अविनाश और शीला जी गुलाबी गुलाबी ठंड में अपने आंगन में आती कुनकुनी धूप में बैठकर चाय का आनंद ले रहे थे।उनके अब तनाव रहित आराम के दिन गुजर रहे थे। वें दोनों बच्चों की सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके थे,और बहू -बेटे के साथ जीवन की संध्या का ये समय बड़े मजे से काट रहे थे।
बहु समय की मांग के हिसाब से नौकरी भी कर रही थी उतना ही अपने सास -ससुर का भी बहुत ध्यान रखती । इतने में वैशाली ने कहा-“मम्मी जी -पापा जी आज मैंने आप लोग के लिए मूंग की दाल के चीले बनाएं हैं जो बहुत पौष्टिक होते हैं और स्वादिष्ट भी लगते हैं।
वैशाली की बात सुनकर शीला ने कहा- “अरे मुझे क्यों नहीं बुला लिया?इसमें तो बहुत समय लगता है मैं कुछ मदद कर देती तुम्हें ऑफिस भी जाना होता है’। मम्मी जी आपके आराम करने के दिन है।मैं हूं ना सिर्फ नाश्ता ही तो बनाना पड़ता है, मम्मी जी अच्छा मैं चलती हूं।
उसको जाता देख शीला ने अविनाश से कहा-” कुछ पिछले जन्म के हमारे पुण्य कर्म है जो हमे इतनी अच्छी बहू मिली है।नौकरी के साथ-साथ घर का और हम लोग का भी कितना ध्यान रखती हैं। शीला की बात सुनकर उसकी तरफ देखते हुए अविनाश ने कहा-” सही कह रही हो पर तुम कुछ मुझे सुबह से परेशान दिख रही हो।
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हां परेशान इसलिए हूं की बहू इतना हमारा ध्यान रखती है लेकिन वह कितना ठंडा खाना खाती है सुबह का बना खाना ले जाती है अपने साथ, मैं सोच रही हूं इसको खाना ताजा तो मिलना चाहिए।बात तो तुम सही कह रही हो कुछ सोचते है।एकदम से शीला जी ने कहा-” मुझे बहुत अच्छा एक आइडिया आया है पहले क्यों नहीं आया?
हमारी खाना बनाने वाली रमा दीदी उसको अब से हम 11:00 बजे बुलाएंगे ताजा खाना बनाएगी और वह वही रहती है वैशाली के ऑफिस के पास तो जब उसका काम हो जाएगा तो खाना लेकर चली जाएगी और वैशाली को दे देगी इस प्रकार से वैशाली को भी ताजा खाना मिलेगा जो उसके स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छा रहेगा।
वाह बहुत अच्छा विचार किया है अविनाश ने कहा मुझे तो लग रहा है जैसे पिछले जन्म में तुम उसकी मां रही हो और वो तुम्हारी बेटी।ये प्यार का बंधन ऐसे ही हमेशा बना रहे यही मेरी भगवान से प्रार्थना है। अविनाश की बात सुनकर शीला जी ने उनकी तरफ देखते हुए कहा आमीन।
कविता अर्गल इंदौर (म.प्र.)