वटवृक्ष – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

बरसों पुरानी बात है कि मैं ट्रेन से किसी काम से काशी जा रहा था। जब मैं अपनी रिजर्व सीट पर पहुंचा तो मेरी सीट पर एक अत्यंत साधारण कपड़े पहने झुकी सी कमर वाले साँवले से उम्रदराज व्यक्ति बैठे थे। उनके कपड़े सिलवट भरे थे और उनकी बेतरतीब सी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। मैंने … Read more

दूसरा पड़ाव – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

शाम के पाँच बजे ही आसमान में एकदम अंधेरा सा छा गया था। लगता था तेज आंधी या बरसात आने वाली है। घुमड़ घुमड़कर काली घटाएँ आसमान पर चढ़ी जा रही थीं। पंछियों के झुंड किसी आपदा की सी आशंका से समूह बनाकर आकाश में उड़ान भरने लगे थे। “एक रोटी और लाऊं क्या साब।” … Read more

आ गले लग जा – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

“सुनो माला, यार कल तुमने खाने में मिर्ची बहुत डाल रखी थीं। मिर्ची ज्यादा हो तो सुबह को टॉयलेट में भी झेलना पड़ता है ना।” सुदर्शन ने हँसते हँसते शेव बनाने के बाद चेहरे पर लगे साबुन के झाग पौंछते हुए कहा।  “आज कम डाल दूँगी।” किचन में सुदर्शन का लंच बॉक्स तैयार करती हुई … Read more

“वो फिर नहीं आई” – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

वो एक बिजली के खंबे से पीठ लगाए खड़ी थी. फुटपाथ पर चलते हुए एक निगाह उसके ऊपर डाली तो …….. गोरा रंग, लंबा पतला शरीर और उम्र …… उम्र कुछ रही होगी पच्चीस छब्बीस साल. ठीक ही है. चलेगा. मैंने उसके सामने से गुजरते हुए ऊपर से नीचे तक उसके पूरे जुगराफिए का पुनरमूल्यांकन … Read more

एक था बचपन – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

एक मित्र थे… मतलब हैं। अपने जवानी के दिनों में सरकार में बड़े अधिकारी थे और उनकी पत्नी एक इंटर कॉलेज में प्रधानाध्यापिका थीं। बहुत संघर्षशील और ज़हीन। आध्यात्मिक, राजनीति और योग में रुचि रखने वाले। सामाजिक और सात्विक परिवार था… है। फिर उनके दो बच्चे हुए। एक बेटा और एक बेटी। अब बस दोनों … Read more

वैंटीलेटर – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

कमरे में धीमी रौशनी वाला बल्ब जला हुआ था। सामने की दीवार पर एक बत्तीस इंच का एल ई डी टीवी टंगा था जो इस समय बंद था। दायीं तरफ की खिड़की पर एक कूलर धीमी गति से ठंडी हवा फेंक रहा था। बाईं तरफ की दीवार से सटा हुआ एक दीवान था जिसपर एक … Read more

अलविदा अनया – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

डैप्युटी कमिश्नर ऑफ पुलिस मिस्टर सत्यकाम दुबे घर के दरवाजे पर दस्तक देने ही वाले थे कि उन्हे भीतर से किसी पुरुष के फुसफुसाने के स्वर सुनाई दिये। उनका पुलिसिया दिमाग तुरंत सचेत हो गया और उन्होने कोट की जेब में पड़ी पिष्टल हाथ में ले ली। दरवाजे को ज़ोर का धक्का दिया तो सरकारी … Read more

गुडबाय मॉम – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

फिर एक दिन पापा घर आए। कडक वर्दी में अपने सीने पर लगे सैनिक वाले मैडल चमकाते हुए, बूटों को खटखटाते हुए घर नहीं आए। उस दिन उन्होने मुझे बाहों में लेकर खुद से ऊंचा नहीं उठाया। आई थी तिरंगे में लिपटी हुई उनकी देह। लोग कहते थे वे मरे नहीं हैं। राष्ट्र के लिए … Read more

Categories Uncategorized

दावानल – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

हमारे गाँव की जिस बिजली (ट्यूबवेल) पर बाबा जी जा रहे थे उसके ऑपरेटर एक सरदार जी थे जिन्हे पूरा गाँव मिल्खा कहकर पुकारता था। मिल्खा बाबू कोई सामान्य सरकारी आदमी नहीं थे। बरसों तक इस इलाके में रहने के कारण यहाँ के इस ग्रामीण वातावरण में पूरी तरह रच बस गए थे। किसी की … Read more

जनक – रवीद्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

दरवाजे की घंटी बजी. प्रातः काल के दैनिक कार्यों में व्यस्त सौम्या ने अपने बेतरतीबी से बिखरे बालों को रबरबैंड में बंधा और दरवाजा खोल दिया. एक अत्यंत साधारण कुरता पायजामा पहने हुए ग्रामीण सा व्यक्ति दरवाजे पर खड़ा था. सौम्या ने प्रश्नसूचक निगाहों से उसकी तरफ देखा. अजनबी ने कहा “तुम… आप सौम्या हैं.” … Read more

error: Content is protected !!