च्यवनप्राश – कमलेश राणा

बात यह है जी कि टीवी में हर प्रोग्राम के बीच बीच में जो विज्ञापन आते हैं न वो हमें बड़ा प्रभावित करते हैं,, चीजों की गुणवत्ता के बारे में ऐसे कसीदे पढ़ते हैं न,,,कि लेने मन न हो तो भी आदमी ले ही ले और न भी ले तो सोचने तो जरूर ही लग जाये,,

अब हम ज्यादा पढ़ लिख तो नहीं पाये क्यों कि पहले दिन ही मैडमजी से पंगा हो गया,, वो भी जोरदार वाला,,

हुआ यूँ कि हम प्रेयर की लाइन में बहुत मटक रहे थे,, मैडमजी ने कई बार इशारा किया कि सीधे खड़े हो पर हमें तो माँ की चप्पलें खा कर ही कोई बात समझ में आती थी,, हमने मैडम जी को हल्के में ले लिया,, बस सारी गड़बड़ यहीं हो गई,,

हमने सोचा वैसे ही कह रही हैं पर प्रेयर समाप्त होते ही वो हमारे पास आईं और जोर से एक डंडा मारा,, हम बचने के लिए झुक गये ,, हाथ तो बचा लिया हमने पर वो डंडा हमारे सर में पड़ा,, दर्द से बिलबिला गये,,

फिर क्या था,, आव देखा न ताव,, मैडमजी की बाँह भर ली मुँह में और चूहे जैसे पैने दांत पूरी दम से घुसा दिये बाँह में,, वो तो भला था ब्लाउज पूरी बाँह का था उनका,, वरना न जाने क्या होता फिर भी खून निकल आया उनको,,

हमने डर के मारे बस्ता उठाया और दौड़ लगा दी घर की ओर,, अब अम्मा रोज टिफिन बना दे स्कूल के लिए पर हम बहाने बना दिया करते,, जबरदस्ती बाहर तक छोड़ भी आती तो घंटों वहीं खड़े रहते,,

जाएं कैसे और कैसे अम्मा को बताएं कि क्या गुल खिलाकर आये हैं,, अगर अब मैडम को नज़र भी आ गये तो वो मार ही डालेंगी,,

कई दिन बाद स्कूल की बाई आई तब उसने सारा किस्सा बताया कि मैडम तो आठ दिन से बुखार में पड़ी है,, टिटनेस के इंजेक्शन भी लगवाए है,, घाव पक गया था उनका,,




सुनकर बहुत डांट पड़ी पर फिर हमने स्कूल की शकल भी नहीं देखी,, अब जीवनयापन के लिए कुछ तो करना ही था तो बन गये ट्रक ड्राइवर,,

अब ट्रक में जो भी माल भरा जाता उसमें से कुछ प्रसाद स्वरूप घर पहुंचाना हम अपना परम कर्तव्य समझते थे,, मोहल्ले वाले भी आस लगाये रहते क्योंकि कई बार थोड़ा फल उनको भी मिल जाता था,,

एक बार डाबर च्यवनप्राश ले जाना था हमें,, नाम तो बहुत सुना था पर कभी चखने का अवसर नहीं मिला था,, माँ ने दूध घी तो बहुत खिलाया पर इन चीजों से दूर का भी नाता नहीं था उनका,,

हमने मौका पे चौका लगाते हुए पूरी पेटी ही पार कर ली,,जब चखा तो बड़ा स्वाद लगा,, गुणवत्ता के बारे में तो जानते ही थे टीवी द्वारा हमने दो दिन में पूरा एक किलो का डिब्बा खाली कर दिया,, पूरी पेटी थी पास, दाम खर्च की चिंता ही नहीं थी,, फिर दूसरा,, तीसरा,, चौथा,, पूरे खली बन जाना चाहते थे हम,, पंद्रह दिन में छः डिब्बे उड़ा दिये,, ताकत तो बहुत महसूस हुई,,

घर गये तो अम्मा को भी दे आये पांच डिब्बे,, अम्मा और हमारे गुण तो आखिर एक जैसे होने ही थे उन्होंने भी पंद्रह दिन में तीन डिब्बे खाली कर दिये,,

बोली,, बेटा मौज कर दी तूने,, इस बार बढ़िया चीज लाया है और ले आइयो,,

एक दिन अम्मा का फोन आया,, बेटा तबियत खराब सी लग रही है,,

क्या हुआ,,

हुआ तो कुछ नहीं बस हथेली और तलवों में से आग सी निकल रही है,, यूँ लगता है पूरे दिन पानी की टंकी में ही पड़ी रहूँ,, गर्मी के मारे बेहाल हो रही हूँ,,

यही हाल तो मेरा हो रहा है, आज जाता हूँ डॉक्टर के पास,,

डॉक्टर,, क्या खाया आज और कल,,




सिंपल खाना खाया,,

कोई दवाई ले रहे हो,,

नहीं,,कोई नहीं,,

पिछले दिनों कुछ ऐसा खाया हो जो तुम्हारे लिए नया हो,,

हाँ डॉक्टर साब च्यावनप्राश खाया,,

उससे भी नहीं होना चाहिए इतनी गर्मी,,

कितने बार खाया दिन में,,

बार मत पूछो डॉक्टर साब डिब्बे पूछो,, पंद्रह दिन में छः डिब्बे खा लिये,,

हैं ऐसे कौन खाता है,, अरे उसकी भी खुराक होती है,, गनीमत है जो सही सलामत हो वरना राम ही मालिक है,, क्या होता,,

डॉक्टर साब,, अम्मा को भी बुला लें क्या,, उन्होंने भी खाया है,,

हे भगवान!! डॉक्टर ने सर पकड़ लिया,,

कई दिन एडमिट रहे माँ बेटा तब कहीं जाकर ठीक हुए,,

और हमने कसम खा ली कि बिना पूरी जानकारी के कुछ भी ना खायेंगे चाहे वो कितना ही फायदेमंद क्यों न हो,,

कमलेश राणा

ग्वालियर

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