बेटी के साथ ही गलत क्यो ? -संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

” नीलू भाग गई ” आज मोहल्ले मे हर किसी की जुबान पर यही बात थी । अठारह वर्षीय सीधी साधी सी नीलू जो घर से बाहर कदम ना रखती थी वो कैसे इतना बड़ा फैसला ले बैठी । और उसका किसी लड़के से चक्कर था ये बात तो किसी को हजम भी नही हो रही थी क्योकि उसके माता पिता तो उसे अकेले घर से निकलने तक नही देते थे । स्कूल भी लड़कियों वाला था उसका और स्कूल पूरा होते ही आगे पढ़ने भी ना दिया गया उसे जबकि कितना मिन्नत की थी उसने। फिर ये सब कैसे ?” सबके दिमाग़ मे अनगिनत सवाल थे पर जवाब किसी के पास नही । इधर नीलू के घर उसके माता पिता और भाई गुस्से मे भरे बैठे थे।

” नीलू की माँ ये सब तेरा किया धरा है तुझसे ही लड़की ना सम्भली बोला था जमाना खराब है कहीं नाक ना कट जाये हमारी और देख वही हुआ !” नीलू के पिता उसकी माँ पर चिल्ला रहे थे।

” जबसे सयानी हुई है घर से अकेले तो जाने ना दिया मैने उसे कि कही कुछ ऊंच नीच ना हो जाये । गिन गिन कर कदम रखती थी फिर भी ये सब हो जायेगा मुझे क्या खबर थी !” रोते हुए माँ बोली।

” गिन गिन कर कदम रखती तो आज ये ना होता । काट दी भरे समाज मे हमारी नाक उसने । मैं आज के आज उसका श्राद्ध करूंगा क्योकि मर गई वो हमारे लिए करता हूँ पंडित को फोन  !” पिता चिल्लाते हुए बोले और फोन मिलाने लगे।

” रुकिए पापा !” तभी वहां एक आवाज गूँजी और सब हैरानी से उस तरफ देखने लगे।

” क्यो आई है तू अब यहाँ सारे खानदान की नाक कटवा कर । तू अब हम सबके लिए मर गई है !” पिता बेटी को देख बोले।

” जीवित थी कब मैं पापा !! कब आप लोगो ने मुझे जीवित समझा , कब आप लोगो ने मुझे इंसान समझा । बचपन से हर चीज मे टोकाटाकी , घर से बाहर नही निकलना , दरवाजे तक पर खड़ी नही होना , कोई दोस्त नही बनाना मेरे लिए ये घर घर नही कैद खाना बन गया !” रोते हुए नीलू बोली।

” वो सब तेरी सुरक्षा के लिए था जमाना कितना खराब है ये क्या तू जानती नही !” माँ बोली।

” जमाना खराब है पर सजा उसकी मुझे मिल रही है । माँ आप मुझपर इतने पहरे बैठाने से अच्छा मेरी दोस्त बनती , पापा आप ऑफिस से आ मुझसे दिन भर की बाते करते । मुझे ऊंच नीच समझाते । मुझे ये आश्वासन देते कि आप हर घड़ी मेरे साथ है तो मैं खुद ही गिन गिन कर कदम रखती पर आप लोगो ने भाई को पूरी आजादी दी मुझे हमेशा कैद । कैसे मैं इस कैद मे जी रही आपने कभी सोचा आपने तो मेरे पढ़ने के सपने को भी राख कर दिया !” नीलू जो हमेशा सहमी रहती थी आज खुल कर बोल रही थी । उसके घर वालों के साथ साथ बाहर खड़े पड़ोसी भी हैरान थे ।

” तो इसका मतलब तू किसी लड़के के साथ घर से भाग जाएगी !” भाई उसकी बात सुन दहाड़ा।

” भागी होती तो वापिस नही आती । मेरे कोई लड़की दोस्त नही है लड़को से क्या दोस्ती होती । मैं तो आप लोगो को एहसास करवाना चाहती थी कि चाहे कितना गिन गिन कर कदम रखो जिस बच्चे को गलत राह जाना होता है उसे कोई कैद नही रोक सकती । कैद मे रखने की जगह बच्चे के दोस्त बनो वो खुद आपको अच्छे बुरे सबसे अवगत करवा देगे और क्या कल को लड़का भाग जाये तब नाक नही कटती जो पहरे सिर्फ लड़की पर बैठाये जाते है  !” नीलू बोली ।

” ये कौन सा तरीका है सुबह से हम लोग परेशान है और तू जानबूझ कर छिपी थी। माँ बाप तो बच्चो के भले के लिए कदम उठाते है  !” माँ गुस्से मे बोली।

” ना नीलू की माँ नीलू ठीक बोल रही है हम ही समाज का सोच अपनी बेटी के साथ गलत कर रहे थे जबकि हमें तो दोनो बच्चो को समान परावरिश देनी चाहिए थी। और इसने सच तो कहा कल को राघव घर से भागता तो भी तो हमारी नाक कटती फिर उसे सारी आजादी क्यो ? माफ़ कर दे हमें बेटा हम गलत थे !” ये बोल नीलू के पिता ने बेटी को गले लगा लिया। नीलू की आँखों से आंसुओ की बरसात हो गई ।

संगीता अग्रवाल

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