बहूरानी या दुश्मन – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

 सुषमा जी को जब पता लगा कि उनका बेटा विवेक ऑफिस में साथ काम करने वाली लड़की अपर्णा से विवाह करना चाहता है तो वह बहुत नाराज हुई। 

 सुषमा-” विवेक तू जानता भी है तू क्या कह रहा है, हम शाकाहारी लोग और वह मछली खाने वाली बंगालन। कैसे चलेगा यह सब मैं कहे देती हूं अभी तो तुझे प्यार का बुखार चढ़ा है बाद में पछताएगा।” 

 विवेक-” मां, आप एक बार उससे मिल तो लीजिए वह बहुत अच्छी है। सुंदर और पढ़ी लिखी तो है ही लेकिन उसका स्वभाव भी बहुत अच्छा है। ” 

 सुषमा -“हां, मीठा बोलकर ही तो तुझे फंसाया है। ” 

 विवेक को यह सुनकर गुस्सा आ  गया और वह घर से बाहर चला गया। 

 सुषमा जी को उसके पति अरुण ने भी समझाने की बहुत कोशिश की। सुषमा के न मानने पर विवेक को ना चाहते हुए भी धमकी देनी पड़ी कि अगर अपर्णा से उसका विवाह नहीं हुआ तो वह जीवन भर विवाह नहीं करेगा। 

 आखिर मन मार कर सुषमा को हां करनी पड़ी। अपर्णा से मिलने के बाद मन ही मन वह बहुत खुश थी। उन्हें अपने बेटे की पसंद पर नाज था पर न जाने क्यों फिर भी उन्होंने यह सोचा कि अपर्णा को परेशान करके कम से कम एक बार तो विवेक की नजरों में गलत साबित करके रहूंगी। हमारा मन दर्पण होता है हमें पता होता है कि हम गलत करने जा रहे हैं या सही। इसी तरह सुषमा को भी पता था कि उनकी सोच गलत है फिर भी अपर्णा को नीचा दिखाने की न जाने कैसी जिद थी मानो वह विवाह के बाद जब घर आएगी तो बहू रानी नहीं दुश्मन होगी। 

 बहुत धूमधाम से दोनों का विवाह संपन्न हुआ और अपर्णा अपने ससुराल आ गई। सुषमा जी के मन में विचार चल रहे थे कि अब क्या करूं, इसने मेरे बेटे को फंसाया है इसे कैसे नीचा दिखाऊं।  

 विवेक और अपर्णा को शादी के दो दिन बाद हनीमून के लिए निकलना था। अपर्णा और विवेक सामान पैक कर रहे थे। सुषमा दोनों को खाना खाने के लिए बुलाने आई  और देखा कि दोनों के सामान फैले हुए हैं। दोनों के खाना खाने के लिए जाने के बाद वह दोबारा उनके कमरे में आई और अपर्णा का सबसे महंगा वाला गाउन चुपचाप ब्लेड से काटकर उसे पैक करके अटैची में रख दिया और चली गई। 

 अपर्णा ने शिमला के होटल रूम में जब अपने कपड़े निकले तो गाउन का ऐसा हाल देखकर वह बहुत उदास हो गई क्योंकि यह उसे विवेक ने ही गिफ्ट किया था। विवेक ने उससे कहा कि कोई बात नहीं हम दूसरा ले लेंगे। तब उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा किसने किया। 

 उनके वापस आने पर अपर्णा की पहली रसोई थी। 

 अपर्णा ने मूंग दाल का हलवा और पुरी आलू की सब्जी बनाई थी। वह सब कुछ बनाकर रख गई थी और जब  सब खाना खाने बैठे, तो किसी ने कुछ कहा तो नहीं लेकिन सब्जी में नमक बहुत ज्यादा था और हलवा बहुत ज्यादा मीठा था। उसे लगा कि मैं तो सारी चीज सही बनाई थी और टेस्ट भी किया था। फिर ऐसा किसने किया। क्या मम्मी जी ने, नहीं नहीं वह ऐसा नहीं कर सकती।

मुझसे  ही गलती हुई होगी। धीरे-धीरे समय बीतने लगा और सुषमा जी अपने बड़प्पन को त्यागती हुई ऐसी घटिया हरकतें करती रही। कभी-कभी अकेले में उन्हें खुद पर शर्म भी आती थी। लेकिन उन्हें इस बात की हैरानी थी कि  अपर्णा ने ना तो किसी बात की शिकायत की थी, और ना ही रोना धोना चीखना चिल्लाना किया था। 

 एक दिन तो हद ही हो गई, जब अपर्णा  ने आधी रात तक बैठकर अपने ऑफिस के लिए एक बढ़िया सी प्रेजेंटेशन तैयार की और जब सुबह में नहा कर आई तो लैपटॉप खोलने पर उसने पाया कि प्रेजेंटेशनडिलीट हो चुकी है। उसके तो होश ही उड़ गए। उसने यह बात रोकर  विवेक को बताई। विवेक ने उससे कहा -“कि तुम चिंता मत करो, तुम्हारी मेहनत बेकार नहीं हुई, मैंने उसे अपने लैपटॉप में सेव कर दिया था। तुम ऑफिस पहुंचो, मैं तुम्हें फॉरवर्ड करता हूं।” 

 दरअसल विवेक ने देखा था कि माँ  लैपटॉप को देख रही थी। तब उसे लगा की मां को तो लैपटॉप चलाना नहीं आता वैसे ही देख रही होगी। लेकिन जब अपर्णा की बात सुनी तो उसे सारा माजरा समझ में आ गया। उसने वैसे ही कुछ सोच कर अपर्णा की प्रेजेंटेशन अपने लैपटॉप में सेव कर ली थी। उसकी दूरदर्शिता काम आ गई थी, लेकिन माँ ऐसा करेंगी  उसे विश्वास नहीं हो रहा था। 

 फिर एक दिन तो सुषमा जी ने, अपर्णा को ऑफिस से वापस आते समय, बॉस  की कार से उतरते हुए देखा, तो उन्होंने विवेक के वापस आने पर अपर्णा के चरित्र पर उंगली उठाते हुए, विवेक के कान भरने शुरू कर दिए। दरअसल उन दिनों में विवेक ऑफिस के काम से चार दिन के लिए बेंगलुरु गया था।उस दिन तो विवेक को बहुत गुस्सा आया और

उसने अपनी मां से कहा कि “मां,बस करो, अपर्णा पर लांछन लगाकर, आप खुद को क्यों नीचे गिर रही हो, बॉस ने मुझे खुद कहा था  कि मैं अपर्णा को घर छोड़ आऊंगा। मां आप तो ऐसी न थी, जब से मैंने अपनी पसंद से शादी की है आपको क्या हो गया है। अपर्णा बहू है आपकी दुश्मन नहीं। वह आपकी बहुत इज्जत करती है। आप खुद को क्यों सबकी नजरों में गिर रही है। यह तो अच्छा हुआ कि वह अभी घर पर नहीं है, वरना क्या सोचती आपके बारे में।” 

 इस घटना के बाद सुषमा को उसके पति ने भी खूब लताड़ा। सुषमा तुम तो ऐसी न थी, सबसे प्यार करने वाली सबको सम्मान देने वाली तुम, अपनी बहू रानी के मामले में क्या हो गया है तुमको, अरे बच्चों ने अपनी शादी मर्जी से की है, तो क्या गुनाह कर दिया। सबका आशीर्वाद लेकर शादी की है, घर से भाग कर तो नहीं की। अपर्णा इतनी अच्छी है। क्या कमी दिख गई तुम्हें। ” 

 सचमुच आज तो  सुषमा को अपने ऊपर बहुत शर्मिंदगी हो रही थी। उसने अपने पति और बेटे से माफी मांगी और अपर्णा के वापस आते ही उससे भी माफी मांगी। अपर्णा  हैरान हो रही थी और साथ ही वह बहुत खुश थी कि उसकी सास आज उसकी मां बन गई है और वह एक प्यारी बहु रानी। 

 स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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