बेटी को विदा कर कामिनी जी और सुधीर जी बिलख पड़े रो तो भाई आदित्य भी रहा था पर उसे मम्मी पापा को भी तो संभालना था। बहन की विदाई बाद एकदम से समझदार और जिम्मेदार जो हो गया था।
उधर रितिका के ससुराल पहुँचते ही वहाँ खुशी का मौहौल हो गया। कितनी अजीब है ना ये रीत एक घर होता सूना एक घर मे होती है रौनक , एक घर से होता है मिलन और दूजे से हो जाती विदाई।
नई बहू का स्वागत हुआ और शुरु हुआ एक नवजीवन जिसमे एक लापरवाह बेटी समझदार बहू बनने चली थी।
” मम्मी जी मेरे पगफरे की रस्म कब होगी कब मै अपने घर जा पाउंगी !” सब मेहमानों की विदाई के बाद रितिका ने सास मधु जी से पूछा।
” बेटा तुम्हारा घर अबसे ये है वो तो तुम्हारा मायका है समझी तुम !” मधु जी हंस कर बोली। कुछ टूटता सा महसूस हुआ रितिका को अपने भीतर चार दिन मे वो घर मायका हो गया । जिस घर पैदा हुई , पली बड़ी हुई वो अब उसका घर नही…. ” नही नही वो घर हमेशा मेरा रहेगा !” रितिका ने मन ही मन मानो खुद को तसल्ली दी !
दो दिन बाद उसे पगफेरे को जाना था कितनी खुश थी वो रात भर ठीक से सो भी ना पाई और सुबह सबसे पहले उठकर अपने पापा और भाई के लिए नाश्ता बनाने लगी।
” बहू तुम्हारे मायके वाले आ गये !” थोड़ी देर बाद सास ने पुकारा। फिर से कुछ टूटा लाडो के भीतर ना पिता ना भाई बस मायके वाले । उफ़ भगवान क्या घड़ी आती है बेटियों की जिंदगी मे जिसमे उसके अपने जन्मदाता अपना भाई मायके वाले बनकर रह जाते है ।
रितिका पिता भाई के लिए चाय नाश्ता लेकर आई और दोनो के गले लग गई।
” अरे वाह् दीदी तू जल्दी उठना सीख गई वहाँ तो तुझे कितने जतन से उठाना पड़ता था !” आदित्य अपने आंसू को छिपाता हुआ बोला।
” हाँ तो वो इसका घर था ये ससुराल वहाँ तो अपनी मर्जी चलाती ही ना यहाँ इसे एक जिम्मेदार बहू का किरदार निभाना है क्यो समधन जी !” सुधीर जी भी आँखों के कोरों के आंसू हंसी मे छिपा गये।
” समधी जी घर तो अब यही है इसका वो तो मायका है जिसमे मेहमान बनकर जाएगी अब तो ये । वैसे चार दिन से ज्यादा नही छोड़ेंगे हम अपनी बहू को !” मधु जी हँसते हुए बोली।
” जी जैसी आपकी इज़ाज़त !” सुधीर जी हाथ जोड़ बोले। लाडो के दिल का एक और टुकड़ा टूट गया क्योकि उसके जन्मदाता चार दिन पहले बंधे रिश्ते से इज़ाज़त ले रहे है अपनी लाडो को ले जाने की !
ये सच ही है…” अपने घर मे ही मेहमान होना पड़ता है
एक लड़की के लिए दो चुटकी सिन्दूर का सौदा कितना महंगा पड़ता है।”
फिर भी रितिका सब चीजे भुला खुशी खुशी अपने घर को चल दी माँ से मिलने की जल्दी मे रास्ता भी बड़ा बड़ा लग रहा था।
” मम्मी ….!” घर आते ही वो माँ के गले लग झूल गई।
” आ गई लाडो तू कबसे आँखे तरस रही थी !” आरती उतारते हुए कामिनी जी बोली।
भाग 3
अपने घर से मायका बन जाने का सफर भाग 3 – संगीता अग्रवाल
भाग 1
अपने घर से मायका बन जाने का सफर – संगीता अग्रवाल
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