अंधेरे में खिली मुस्कान – ज्योति आहूजा: Moral Stories in Hindi

धनिया रोज़ की तरह काम पर जाने से  पहले बेटी से कहते हुए, “नूरी चिटकनी लगा ले  बेटा।इतने में बेटी हाथ में एक फूल देते हुए कहती है।”मां! आज तू आराम कर।आज तेरा जन्मदिन है ना।आज बर्तन मैं मांज कर आयूंगी तेरे घरो के। अरे!” आज मेरा जन्मदिन है।हैरान होती धनिया ने कहा। हां मां।आधार … Read more

वो काली रात – ज्योति आहूजा 

करीब दस साल पहले की बात है। नेहा अपने भाई की शादी अटेंड करने अंबाला आई थी। घर की बेटी थी, तो तीन-चार दिन चली हर रस्म में उसका मान-सम्मान अलग ही था। घड़ोली भरने की रस्म में माँ ने प्यार से एक कीमती सेट उसके हाथों में दिया और रिश्तेदारों ने भी कुछ कैश … Read more

रिश्ते जो झगड़े में भी हारते नहीं – ज्योति आहूजा

नील और परिधि ।इनकी शादी को 5 वर्ष बीत चुके हैं। आम परिवारों की तरह यह भी आपस में कभी तो प्रेम का भाव दिखाते हैं तो कभी बच्चों की तरह लड़ते नजर आते हैं। अब कुछ समय पहले की ही बात है। नील परिधि से कहता है “मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही … Read more

“हाय रे दैया ये क्या हुआ” – ज्योति आहूजा

आगरा शहर में एक भरी-पूरी फैमिली रहती थी—सास, ससुर, दो बेटे, दो बहुएँ और एक ननद। घर में इन दिनों एक खास रौनक थी, क्योंकि एक समीप के रिश्तेदार की शादी का न्योता आ चुका था। अलमारियों  एवं ट्रंक के ताले खुल गए थे, मैचिंग ज्वेलरी और सूट-साड़ियों का सिलेक्शन हो रहा था, मिठाइयाँ आ … Read more

खुशियों का असली तोहफ़ा – ज्योति आहूजा : Moral Stories in Hindi

उदयपुर की पतली गलियों में, गुलमोहर के पेड़ों से ढकी एक कॉलोनी में अभय मेहता का घर था। अभय एक निजी कंपनी में मैनेजर थे और पत्नी संध्या के साथ रहते थे। उनकी बारह साल की बेटी आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। संध्या पड़ोस के एक स्कूल में गणित पढ़ाती थीं। पढ़ाने में सख़्त, लेकिन … Read more

पवित्र रिश्ता – ज्योति आहूजा

ट्रेन की खिड़की से आती हवा में अजीब-सी घुटन थी। सावित्री देवी अपने पल्लू को बार-बार ठीक कर रही थीं, जैसे इस बेचैनी को संभालना चाहती हों। तीन दिन पहले तक सब सामान्य था, लेकिन पिंकी मौसी का फोन उनकी नींद, चैन सब छीन ले गया था। “अरी सावित्री, तेरे आदित्य को देखा था कल … Read more

टीस

भूमि को किताबों की खुशबू बचपन से भाती थी। स्कूल के दिनों में जब भी कोई नई कॉपी मिलती, वो सबसे पहले उसे सूंघती, फिर कवर चढ़ाती, और कोने में पेंसिल से अपना नाम लिखती — बहुत सलीके से। लेकिन ये सलीका सिर्फ कॉपियों में ही था, उसके अपने सपनों में नहीं… क्योंकि सपनों को … Read more

“एक पन्ना, कई राज़”- ज्योति आहूजा

रविवार की सुबह थी। धूप अलमारी के काँच पर सरकती हुई जैसे बीते वक़्त को सहला रही थी। काव्या अपने पुराने सूट-कपड़े जमाने में लगी थी, और पास ही बैठी अन्वी कुछ सोच रही थी — वो अब 12वीं पास करके प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी। लेकिन किताबों के बीच उसकी दुनिया बस … Read more

“विश्वास टूटते देर नहीं लगती” – ज्योति आहूजा : Moral Stories in Hindi

गर्मी की दोपहर थी, पर सरिता जीका मन कुछ और ही तप रहा था। वह आँगन के कोने में बैठी नीम के नीचे रखी कुरसी पर अधलेटी सी थी। पंखा चल रहा था, लेकिन उसके भीतर जो उफान था, वह किसी हवा से नहीं थमता। उसके सामने टेबल पर वही पुराना खत रखा था जो … Read more

“कर्मा लौट कर आते हैं।” – ज्योति आहूजा : Moral Stories in Hindi

सुबह की हल्की धूप में, मालती जी सब्ज़ी खरीदने निकली थीं। घर के कामों की जल्दी, फोन पर बेटी की कॉलेज फीस की चिंता, और पास वाले प्लंबर की बकाया रकम का हिसाब — सब एक साथ दिमाग में घूम रहा था। वो हड़बड़ाहट में सब्ज़ी वाले को पैसे देकर आगे बढ़ गईं। दोपहर में … Read more

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