 

कभी-कभी सबसे छोटा भाई कहता था कि चल दुर्गा मैं तेरी मदद कर देता हूँ परंतु काम के आधे में ही माँ आती थी और वह काम छोड़कर भाग जाता था । 

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दुर्गा जैसे ही थोड़ी बड़ी हुई तो सुलोचना दुर्गा के भरोसे पूरा घर छोड़कर चली जाती थी। दुर्गा कॉलेज जाते हुए ही पूरे घर का काम करती थी साथ ही खाना बनाना सबके काम करती थी। दुर्गा की पढ़ाई पूरी हुई थी  कि नहीं सुलोचना ने दुर्गा की शादी तय कर दिया था। दुर्गा शादी के बाद अपने ससुराल चली गई थी। 

दुर्गा के ससुराल जाते ही सब भाइयों को बहुत तकलीफ़ होती थी। सुलोचना भी दुर्गा को बहुत मिस करती थी । माँ बेटी का रिश्ता ही अलग था । दुर्गा को लगता था कि माँ मुझसे प्यार ही नहीं करती है । इसलिए मुझसे पूरे घर का काम कराती है ।

 सुलोचना को अपनी बेटी से बहुत प्यार था परंतु वह नहीं चाहती थी कि अधिक लाड़ प्यार से वह काम नहीं सीख सके और बाद में ससुराल में माँ की बेइज़्ज़ती हो कि माँ ने कुछ नहीं सिखाया है। 

वहाँ दुर्गा के ससुराल में उसे कोई काम नहीं करने पड़ते थे । ससुराल में पहुँच कर दुर्गा रानी की तरह राज कर रही थी । उसके घर में बहुत सारे नौकर चाकर थे । दुर्गा को वहाँ आराम तो बहुत था फिर भी आदतन वह बहुत सारे काम कर लिया करती थी । सास बहुत खुश थी कि इतनी अच्छी बहू मिली है जिसे सारे काम आते हैं । 

एक बार त्योहार के दौरान सुलोचना दुर्गा की सासु माँ से मिली तो उन्होंने सबके सामने कहा कि सुलोचना जी आपकी बेटी सुपर है मैंने कभी नहीं सोचा था कि पाँच लड़कों के बीच पली बड़ी दुर्गा सारे काम इतने अच्छे से कर सकती है । सबके सामने दुर्गा की तारीफ़ सुनकर सुलोचना बहुत खुश हो गई थी क्योंकि वह चाहती ही यह थी कि ससुराल वाले उसकी बेटी के गुणों को पहचान कर उसकी तारीफ़ करें । इन्हीं बातों को सुनने के लिए ही तो उसने दुर्गा को बचपन से ही सारे काम सिखाया था । 

सुलोचना अपनी बहुओं को अपना समझती थी उनका बहुत ख़याल रखती थी। उनकी सोच में लड़की परायाधन होती है तो बहुएँ उनका मान सम्मान होती हैं । उनके हर सुख का ख़याल रखती थी।  उनसे कोई काम नहीं कराती थी । उसका कहना था कि बेटियाँ पराए घर जाती हैं इसलिए उन्हें सब काम आने चाहिए। 

 जबकि बहुएँ घर की होती हैं तो वे काम अपने घर में सीख कर आई होंगी और वे काम नहीं भी करेगी तो भी चलेगा । 

दोस्तों पुराने ज़माने में लोगों की सोच और एक रिश्ता ऐसा भी होता था । माएँ अपनी बच्चियों को सर्वगुण संपन्न बना देती थी । 

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के कामेश्वरी

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