Moral Stories in Hindi : –
ये तो हमारा कर्तव्य है इन जैसे भेडियों से अपनी बच्चियों को बचाना। मैं भी दो बेटियों की माँ हूँ। जब ड्यूटी पर होती हूँ तो दिल और दिमाग में बस उन्हीं का ख्याल रहता है। अकेली माँ जो ठहरी। पति का एक दुर्घटना में देहाँत हो गया। उन्हीं के स्थान पर नौकरी कर रही हूँ। वो होते तो उन्हें अकेला छोड़ कर नहीं आती।
कुछ औपचारिकताएँ पूरी करके आप अपनी बेटी को घर ले जा सकते हैं। और हाँ आज के बाद ये न सोचे कि इसे आप घर में ही कैद कर के रखेंगे । उसे स्वच्छंद रूप से जीने दे, उसे घर से बाहर भी जाने दें किंतु ध्यान रखें कि वह इधर उधर तो नहीं जा रही है। इतनी छोटी बच्ची को दुकान जैसी जगहों पर अकेले न जाने दें। साथ ही उसे यह भी बताए कि क्या सही है और क्या गलत।
एक रजिस्टर पर साइन करा कर उस कर्मचारी ने रानी और महेश को जाने के लिए कहा।
घर पहुँच कर देखा पूरी बस्ती वहाँ इट्टठा थी। राकेश आग-बबूला हो रहा था-
कहाँ है वह दरिंदा जिसने हमारी बच्ची को हाथ लगाने की हिम्मत की। उसे तो मैं चीर कर रख दूँगा। महेश जल्दी बता वो कमीना कहाँ है?
जैसे तैसे उसे शांत कराया। सारी घटना विस्तार से बतायी। काफी समय तक रानी और शामली खौफ में ही रहे। धीरे-धीरे रानी सामान्य तो हो गयी परंतु आज भी रानी शामली को एक पल के लिए भी ओझल नहीं होने देती है। उसने घरों में काम करना भी छोड़ दिया। घर पर ही एक सिलाई मशीन ला कर बस्ती वालों के कपडे़ सिलने का काम शुरू कर दिया है।
इस घटना को अब काफी समय बीत गया। आज शामली का 18 वां जन्मदिन है। आज ही उसका यूपीएससी का रिजल्ट भी आया है। इस परीक्षा में वह पाँचवे स्थान पर आई है। महेश के छोटी सी झोंपड़ी के सामने मीडिया वालों की भीड़ जमा है। सभी इस बात से हैरान हैं कि क्या एक बस्ती में रहकर भी इस मुकाम पर पहुँचा जा सकता है। एक मिसाल जो शामली ने कायम की है। मीडिया उसे सारी दुनियां को दिखाना चाहती है। शामली ने जो आज कर दिखाया है उसे देखकर बस्ती वाले गर्व से अपना सीना उंचा कर रहे हैं। जहाँ भी वो लोग काम करते हैं वहाँ बताते हुए भी बडा गर्व महसूस हो रहा है। अपने बच्चों को शामली का उदाहरण देकर उन्हें प्रेरित कर रहे हैं। और तो और बहुत से लोग जिन्होंने अपने बच्चों को स्कूल से निकाल कर घरों में बर्तन मांजने और फैक्ट्री में काम करने के लिए लगा दिया था, उन्हें दुबारा स्कूलों में भेजने की बात कर रहे हैं।
शामली से मीडिया वालों ने जब यह पूछा कि आपकी इस कामयाबी के पीछे किसका हाथ है तो उसने इशारे से बताया-
आप मेरे साथ अंदर मेरे घर में आयेंगे तभी इसका जवाब मिल पायेगा।
मीडिया वाले जब अंदर गये तो देखकर हैरान थे। एक मैले से बिस्तर से एक औरत लेटी हुई थी। उन्होंने शामली से सवाल किया-कौन है ये औरत और आप हमें इनसे मिला कर क्या बताना चाहती हैं जरा खुलकर बतायें आपके जवाब का इंतजार सारी दुनिया कर रही है।
जी। मैं आपको बताती हूँ। मेरी इस कामयाबी के पीछे इसी माँ का हाथ है। ये मेरी जननी नहीं पर मेरी भगवान है।
जिसे पता ही नहीं गर्मी, बरसात, सर्दी और बसंत जैसे मौसम क्या होते हैं। एक सूती-सी साड़ी में सभी मौसम को गुजार देना। ताउम्र अपने लिए कुछ न लेना। अपनी भूख का एक तिहाई भोजन करना। पैरों में चप्पल है या नहीं उसे पता ही नहीं। सिलाई मशीन पर हाथ चलाते चलाते कब सुबह हुई कब शाम हुई, जवानी से कब बुढापा आ गया इसे तो पता ही नहीं चला। आज दो साल से ज़्यादा का समय हो गया। इसे बिस्तर पकडे़ हुए। डाक्टर ने जब ये कहा कि इनके इलाज में बहुत पैसा लगेगा। तो मेरे बाबा के पास पैसा था ही नहीं जो इनका इलाज करा सकें।
शामली की पहेलियाँ को मीडिया वाली समझ नहीं पा रही थी। तो उसने पूछा- मैं आपकी बात समझ नहीं पा रही हूँ। प्लीज आप थोड़ा खुलकर बताएं।
ये जो मेरी माँ है न यहीं मेरी प्रेरणा स्रोत है। बचपन में मेरे साथ एक घटना घटी। जिसमें मैं एक अंधेरी दुनियां में खोने से बच गयी। वैसी घटना मेरी ज़िंदगी में दुबारा से न घटे इसी कारण अपनी ख्वाहिशों और अरमानों की कुर्बानी देती आई है। इसी की कुर्बानी से मैं आज इस मुकाम पर पहुँची हूँ। इतना कहकर शामली माँ से चिपट गयी और कहने लगी माँ देखो आज तुम्हारी शामली कितनी बड़ी अधिकरी बन गयी है। देखों आज सारी दुनियां आपको देख रही है। माँ अब हम तुम्हारा इलाज अच्छे और बडे से बडे अस्पताल में करवायेंगे।
रानी ने सुना तो अपने दोनों हाथ शामली के सिर पर रख कर आर्शीवाद दिया और फिर काफी देर तक जब हाथ हटाये नहीं तो शामली को कुछ अंदेशा हुआ।
अरे माँ देखों कितनी मीडिया वाले आपसे मिलने आये हैं। आपकी फोटो ले रहे हैं। कल के अख़बार में छपेगी।
शामली बोलती जा रही थी, जब काफी देर हो गयी और रानी की ओर से कोई हलचल न हुई। तो शामली ने उसको झंझोडा तो मुँह एक तरफ लुढक गया। एक बार भी एक चीख लोगों के कानों को चीरती हुई हवा में फैल गयी। परंतु इस चीख में किसी की संवेदना और हृदय की चीत्कार थी। रानी हमेशा के लिए सो गयी थी। पर अभी भी उसके होठों पर एक प्यारी से मुस्कान थी। चेहरे पर एक संतोष दिखाई दे रहा था। देख कर लग रहा था मानों आज उसकी जीत हो हुई हो। वह निश्चिंत थी कि अब उसकी शामली उसकी तरह घरों में बर्तन नहीं मांजेगी। उसकी तरह सिलाई मशीन पर अपनी बच्चों का भविष्य तय नहीं करेगी।
महेश को किया हुआ जो पूरा हो गया । आज उसके कहे हुए शब्द महेश के कानों में गूंज-गूंज कर उसे रूला रहे थे। उसकी तपस्या तो पूरी हो गयी परंतु उसका फल वह न चख पायेगी। वो वाकई शामली के पापा मेरी शामली एक दिन बहुत बड़ी अधिकारी बनेगी।
शामली की ज़िंदगी संवारते-संवारते वह स्वयं इस दुनियां से जल्दी विदा हो गयी।
समाप्त
पूनम (अनुस्पर्श)-