भीनी ने बाहर जाने से पहले जब अपने आप को आईने में निहारा,
तो वह हल्के से बड़ी अदा से मुस्कराई। उसे महसूस हुआ कि वो एक सैकैंड भी यहाँ और रूकी तो ख़ुद पर ही फ़िदा हो
जाएगी। सिवाय थोड़े से आई मेकअप और हल्की सी क्रीम लगाने के इलावा उसने कोई कास्मेटिक यूज़ नहीं किया।
जब सादगी में ही इतनी सुंदरता है, तो फालतू रंग लगाने की क्या ज़रूरत है। और फिर नैतिक तो उस पर वैसे ही
दिलो जान से निसार है। प्यार तो उसे भी नैतिक से बहुत है, पर अभी वो कुछ डिसाईड नहीं कर पाई कि उसे
भविष्य में कैसा जीवन साथी चाहिए। उसकी इच्छाएँ कोई बहुत ज्यादा नहीं थी, तो उन्हें कम भी नहीं कह सकते।
प्यार के साथ साथ पैसा, नाम, इज्जत सब कुछ होना चाहिए। सब से जरूरी बात है समय, जिसकी आजकल सबसे
ज्यादा कमी है लोगों के पास। हर कोई भाग रहा है, पता नहीं सब किस मैराथन में शामिल है।
अगर देखा जाए तो वो ख़ुद भी तो उसी दौड़ का ही एक हिस्सा थी। बस फ़र्क़ सिरफ इतना ही है कि हम
दूसरों की कमियों को देखते है, ग़लतियाँ भी निकालते है, लेकिन अपने गिरेबान में कोई झाँकना ही नहीं चाहता। लड़की
ज़रा सा मुस्करा कर, नज़ाकत से अपना काम किसी दूसरे को कह दे तो वो मना नहीं कर पाऐगा, भले ही उसे दो घंटे
और बैठना पड़ जाए, चाहे ये बहाने हमेशा भी नहीं चलते और सब को बेवक़ूफ़ भी नहीं बनाया जा सकता। लेकिन
भीनी कभी कभी दूसरों की शराफ़त का फायदा उठा लेती थी। मीता उसकी इकलौती सहेली थी। दोनों एक दूसरे का हर
राज जानती थी, वैसे ऐसी कोई राज वाली बात अभी तक उन दोनों में नहीं थी। या यूं कह सकते है कि बस थोड़ी
मौजमस्ती में जिंदगी गुज़ारना , मस्ती करना उनकी आदत थी। मन किया तो किसी रेहड़ी पर गोलगप्पे खा लिए या
फिर रंग बिरगीं चुस्की के मज़े लिए।
भीनी अपनी माँ की इकलौती संतान थी। कहना तो नहीं चाहिए , पर उसका पिता महानिकम्मा इन्सान
था, जिसका कभी किसी काम में मन नहीं लगा, आख़िर रिशतेदार भी कहाँ तक साथ देते हैं, एक एक करके सब ने
मुँह मोड़ लिया। काफी समय से भीनी के पिता की कोई खबर नहीं, कहीं मर खप गया या फिर साधु संत बन गया।
माँ थोड़ी पढ़ी लिखी थी, कभी किसी प्राईवेट स्कूल में छोटे बच्चों की आया बनी तो कभी घर में टयूशन पढाई। सिलाई
बुनाई का काम भी किया। माँ की हालत देखकर भीनी का शादी करने का मन न करता। पढाई में तो उसकी कोई ख़ास
रूचि नहीं थी, लेकिन फिर भी ग्रेजुएशन करके कम्प्यूटर सीख लिया तो नौकरी मिल गई। वैसे वो नौकरी पैसों के
लिए करती थी, उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन सजने सवंरने का बहुत शौक। और तैयार भी ऐसे होती कि कोई
फूहड़पन नहीं। इंटरनेट से ऐसा ऐसा मेकअप का सामान ढूँढ कर आन लाईन मँगातीं की अक्सर लडकियों
को उनके नाम तक न पता होते।
मीता से मुलाक़ात भी उसी आफिस में ही हुई थी, उसका डिपार्टमैंट और था, लेकिन तीन साल से उनकी
दोस्ती बरक़रार थी। नैतिक से मुलाक़ात का भी क़िस्सा बहुत मज़ेदार था। सुंदरता में तो भीनी बड़ी बड़ी ऐक्टरैस को
भी मात देती थी, लेकिन हर कोई थोड़े ना मिस इंडिया या वर्ल्ड का ताज पहन सकता है। नैतिक बहुत अमीर ना
सही लेकिन बहुत अच्छे खाते पीते घर का लड़का था। सीए था, अपना आफिस था, फ़ैमिली बिजनैस भी था, लेकिन
उसका अपना ही काम था। पिता, भाई दुकान देखते थे । उसे ख़ुद याद नहीं कि कब से वो भीनी को चाहता था। उनका
शहर कोई बहुत बड़ा नहीं था। तीन चार गलियाँ छोड़ कर ही भीनी का घर था। गलियों की बनावट कुछ ऐसी थी कि
नैतिक को जब भी कहीं जाना होता तो उसे भीनी के घर के आगे से ही निकलना पड़ता। कई बार वो उसे यहाँ वहाँ
दिख जाती। बाद में तो उसका रूटीन ही बन गया कि जब तक उसे वो देख न ले , चैन न पड़ता। पैसे की भले ही
कमी थी, लेकिन भीनी अपने आप को शुरू से ही साफ सुथरा रखती। दरअसल उसे ये गुण विरासत में अपनी माँ से ही
मिला था।
वक़्त के थपेड़ों ने उसकी माँ की सहनशक्ति का बहुत इम्तिहान लिया था। उसके मायके में सब मौज कर
रहे थे, उस की किस्मत में जब दु: ख लिखा था तो कोई क्या कर सकता है। माँ बाप ने तो अच्छा घर वर देखकर ही
शादी की थी, पर जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो कोई कब तक साथ दे। जब तक सास ससुर ज़िंदा थे, कुछ ठीक
रहा, मगर बाद में हर कोई अपने परिवारों में व्यस्त हो गया। अच्छी बात यह रही कि उसने एक ही बेटी को जन्म
दिया। सास की इच्छा तो पोते का मुँह देखने की थी, मगर भीनी की माँ को अपने निखट्टू पति की आदतों का पता
लग चुका था। वो तो अपना पूरा ध्यान भीनी पर ही लगाना चाहती थी, ताकि जिन मुश्किलों का सामना उसे करना
पड़ा है, कल को भगवान न करें, भीनी पर कोई विपत्ति आए। मुशकिल न पड़े , ये और बात है, हम सावधानी न
रखे तो ये गल्त बात है
नैतिक की और पहले तो भीनी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब वो इतनी भी छोटी नहीं थी बाईसवां साल
लग चुका था। अपने पिता की हरकतों को जानकार उसे शादी से विशवास कुछ उठ सा गया था, लेकिन आसपास के
परिवार काफी सुखी लगते थे। आफिस में भी शादीशुदा औरतें बड़े मज़े से आती थी, लंच में जब सब इकट्ठा होते तो
खूब चटखारे दार बातें सुनने को मिलती। भीनी को ये बात बिलकुल सही लगती कि शादी वाक़ई ऐसा लडू है जो खाए
वो भी पछताए और जो न खाए वो भी पछताए, तो जब हर हाल में पछताना ही है तो क्यों न खाकर ही पछताया
जाए। भीनी को भी नैतिक अच्छा ही लगा। छोटे शहरों में बस सर्विस तो होती नहीं, वैसे भी वो एक्टिवा से जाती थी,
उस दिन एक्टिवा खराब था, तो वो पैदल ही घर से निकल पड़ी कि आगे चलकर आटो रिक्शा ले लेगी, लेकिन काफी
दूर तक कुछ नहीं मिला। तभी नैतिक बाईक पर वहाँ से गुज़रा तो उसने लिफ़्ट आफर की। भीनी चुपचाप बिना किसी
नानुकर के बैठ गई। बिना पूछे ही उसने उसे उसके आफिस के आगे उतार दिया। वो भी मुस्करा कर उतर गई, मगर
थैक्स करना नहीं भूली।
नैतिक तो मानों निहाल हो गया। अब वो कभी कभी मिल लेते, यहीं वहाँ की बातें करते, मगर प्यार
मुहब्बत जैसी कोई बात नहीं थी। प्यार की कोंपले नैतिक के मन में तो कब से ही थी, मगर भीनी उसे दोस्त ही
मानती। समझती तो वो भी थी, मगर वो ख़ुद ही नहीं जानती थी कि वो क्या चाहती है। क्योंकि घर में माँ का जो
हाल देखा और पिताजी की जो तस्वीर उसको धुँधली सी याद थी, उसके बाद विवाह के लिए मन में कड़वाहट होना
कोई नई बात नहीं थी। दूसरी और आफिस में खुश दिखने वाली कई औरतों की असली गृहस्थी की कई परतें भी अब
प्याज़ के छिलकों की तरह उतर रही थी। भले ही सब दु: खी नहीं थी, लेकिन गिले शिकवे सब की ज़ुबान पर थे।शाली
का पति बहुत अच्छा था मगर बहुत पोजेसिव। किसी दूसरे मर्द से शाली का बात करना भी उसे पंसद नहीं था। औरतों
की कमाई भी चाहिए और बेतुकी बंदिशें । कभी कभी मजबूरी में किसी से लिफ़्ट लेनी पड़ जाए तो बेचारी मुँह ढ़क कर
बैठती और दो गलियाँ पहले ही उतर जाती।
सलोनी का मिंया तो इतना शक्की कि वो ढ़ग से तैयार भी न हो पाती। सलोनी को भी शायद
परमात्मा ने फ़ुरसत में घड़ा था, उपर से लंबे घने बाल सुंदरता में चार चाँद लगाते। घर से तो लगभग बिना मेकअप
के ही आती, लेकिन नारी तो नारी है। मन तो करता ही है, दफ़्तर में आकर थोड़ा चाव पूरा करती। एक दिन उसका
पति किसी काम से दफ़्तर में आ गया। सलोनी को इस तरह देखकर तो उसके चेहरे का रंग ही बदल गया। वो वहाँ तो
कुछ नहीं बोला लेकिन सुनने में आया कि उसने घर पर बहुत हंगामा किया। फ़िरोजा तो इतनी सुंदर की कवि की
कल्पना से भी कहीं परे। अपने आप को अप्सरा समझने वाली भीनी भी अपने आप को उससे कमतर ही पाती। ज़रा
सा भी मुस्कुराती तो गाल का डिम्पल उसकी सुदंरता में चार चाँद लगा देता। लेकिन वो मुस्कुराती भी जैसे हफ़्तों बाद।
भीनी को पता चला था कि उसका पति बहुत ही दिलफेंक क़िस्म का इन्सान है। ऐसी सुंदर बीवी के होते हुए कोई
बाहर झाँक भी कैसे सकता है। भीनी को उस समय बड़ी कोफ़्त होती , जब दफ़्तर में या कहीं आते जाते पुरूष जान
बूझकर टकरा जाते, या छू कर फिर ऐसे शो करते जैसे गल्ती से हाथ लग गया हो। कई तो इतनी गंदी निगाह से
देखते जैसे कपड़ो के आरपार ही देख रहे हों।
ऐसे ही सबके अलग अलग क़िस्से। किसी का पति अच्छा तो सास ननद से नहीं बनती। किसी को कम
दहेज के ताने सुनने पड़ते है तो किसी का पति माम ज ब्वाय है। और भी न जाने क्या क्या। उसकी बेस्ट फ्रैंड मीता
की कहानी तो और ही थी। उस बेचारी के साथ तो बहुत बड़ा धोखा हुआ था। पर ग़लती उसके माँ बाप की भी थी।
काफी समय बाद उसे मीता के बारे में पता चला। उसे तो ये पता भी नहीं था कि मीता शादी शुदा है , और एक पांच
साल के बेटे की माँ है। उसका तो तलाक़ का केस चल रहा था। बिना किसी जाँच पड़ताल के उसकी शादी आस्ट्रेलिया
में तय कर दी गई थी। माँ बाप तो इसी में खुश थे कि बेटी बाहर जाएँगीं। दरअसल विदेश की चकाचौंध बहुतों को
गुमराह कर रही है। जब असलियत खुली तो पता चला कि वहाँ पहले से ही वो किसी के साथ रिलेशन में है।वैसे
विदेशों में ये आम बात है। माँ बाप के दवाब में आकर यहाँ पर शादी कर ली। एक महीना मौज मस्ती के बाद जो
वापिस गया तो आज तक नहीं आया।
मीता अब न इधर की न उधर की कोर्ट में केस चल रहा है। और ये जो हमारा समाज , हर बात का
दोषी लड़की को ही ठहराएगा। माना कि परिस्थितियाँ पहले वाली नहीं लेकिन भीनी को लगता कि औरतों की स्थिति
का आकलन अगर पुराने जमाने से किया गया तो बदलाव की प्रकिया तो पत्थर घिसने से भी धीमी है। लेकिन कुछ
बातें उसने भी नोटिस की, कि हर बात पर औरत का पक्ष भी नहीं लिया जा सकता। कुछ दिन पहले ही जिस अदिती
ने ज्वाईन किया है, कैसी अजीब हरकतें करती है। जब बास के या किसी पुरूष कर्मचारी के कम्प्यूटर पर कुछ देखने
समझने के लिए खड़ी होती है, तो पूरी उसके उपर ही झुक जाती है। अगर ये मान भी लिया जाए कि ये उसकी आदत
है तो महिलाओं के पास तो आराम से खड़ी होती है। भीनी को किसी के पहरावे से मतलब नहीं था, लेकिन वो ये तो
समझ गई थी कि बाहर निकलते समय ढ़ग से पहनना औरत मर्द दोनों के लिए जरूरी है। सीमा रेखा कोई किसी दूसरे
के लिए निर्धारित नहीं कर सकता, ये ते स्वयं ही देखना है।
पिछले तीन दिन से उसे नैतिक दिखाई नहीं दिया, तो उसे थोड़ी चिंता हुई कि कहीं वो बीमार तो नहीं हो
गया। जब से उसने नैतिक की और ध्यान देना शुरू किया ऐसा पहली बार हुआ कि वो उसे पूरे दिन में एक बार भी न
दिखा हो। और अब तीन दिन हो गए।उसके पास नंबर तो था, पर उन दोनों में फ़ोन पर बहुत कम बातें हुई। जब कभी
फ़ोन आया भी तो नैतिक का ही आया। भीनी असंमज में थी कि क्या करे। एक बार तो भीनी ने सोचा कि छोड़ो उसे
क्या लेना देना नैतिक से। और भी कई लोग यहाँ वहाँ मिलते ही रहते है, मगर फिर उसके दिल ने कहा, नहीं नैतिक
उनमें से नहीं है। तो फिर वो कोई स्पैशल भी कहाँ है, उनमें कहाँ कोई प्यार मुहब्बत की बात हुई। तो फिर उसे बैचेनी
किस लिए हो रही है, आख़िर क्या रिश्ता है उसका नैतिक से। उहं, मेरी बला से।पर सोचने से दिल कहाँ मानता है।
कहीं दिल न लगता भीनी का। दो दिन से मीता से भी मुलाक़ात नहीं हुई। पति के साथ कोर्ट केस के चक्कर में उसे
कई बार छुटटी लेन पडती थी। तीसरे दिन जब मीता आई तो उसकी बात हुई।
मीता ने तो सीधे ही कह दिया, इतनी बैचेनी है तो फ़ोन कर ले। पर भीनी कुछ फैसला नहीं कर पा
रही थी। एक दिन और निकल गया। अब तो भीनी का सब्र टूट चुका था। उसके ज़हन में वो गाना चल रहा था,
क्या यही प्यार है, दिल तेरे बिन कहीं लगता नहीं , वक्त गुज़रता नहीं। दिल से मजबूर भीनी ने फ़ोन लगा दिया,
तो किसी लड़की की आवाज़ सुनाई दी। उधर से हैलो हैलो होती रही, पर उसने काट दिया। कौन हो सकती है वो, बहन,
भाभी या कोई और। माँ तो नहीं , क्योकिं औरत की आवाज़ नहीं थी। भीनी आज छुट्टी पर थी। उसने मन ही मन
कुछ सोचा। मुँह को स्कार्फ़ से लपेटा जैसे अकसर लडकियां स्कूटी चलाते वक्त लपेटती है, हैलमेट डाली और उसके घर
की और चल पड़ी। उसे घर का पक्का पता नहीं था, कुछ आईडिया सा था। उसने गली के तीन चार चक्कर लगा लिए।
कुछ पता नहीं चला। नैतिक के नाम के सिवाय कुछ नहीं जानती थी। यहाँ तक कि सरनेम भी नहीं।
जिस गली में नैतिक का घर होने का अंदेशा था, वहाँ सब घरों के बाहर नेम प्लेट या कुटीर
विला वगैरह लिखा हुआ था , लेकिन इससे नैतिक के बारे में पता कैसे चले और पूछे भी किससे। थक हार कर घर
आकर लेट गई। उसे माँ की बात याद आ गई। माँ जब भी परेशान होती तो एक फ़िल्मी भजन की लाईनें गुनगुनाती
है तुझसे जो न सुलझे तेरे उलझे हुए धंधे, सब छोड़ दे मालिक की रजा पर तू ऐ बंदे । उसने मन ही मन कई बार
ये लाईने दोहराई। पर चैन कहाँ । सारी रात आँखों में कटी। भीनी समझ नहीं पा रही थी कि आख़िर ये हो क्या रहा
है। प्यार की कोई बात नहीं, कभी कोई ईकरार , इज़हार कुछ भी तो हुआ नहीं। और वैसे भी अपनी माँ या आस पास
की सहेलियों कुलीगस में अभी तक कोई ऐसी नहीं मिली जो शादी करके खुश हो। सब जैसे विवाहित जीवन को घसीट
रही हैं। कईयों के मुँह से तो ये भी सुनने को मिला कि बच्चों के कारण निभा रही है, वरना तो अकेले ही जीवन सुखी
था। इसका मतलब शादी सिरफ मातृत्व सुख के लिए ही है। तभी तो कई देशों में बच्चे पहले होते है और शादी बाद
में। वहाँ तो और भी बहुत सी अलग बातें हैं। लेकिन हमारे देश की बात और है।
नियम तो कुछ बड़े लोगों ने यहाँ तोड़े है। परंतु उन्हें सब माफ है। भीनी की सोच कहाँ से कहाँ पहुँच जाती,
ये सब सोचकर मानों नैतिक को मन से निकालने की असफल कोशिश करती। विचारों के झंझावत में ही रात गुज़र
गई। सिर बहुत भारी था मगर आफिस तो जाना था। विचारों में खोई सी आफिस पहुँची । रास्ते में दो बार दुर्घटना
होते होते बची। आफिस में एक जरूरी मीटिंग थी। बैठी तो रही , पर बुत की तरह। कुछ पल्ले नहीं पड़ा । वो तो शुक्र
है, किसी ने उससे कुछ पूछा नहीं। शाम को तबियत ठीक न होने का कह कर थोड़ा जल्दी निकल आई। पार्किंग से
निकल ही रही थी कि सामने बाईक पर नैतिक दिखा। स्कूटी को बीच में स्टार्ट ही छोड़कर वो दीवानों की तरह नैतिक
की और भागी। वो अभी बाईक रोककर हैलमेट उतार ही रहा था कि भीनी पीछे से जाकर लता की तरह उससे लिपट
गई।
कहाँ थे इतने दिन, बताया भी नहीं, एक फ़ोन तक नहीं किया और भी न जाने क्या क्या बोले जा रही
थी भीनी। आसपास का ध्यान नहीं, पार्किंग में जितने भी लोग खड़े थे , सबकी निगाहें उन दोनों पर थी। बरसात से
ज़्यादा बरस रही थी भीनी की आँखे। उसकी ये हरकतें देखकर नैतिक धीमे से बोला, बैठो पीछे और भीनी के बैठते ही
वो उड़ चला।वहीं किसी भले आदमी ने भीनी की स्कूटी को साईड में लगाकर बंद कर दिया और चाबी लगी रहने दी।
किसी दूसरे ने फब्ती कसी अरे कौन कहता है हीर – राझां, लैला- मजनूँ , नहीं रहे। उनकी रूहें यहीं पर है लिबास
बदल कर। और इसी प्रकार के कटाक्ष करते करते भीड़ छँट गई।
नैतिक ने पारक के सामने बाईक खड़ी की, शर्मिंदा सी भीनी चुपचाप नीचे उतरी। झुकी सी आँखे, मानों सारे
प्रश्न खत्म हो चुके हो। नैतिक ने सामने से एक टहनी तोड़ी और घुटनों के बल झुककर बोला विल यू मैरी मी
नैतिक की इस हरकत पर भीनी को हँसी आ गई। कुछ देर पहले जहाँ उसकी आँखों से गंगा जमुना बरस रही थी अब
ऐसे लग रहा था मानों कई फूल एकसाथ खिल गए हो। ख़ूबसूरती तो उसकी बेमिसाल थी ही, उस पर गालों के डिम्पल
के भीतर छोटा सा तिल। नैतिक को शायर की ये पंक्तियाँ याद आ गई, वो बोला उनके गालों पर चमकता ये छोटा
सा तिल, जैसे ख़ूबसूरती पर दरबान बिठा रखा हो। यह सुनकर तो भीनी लाज से लाल हो गई। टहनी अभी भी नैतिक
के हाथों में थी। उसने फिर कहा, क्या मुझसे शादी करोगी
लेकिन अभी तो हम एक दूसरे को अच्छे से जानते भी नहीं तो फिर इतनी बैचेनी किसलिए।
कह कर नैतिक टहनी को थोड़े ग़ुस्से से नीचे फेंक कर चल दिया। अरे रूको बाबा, कुछ सोचने का, घर में बात
करने का मौका तो दो। लेकिन नैतिक नहीं रूका। प्यार क्या घर वालों से पूछ कर किया थानैतिक चलते चलते
बोला।और जो चार दिनों से दीवानी हुई जा रही थी, और मेरे घर के आसपास क्या ममी से पूछकर मँडरा रही थी।
ओह , तो ये उसकी सोची समझी प्लानिंग थी , मुझे तंग करने की और मेरा इम्तिहान लेने की। बात बिगड़ती देखकर
भीनी ने पास से फूल तोड़ा और भाग कर नैतिक के सामने आकर घुटनो के बल बैठती हुई बोली विल यू मैरी मी
ओह येस- येस- येस कहते हुए नैतिक ने उसे फूल समेत गोदी में उठा लिया। क्यूकिं ये पारक का पिछला गेट था और
उस समय कोई वहाँ था नहीं, नहीं तो यहाँ भी सीन बन जाता। अब क्या था। भीनी की माँ का मना करने का तो
प्रश्न ही नहीं था, नैतिक के घर वालों को किसी भी तरह ये बराबरी का रिशता नहीं लगा और जात बिरादरी भी अलग
थी, लेकिन आजकल ये बातें कोई ज्यादा मायने नहीं रखती। बच्चों की खुशी के आगे वैसे भी माँ बाप झुक जाते है।
भीनी के घर की आर्थिक स्थिति के बारे में जानते हुए बारात में तो सिरफ घर वाले ही शामिल हुए,
बाद में नैतिक के परिवार नें होटल में बहुत बडी पार्टी दी। रिशता होने के बाद ही भीनी को पता चला कि उसका
संयुक्त और काफी बड़ा परिवार है।वैसे भी उनकी ज़्यादा बातें हुई ही कहाँ थी। सब कुछ बिना सोचे समझे अपने आप
ही होता चला गया। नैतिक के घर में ममी पापा के इलावा बड़ा भाई भाभी , उनका एक पाँच साल का बेटा शुभम्,
बहन तापसी जो कि कालिज मे पढती थी, और दादा दादी भी थे। वही पर नैतिक के चाचा का परिवार भी साथ ही
रहता था। उनकी रसोई भले अलग थी मगर आँगन एक ही था। सभी बहुत ही मिलजुल कर रहते थे, साझां बिजनैस
था। कुल मिलाकर घर में सोलह लोग और हैलपर अलग थे। जब इतने लोग रहेगें तो जाहिर है उनसे मिलने जुलने
वाले भी आऐगे। कुछ महीने तो मौज मस्ती में गुज़र गए।घूमना फिरना भी हो गया। तभी तो इसे मधुमास कहा जाता
है। लेकिन असली परीक्षा तो इसके बाद शुरू होती है। नौकरी तो वो छोड़ ही चुकी थी, क्यूकिं न तो नैतिक चाहता था
और वो ख़ुद भी कहाँ दिलचस्पी लेती थी। उसे तो ऐश की जिंदगी चाहिए थी। इसका मतलब यह भी नहीं कि उसे
नैतिक से प्यार नहीं था।
अच्छा ख़ासा पैसा होने के बाद भी परिवार की औरतें घर के काम ख़ास तौर पर रसोई का काम
ख़ुद देखती थी। बड़ो का सम्मान , छोटों से प्यार , आने जाने वालों की आवभगत, देन लेन , त्यौहार सब चलता था।
नौकर चाकर भी थे, या यू कह सकते है कि नई और पुराने रीति रिवाजों का सुमेल था। आधुनिकता थी मगर बेहूदा
अंग प्रदर्शन नहीं था। प्रेम विवाह तो चल जाता लेकिन लिव इन की इजाज़त नहीं थी। एक सभ्य सुस्कृत परिवार ।
एक सुनिश्चित दिनचर्या थी सबकी। ये नहीं कि सब पाँच बजे उठ जाते, सब काम के हिसाब से था, लेकिन बिना कहे
ही कुछ क़ायदे कानून थे, जिसका सब पालन करते। भीनी जहाँ से आई वहाँ सिरफ माँ बेटी ही थी।छोटा सा घर ना
कोई आए ना कोई जाए। रिशतेदारों से मेलजोल नहीं। मुशकिल से गुजारा होता, वो तो भीनी की नौकरी के बाद घर के
हालात कुछ सुधर गए थे। भले ही भीनी की पढाई में दिलचस्पी कम थी और हालात भी ठीक नहीं थे, लेकिन कुछ
विशेष गुण तो थे, जैसे कि उसे फ़ैशन की बहुत समझ थी, शापिंग बहुत बढ़िया करती। चीजों को सजाना सवारनां,
थोड़ा बहुत इंट्रस्ट पेंटिंग में भी था। लेकिन उसको एक्सपोज़र नहीं मिला।
परिवार भले ही बड़ा था, लेकिन कोई टोका टोकी नहीं। कुछ तो भीनी पहले ही आराम परस्त थी, अब
तो ऐश ही ऐश थी। घर का काम काज करना उसे पंसद नहीं था और न ही उसे आता। फ़ैशन तो करती पर सलीक़े से।
जब से उसने कमाना शुरू किया तब से उसका पार्लर का खर्च काफी बढ गया था। और अब तो कोई कमी नहीं। उसे
ज्यादा लोगों से घुलना मिलना पंसद नहीं था। परिवार के लोग नाश्ता , लचं वगैरह डाईनिगं टेबल पर ही करते, लेकिन
उसे अलग से कमरे में पंसदीदा सीरियल देखते हुए ही खाना पंसद था।बहुत कम वो सबके बीच बैठती। कभी किसी
मेहमान के सामने आना भी पड़ता तो जलदी से वहाँ से किसी न किसी बहाने से उठ जाती। परिवार वालों ने ख़ासतौर
पर इकलौती ननद तापसी ने घुलने मिलने की बहुत कोशिश की, लेकिन जब सामने वाले का रिस्पांस न हो तो हर
कोई पीछे हट जाता है। भीनी का ज्यादातर समय अपने कमरे में ही गुज़रता या फिर माँ के पास चली जाती। मीता से
मुलाक़ातों का सिलसिला जारी थी। वो घर भी आ जाती तो दोनों घंटों कमरे में बंद रहती।
वैसे मीता लड़की बहुत अचछी और मिलनसार थी। आते जाते कोई सामने से मिल जाता तो अच्छे से बात
करती। भीनी के ऐसे रूखे व्यवहार से परिवार का दुखी होना लाज़मी था, लेकिन कोई कुछ न कहता। नैतिक और भीनी
में प्यार था, परिवार के लिए यही खुशी बहुत थी। समय तो अपनी गति से चलता ही रहता है। दो साल बीत गए ।
भीनी बोर होने लगी। दोनो अभी बच्चा नहीं चाहते थे। नैतिक ने उसे अपने साथ या कुछ मनपंसद काम करने का
सुझाव दिया।कम्पयूटर का ज्ञाण उसे काफी था। उसने नैतिक के आफिस जाना शुरू कर दिया। गाड़ी चलानी तो उसने
शादी के बाद तुरंत ही सीख ली थी, शादी की पहली सालगिरह पर ही नैतिक ने उसे बढ़िया गाड़ी गिफ़्ट की थी। उसे
लाँग ड्राईव पर जाना बहुत पंसद था। काम के कारण नैतिक के पास समय की कमी रहती तो वो अपनी माँ या मीता
के साथ घूम फिर लेती।नैतिक के माँ बाप को कई बातें बुरी लगती, और वो ठीक भी थी, लेकिन उन्होनें चुप रहना
ही ठीक समझा। वो नहीं चाहते थे कि उनके कारण दोनों में लड़ाई हो।
भीनी की माँ की तबियत कुछ ठीक नहीं रहती थी, मजबूरन उसे काम छोड़ना पड़ा। दोनों घुटनों का
आपरेशन हुआ। आमदन का कोई साधन तो था नहीं, भीनी ही घर खर्च चलाती। नैतिक के पास पैसों की कोई नहीं
थी, समय की कमी थी। चूकिं भीनी ख़ुद ऐश करती थी तो उसे अब मायका अच्छा नहीं लगता। पुराना सा घर, कोई
सुख सुविधा नहीं। घर्र घर्र करते दो पंखे , पुराना सा कूलर। उसे तो जैसे एक काम मिल गया। ससुराल की परवाह उसे
थी नहीं। वैसे अब वो भी उसकी और ध्यान नहीं देते थे।हर एक की अपनी जिंदगी होती है। बुज़ुर्ग दादी कभी कभार
उसे बच्चे के लिए टोकती थी, पिछले साल वो भी चल बसी। नैतिक मस्त तबियत का था और वो भीनी से बहुत प्यार
करता था। एक दो बार माँ ने कुछ कहना चाहा लेकिन उसका उखड़ा मूड देखकर वो चुप रही। कभी कभार भीनी
आफिस चली जाती या घर से भी आनलाइन कुछ काम कर देती।
नैतिक समझ चुका था कि उसकी काम में कोई दिलचस्पी नहीं है।भीनी का सारा ध्यान अपनी माँ की
तरफ ही रहता।धीरे धीरे करके भीनी ने अपने घर की कायापलट दी। सब कुछ नया। फ्रिज से लेकर परदे, ऐसी, टी वी,
यानि कि हर सुख सुविधा। माँ की जिंदगी बहुत तंगी में गुज़री थी तो भीनी ने तो माँ को नए कपड़े और कुछ ज़ेवर
भी ख़रीद दिए और वो भी हीरे के। पैसे तो नैतिक से ही निकल रहे थे। भीनी का पार्लर का खर्च भी कम नहीं था।
नैतिक को कोई एतराज़ नहीं था, लेकिन वो ये भी चाहता था कि वो उसके परिवार का भी ध्यान रखे, ख़ास तौर पर
माँ का। कुछ समय पहले माँ की आँख का आपरेशन हुआ , चाची का घुटने का। तापसी की शादी हुई, दादी की मौत
हो गई।
लेकिन भीनी को कुछ मतलब नहीं। एक दो बार हालचाल पूछ लिया और काम खत्म। माना कि हैल्पर थे पर घर वालों
सा अपनापन नहीं मिलता।
हमारे देश में शादी सिरफ लड़के लड़की का मेल नहीं , दो परिवारों का मिलन भी होता है। और अब तो
वो नैतिक की परवाह भी नहीं करती थी। कई बार नैतिक कड़वा घूँट पी कर रह जाता। उसकी इच्छा होती कि जब वो
घर पर आए तो भीनी उसे घर पर मिलें, उसके लिए चाय बनाएँ, मिल कर चाय पिए। कभी ईकटठे घूमने जाएँ। मगर
अब तो एक कमरे में रहना भी जैसे मजबूरी हो। पहले नैतिक के पास भीनी के लिए समय नहीं था और अब भीनी
के पास नैतिक के लिए नहीं। वो या माँ के पास होती या सहेलियों के साथ। जेब में पैसे और हाथ में गाड़ी तो
सहेलियों की क्या कमी। पता नहीं किस में कमी थी, बच्चा भी नहीं हुआ। एक दो बार डाकटर के पास गए तो उसने
कुछ लंबा इलाज बताया। कभी एक नहीं फरी तो कभी दूसरा नहीं। दस साल बीत गए। परिवार बढ गए तो बँटवारे भी
हो गए। भीनी नैतिक अलग घर में रहने लगे। ममी पापा बड़े बेटे के साथ थे। भीनी ने अगर किसी के साथ बुरा
व्यवहार नहीं किया तो कुछ अच्छा भी नहीं था। इसी बीच मीता की अपने पति से सुलह हो गई और वो विदेश चली
गई। नैतिक और भीनी के प्यार में न जाने कब कैसे दराड़े पड़ गई, कुछ पता न चला। नैतिक ने कई बार कोशिश की
कि भीनी कोई पंसदीदा काम करे, पैसों के लिए न सही, दिल ही लगा रहेगा लेकिन वो समझ चुका था कि भीनी काम
करना ही नहीं चाहती। उसने पार्लर खोलने का सुझाव भी दिया, लेकिन उसके लिए सीखना भी तो जरूरी है। कुछ दिन
जाकर बंद कर दिया। पेंटिंग के लिए लाए रगं मुँह चिढ़ा रहे हैं।
और भी तीन चार काम शुरू किए लेकिन सब अधूरा । नैतिक ने नोटिस किया कि एक दो हफ़्ते के बाद
ही भीनी उब जाती है किसी भी काम से। सबसे ज्यादा उसे अपने आप से प्यार था। महीने में दस दिन तो या वो
पार्लर में होती या ब्यूटिशियन घर पर होती। उसे नैतिक के खाने पीने की उसके कपड़ों की कोई चितां नहीं थी। सब
काम मेड कर रही है। कभी किसी कपड़े पर मशीन में धोते हुए दाग लगे पड़े होते तो कभी बटन ग़ायब है। नैतिक
सोचता कि शायद घर में बच्चा होता तो स्थिति कुछ और होती, लेकिन ग़लतियाँ तो दोनों और से हुई। करोना में
नैतिक का काम भी कम हो गया था। दोनों ने ही ध्यान नहीं दिया। अब जा कर देखा तो जमा पूजीं भी कुछ ख़ास
नहीं थी। दोनों हाथों से लुटाएँ पैसे। जब भी नैतिक काम से विदेश गया तो भीनी साथ गई। दो बार तो अपनी ममी को
भी ले गई, जबकि सास बेचारी मन मसोस कर रह गई। पैसा होते हुए भी नैतिक की मां का विदेश घूमने का सपना
पूरा नहीं हुआ।पिता जी तो पहले ही चल बसे थे। कई बार नैतिक की माँ उसके घर रहने आई लेकिन भीनी का शुष्क
व्यवहार देखकर वापिस बड़े बेटे के पास चली गई। बड़ी बहू का व्यवहार ही बहुत अच्छा था और दो प्यारे बच्चे हर
समय दादी के आगे पीछे।
सास से कहती तो कुछ नहीं थी भीनी , पर करती भी कुछ नहीं। देर तक सोए रहना। भले ही
सास के आजकल पाँव दबाने का जमाना नहीं रहा,सास को मां भी न समझो , एक मेहमान की तरह, एक बुज़ुर्ग की
तरह ही उसका ध्यान रखो। पर भीनी से इतना भी न होता। नैतिक का स्वभाव भी अजीब हो गया। चिड़चिड़ापन
उसमें आ गया था। सुबह उठ कर तो उसका मूड बिगड़ा ही होता। माँ तो मां होती है, बच्चे के लिए कई बार कह चुकी
थी। कुछ भी न हो प्यार तो रहे, वो भी न जाने कब का उड़न छू हो चुका था। भीनी तो अपनी ही दुनिया में अब भी
मस्त थी। नैतिक के साथ बिस्तर पर भी एक सामान की तरह होती। दोनों एक घर में रहते हुए अपनी अपनी जिंदगी
जी रहे थे। लेकिन कब तक, साथ तो हर किसी को चाहिए। नैतिक के पास जो स्टाफ़ था, उसमें माही नाम की एक
लड़की थी। ठीक सी थी मगर आकर्षक , और बहुत एक्टिव। शादीशुदा एक बच्चे की माँ । पहले ते नैतिक की उससे
सिरफ काम की ही बातें होती थी, लेकिन अब किसी न किसी बहाने से उसे बाहर भी मिला।
पता नहीं माही पति से खुश नहीं थी या बास को खुश रखना चाहती थी वो भी कभी मिलने से मना न
करती। भीनी को इस बात की कहीं से भनक लग चुकी थी। बताने वाले ने शायद बात को कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा
कर बताया था। मनोज नमक ये वो शख़्स था जो कभी नैतिक के आफिस में काम करता था, लेकिन किसी कारणवश
उसे फ़ायर कर दिया गया था। उसे भीनी और नैतिक के बिगड़ते संबधों के बारे में कुछ पता चल चुका था तो उसे भी
बदला लेने का मौका मिल गया। भीनी ने उसकी बातों पर यक़ीन कर लिया और दोनों को इकट्ठा देखा भी। कहते है
न जब एक बार दराड़ पड़ जाए तो रिशतों की डोर टूटते देर नहीं लगती। अब तो जैसे आमने सामने की लड़ाई। भीनी
ने माही को लेकर इल्ज़ाम लगाए , जबकि रिशता सिरफ दोस्ती तक ही सीमित था।नैतिक के मन मे कहीं न कहीं
भीनी के लिए अभी भी साफ्ट कार्नर था। उसे भीनी की आर्थिक स्थिति का पता था। शादी के बाद उसने दोनों हाथों से
पैसा लुटाया। जो शौक़ पहले नहीं पूरे हुए सब पूरे किए। माँ को हर दम साथ रखा। कपड़े, गहने, घूमना, फिरना, पार्लर,
जिम, विदेश यात्रा। नैतिक अपने काम में व्यसत रहा।
भीनी की माँ ने भी उसे नहीं समझाया। कहती भी कैसे,उसका घर भी तो वही चला रही
थ। वैसे भी स्वभाव से वो इतनी डोमिनेटिगं और उचश्रृंखल हो चुकी थी कि किसी की भी नहीं सुनती थी। नैतिक की
हरकतों को देखते हुए उसके परिवार वाले भी पीछे हट गए। दोनों में हर रोज लड़ाई कलह क्लेश रहता। बारह साल की
प्यार भरी शादी का ये अंजाम। कहते है जब एक बार परतें खुलनी शुरू हो जाएँ तो खुलती ही चली जाती है। नौबत
यहाँ तक आ गई कि दोनों ने अलग होने की सोची। ज़्यादा लोगों को तो पता नहीं था, लेकिन दोस्तों मित्रों तक तो
बात पहुँच ही चुकी थी। कईयों ने समझाने की कोशिश की, मगर वो दोनों ही समझना ही नहीं चाहते थे। एक बार तो
तलाक़ के लिए वक़ील से बात भी कर ली। वक़ील जानपहचान वाला भला आदमी था। उसने समझाया और सुझाया कि
तुम कुछ समय अलग रहो और किसी अच्छे कन्सलटेंट की सलाह लो।
पता नहीं क्यों दोनों में ही जैसे इगो आ गई हो। बीच बीच में कुछ ठीक भी होते मगर फिर लड़ पड़ते।
बाकी सब तो अपने में मस्त थे, लेकिन दोनों की माएँ बहुत दुखी थी। माँ तो माँ ही होती है, हर हाल में औलाद का
भला ही सोचती है। लेकिन कोई सुने तब ना। दोनों ही नाती पोते का मुँह देखने को तरस रही थी लेकिन यहाँ तो
रिशता ही टूटने की कगार पर था। अभी तक ये बात अंदर ही अंदर थी। नैतिक भी जैसे ले देकर भीनी से छुटकारा
पाना चाहता था, और भीनी भी अब पुरानी वाली षोडषी नहीं थी। कमाई करना तो उसके बस में नहीं था, वो तो नैतिक
से पैसा लेकर ही बाकी जीवन ऐश करना चाहती थी। उसके पास न तो कुछ ख़ास पढाई थी और मेहनत करना उसे
भाता नहीं था। माँ के घर रहना उसे पंसद नहीं था।
सब मिलने जुलने वालों ने अब समझाना बंद कर दिया। लड़ झगड़ कर ,एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगा कर
दोनों थक चुके थे।वक़ील के समझाने पर एक दिन शातिं पूर्वक दोनों ने फैसला किया कि बिना कोई तमाशा खड़ा किए
अपनी अपनी राह पर चलते है। वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ देकर
छोड़ना अच्छा का सोचकर दोनों ने कुछ समय अलग रहने का फैसला किया। भीनी ने नौकरी तलाशनी शुरू कर दी।
पास मे ही किसी दूसरे शहर में बीस हज़ार की नौकरी और अच्छा पीजी मिल गया। इसमें भी नैतिक ने ही मदद
की।नैतिक ने उसे हर महीने काफी अच्छी रकम देने का वायदा भी किया ताकि वो और उसकी मां भी अच्छे से रह
सके। चार छ महीने बिना मिलेजुले रहने का फैसला हुआ। कोई फ़ोन नहीं। कुछ बहुत ही जरूरी हुआ तो मैसेज। घर
छोड़ते वक्त भीनी की आँखों में आँसू थे, जिनहें वो छुपाने का असफल प्रयास कर रही थी। नैतिक ने भी उसे पैकिंग में
वो हर चीज रखवाई जिसकी वो आदी थी। भीनी ने घर को पूरी तरह संवारा, मेड को अनगिनत हिदायतें दी, नैतिक का
सारा सामान ख़ुद व्यवस्थित किया। उसे पता था कि नैतिक को सब कुछ बिखेरने की आदत है।
दोनों का मन अंदर से बहुत उदास था, लेकिन किसी ने पहल नहीं की। पिछले कई महीनों से उनकी
तकरार लड़ाइयाँ, थम ही नहीं रही थी। अब किसी को पता लगे तो लगे , लेकिन उनहोनें अपनी और से सभी को यही
बताया कि भीनी अपने ख़ुद के काम से पहचान बनाना चाहती है। वैसे घर में जो भी हो बाहर उसकी इमेज बहुत
अच्छी थी। नैतिक का परिवार इतना संस्कारी था कि उन्होनें तो भीनी को सिर आँखो पर रखा। कभी किसी से उसकी
कोई कमी उजागर नहीं की। वो यही सोच कर एक तरफ हो गए कि सबका अपना अपना स्वभाव है। वो दोनों खुश थे,
इसी में वो भी खुश थे। लेकिन जब मिंया बीवी में ही न बने तो कोई क्या करे। अब लोगों का मुँह तो बंद हो नहीं
सकता और ज्यादा परवाह करने की ज़रूरत भी नहीं होती। जब अपने ही रिशते दाँव पर लगे हो तो दूसरों के बारे में
क्या सोचना।
दोनों का ये विचार था कि अलग रहकर ही एक दूसरे की कीमत पता चलेगी। दोनों को स्पेस की ज़रूरत थी। कुछ
दिन सब ठीक रहा। अलग रह कर दोनों को सकून मिला। भीनी भी नए आफिस में मन लगाने का प्रयास करती।
बारह साल घर के ऐशो आराम के बाद ये सब बहुत मुशकिल था। सुबह जलदी उठकर नाश्ता बनाना , तैयार होना,
आफिस में काम करना, सबसे बड़ी बात लोगों की गंदी नज़रों का समान करना। शादी से पहले की बात और थी।
काफी समय उसने नैतिक के आफिस में काम किया, वहाँ तो वो मालकिन थी।वहाँ तो उसे पता ही नहीं
चला कि खर्च क्या होता है। काम कैसे किया जाता है। घर में हर सुख सुविधा थी। कुछ भी खराब होता तुरंत ठीक
करवा दिया जाता । चार दिन से ऐसी बंद पड़ा है, कितनी बार पी जी ओनर को बोल चुकी है। वैसे भी वो कितनी
आवाज़ करता है। उसके पास पैसे अब भी पड़े थे, लेकिन उसका न कुछ ख़रीदने को मन करता न पहनने को। अब तो
वो माँ को भी बहुत कम फ़ोन करती। जब करती माँ ही करती। दो महीने में ही उसे अपनी गल्तियों का अहसास होने
लगा। अगर नैतिक व्यसत रहा तो उसी की कमाई पर उसने ऐश की। परिवार वालों की एक एक बात उसे याद आती।
अपने कमरे में मेड से वो सारे घर के काम छुड़वाकर कभी मालिश करवाती तो कभी अपनी अलमारी ठीक करवाती तो
कभी सिर पर तेल लगवाती। बिना किसी रोकटोक के घूमती। किसी की मजाल नहीं कि उसकी और आँख उठाकर देखे।
उसके ससुराल के परिवार का समाज में उच्च स्थान है, रूतबा है, नैतिक का नाम ही बहुत था उसके लिए।
जैसा कि उसने सोचा था, वो दूसरी शादी कर लेगी, क्या इतना आसान है सब कुछ। इतने साल
बच्चा न होना भी बहुत बड़ा कारण है। अब उसे नैतिक और उसके परिवार की ख़ूबियाँ और अपनी कमियाँ नजर आ
रही थी। अब पैंतीस साल की उम्र में दूसरी शादी करना। न भी करे तो नैतिक से उसे बहुत कुछ मिल जाएगा, लेकिन
अकेली क्या करेगी। उसने मीता से बात की जो कि अब विदेश में थी। वो अब बहुत खुश थी और उसने तो यही सलाह
दी कि पहला प्यार पहला ही होता है। उसे भुलाया नहीं जा सकता। कोई भी एक आदमी दूसरे के मन मुताबिक नहीं हो
सकता, सगे बहन भाई नहीं, पति पत्नि तो आते ही अलग परिवेश से। लेकिन जब इकट्ठा रह रहे है तो कुछ तो
एडजसटमैंट करनी ही होती है। माना कि अब वो पुराना घूँघट वाला जमाना नहीं रहा, औरते अपने हक़ों के प्रति
जागरूक हो रही है, वगैरह वगैरह।लेकिन भारतीय परिवेश की, हमारी संस्कृति की कुछ ऐसी अच्छी बाते हैं जो कि
विदेशी मानते है और हम उनसे दूर जा रहे है।
भीनी की समझ में ख़ुद ही नहीं आ रहा था कि ये स्थिति आई कैसी। प्यार की राह के हमसफ़र , क्यूं
बन गए अजनबी। इधर नैतिक का भी यही हाल। अब उसे भी अपनी ग़लतियाँ नजर आने लगी। अपने कामों में
इतना खो गया कि वो भूल ही गया कि कोई है घर में जो उसका इंतजार कर रहा है। कोई ऐसा भी है जो अपना सब
कुछ छोड़कर उसके साथ चला आया। कभी जिंदगी की हर खुशी ही उसके साथ थी। अकेला घर खाने को दौड़ता। माँ
भी वहाँ नहीं रहना चाहती थी। पहले पहल भीनी उसका कितना ध्यान रखती थी। उसको याद आया, एक बार जब रात
को उसकी तबियत खराब हो गई थी तो अकेले ही कितनी तेज़ गाडी चलाकर हस्पताल पहुँची। उसके घर वाले भी बाद
में पहुँचें। माना कि कुछ कमियाँ थी, लेकिन कमियाँ किस में नहीं होती। अगर भीनी उसके घर वालों के साथ ज्यादा
मिक्स अप नहीं हुई तो वो भी उसके घर कितनी बार गया। भीनी के कई बार चाहने पर भी वो कभी वहाँ रात को नहीं
रहा। गया ही बहुत कम।
वैसे तो भीनी के मायके में किसी का ज्यादा आना नहीं था,फिर भी रिशतेदारी में दो तीन बार शादी
में भीनी ने उसकी कितनी मिन्नतें की थी चलने के लिए, लेकिन वो नहीं गया। उदास सी भीनी अपनी माँ के साथ ही
गई। ऐसी बहुत सी बातें जो अब उसे याद आ रही थी। हर समय बिखरा घर, अल्मारी, सूखे पौधे उसे भीनी की याद
दिलाते। मेड भी कितना काम करती। वैसे भी अकेले घर में कोई औरत तो काम करने को तैयार न होती, और अगर
आदमी रखता तो और मुसीबत खड़ी हो जाती। वो जो धनी राम था , शराब पीकर ही पडा रहता और वो जो बंसी लाल
था, उसे तो लड़किया छेड़ने के चक्कर में हवालात ही जाना पड़ा। बदनामी अलग से हुई। भीनी के होते उसे घर गृहस्थी
की कोई चिंता ही नहीं थी। सब बिल समय पर आन लाईन कर देती। अब उसे समझ में आया कि औरत का बाहर
जाकर नौकर करना ही काफी नहीं, घर सभांलना भी फ़ुल टाईम जाब है।
ग़लतियाँ तो दोनों को दिखाई दी, लेकिन दोनों को एक ग़लती कामन लगी और वो थी घर में बच्चा
न होना। पहली बात तो दोनों की ही दिलचस्पी नहीं थी, शायद क़ुदरत की भी यही मर्ज़ी थी। दोनों को ही अब ये कमी
लग रही थी। कितनी बार घर वालों ने समझाया कि बच्चे तो माँ बाप के बीच पुल होते है। अपना न हो तो गोद भी
तो लिया जा सकता है। भीनी को अपनी एक और ग़लती नजर आई और वो थी बचत न करने की आदत। खर्च की तो
कोई सीमा ही नहीं होती। लेकिन बुरा वक्त भी कहाँ बता कर आता है। और उसने अब ये भी महसूस किया कि माँ की
देखभाल उसकी जिममेदारी है न कि नैतिक की या उसके ससुरालवालों की । भले ही कोई कुछ न कहे लेकिन अपना
फ़र्ज़ तो अपना ही है। और वो कौनसा नहीं कमा सकती थी।उसे यह भी अहसास हो गया था कि भले ही पैसा बहुत
कुछ है, मगर सब कुछ नहीं। थोड़े कम पैसों से तो काम चल सकता है, लेकिन प्यार , विशवास के बिना नहीं। किसी
दूसरे के सिर पर ज़रूरते तो पूरी हो जाती है मगर शौंक तो अपने पैसे से ही पूरे करने चाहिए। माँ ने कितना समझाया
पर वो समझे तब ना।
पछता अब दोनों रहे थे। परतुं पहल कौन करे। एक एक दिन काटना मुशकिल हो रहा था। चार महीने
बाद दोनों ने वक़ील से मिलना था। अनमने से दोनों पहुँचें। वकील ने क्या बातें की, कुछ समझ नहीं आ रहा था।
वकील ने भी चुपचाप उनके आगे साईन करने के लिए काग़ज़ कर दिया। दोनों के मुँह से ईकटठे ही निकलाएक
मौका और और दोनों ज़ोर से हंस पड़े। वक़ील भी उनकी हँसी में शामिल होते हुए बोला, आप दोनों एक दूसरे में इतने
खोए हुए थे कि किसी ने भी ये नहीं देखा कि मैनें कौनसा काग़ज़ आपके सामने रखा है। अरे , ये तो अखबार का
टुकड़ा है और दोनों हंसते हुए हाथों में हाथ डाले निकल पड़े बी बर्थ , डी डैथ के बीच सी यानि की चुआईस को थामे।
विमला गुगलानी