चट्टान – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

 पूरे शहर में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की तैयारियां जोर-शोर से चल रही थी।इस अवसर पर शहर के बड़े पार्क में भी एक बहुत बड़ी योग संस्था और प्रसिद्ध हॉस्पिटल द्वारा सभी आयु वर्ग के लोगों को प्रेरित करने के लिए योग प्रतियोगिता एवं मैराथन का आयोजन किया गया था।

जिसमें आसपास की अन्य सोसाइटी के लोग भी स्वेच्छा से भाग ले सकते थे। इस तरह के आयोजन को लेकर सभी उम्र के लोगों में काफ़ी उत्साह था क्योंकि विजेता के साथ-साथ सभी प्रतिभागियों को पुरूस्कार मिलना था।आयोजन को बड़े-बड़े मीडिया हाउस कवर कर रहे थे।

इस आयोजन के विषय मे सुगंधा को भी पता चला जो इस पार्क के नजदीक वाली सोसाइटी में ही रहती है। सुगंधा ने इस प्रतियोगिता में भाग लेने के सन्दर्भ में अपने घर पर भी किसी को नहीं बताया था क्योंकि पति अपने काम के सिलसिले में सुबह ही निकल गए थे और बेटा भी स्कूल ट्रिप पर गया था।वैसे भी जिंदगी की पाठशाला ने उसको कुछ सबक ऐसे सिखाये थे,

जिसके बाद उसको लगने लगा था कि इंसान का सबसे अच्छा मित्र ईश्वर और खुद उसका भरोसा है। यहाँ हर कदम पर चेहरे पर मीठा बोलने वाले और पीठ पीछे मज़ाक़ बनाने वाले लोग मिलेंगे बस यही सब सोचकर उसने बिना किसी को कुछ बताये अपनी खुशी के लिए आयोजन में भाग लेने का निश्चय किया।

सुगंधा पूरे उत्साह के साथ आयोजन स्थान पर पहुंची वहाँ पर एक से एक फिट और तंदुरुस्त लोग उपस्थित थे। कुछ ऐसे भी थे जो रील और मीडिया कवरेज के चक्कर मे आयोजन में भाग ले रहे थे।

नियत समय पर शहर के गणमान्य लोगों की उपस्थिति में आयोजन शुरू हुआ। योगासन के कई स्तर निर्धारित किए गए थे। सभी प्रतिभागियों को पंक्तिबद्ध स्थान दिया गया था। योग संस्थान की कई टीम वहाँ लगी हुई थी,जिन्हें अलग अलग पंक्ति की जिम्मेदारी दी गई थी। शरीर के लचीलापन और योगासन की समय-सीमा के आधार पर प्रतिभागी एक स्तर से दूसरे स्तर के लिए चुने जा रहे थे।

आखिरी स्तर तक पहुंचते-पहुंचते केवल पांच ही प्रतिभागी थे। जिसमें से सुगंधा भी एक थी,यहां तक पहुंचना भी उसके लिए बड़ी बात थी। हालांकि उसने जीत या हार के विषय में ना सोचकर बस अपना सौ प्रतिशत दिया था।आखिरी स्तर पर भी विजेता बनने के लिए जो योगासन निर्धारित किया था, वो भी सुगंधा ने सुगमता से कर लिया था। मानकों के अनुसार सुगंधा को विजेता घोषित कर दिया था।

सुगंधा का विजेता बनना सभी के लिए बहुत आश्चर्य की बात थी क्योंकि वहाँ एक से एक योग और फिटनेस से जुड़े लोग भी आए थे।अपनी विजय पर खुद सुगंधा भी हतप्रभ थी पर ये उसकी पिछले दस-बारह वर्षों से संयमित और अनुशासित दिनचर्या का नतीजा था, जो उसने अपने लिए समय निकालकर बनायी थी।

योगासन प्रतियोगिता के बाद मैराथन का भी आयोजन हुआ उसमें भी सुगंधा का प्रदर्शन सराहनीय था। जहां उससे कम उम्र के लोग थोड़ी देर में ही थकने लगे थे वही सुगंधा ने निर्धारित दूरी को बिना किसी बाधा के तय किया था। आज का दिन सुगंधा का दिन था। आज के आयोजन के बाद हर जगह सुगंधा की ही बात हो रही थी

बड़े-बड़े मीडिया हाउस ने उसके फोटो क्लिक कर रहे थे। वैसे भी उसका इस आयोजन को जीतना बहुत लोगों के लिए प्रेरणा का कार्य कर रहा था।

सुगंधा मेडल और ट्रॉफी के साथ घर पहुंची वो खुश तो बहुत थी पर अभी उसने अपने पति और बेटे के साथ भी इस खुशी को साझा नहीं किया था, पर आज उसकी सोसाइटी के व्हाटसअप समूह पर उसकी फोटो के साथ बधाइयों का तांता लग गया था।

जब उसके पति ने सोसाइटी समूह देखा तो आज उनको भी सुगंधा पर बहुत गर्व हो रहा था बेटा तो खैर अभी ट्रिप पर ही था, उसे भी शाम तक ही आना था। सुगंधा के पति ने उसका फोन मिलाया तब फोन नहीं उठा पर सुगंधा का संदेश जरूर मिल गया था,

जिसमें उसने एक बड़े मीडिया हाउस के साथ अपने इंटरव्यू की बात लिखी थी और ऑफिस से लौटते हुए बेटे को लाने के लिए कहा था।

इधर एक प्रसिद्ध मीडिया हॉउस सुगंधा से अपने स्त्री विशेषांक के लिए इंटरव्यू लेने उसके घर पहुंच गया था। सुगंधा इंटरव्यू के लिए कोई पहले तो तैयार नहीं थी,पर मीडिया हॉउस के ये कहने पर कि क्या पता,उसके इंटरव्यू से कई लोगों को विशेषकर कुछ महिलाओं को नयी दिशा मिल जाये वो तैयार हो गई।

इंटरव्यू में परिचय और अन्य सामान्य प्रश्नों के बाद उससे पूछा गया कि आज की अपनी सफलता का श्रेय वो किसको देना चाहती है? तब सुगंधा ने हंसते हुए कहा कि अपने कुछ नजदीकी रिश्तेदारों को जो अपने अंदर ना झाँककर उसकी हर बात में कमियाँ निकालकर सिर्फ उसे ही तराशने चाहते थे। उसके ये कहने पर साक्षात्कारकर्ता ने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए

अपनी बात को विस्तारपूर्वक बताने के लिए कहा तब सुगंधा ने कहा कि इसके लिए उसको अपनी जिंदगी में करीबन पंद्रह-सोलह साल पीछे जाना पड़ेगा जब वो शादी करके ससुराल आयी थी और दुनियादारी से अनभिज्ञ थी। वो पढ़ी-लिखी अपने पैरों पर खड़ी लड़की थी। हाँ ये बात अलग है कि वो घरेलू कामों में थोड़ा कच्ची थी। उसकी इस कमी को उसकी सास और ननद ने हथियार बना लिया

था। हर बात में उसके घर के काम ना आने का,काम को धीरे करने का मज़ाक़ बनाया जाता था। कई बार तो जो बाहर के लोग भी आते थे वो भी उसकी सास और ननद की हाँ में हाँ मिलाते हुए उसको ही सलाह दे जाते थे क्योंकि बाहर के लोगों को तो वैसे भी इन सब में मज़ा ही आता था। इन सबमें सुगंधा को अपनी दशा गूंगी कठपुतली जैसी लगती थी

जिसकी डोर उसकी सासू माँ और ननद के हाथों में है। वो जब चाहें उसकी डोर को खींचकर अपने अनुसार काम ले सकती है पर वो चाहते हुए भी अपने संस्कारों की वज़ह से उन्हें कुछ नहीं कह सकती थी। समय ऐसे ही आगे बढ़ रहा था अब सुगंधा अपनी और पति की नौकरी की वज़ह से दूसरे शहर मे आ गई थी।

अब घरेलू काम के कारण जो उसका सामने से मज़ाक़ बनता था वो तो कम हो गया था पर अभी भी जब मौका मिलता तो उन लोगों का वही रवैया रहता। अब थोड़ा समय बीतने पर सुगंधा गर्भवती हुई उसने बहुत प्यारे बेटे को जन्म दिया पर बेटे के जन्म के बाद उसका वजन बढ़ गया था वैसे भी अंदर ही अंदर घुटने की वज़ह से उसको ब्लड प्रेशर और तनाव जैसी बीमारियाँ भी हो गई थी

अब उसकी सास और ननद को उसके बढ़े हुए वजन पर भी ताने सुनाने का अधिकार मिल गया था। अब तो बेटा भी तीन-चार साल का हो गया था पर सुगंधा के लिए हालात अभी भी नहीं बदले थे अभी भी सुगंधा को अपनी हालत वही पुरानी गूंगी कठपुतली जैसी लगती थी। सुगंधा अंदर ही अंदर कहीं टूट रही थी पर शायद कहते है ना कि घड़ा कभी ना कभी तो फूटता ही है,

ससुराल में कोई कार्यक्रम था सुगंधा भी बहुत अच्छे से तैयार होकर अपनी ससुराल में पहुंच गई। वहाँ उपस्थित कई लोगों ने सुगंधा और उसकी ड्रेस की काफ़ी तारीफ़ की पर शायद उसकी ननद को ये पसंद नहीं आया,उसने सुगंधा को सबको सामने सुनाते हुए कहा कि चलो अच्छा है भाभी आपके जैसे दिखने वाले लोग के नाप के भी कपड़े अब मिलने लग गए हैं।

ये अलग बात है कि महंगे भी काफ़ी होंगे क्योंकि कपड़ा भी तो इतना ज्यादा लगा है। ननद की बात सुनकर वहाँ उपस्थित सभी लोग ठहाके लगाकर हंसने लगे थे। उस दिन ननद वही नहीं रुकी थी वो सबके सामने जोर-जोर से बोली भाभी में आपके लिए कंगन लायी हूँ सुगंधा कुछ कहती उससे पहले ही वो उसका हाथ खींचकर कंगन पहनाने की कोशिश करने लगीव कंगन सुगंधा के हाथ पर छोटे थे

बस फिर क्या था ननद को तो जैसे सुगंधा की मज़ाक़ बनाने का एक मौका मिल गया था उसने सबके सामने हंसते-हंसते हाथ नचाते हुए कहा अपनी बाजू के नाप के कंगन लायी थी वो भी आपके नहीं आए वहाँ उपस्थित सब लोग ननद का ही साथ देकर सुगंधा का ही परिहास उड़ा रहे थे।

सुगंधा ने थोड़ी नजरें उठाकर देखा तो सास भी अपनी बेटी को ना रोककर उसका ही साथ दे रही थी। पति भी कुछ दूरी पर थे,सुनाई उन्हें भी दे रहा था पर बात का बतंगड ना बने ये सोचकर वो भी चुप थे।

आज सुगंधा को बहुत अपमानित अनुभव हो रहा था ऐसा लग रहा था कि कॉलेज के समय में जिस सुगंधा की पढ़ाई से लेकर कपड़ों के चुनाव में बहुत तारीफ़ होती थी वो कोई और थी।

लोगों की तीखी नज़रों से बचने के लिए बेटे को कुछ खिलाने के बहाने वो अपने कमरे में आकर फूट-फूटकर रोने लगी।वो तो शायद रोती ही रहती पर उसको रोता देखकर बेटा भी रोने लगा तब वो अपनी दुनिया में वापिस आयी थोड़ी देर में उसके पति भी कमरे में आ गए वो बोले दिल छोटा मत करो तुम जैसी भी हो मुझे बहुत अच्छी लगती हो,

पर सुगंधा के दिमाग में तो और ही कुछ चल रहा था। उसने बस अपने पति से ससुराल से जल्द से जल्द निकलने का आग्रह किया उस दिन अपने शहर वापिस आकर सुगंधा की आँखों से नींद गायब थी। उसने सबसे पहले अपने ऑफिस में एक सप्ताह की छुट्टियों के लिए मेल लिखा।

फिर आगे के सात दिनों का अपना एक शेड्यूल निर्धारित किया जिसमें उसने योग और नियमित एक घंटा भ्रमण को भी समय दिया था।

उसे वैसे भी डायरी लिखने की आदत थी डायरी में उसने लिखा कि बहुत हो गया अब वो गूंगी कठपुतली नहीं रहेगी। वो जीती जागती इक्कीसवी सदी की लड़की है जिसकी डोर ईश्वर के अलावा किसी और के हाथ में नहीं हो सकती उसे पतला-मोटा कहने का हक किसी को नहीं हो सकता। वो योग,भ्रमण और स्वस्थ खानपान को अपनी जीवन शैली का आधार बनाएगी

और ये दिनचर्या वो शरीर का भार कम करने के लिए ही नहीं अपितु स्वस्थ रहने के लिए करेगी। अब वो अपने आपको इतना कमज़ोर नहीं होने देगी कि कोई भी आकर उसको कुछ भी बोल जाये और अगर बोल भी जाये तो ज़बान उसके भी पास है।

ये सब सोचकर और डायरी में लिखकर वो अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रही थी आज उसे बहुत दिनों बाद सुकून की नींद आयी थी।

अगले दिन जब वो आराम से उठी और ऑफिस के लिए तैयार नहीं हुई। तब पति के पूछने पर उसने कहा कि उसकी तबीयत थोड़ा ठीक नहीं थी,इसीलिए अपने आपको कुछ समय देने के लिए कुछ दिन की छुट्टी ली है। पति ने उसकी मनोदशा देखते हुए बस यही कहा वो हर कदम पर उसके साथ हैं।

पति और बेटे के स्कूल जाने के बाद उसने अपनी एक मित्र जो कि डाइटीशियन थीं,उससे मिलने का समय लिया। सोसाइटी के पीछे पार्क में सुबह-सुबह जो योग की कक्षा चलती थी उसमें नामांकन कराया। सुगंधा की उस डाइटीशियन मित्र ने उसको बहुत तरह के स्वस्थ खानपान से परिचित कराया और उसका उत्साहवर्धन भी किया  साथ ही साथ उसने ये भी कहा कि

जिस सुगंधा को वो जानती है वो गूंगी कठपुतली नहीं है वो तो चट्टान है जिसे झुकाना नामुमकिन है। बस यहीं से एक नयी सुगंधा का जन्म हुआ उस दिन से निरंतर लगभग दस-बारह साल हो गए पर आज भी उसकी दिनचर्या वैसी ही नियमित है। हालांकि वो बाहर से अभी भी कोई पतली दुबली नहीं दिखती पर अब उसका आत्मविश्वास उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखता है।

उसके ऐसा कहते ही उसके आसपास तालियों की आवाज़ गूँज उठी। इंटरव्यू को खत्म करते हुए साक्षात्कारकर्ता ने उसे सभी के लिए कोई प्रेरक संदेश देने के लिए कहा तब सुगंधा ने मोहक सी मुस्कान बिखेरते हुए एक गाना गुनगुनाया “थोड़ा है थोड़े की जरूरत है, जिंदगी फिर भी यहाँ खूबसूरत है” साथ ही साथ उसने ये कहकर ये आपकी कहानी है

जिसकी कथावस्तु लिखने का अधिकार सिर्फ आपके पास है,आप जीते-जागते इंसान हो,कठपुतली नहीं” अपनी बात समाप्त की। सुगंधा ने देखा कि सामने ही उसके पति और बेटा बाँहें फैलाये उसका इंतजार कर रहे हैं।

सुगंधा के पति ने प्यार से उसको गले लगाते हुए कहा तुम वास्तव में चट्टान हो जिसके पीछे मैं और हमारा बेटा दोनों सुरक्षित हैं। अगले ही दिन सुगंधा की उपलब्धि और इंटरव्यू सब जगह प्रसारित हो गया आज उस पर हंसने वाले और बातें बनाने वाले लोगों के मुँह पर भी ताला लग गया था।

दोस्तों ये थी मेरी लिखी कहानी चट्टान,आज थोड़ा समय के बाद अपनी लेखनी चला रही हूँ..अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। अंत में बस यही कहूंगी कि हमारी डोर सिर्फ ऊपर वाले के हाथ हो सकती है पर किसी और के पास नहीं क्योंकि हम इंसान हैं कोई कठपुतली नहीं।।

#कठपुतली 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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