बहू ने  ना बोलना सीख लिया – शिव कुमारी शुक्ला

भाभी अभी तक मेरी ड्रेस आपने प्रेस नहीं की सुबह से कहा था आपसे पता नहीं क्या कर रहीं हैं।

अभी कर देती हूं वो समय नहीं मिला नाश्ते खाने की तैयारी में लग गई वह भी तो समय पर देना है।

तो क्या आप जल्दी नहीं उठ सकतीं थीं जो काम समय पर हो।

सुबह छः बजे तो उठी हूं और कितना जल्दी उठूं। 

पांच बजे उठ जाओ ये नेहा कह रही थी जो स्वयं नौ बजे उठती है और कॉलेज दस बजे जाना होता है,सब कुछ हाथ में चाहिए।

अभी निभा प्रेस कर ही रही थी कि मम्मी जी की आवाज सुनाई दी निभा क्या आज चाय भी मिलेगी।एक कप चाय के लिए भी कितना इंतजार करवाती हो।

चाय देकर आई ही थी कि छोटा देवर बोला भाभी मुझे स्कूल बस पर छोड़ दो। वहां से लौटी तब तक सुहास उसके पति उठकर आ गये। निभा कहां घूम रही हो चाय दो यार तो मैं फ्रेश होने जाऊं।

अभी लाई कह वह वापस चाय बनाने लगी।इतनी बार चाय बनाने के बाद भी उसके नसीब में एक कप चाय पीना नहीं लिखा था।न कोई घर में पूछने वाला था कि तुमने चाय पी।

पति,देवर ,ननद के जाते ही उसने ससुर को दवाईयां दी और बाथरूम में मम्मी जी के कपड़े रखे क्योंकि उनके नाहने  का समय हो गया था। फिर एक कप चाय बना पीने बैठी ही थी कि कामवाली मेड आ गई

बहू जी जल्दी से बर्तन खाली कर दो आपके यहां मुझे रोज देर हो जाती है आगे जाकर देरी के लिए सुनना पड़ता है।

निभा ने जैसे तैसे जल्दी से चाय पी और किचन समेटने लगी।तभी बाथरूम से नहा कर निकली मम्मी जी की आवाज आई निभा मन्दिर में सफाई हो गई और पूजा की तैयारी कर दी।

जी कर रही हूं मम्मी जी।

कितनी देर हो गई अभी तक तुम सफाई नहीं कर पाई तुम्हारे हाथ तो जल्दी चलते ही नहीं, धीरे -धीरे सब काम करती हो तो काम होगा कैसे फुर्ती तो नाम की नहीं है।

यह सुन निभा के आंसू आ जाते हैं कितना भांगू सुबह से एक पांव नाच रही हूं फिर भी किसी को संतोष नहीं है। मेरी जरूरत, मेरी परेशानी कोई पूछने वाला नहीं सबको अपने कामों की पड़ी है। पूजा करनी है

तो क्या खुद से सामान नहीं रख सकतीं।अब इतनी बूढ़ी भी नहीं हैं कि इतना भी काम न कर सकें। ससुर जी को भी रिटायर हुए अभी दो ही बर्ष हुए हैं वो भी अभी ऐसे लाचार नहीं हैं किअपना ख्याल खुद न रख सकें। दवाईयां, चाय, पानी छोटी -छोटी जरुरतों के लिए आवाज देते रहते हैं।घर में कोई सोचता ही नहीं कि मैं भी इंसान हूं,थकती हूं।

मायके में कभी इतना काम नहीं किया था। मां के कामों में हाथ बंटाना ओर बात थी यहां तो पूरी जिम्मेदारी से हरेक की सुख-सुविधा का ख्याल रखना पड़ता है। यदि सब अपने छोटे -छोटे काम कर लें तो मुझे भी थोड़ी राहत मिल जाए।अभी वह ख्यालों में खोई सब्जी काट रही थी कि मम्मी जी का कर्कश स्वर सुन चौंक पड़ी, वे नाश्ता मांग रहीं थीं।

वह जल्दी से नाश्ता गर्म कर दे आई।बहू कहां किसके सपनों में खोई रहती हो कब से आवाज दे रही हूं किन्तु तुम्हारे कानों पर तो जूं ही नहीं रेंगती बहुत ही चिकना घड़ा हो जिस पर किसी बात का कोई असर ही नहीं होता।

वह चुपचाप ससुर को दवाई दे चाय नाश्ते के बर्तन समेट आ गई ।लंच बनाने में जुट गई।अभी मशीन में कपड़े डालने थे।सबके बाथरूम से उसने कपड़े एकत्र कर मशीन में डाल उसे चला दी।

सास-ससुर को खाना दे उसने स्वयं खाया किचन समेटी तब तक दो बज  चुके थे देवर को लाने का समय हो गया उसे लेने गई आकर उसे खाना खिलाया सब करते करते तीन बजने को आए।वह अभी अपने कमरे में जाकर लेटी ही थी कि डोरवेल बजी दरवाजा खोला तो ननद आ चुकी थी।आते ही भाभी बहुत गर्मी है जल्दी से शिकंजी बना दो।जरा जल्दी ले आना। आप तो सुबह से आराम कर रही हो बाहर निकल कर देखो कितनी धूप है 

शिकंजी बनाते -बनाते वह सोच रही थी कि तुम मेरी जगह सुबह से आराम कर लो मैं धूप में होकर आ जाऊंगी ।

अरे भाभी कितना समय लग रहा है शिकंजी बनाने को ही कहा है कोई डिश बनाने को नहीं बोला है।

ये लो कहते हुए उसने शिकंजी का गिलास 

उन्हें थमा दिया।

ये क्या भाभी इसमें मीठा तो बहुत कम है ये लो गिलास और ठीक करके लाओ। थोड़ा नींबू भी और डाल देना।आप एक बार में कोई काम ठीक से नहीं कर सकतीं। 

वह अपने कमरे में जाकर लेटी और घड़ी की ओर देखने लगी ‌बस पन्द्रह मिनट बाद चार बजने वाले हैं ससुर जी की चाय का समय हो जाएगा फिर सबके लौटने का क्रम फिर वही चाय स्नेक्स, कभी पकौड़ी की फरमाइश कभी कोई नई  डिश की फिर वही डिनर ,

दूध का गिलास हरेक के कमरे में पहुंचाना करते करते वही ग्यारह साढ़े ग्यारह बज जाएंगे।दुखी हो गई हूं इस रुटीन से। क्या करूं समझ नहीं आ रहा।

गल्ती तो मेरी ही है कि शुरू में ही यदि इतने कामों के लिए न बोलना शुरु कर देती तो शायद यह नौबत नहीं आती।पर मम्मी-पापा हैं न जिन्होंने यह संस्कार दिए बेटा सबकी मन से सेवा करना। सबको खुश रखना लो अब मैं भुगत रही हूं। कैसे निकलूं इस मकड़जाल से।सुहास उसका पति भी तो उसकी परेशानी नहीं समझता।उसका भी तो साथ नहीं मिलता अकेली पड़ गई हूं।

तभी एक दिन उसकी सहेली का फोन आया वह उसी शहर में अपने किसी काम से आई थी  वह दो दिन रूकेगी सो उससे मिलना चाहती थी।वह बहुत खुश हुई और उसने अपनी सास को बताया।वह बोलीं वह तो ठीक है पर ज्यादा समय उसे मत रोकना नहीं तो काम कौन करेगा।तू तो बैठ जाएगी तो काम को देर हो जाएगी सो उसे जल्दी भेज देना।

मम्मी जी वह मेरी सबसे अच्छी दोस्त है हम पांच सालों बाद मिल रहे हैं ऐसे कैसे उसे भेज दूंगी।

क्या तो फिर काम का क्या होगा।

मम्मी जी क्या मैं एक दिन भी अपने लिए कुछ घंटे नहीं निकाल सकती।दो साल हो गए निरंतर सबकी सेवा करते आज दो घंटे भी मेरे अपने नहीं जो मैं अपनी सहेली के साथ बिता सकूं। मेरे आने से पहले भी तो घर में काम होता था कह वह किचन में जा  अपने काम में लग गई

किन्तु आज उसे बहुत दुख हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कि वह इन लोगों की खरीदी गई   गुलाम है जो हर समय इनका हुक्म बजाने को तत्पर रहे उसका अपना कोई वजूद ही नहीं ,

सुख-दुख नहीं, कोई इच्छा नहीं।वह बड़ी ही कशमकश  में थी कि अब मैं ऐसा जीवन नहीं जी सकती। क्या करूं ।शाम की चाय और स्नेक्स के साथ ही उसने डिनर की भी तैयारी कर दी ताकि कोई परेशानी नहीं आए।

छः बजते ही उसकी सहेली रितुआ गई।वह सबसे मिली निभा ने सबसे उसका परिचय करवाया। वहीं सबके साथ वह बातें करने लगी। इस बीच वही उठकर पानी लाई, चाय बना कर लाई।ननद वहीं बैठी रही उसने कोई मदद नहीं की।

कुछ समय तक सबके साथ बैठने के बाद वह उसे लेकर अपने कमरे में चली गई और दोनों बैठ कर पुरानी यादों में खो गईं।समय का पता ही नहीं चला कितनी बातें जो करनी थीं।

आठ बज गए किन्तु खाने की कोई व्यवस्था न देख वह मन-ही-मन चिंतीत हो रही थी।वह उठते हुए बोली अब मैं खाना लगाती हूं तू खाना खा कर ही जाना।वह भी साथ हो ली चल मैं भी तेरी मदद कर देती हूं यहां अकेले बैठकर क्या करूंगी।

अभी निभा कमरे से बाहर निकली ही थी कि ननद की आवाज आई भाभी बातों से आपका पेट भर गया होगा किन्तु हमारे पेट में चूहे कूद रहे हैं यदि आपकी मेहरबानी हो जाए तो हमें भी खाना मिल जाए।

क्या आप लोगों ने खाना नहीं खाया। खाना तो मैंने बना दिया था केवल फुल्के ही तो सेंकने थे।

तो क्या वह कोई देवदूत आकर सेंकेगा। तुम किचन में जाओगी तभी तो सिकेंगे मम्मी लगभग चीखते हुए बोलीं।

यह सुन रितु बोली निभा मैं चलती हूं तू सबको सम्हाल। इन्हें खाना खिला।

नहीं खाना तैयार है तू खाए बिना कहीं नहीं जाएगी। उसने किचन में जाकर सब्जियां गर्म होने रखीं।आटा निकाल फुल्के सेंककर पहले रितु को खाना खिला रवाना किया फिर खाना डाइनिंग टेबल पर लगा सबको दिया। मम्मी का बड़बड़ाना चालु था

ये कोई खाने का समय है कब दवाई लेंगे कब दूध लेंगे। निभा ने एक शब्द भी नहीं बोला।सुहास भी बीच में बोला खाना समय पर सबको मिलना चाहिए। निभा ये कोई खाने का समय है नौ बज रहे हैं।वह निशब्द थी।रात को भी उसने सुहास से कोई बात नहीं की।

आज की सुबह अलग ही थी।आठ बजने को थे निभा घर की बहू सो रही थी।घर में सब चाय, नाश्ता, टिफिन का इंतजार कर रहे थे। तभी सुहास ने जाकर उसे झकझोर कर उठाया आज उठना नहीं है क्या सबको देर हो रही है । मम्मी-पापा को चाय तक नहीं मिली है।उठ क्यों नहीं रही हो।

मुझे सोना है जिसे पीना है वो बना ले। मैं किसी की नौकरानी नहीं हूं जो हर किसी के आदेश पर नाचती रहूंगी।

तभी मम्मी भी वहां आ जाती है महारानी उठ भी जाओ।

क्या आपकी बेटी उठ गई नहीं न तो मुझे भी देर से उठने की आदत है।सामान किचन में रखा है चाय बनाओ, नाश्ता बनाओ ,खाओ-पिओ। मम्मी उसका मुंह देखने लगी कभी न बोलने वाली निभा आज कैसे ऊंची आवाज में बोल रही थी।

तू पागल हो गई है क्या मेरी बेटी से बराबरी कर रही है।तू बहू है,बहू की तरह रह चल उठ लग जा काम पर बहुत हो गया नाटक।

क्यूं लग जाऊं। क्या मेरे आने से पहले इस घर में चाय नहीं पी जाती थी, नाश्ता, खाना नहीं करते थे तब कौन बनाता था तो अब हर समय मैं ही क्यूं करूं हर काम। मेरी तो कोई अहमियत ही नहीं है,इस घर में सब रहते हैं,सब खाते हैं

तो काम भी सब करेंगे।दो साल से बहुत करके देख लिया।एक दिन मैं अपनी सहेली के साथ क्या बैठ गई तो उसके सामने मुझे नीचा दिखाया गया।काम का बंटवारा कर लो कि कौन क्या करेगा।अब मैं किसी का काम नहीं करूंगी।सब समझदार हैं न  तो कोई छोटा बच्चा है और न ही कोई इतना बुजुर्ग कि काम नहीं कर सके।अब मैं उतना ही काम करूंगी जो मेरे हिस्से आएगा 

सब समझ गये कि अब पानी सिर से ऊपर निकल गया है बहू ने ना करना सीख लिया है।वह अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो गई है तो अब उसकी बात मान लेने में ही भलाई है।

काम का बंटवारा हो गया। सब अपनी अपनी जिम्मेदारी समझ अपना काम करने लगेंगे तो निभा को भी अपना समय मिलने लगेगा।

कभी-कभी अधिकार पाने के लिए आवाज उठानी पड़ती है।

शिव कुमारी शुक्ला 

जोधपुर राजस्थान 

16-8-25

लेखिका बोनस प्रोग्राम****बहू ने बोलना सीख लिया चतुर्थ  कहानी

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