एक पवित्र प्रेम कथा –   डा. नरेंद्र शुक्ल  : Moral stories in hindi

moral stories in hindi : यह राकेश और हिरोशिमा की कहानी है । हिरोशिमा अच्छी लड़की है । राकेश भी अच्छा लड़का है । दोनों में एज़ डिफरेंस है । राकेश 40 साल का है । हिरोशिमा 24 साल की है । राकेश हिरोशिमा से प्यार करता है । हिरोशिमा भी राकेश को देखकर मुस्कराती है । राकेश भावुक है । पर, कुछ ज्यादा ही ईमानदार है । उसके पास दो सिम हैं । हिरोशिमा थोड़ी नटखट है । उसके पास चार सिम है । दोनों एक- दूसरे के इमोशन को समझते हैं ।

दोनों की जिंदगी के राज़ किताब में रखे बुक मार्क की तरह हैं । जिसे वे कहीं भी कभी भी खोल कर एक- दूसरे पर अपनी पवित्रता साबित कर सकते थे । राकेश को प्यार में धोखा मिला है । अगर हीरोशिमा उसकी जिंदगी में न आती तो वह कुछ विशेष अवसरो को छोड़कर कभी नारी के सम्मुख न जाता । उसका विश्वास है कि समाज़ में कोई भी लड़की किसी शरीफ आदमी से प्यार नहीं कर सकती । लेकिन , हिरोशिमा का मामला अलग है ।

उसने अपनी पहली मुलाकात में ही उसे बता दिया था कि उसके साथ उसके दोस्तों ने ही कुछ गलत किया है । राकेश का मानना है कि जो लड़की अपनी विगत ज़िदगी के बारे में इतना साफगोई से बता सकती है । वह सचमुच महान है । वह प्यार करने योग्य है । प्यार किया नहीं जाता हो जाता है । ऐसा वह दिल से मानता है । संडे को छोड़कर वे दोनों अपने घर से बहुत दूर सूनसान में बने टपोरी पार्क में मिलते हैं । राकेश संडे को मनहूस दिन मानता है । इस दिन उसे अपने पहले प्यार में धोखा मिला था । हिरोशिमा का संडे को उपवास होता है । इसलिये वे संडे को नहीं मिलते ।

टपोरी पार्क में एक दिन , राकेश ने हिरोशिमा का हाथ अपने हाथ में लेते हुये कहा – ‘वह कितना खुशकिस्मत है कि उसे हिरोशिमा जैसा सच्चा और पवित्र साथी मिला है । उसका प्यार नदी के पानी की तरह निर्मल और शीतल है ।‘ वह सिग्रेट निकाल कर होठों के बीच दबा लेता है ।

हिरोशिमा उसके होठों से सिग्रेट निकाल कर फेंकती हुई बनावटी गुस्से में , मगर प्यार से, बेहद नाज़ुक शब्दों में कहती है – ‘छी.छी . सिग्रेट पीते हो । बुरी आदत है । तुम्हें मेरी कसम । वादा करो अब नहीं पियोगे ।‘

राकेश उसे अपनी ओर खींचते हुए सिग्रेट फेंक देता है । वह शायर हो जाता है – ‘तुम कितनी सुंदर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास । ज्यों किसी सूने खंडहर के आस- पास मद भरी चांदनी जागती हो ।‘ वह किसी की लिखी पंकित को अपने नाम से सुना देता है ।

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हिरोशिमा उसके कंधे पर अपना सिर रख देती है । राकेश उसकी जुल्फें संवारते हुये उसे बांहों में जकड़ लेता है । इससे पहले कि बात कुछ आगे बढ़े , हिरोशिमा कहती है – ‘देखो ना जानू , मेरे बाल कितने रूखे हो गये हैं । चांदी भी उतरने लगी है । तुम कुछ करो न ।‘ हिरोशिमा एक टॉनिक और आर्युवैदिक शैंपू की पर्ची राकेश को पकड़ा देती है । धूप तेज़ होने लगती है । राकेश उठ खड़ा हाता है । दोनों पार्क से चले जाते हैं ।

अगले दिन

टपोरी पार्क में महेश के साथ सिग्रेट के धुएं का छल्ला बनाते हुये हिरोशिमा कहती है – ‘तुम कुछ भी कहो महेश । स्वर्ग का आनंद यही है । दम मारो दम । कश लगाते जाओ । लगाते जाओ । मस्ती ही जीवन है । ‘

महेश उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कहता है – ‘तुम भी कमाल हो हिरोशिमा । सिग्रेट भी कोई पीने की चीज़ है । तुम्हें मालूम है न इससे फेफड़े खराब हो जाते हैं । कैंसर हो जाता है ।‘

सिग्रेट बुझाती हुई हिरोशिमा कहती है – ‘तुम भी औरों की तरह लैक्चर देने लगे महेश। तुमने जानने की कोशिश की कि मैं आज़ सिग्रेट क्यो पी रही हूं ।‘

‘क्यों पी रही हो ?‘ महेश झल्ला कर कहता है।

‘दो समैस्टरों में फेल हो गई हूं । दोबारा अटैंम्प्ट के लिये दस हज़ार चाहियें । डैड से कैसे मांगू । उन्होंने मेरे भाइयों की भी फीस देनी है ।‘

लेकिन , तुम फेल क्यों हुई ।‘

‘तुम्हारे कारण फेल हुई । आंसर सीट में तुम्हारा चेहरा दिखाई देता था । तुम्हें देखती रह गई । कुछ लिख न पाई । और जरूरत पड़ने पर तुम ही मुंह फेर रहे हो ।‘ वह रोने लगी ।

महेश अपने वॉलेट से दस हजा़र निकाल कर देता हुआ बड़े संकोच से पूछता है – ‘प्रिय, परसों जो तुमने पॉंच हज़ार लिये थे । उसका क्या किया?‘

हिरोशिमा ने रूठते हुये कहा – ‘ठीक है । कोई बात नहीं । तो , तुम अब मुझसे हिसाब मांगोगे ।‘ वह पर्स उठा कर जाने लगती है ।

महेश चुपचाप रूपये निकाल कर दे देता है ।

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महेश एकदम नया – नया प्रेमी हुआ है । अभी खड़ा नहीं हो सकता । घुटनों के बल चल रहा है । जिस दिन पैरों के सहारे चलने लगेगा । ऐसे बाहियात सवाल नहीं पूछेगा । सीधे प्रेमिका के बालों को सहलाता हुआ रूपये दे देगा । वह जान जायेगा कि पैसा माया है । और एक के रहते दूसरी को कुछ देर के लिये भूलना ही पड़ता है । दोनों चले जाते हैं । हिरोशिमा अपना सिम चेंज कर लेती है ।

आठ बजे उसी पार्क में

हिरोशिमा दिनेश कीे शराब छुड़वाने का प्रयास करती हुई कहती है – ‘तुम फिर शराब पीने लगे ।‘

दिनेश ने उसकी जुल्फों में हाथ फेरते हुये कहा- ‘नहीं तो ।‘

हिरोशिमा बनावटी गुस्से में बोली – ‘बदबू यहां तक आ रही है ज़नाब ।‘

दिनेश अमीर है । उसका शास्त्री मार्किट में कपड़ों का शोरूम है । वह अक्सर महंगे – महंगे तोहफे लाता है ।

हिरोशिमा उसके चेहरे के आगे अपना चेहरा करती हुई कहती है – ‘करीब आओ । मेरी आंखों में देखो । क्या शराब इनसे नशीली है माई लव ।‘

दिनेश उसकी लटों को सुलझाता हुआ कहता है – ‘तुम पास नहीं होती तो कुछ करने को मन नहीं लगता । दिल करता है तुम्हारी इन आंखों में ही बस जाओ तुम्हारे काज़ल की तरह। इन घने केशों में बस जाउ सदा के लिये ।‘

हिरोशिमा पूछ बैठती है – ‘जानू , जो सूट मैंने पसंद किया था । वह लाये हो ।‘

दिनेश अपने माथे पर हाथ रखता हुआ कहता है- ‘ओह हो । भूल गया डार्लिंग । कल जरूर लाउंगा ।‘

हिरोशिमा नाराज़ हो जाती है । दिनेश मुंह फेर लेता है ।

हिरोशिमा कहती है- ‘अच्छा सुनो । तुमने अपने पेरेंट से हमारी शादी की बात की ? हमें मिलते पूरे बीस दिन हो गये । कहीं कुछ गड़बड़ हो गई तो मैं समाज़ में मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जाउंगी । और अगर मैं बदनाम हुई तो तुम्हें भी कहीं का नहीं छोड़ंूगी ।‘ वह अपना पर्स उठा कर चल देती है ।

दिनेश सोचता है कि अब गुड- बाॅय कहने का समय आ गया है वह भी चल देता है ।

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अगले दिन

राकेश टपोरी पार्क में बड़ी बेचैनी से टहल रहा है । दसियों सिग्रेट पी चुका है – कमबख़्त , अभी तक नहीं आई । गई होगी अपने उस बू़ढ़े खूसट आशिक के पास । कहती है- ‘तुम्हारे बिना ज़िदा नहीं रह सकती । हूं । नॉनसेंस ।

दायें गेट से हिरोशिमा पार्क में दाखिल होती है । उसने अपना सिम चेंज किया हुआ है । राकेश हाथ हिलाता है । हिरोशिमा उसके पास आकर बैठ जाती है ।

‘ये वक्त है तुम्हारे आने का । बीसियों सिग्रेट पी चुका हॅू । न तुम एक बात बताओ कि क्या मैं पागल दिखता हूं?‘ राकेश ने अपना चेहरा हिरोशिमा के सामने करते हुये कहता है ।

वह मुस्कराती है -‘ पागल नहीं । पूरे मज़नू लगते हो । अच्छा बताओ तुम मुझसे प्यार करते हो ?‘

राकेश इस आक्सिमिक प्रेम के लिये तैयार नहीं था । हकलाते हुये कहता है – ‘हां । पर यह भी कोई पूछने की चीज़ है । तुम कहो तो तुम पर अपनी जान तक दांव पर लगा सकता हूं। । तुम्हारे एक इशारे पर गाड़ी तक के नीचे आ सकता हूं । तीसरी मंजिल की छत पर से कूद सकता हूं। किसी को झूठे बहाने से पीट सकता हूं । किसी का भी कत्ल कर सकता हूं ।‘

वह उसका हाथ पकड़ लेती है – ‘कितना प्यार करते हो?‘

वह कहता है – ‘समुद्र की गहराइयों से भी ज़्यादा ।‘

वह पूछती है – ‘फिर भी कितना ?‘

वह कहता है – ‘जितना आज तक किसी प्रेमी ने अपनी प्रेमिका के लिये नहीं किया । मेरा प्रेम पवित्र है । सफ़ेद दूध की तरह ।‘

‘इन फिरोज़ी होंठों पर बरबाद मेरी जिंदगी ।‘ वह रोमानी हो उठता है ।

उसे कुछ समझ नहीं आता । वह मुस्कराती है – ‘सच , तुम मुझसे इतना प्यार करते हो ।‘

‘मेरा जीवन एक हिसाब के किताब की तरह हैं जिसकी कुंजी तुम्हारे पास है ।‘ वह दार्शनिक हो जाता है ।

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वह फिर मुस्कराती है – ‘सच ।‘

‘परी़क्षा ले सकती हो ।‘ राकेश अपनी कमीज़ के काॅलर के नीचे रखे रूमाल को खींचते हुए कहता है ।

‘अच्छा बताओ, अगर मैं तुम्हें चूमने का मौका दूं तो तुम कहां चूमना पसंद करोगे ।‘

राकेश ने रीडर डाइजे़स्ट पढ़ी थी । मन की इच्छा को दबाते हुये बुझे मन कहता है – ‘माथे पर और कहाॅं । आखिर हमारा प्रेम पवित्र है ।‘ वह उसे अपने करीब खींच लेता है ।

‘आज़ मेरा एक काम करोगे?‘

‘बोलो ।‘

‘मेरे लिये आसमान के तारे तोड़ कर लाओगे?‘

राकेश की बाहों का घेरा ढ़ीला हो जाता है । वह मायूस हो जाता है ।

हिरोशिमा गुस्सा हो जाती है – ‘हूं । बस हो गये अरमान ठंडे । बड़े आये प्यार दिखाने वाले । तुमसे नहीं होगा । लाओ दो हजा़र रूपये । मैं खुद तोड़ लूंगी ।‘

हिरोशिमा आज गम में खूब पीना चाहती है । मदहोश होना चाहती है । महेश काबू नहीं आ रहा है । दिनेश भी हाथ से फिसलता जा रहा है । उसके साथ कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा ।

राकेश रूपये दे देता है । वह उसका हाथ चूम लेती है ।

कल मिल रहे हो न ।

कहां ।

यहीं । इसी पार्क में । वह जाने लगती है ।

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तभी अचानक हिरोशिमा का फोन बजने लगता है । राकेश जानबूझ कर स्पीकर आॅन कर देता है ।

हिरोशिमा बोली – ‘हैलो ।‘

उधर से एक बूढ़े की आवाज़ आती है- ‘ख्वाहिशें भी हैं । और चाहत भी है । लेकिन कम्बख़्त, शरीर धोखा दे जाता है । समझा करो डालिंग । वेट कर रहा हूं । जल्दी आओ । ज्यादा पी लूंगा तो तुम्हें ही तकलीफ होगी । ‘

‘हूं ।‘ हिरोशिमा फोन काट देती है । वह सिम चेंज करना भूल गई है ।

वह गुस्से से कहती है- ‘तुमने मेरा फोन क्यो टच किया?‘

वह पूछता है – यह कौन था ?

वह कहती है – ‘कोई भी हो । तुमसे मतलब । तुम सभी मर्द एक जैसे होते हो । शक्की । मुझे मर्द शब्द से नफरत हो गई है । दोबारा मुझे फोन मत करता ।‘

वह चली जाती है । राकेश भी चला जाता है ।

दस दिन बाद

हिरोशिमा दुःखी है । उसकी मां मर गई है । राकेश डबल दुःखी है । उसके मां- बाप दोनों मर गये हैं ।

हिरोशिमा मैसेज़ भेजती है – ‘राकेश कहां हो ? तुम्हारी बहुत याद आ रही है जानू । तुम्हारे बिना एक पल भी रहना मुश्किल है ।‘

राकेश कोई जवाब नहीं देता ।

हिरोशिमा एक के बाद एक कई मैसेज़ भेजती है –

‘जल्दी आओ । मैं मर रहीं हॅूं।‘

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‘तुम्हारा नाम लेकर सुसाइड कर रहीं हूं । मैंने ढ़ेर सारी नींद की गोलियां खा ली हैं ।‘‘मुझे चक्कर आ रहा है ।‘

‘मैं हास्पीटल में हॅू । मुझे पता चल गया कि तुम मुझसे बिल्कुल प्यार नहीं करते । झूठी है तुम्हारी मोहब्बत । कसमें वादे , सब के सब झूठे ।‘

‘मेरी मां चल बसी है । उसे कैंसर था । पिता जी बीमार हैं । शराब में डूबे रहते हैं । दुनिया भर का कर्ज़ चढ़ चुका है । क्या करूं । कहां जाउॅं । मेरा अब इस दुनिया में तुम्हारा सिवाय है ही कौन । लेकिन , तुम भी ओरों की तरह बेगैरद निकले । ओ बेवफा , क्या यही प्यार है ?‘

पवित्र प्रेम ने अंगड़ाई ली । उसका दिल धड़कने लगा ।

राकेश ने उत्तर दिया – ‘वस्तु सत्य नहीं भावना सत्य है । तुम मेरी भावनाओं को समझो । मैं सचमुच तुमसे प्यार करता हूं । तुम्हारे पास आना चाहता हूं । लेकिन , क्या करूं मां – बाप दोनों मर गये हैं । मैं भी बिस्तर पर आखिरी सांसे ले रहा हूं ।‘

‘तुम्हें मेरा एक काम करना होगा ।‘

हिरोशिमा ने बेमन से लिखा- ‘क्या ?‘

राकेश ने मैसेज़ किया – ‘कल जब तुम टपोरी पार्क में जाओगी तो गेट के दायीं ओर बैठी पनवाड़िन फूलवती का हाल-चाल पूछ लेना । हो सके तो उसके कंधों को पीछे से हल्के – हल्के दबा देना । अगर मुझसे सचमुच प्रेम करती हो तो उसके हाथों को चूम लेना । अबला है बेचारी । उसे सकून मिलेगा ।‘

‘हां एक काम और करना । पार्क के बायीं ओर भुटटे बेचने वाली रीना होगी । उसे देखकर जरा अपनी बायीं आंख दबा देना । उसे खुशी मिलेगी । मानसिक रोगी है । बेचारी का प्रेमी अपनी मामी के साथ भाग गया है ।‘

‘एक छोटा सा काम और । पार्क के बीचों-बीच जहां, चंपा-चमेली के फूल लगे हैं । बस वहीं बैंच पर एक नव-विवाहित जोड़ा बैठता है । बस तुम विवाहिता को देखकर मुस्करा देना । उसे सांतवना मिलेगी । उसके पति की नौकरी चली गई है । बेरोज़गार है बेचारा ।‘’

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‘ बस एक लास्ट काम और करना । पार्क में बनी झोपड़ी के पास जाना । वहां तुम्हें फूलवाली रामकली मिलेगी । उसके खुले बालों में गज़रा बांधते हुये उसके कान में प्यार से सिर्फ़ इतना कहना – आई लव यू रामकली । दिल छोटा न करो । मैं हूं न ।‘ उसका फौजी पति जंग पर गया है । वह अपने पति को बहुत मिस करती है । उसे राहत मिलेगी ।‘

हिरोशिमा सिम तोड़ देती है – ‘नानसेंस । स्टूपिड ।‘

कमरे से आवाज़ आती है- ‘गुसलखाने से बाहर निकल रहे हो या मैं बाहर से ताला लगा दूं । कमबख़्त, अंदर न जाने क्या- क्या करते रहते हैं ।‘

बीवी की आवाज़ सुनकर राकेश फौरन सिम बदल लेता है ।

– डा. नरेंद्र शुक्ल

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