निखिल! सबसे पहले तुम दोनों बड़ी बहू का आशीर्वाद लेकर आओ फिर मंदिर में दीया जलाना ।
बड़ी बहू- यह शब्द सुनते ही परिधि के कान खड़े हो गए । निखिल ही तो बड़ा बेटा है पूरे परिवार में यानि दोनों चाचा ससुर, दोनों बुआ सास , यहाँ तक कि ननिहाल की तरफ़ भी सबसे बड़ा निखिल ही है तो बड़ी बहू उसके सिवाय, कहाँ से आई ? ससुराल में कदम रखते ही क्या सुनने को मिलने वाला है, सोचकर परिधि मन ही मन परेशान हो गई ।
परिधि निखिल के साथ आगे की तरफ़ जा ही रही थी कि उसके कानों में आवाज़ आई—-
भाभी! बड़ी बहू के लिए भोजन का थाल परिधि बहू से तैयार करवाना है या आप तैयार करेंगी?
निखिल से भी कैसे पूछे कि आख़िर यह बड़ी बहू कौन है? जबसे आई है केवल बड़ी बहू का नाम सुन रही है । तभी परिधि ने एक छोटे से कमरे में प्रवेश किया । वहाँ दीवारों पर पुरखों की तस्वीरें लगी थी । जहाँ-जहाँ निखिल ने प्रणाम किया , परिधि ने भी कर लिया । बाहर बहुत सी औरतें उसका इंतज़ार कर रही थी इसलिए परिधि को हाल में बैठा दिया गया । परिधि बैठी-बैठी सोच रही थी कि बड़ी बहू कौन है और उनका आशीर्वाद तो लिया ही नहीं गया ।
पूरा दिन लोगों की आवाजाही में निकल गया । शाम को रात के खाने के बाद बुआ सास बोली ——
परिधि ! चल संदूक खोलकर सबसे पहले बड़ी बहू के लिए साड़ी निकाल दे । उसके बाद ही बाक़ी मेहमानों को तुम्हारे मायके से आए उपहार दिए जाएँगे ।
फिर बड़ी बहू ? परिधि ने बुआ सास की ओर देखा और कहा—
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बुआ जी, आपको जो उनके लिए पसंद आए , निकाल लीजिए।
और संदूक खोलने पर जो साड़ी सबसे ऊपर थी , बुआ जी ने वही उठाकर अपने हाथों में थाम लीं। थोड़े बहुत रस्मों- रिवाजों के बाद परिधि निखिल के कमरे में आ गई ।सुबह से पहने भारी ज़ेवर- कपड़ों को सँभालते- सँभालते परिधि ने सोचा कि बड़ी बहू के बारे में निखिल से सुबह ही बात करेंगी । अब ना तो भूमिका बनाकर बात शुरू करने की ताक़त बची थी और ना ही मूड था । कमरे में आने से पहले सासू माँ का भी निर्देश था —
परिधि! कल सुबह जल्दी उठ जाना । तुम्हारी दोनों बुआ सुबह जा रही है तो चाय- नाश्ता उनके साथ कर लेना … उन्हें अच्छा लगेगा फिर तो पता नहीं कब आना होगा उनका । और हाँ… निखिल के भरोसे मत रहना , अपना अलार्म लगा लेना बेटा !
अगले दिन मेहमानों के जाने के बाद घर ख़ाली हो गया । निखिल भी किसी काम से बाहर चला गया तब परिधि ने सास से पूछा —-
मम्मी जी! ये बड़ी बहू कौन है? आपने कहा था कि उनका आशीर्वाद ले लो पर मैंने तो उन्हें देखा नहीं, फिर उनके लिए खाना परोसा गया , कपड़े दिए गए? कोई कुटुंब में हैं क्या ?
पूजाघर के बराबर वाले छोटे कमरे में गई तो थी तुम , सब पुरखों का आशीर्वाद लेने …… वहीं जो बीचोंबीच सबसे बड़ी तस्वीर हैं ना वहीं हैं बड़ी बहू ।
वो किसकी बड़ी बहू हैं मम्मी जी? तस्वीर में तो नई नवेली दुल्हन सी सजी हुई हैं ।शायद तस्वीर भी बहुत पुरानी नहीं है ।
बात तो काफ़ी पुरानी है बहू ! मेरी दादी सास बताती थी कि उनके ससुर के पिता अपने पिता की इकलौती संतान थे और विवाह के कई साल बाद हुए थे । करोड़ों की संपत्ति के इकलौते वारिस….. पर उनके जन्म के बाद उनके ताऊ उनके दुश्मन बन गए और नन्हीं सी जान के पीछे पड़ गए । पर उनकी पत्नी बड़ी ही धार्मिक और ईश्वर की शक्ति पर विश्वास करने वाली स्त्री थी । वे परिवार में बड़ी बहू के नाम से जानी जाती थी । उन्होंने अपने पति को समझाने का बहुत प्रयास किया पर वे तो युधिष्ठिर की तरह पुत्र- मोह में पड़े हुए थे ।
एक रात ताऊ ने डाकुओं को अपने भाई का परिवार ख़त्म करने की फिरौती दे डाली ।जब बड़ी बहू को पति के षड्यंत्र की जानकारी मिली वे देवर-देवरानी और उनके छोटे से बेटे को बचाने पहुँची पर तब तक डाकू हमला करके देवर को गोली मार चुके थे और देवरानी तथा उनके बेटे को खोज रहे थे । संयोग से छिपते- छिपाते देवरानी बड़ी बहू से मिल गई । जब डाकुओं की नज़र अपने शिकार पर पड़ी तब तक बेटा बड़ी बहू की गोद में पहुँच चुका था । और बड़ी बहू ने रातों रात वह बच्चा , पता नहीं कैसे ? अपने मायके पहुँचा दिया । इस तरह उन्होंने हमारे वंश का सर्वनाश होने से बचा लिया ।
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ये सच्ची कहानी है क्या मम्मी जी?
मेरी दादी सास तो ऐसा ही बताती थी । तभी तो बड़ी बहू को एक देवी के रुप में पूजा जाता है और माना जाता है कि वे आज भी हमारी रक्षा करती हैं ।
पर बड़ी बहू के पति और बेटे ने सारी संपत्ति वापस कर दी?
ऐसा कहा जाता है कि जब बड़ी बहू के मायके में वो छोटा बच्चा पल- बढ़कर सोलह- सत्तरह साल का हो गया तो बड़ी बहू अपने भाई की सहायता से उसकी असली पहचान के साथ उसे लेकर आई और उसकी संपत्ति लौटाने का दबाव डलवाने लगी पर बाप- बेटे ने फिर से एक बार फिर उसकी जान लेने की कोशिश की । इसी पागलपन में उन्होंने ख़ज़ाने में रखे गहने अपने क़ब्ज़े में लेने शुरू कर दिए ……और जैसे ही एक सोने के सिक्कों से भरा कलश उठाने की कोशिश की, दो काले नागों ने उन्हें डँस लिया ।
बस बेटा, मैं तो जब से यहाँ ब्याह कर आई हर कार्य में दादी और अम्मा को बड़ी बहू का मान- सम्मान करते पाया । वहीं परंपरा निभा रही हूँ । बड़ी बहू हमारे परिवार की संरक्षिका है ।
परिधि उठी और उस छोटे से कमरे में गई जहाँ लाल साड़ी पहने कमरे के बीचोंबीच बड़ी बहू की तस्वीर लगी थी । अब उसने उनकी आँखों को देखा और सच्चे दिल से उनसे आशीर्वाद माँगा । सचमुच कई ऐसी मान्यताएँ होती हैं जो तर्क से परे होती हैं, केवल विश्वास पर टिकी होती हैं ।
करुणा मलिक