नई नवेली दुल्हन राखी शर्माई सकुचाई सी सुबह पांच बजे ही उठकर तैयार होकर कमरे से बाहर निकली तो सामने ही सासु मां दिख गई। राखी उन्हें देखते ही झुककर पैर छू कर खड़ी हो गई।
इतनी सुबह सुबह क्यों जाग गई बहू…वो तो हमारा जमाना था जब सास से पहले बहुओं के जागने का रिवाज था। कल से आराम से जगना। जैसी मेरे लिए मधु , वैसी तू। मेरी सासू मां तो बहुत अच्छी सोच रखती हैं। सासु मां की बात सुन राखी मन ही मन खुद पर इतरा उठी।
अरे बहू अभी तो तेरी मेंहदी के रंग भी फीके नहीं हुए हैं। पहली रसोई हो गई ना। बस रस्म हो गया, इतना ही काफी है। अभी आराम करो, ये सब काम तो जिंदगी भर करने हैं। मैं कर लूंगी सब…सासु मां राखी के हाथ से कलछी ले प्यार से कहती है।
नहीं नहीं मम्मी जी, ऐसे कैसे। जब हम दोनों घर में हैं तो आप अकेली क्यूं करेंगी.. राखी पेशोपेश में पड़ गई।
चल तू बैठ। आज मेरे हाथ की चाय पीकर देख…सासु मां उसे रसोई से बाहर जाने के लिए कहती हैं।
राखी असमंजस में बैठक में आकर पत्रिका उठा उलटने पलटने लगी।
अरे बहू…राधा कहां है…दरवाजे पर दस्तक की आवाज से राखी दरवाजा खोलती है और पड़ोस की चाची श्यामा अंदर आती हुई पूछती हैं।
रसोई में हैं.. धीमे से राखी जवाब देती है।
अच्छा बोल पड़ोसी चाची राखी को घूरती रसोई में चली गई।
नहीं नहीं बैठूंगी नहीं, तेरी हालत पर तो तरस आ रहा है। अपनी बहू को ही चाय नाश्ता करा। बहू ये आचरण सही नहीं है, बेचारी बूढ़ी सास रसोई में खपे और बहू मजे करे…बोलती श्यामा राखी को घूरती चली गई।
छोड़ बहू, आग लगाने की तो इसकी पुरानी आदत है। मैं चाय ले कर आती हूं..बोल कर राधा रसोई की ओर चली गई।
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प्रायश्चित
राघव जाओ तुम दोनों कहीं घूम आओ। नई नई शादी हुई है, सौ अरमान होते हैं नए जोड़े के। बिल्कुल घर घुस्सू है ये लड़का। लड़कियों की कितनी चाहतें होती हैं, समझता ही नहीं। जा बहू तैयार हो जा…मटर छीलती सासु मां कहती है।
लेकिन मम्मी जी…घर के सारे काम पड़े हैं और हमारी सहायिका शबाना को भी आपने आज ही छुट्टी दे रखी है। आपकी किट्टी भी है, ऐसे में कैसे… राखी जो कि सासु मां के साथ ही मटर निकाल रही थी, आश्चर्य से पूछ बैठी।
सब हो जाएगा, कोई बड़ा काम थोड़े ना है। राघव ले जा इसे…सासु मां की जिद्द पर राखी राघव के साथ घूमने चली गई।
राघव घर चलें क्या, मम्मी जी अकेली कैसे मैनेज करेंगी। वो तो इतनी अच्छी हैं कि सिर्फ हमारे बारे में सोचती हैं। लेकिन उनका ध्यान रखना हमारा भी तो फर्ज बनता है, आइसक्रीम पार्लर में आइसक्रीम खाने के बाद राखी कहती है।
राखी मुझे कुछ काम है। तुम ऑटो कर घर चलो, मुझे दो तीन घंटे लग जाएंगे…राघव कहता है।
ठीक है…कह कर राखी ऑटो कर घर की ओर रवाना हो गई।
राधा बहू कहां है तेरी। पता नहीं था क्या उसे की आज तेरी सहेलियां आने वाली हैं। अकेली जुती पड़ी है…शीला की आवाज सुन राखी के कदम दरवाजे पर रुक गए।
क्या कहूं, पता था उसे सब। लेकिन घर में पैर टिकते कहां हैं उसके। शाबाना भी नहीं आएगी,ये भी जानती थी वो…लेकिन मेरी किस्मत। पहले सासु मां की सेवा में लगी रही और अब बहू के… उस दिन तो तूने देखा ही था श्यामा…राधा अपने चेहरे पर बेचारगी का भाव लाकर कहती है।
हां पूरी महारानी है इसकी बहू। उस दिन मैं आई तो राधा चाय बना रही थी और महारानी मैगजीन पढ़ रही थी…श्यामा कहती है।
अरे वो तो किसी काम से मैंने राधा को फोन किया और राधा ने आने के लिए कहा, नहीं तो इसकी ऐसी हालत है, कभी खबर ही नहीं होती…श्यामा कहती है।
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मायके की ललक
कोई क्या कर सकता है, बेटे पर भी तो जादू कर रखा है उसने। राघव भी जानता था आज तुम लोग आओगी और पत्नी के कहने पर एक बार भी उसे अहसास नहीं हुआ कि उसकी मां अकेली कैसे काम करेगी…
बस मम्मी जी बस…मैंने आपका ये दोहरा चेहरा तो देखा ही नहीं था। मैं तो इसी गुमान में थी कि मुझे दूसरी मां मिल गई। मुझे क्या पता था कि आप अपनी बेचारगी भुनाने के लिए स्वीट बन रही हैं। कम से कम अपने बेटे को तो बख्श देती , जिसे आपके इन तिकरमों का पता नहीं है। शुक्र है की राघव को कहीं जाना था और मैं अकेली आई। आपका ये रूप देखकर और बिन किए का लांछन सुन क्या गुजरती उन पर। अब अपनी सहेलियों को मेरे कहे का अर्थ समझाइए…मेरी जरूरत लगे तो बेझिझक बुला लीजिएगा…बोलती राखी सब पर सरसरी निगाह डालती अपने कमरे की ओर बढ़ गई।
#दोहरे_चेहरे
आरती झा आद्या
दिल्ली
(V)