किरण देवी अपने जीवनसाथी की मृत्यु के बाद गहरे अकेलेपन में जी रही थीं। उनका बेटा और बहू विदेश में थे और अपनी व्यस्त जिंदगी में उलझे हुए थे। उन्होंने किरण को इस वृद्धाश्रम में रहने के लिए कहा ताकि वह अपने हमउम्र लोगों के साथ समय बिता सकें। यह वृद्धाश्रम अन्य वृद्धाश्रमों से अलग था—यहां की सुविधाएं और माहौल शानदार था। सभी लोग अपने जीवन के किसी मोड़ पर अकेलेपन से जूझ रहे थे।
किरण देवी ने पहले कुछ महीने अपने कमरे में ही बिताए, लोगों से अधिक मेलजोल नहीं रखा। उनके कमरे की खिड़की से एक बड़ा बगीचा नजर आता था जहां सुबह-सुबह पक्षियों की चहचहाहट और ताजगी भरी हवा उनका मन कुछ पल के लिए शांत कर देती थी।
एक दिन, बगीचे में टहलते हुए उन्होंने अनिल जी को देखा। अनिल जी साठ पार कर चुके थे, मजबूत कद-काठी के, पर आंखों में दर्द साफ झलकता था। वह भी अपनी बेटी और दामाद के साथ नहीं रह सके थे क्योंकि उनके जीवन के मूल्य और उनके बीच दूरी बढ़ती चली गई थी। अनिल जी का वक्त सामाजिक कार्यों में बीतता था।
धीरे-धीरे किरण और अनिल में बातें होने लगीं। अनिल जी उन्हें कई बार वृद्धाश्रम के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ले जाने की कोशिश करते पर किरण को अपने आप में बंद रहने की आदत हो गई थी।
एक दिन, किरण ने देखा कि अनिल जी पास की बेंच पर बैठे कुछ लिख रहे थे। वह पास आईं और पूछा, “क्या लिख रहे हैं?” “यादें,” अनिल ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
इस बातचीत ने उनके बीच की दूरी को मिटाना शुरू किया। अब वे अक्सर एक साथ टहलते, किताबें पढ़ते और अपनी-अपनी कहानियों में खो जाते। दोनों के बीच एक अलग तरह की समझ बनने लगी थी।
एक शाम अनिल ने कहा, “किरण जी, हम दोनों अपनी-अपनी जिंदगी में बहुत कुछ खो चुके हैं, लेकिन शायद इस पड़ाव में भी हमें एक नई शुरुआत की जरूरत है। क्या आप मेरे साथ यह सफर तय करेंगी?”
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किरण स्तब्ध थीं, कुछ कह नहीं सकीं। कुछ दिन चुपचाप बीत गए। पर एक दिन जब अनिल ने कमरे में अकेली बैठी किरण को गहरी सोच में देखा, तो धीरे से उनके पास आकर कहा, “मैं कोई दबाव नहीं डालूंगा। बस इतना कहने आया हूं कि हर किसी को खुश रहने का हक है।”
कुछ दिनों बाद किरण ने अपने बेटे से बात की और उसके समर्थन से वे अपनी हिचक छोड़कर अनिल से विवाह के लिए तैयार हो गईं। उनके विवाह का दिन वृद्धाश्रम में उत्सव जैसा था।
आज किरण और अनिल एक नई सुबह का स्वागत कर रहे थे। दोनों ने हाथ में हाथ डालकर नई जिंदगी की ओर कदम बढ़ाए। अनिल ने किरण की ओर देखा और मुस्कुराते हुए कहा, “मकान तो था, पर घर आज मिला है।”
इस तरह दो जिंदगियां फिर से एक नई उम्मीद और खुशियों के साथ एक हो गईं।