Moral Stories in Hindi : दादू दादू,आपको पता भी है,कल पापा पूरे दो घंटे मेरे साथ ही रहेंगे।दादू कल पापा के साथ खूब मस्ती करेंगे।वो जो मैंने कल ड्राईंग बनाई हैं ना दादू,उसे पापा को कल ही दिखाऊंगा,वे खूब खुश हो जायेंगे, है ना दादू।
बबलू की इतनी खुशी और उसका मासूम सा चेहरा देख रमेश बाबू उसे अपने सीने से लगा लेते है,उनकी आंखों के कौर से दो बूंद कब ढलक गये उन्हें भी पता नही चला।बबलू को सीने से लगाये रमेश बाबू भी अपने बचपन में पहुंच गये।जब भी बाऊ जी,हां रमेश अपने पिता को बाऊ जी ही बोलते थे,घर आते तो दोनो भाई बहन बाऊ जी की तरफ दौड़ पड़ते,और उनके हाथ से थैला छीन लेते।बाऊ जी हमेशा थैले में बच्चो के लिये खाने की कोई ना कोई चीज अवश्य लाते थे,इसलिये रमेश और उसकी बहन की रुचि थैले में होती।कोई दिन ऐसा नही जाता जब बाऊ जी बाहर से आये और थैले में कुछ ना लाये।कुछ ना कुछ लाना वास्तव में अपने बच्चों के प्रति स्नेह का प्रतीक था,अपने को अपने बच्चों में सम्माहित करने जैसा था।बाऊ जी जब बूढ़े हो गये ,पोता सनी दुनिया मे आ गया,तब भी बाऊ जी यदि बाहर थोड़ी देर के लिये पार्क तक भी जाते तो सनी के लिये कुछ ना कुछ ले आते। अपने इस क्रम को उन्होंने जीवनपर्यंत नही छोड़ा।सनी को भी अपने पिता रमेश के बचपन जैसी ही आदत बन गयी थी कि जैसे ही दादू आते वह उनकी ओर लपक कर उनके हाथ से लाये थैले को झपट लेता,इस हरकत से बाऊ जी निहाल हो जाते।रमेश अपने पुत्र सनी को कभी कभी डांट भी देता,कि क्या खाने की चीज के लिये अपने दादू को परेशान करते हो।डांट खा सनी मायूश सा हो जाता तो बाऊ जी रमेश को ही झिड़क कर सनी को सीने से लगा लेते। एक दिन बाऊ जी पार्क गये और वही चक्कर खाकर गिर गये।परिचितो ने खबर भिजवाई तो रमेश दौड़ा गया और बाऊ जी को हॉस्पिटल लेकर गया। दिल का दौरा पड़ा था।बीच रास्ते मे ही बाऊ जी शरीर मात्र ही छोड़ गये।सनी बार बार बाऊ जी को पूछता,कोई क्या बताये, कह कर समझा दिया कि भगवान ने बुलाया है,वही गये हैं, जल्द ही आ जायेंगे।
बाऊ जी का स्थान अब रमेश जी ने ले लिया। सनी बड़ा हो गया था,एक बड़ी कंपनी में जॉब करने लगा था,समय की कमी उसके पास थी।अपने पिता ही क्या,उसके पास अपनी पत्नी रूमा और बेटे बबलू के लिये भी समय का अभाव था।बबलू अपनी तोतली जबान में अपने पापा की यही शिकायत करता कि उसके पापा उसके साथ क्यों नही खेलते,उसे बाहर क्यूँ नही ले जाते?अब रमेश बबलू को क्या बताये कि वह खुद बेटे सनी का चेहरा तक देखने को तरस जाते हैं।
पूरे सात दिन बाद सनी बाहर से टूर से वापस आ रहा था,फोन पर बात चीत में उसने दो घंटे बबलू के साथ बिताने का वायदा किया था।बबलू इसी से इतना उत्साहित था।उत्साह औऱ ललक तो रमेश जी मे भी थी,बेटे को देखने की,उससे बात करने की,पास में बिठाने की,पर अब उसकी इच्छा कहाँ पूरी हो पाती है।सनी पर तो समय ही नही है।सच मे अब तो बबलू ही उनकी लाइफ लाइन बन चुका था।बाऊ जी की तरह रमेश जी भी बबलू के लिये कुछ ना कुछ लेकर आते।एक दिन तो बबलू ने रमेश जी को झकझोर कर रख दिया,रमेश जी बबलू की पसंद की चॉकलेट लेकर आये थे,बबलू ने चॉकलेट ले तो ली,पर साथ ही शिकायत का गोला भी दाग दिया,दादू कभी पापा को भी तो ले आया करो।
रमेश कहाँ से लाकर दे बबलू को उसका पापा।अगले दिन ही सनी आ गया।आते ही उसने पिता रमेश जी के पावँ छुवे।रमेश जी ने उसे अपनी बाहों में भींच लिया।उसके खाली हाथ को देख रमेश जी बोले अरे बबलू के लिये कुछ नही लाया।सनी बोला बाबूजी बबलू को मॉल लेके जाऊंगा जो कहेगा दिलवा दूंगा।
सुनकर रमेश जी के अंदर कही कुछ चटकने की आवाज आयी।बड़े हुए बेटे को क्या कहे,अरे जो स्नेह और उत्साह तेरे द्वारा लाये गयी चीज में होता वो क्या मॉल में खरीद में परिलक्षित हो सकता है?बाऊ जी के दिये संस्कार जो रमेश जी अब तक निभा रहे थे,नये जमाने मे इस प्रकार तिरोहित हो जायेंगे, उसने सोचा भी नही था।
फ्रेश हो सनी अपनी पत्नी और बेटे बबलू के साथ मॉल चला गया,और निपट अकेले रह गये रमेश जी,मन मे बेटे के साथ कुछ पल बिताने की चाह लिये। रमेश जी विचारो की दुनिया मे अकेले बैठे विचरण करने लगे, बाऊजी गये ,माँ गयी,पत्नी भी चली गयी ,वो कितने दुर्भाग्यशाली है,सबका अंतिम संस्कार उन्हें ही करना पड़ा,सब उसे छोड़ गये और बेटा सनी ,वो भी क्या करे,समय कम पड़ जाता है ना।सोचते सोचते रमेश जी ने अपने चेहरे को अपने ही हाथों में छिपा लिया,शायद अपने से ही अपने आँसुओ को छिपाने को।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित।
साप्ताहिक विषय- शिकायत