” एक परिवार ऐसा भी ” – ​संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

पति की मृत्यु के बाद स्मिता अपने दो बच्चो को अपने अंक मे भरकर फूट फूट कर रो रही थी ।

” मिट्ठू के पापा क्यो छोड़ कर चले गये हमें अब कौन हमारा सहारा बनेगा , क्या होगा कैसे होगा !”

” बेचारी स्मिता भरी जवानी मे विधवा हो गई , कैसे पालेगी वो बच्चो को ?” लोग भी यही बात कर रहे थे ।

” अरे भरा पूरा परिवार है।  माना पति – पिता की कमी कोई पूरी नही कर सकता पर फिर भी बेसहारा तो नही है स्मिता !” उन्ही मे से कोई बोला।

” जब पति पिता का सहारा नही होता ना तो बाकी सब मुंह मोड़ लेते है । स्मिता तो पढ़ी लिखी भी नही जो नौकरी कर ले , वैसे भी इतने छोटे बच्चो को छोड़ वो कुछ कर भी कहाँ पायेगी !” किसी ने बोला।

” सब एक से तो नही होते ना और फिर इस घर , जायदाद सबमे स्मिता के बच्चो का भी तो पूरा हक है !” वहाँ जितने लोग थे उतनी बाते बना रहे थे पर स्मिता और उसके परिवार वाले इन सबसे बेखबर अपने दुख मे दुखी थे , क्योकि आज किसी माता पिता का बच्चा , भाई बहन का भाई , पत्नी का पति और बच्चो के सिर से बाप का साया छिना था।

” अगर आप लोगो की इजाजत हो तो हम चाहते है स्मिता और उसके बच्चो को अपने साथ ले जाये !” तेहरवीं की रस्म के बाद स्मिता के भाई ने कहा।

” क्यो बेटा स्मिता का अपना परिवार है ना यहाँ वैसे भी हमने सोच लिया है अब स्मिता को आगे पढ़ाई करवाएंगे जिससे कल को नौकरी कर सके वो किसी का मुंह ना देखना पड़े उसे !” स्मिता के ससुर बोले।

स्मिता के ससुर ने जो कहा करके दिखाया स्मिता आज कॉलेज मे पढ़ रही है पीछे से उसकी जेठानियां उसके बच्चो को देखती है । उसके जेठ अपने भाई के परिवार के प्रति अपना हर फर्ज निभा रहे है । उन्होंने एक मिसाल पेश की उन लोगो के सामने जो कहते थे विपत्ति मे अपने ही सबसे पहले मुंह मोड़ते है । स्मिता बहुत खुश है ऐसा परिवार पाकर उसके जीवन की कमी कोई नही भर सकता किन्तु वो बेसहारा नही यही काफी है उसके लिए ।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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