धनश्याम जी और उनकी धर्मपत्नी पार्वती शाम के समय घर के लान में बैठे अपनी पुरानी स्मृतियों को ताजा कर रहे।पार्वती जी बोली- आपके रिटायरमेन्ट को दो साल हो गये।
मैं तो इन दो बरसों में शरीर और दिमाग दोनों रूप से अस्वस्थ रहने लगी हूँ। ले देकर दो बच्चे सारी जिंदगी उनके पढ़ाई लिखाई पालन पोषण में ही बिता दी। एक बेटा बहु है
साथ ही रहते बेटी की शादी कर दी वो अपने परिवार में अपने बाल बच्चों सहित खुश आ जाती कभी कभार मिलने बेटी दामाद दोनों कामकाजी सास-ससुर है नौकर-चाकर धन सम्पदा कोई कमी नहीं, सास-ससुर बच्चों की निगरानी में बच्चों का पालन-पोषण अच्छे से हो रहा उसकी बेटी और दामाद भी अपने माता पिता का बड़ा ख्याल रखते यहां तक की अपनी बेटी हमसे मिलने आती तो सारा ध्यान अपने सास ससुर घर की तरफ ही लगा रहता।
पार्वती जी पति से कहती हैं काश बेटी आ जाती मिलने दो चार रोज रह लेती मन लग जाता मेरा भी, बड़ी घबराहट सी रहती आजकल । घनश्याम जी कहते अरे भाग्यवान शादी शुदा है वो उसका अपना परिवार है, बाल बच्चे पति सास ससुर सभी की देखभाल की जिम्मेदारी उस पर है । और फिर ऑफिस भी जाना होता उसको, छुट्टी मिलेगी तभी तो आयेगी ,
पार्वती जी बोली बात तो सही है मगर मन करता साथ रहे आकर दो पल दुख सुख के बांटे साथ बैठकर पिछली बार आई तब कह रही माँ भाभी के साथ बांटा करो दुख सुख अब उसको कहा बताती तेरे भाई भाभी तो इतने व्यस्त सुबह गये घर से देर रात वापस आते हफ्ते हफ्ते तक बातचीत को तरस जाते हम वृद्ध माता-पिता..बेटी को बताकर दुखी नहीं करना चाहती थी मैं इसलिए कुछ बताया नहीं क्या करू..?
सारी जिंदगी खाना बनाना और आज भी वही खाना बना बना कर जिंदगी कट रही अब होता नहीं मुझसे ज्यादा खड़े रहने में पैरों में तकलीफ़ होती। बहु कह रही बाबर्ची रखने को मगर ढंग का मिले तब न छह महीने से खोज रही राम जाने क्या कर रही ?
धनश्याम जी कहते हैं देखो मैंने तुमसे कहा था रिटायरमेन्ट के बाद आओ लौट चलें अपने गाँव मगर तुमको बहु बेटे पोते पोतियों के साथ रहना था । और उन्होंने क्या किया ? उन्होंने बच्चे बोर्डिंग में डाल दिए बाहर पढ़ रहे हैं । और जब भी हम गांव जाते वहां जाकर तुम्हारा स्वास्थ्य भी सुधर जाता है
वहां की आवोहवा गाँव वालों का अपनापन धुलमिल कर रहना एक दूसरे के दुख सुख में साथ देना …और यहां कौन पूछता किसी को ? अरे आस पड़ोस से क्या उम्मीद करें अपने बहु बेटे के पास दो घड़ी बैठने की फुर्सत नहीं है। महिनों गुजर गये साथ बैठ चाय पीये खाना खाये बतियाए ।
पार्वती जी ने लम्बी हामी भरी हां सही कह रहे हो
एक समय था जब यही बेटा घर आने पर जब तक मुझसे चार बात नहीं कर लेता था पिस से खिसकता ही नहीं था। कैसे रविवार को सुबह सुबह बैठ जाता सर पर तेल लगवाने। गौद में सर रख दिया करता था।
और हाँ वो याद है तुमको घनश्याम जी उत्सुकता से बोले जब एक बार जिद पर अड़ा गया था तुम्हारे सर पर मालिश करेगा ।
याद है सब याद है क्या मालिश की थी सारे सर में तेल ही तेल कर दिया था।
हूँ ऽऽ अब तो सब यादें ही बनकर रह गई है पार्वती जी ठन्डी आहे भरती हुई बोली।
अब तो बस ज़िन्दा लाश की तरह होकर रह गये हम बुजुर्ग माता-पिता भला वृद्ध को कौन समझता आजकल..?
पार्वती जी रूआंसी सी होकर बोली चलो अब चलते गांव वहीं चलकर रहेंगे।
फिर जिद कर दुबारा बोली चलो न अब चलते हैं गांव वहीं रहेंगे चल कर सच मन उकता गया यहां मेरा।
घनश्याम जी बोले सठिया गई हो सोचा नहीं था बेटे को क्या जवाब देंगे क्यों जा रहे हैं गाँव ? बिना सोचे-विचारे बोलती रहती हो कुछ भी थोड़ा सोचकर बोला करो कहकर घनश्याम जी कुर्सी पर सर रखकर निढाल से हो गये ।
तभी उनका बेटा और बहु ऑफिस से आ गये शायद इतना थके थे कि बेटा तो सीधे अपने कमरे में चला गया बहु पार्वती जी से बोली मम्मी जी बढ़िया अदरक वाली चाय बना लाइये हुकूम देकर पति के पीछे पीछे कमरे में चली गई। पार्वती जी ने एक हाथ कमर में रखा अकडती कमर को सीधा कर पति से पूछा आप चाय पीयेंगे न का उत्तर मिलने पर चूपचाप किचन में चाय बनाने चली गई।
धनश्याम जी उठे पत्नी से बोले कुछ देर पार्क में होकर आता हूँ मन बहल जायेगा तुम तो चलोगी नहीं
पार्वती जी चाय का पानी रखते हुए बोली खाने की तैयारी करती हूँ देर हो जायेगी चलूंगी फिर कभी
चाय बनाते बनाते खिड़की से बाहर देख सोचती कितना कुछ रहता मन में अरे कोई तो चाहिए बतियाने को वरना तो इन तेल मसालों की गंध में ताउम्र ही जिन्दगी कटती जा रही जो महक की तरह उड़ा ले जाती अपने साथ सारे स्वप्नों कल्पनाओं को अपने साथ खिड़की से बाहर।
पार्वती जी ने चाय बना बेटे के कमरे में पहुंचा आई बेटा किसी से फोन में व्यस्त माँ कि कोई ख्याल ही नहीं बहु बोली मम्मी जी हम रात एक पार्टी में जा रहे हैं आप हमारा खाना मत बनायें अपने लिए ही बना लेना और हाँ फालतू मत बनाए सुबह कूड़े में फैंकना पड़ता है आप जानती है हम बासी नहीं खाते। कहीं रात का सुबह नाश्ते में परोस दें ।
पार्वती जी किचन में आती है तभी घनश्याम जी पार्क से घूमकर वापस आ गए हाथ में घिया टमाटर पार्वती जी को देकर बोले लो कोफ्ते बना देना बहुत मन है तुम्हारे हाथ के कोफ्ते खाये महिनों हो गये।
पार्वती जी बोली हम दोनों का ही खाना बनेगा बहु बेटा तो पार्टी में जा रहे बहु गुस्सा कर रही कह रही ज्यादा खाना मत बनाना सुबह बासी नहीं परोसना ।अब आप ही बताइए इतनी मेहनत कर दो कटोरी कोफ्ते बनेंगे ।कल छुट्टी कि दिन है रविवार तो कुछ ताजा ही बनाना होगा ऐसा करते हैं सुबह ही बना लेंगे।
धनश्याम जी बोले सही है ऐसा करो खिचड़ी बना लो थोड़ी घिया और सब्जियां डाल देना तुम्हारे लिए पोष्टिक रहेगी डाक्टर ने तुमको पोष्टिक संतुलित आहार लेने को बोला हुआ है भूलो मत ।
चलो ठीक है आज हल्का खा लेते हैं वरना तो वही बनाना होता जो बहु कह कर जाती सब खाना पड़ता अलग से बनाने की हिम्मत नहीं अब इस शरीर में ज्यादा खड़े रहो तो पैर अकड़ जाते । पार्वती जी भीगी आँखें पौंछती हुए बोली।
रात घनश्याम जी पार्वती जी से कहते हैं कल रविवार चलों आसपास कहीं सारा दिन घूमने निकलते हैं कैब बुक कर देता हूँ आज पेंशन के पैसे भी एकाउंट में आ गये है। दोनों सुबह सुबह घूमने निकल पड़ते हैं सारे दिन कैब बुक आराम से खाते पीते रमणीय व तीर्थ स्थलों को देखते ज़िन्दगी का आनंद लेते हैं।
इधर बहु सुबह नाश्ते के लिए सासूमां को बोलने कमरे से बाहर आती है तो घर खाली मिलता है किचन भी विरान नजर आती है वो कमरे में वापस आ पति अनुराग से कहती हैं माँ पिताजी तो घर में नहीं है कुछ खाने को भी नहीं बनाया ।
अनुराग कहते हैं अरे गये होंगे घूमने फिरने माँ ने नहीं बनाया तो तुम बना लो आज अनुराधा बोली एक दिन तो छुट्टी का मिलता उसमें भी किचन में चूसना नहीं नहीं नाश्ते में दूध फल ले लेते हैं बाकि लंच मैं बाहर से आडर कर लेती हूँ ।
ठीक है पति बोला कुछ ढंग का मंगवाओ रात पार्टी में भी मैं ठीक से नहीं खा सका रात बिल्कुल मन नहीं था। फिर दोनों पति-पत्नी खा- पीकर मूवी देखने निकल जाते हैं।
घनश्याम जी और पार्वती जी देर रात घर में आते हैं बहु लान में ही तहलते मिल जाती है आते ही कहती हैं – हद है सुबह सुबह निकले आप लोग इतनी रात को वापस आ रहे हैं। सोचा नहीं आज सन्डे आपको हमारे खाने पीने की बिल्कुल चिंता ही नही हफ्ते भर ऑफिस में खटकते एक सन्डे छुट्टी वो भी चैन से बसर नहीं . अब हमाने बहार से मंगवा कर खा लिया है
रात में ज्यादा आवाजें मत कीजिएगा खाना बनाते तो आप बहुत बर्तन खनखाते नींद खराब मत कीजिए हमारी सुबह ऑफिस जाना है हमको। घनश्याम जी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे,बोले बहु चिन्ता मत करो । हम कोई आवाज नहीं करेंगे तुम सो जाओ जाकर हम ने भी बाहर ही खा लिया आज ।
बेटा अनुराग आज सारा दिन उनके बाहर रहने के बाद भी जब कोई खबर नहीं लेता न ही कुछ आकर पूछता तब घनश्याम जी पार्वती से कहते हैं। हम घर में रहे या न रहें हमारे बेटे को कोई फर्क नहीं पड़ता आज बहार रहकर मैं यही देखना चाहता था । बहु को भी अपने खाने पीने की ही चिंता है। चलो आओ लोट चले गांव तुम तैयारी कर लो मै सुबह की तत्कालीन टिकट करा रहा हूँ बैटी दामाद को भी खबर कर देता हूँ हम सदा के लिए गाँव जा रहे हैं।
हाँ यह सही रहेगा पार्वती जी खुशी से बोली बेटी तो गांव से पास ही रहती अपनी गाड़ी से दो घन्टे में आ जाया करेगी मिलने। फिर सभी कपडे पैक कर सुबह निकलने की पूरी तैयारी कर ली। घनश्याम जी गांव में अपने पड़ोसियों मित्रों को बता देते हैं वो सुबह सदा के लिए गांव रहने आ रहे हैं। बेटी को भी बता देते हैं। सुबह सुबह कैब कर रेलवे स्टेशन पहुंच गाँव के लिए निकल पड़ते हैं।
गांव पहुँचने पर देखते हैं सभी गाँव के पुराने मित्र पड़ोसी और बेटी दामाद सभी उनके स्वागत के लिए मौजूद हैं घनश्याम जी और पार्वती जी सबको देखकर खुशी से चहक पड़ते हैं ।उनको एक अपने पन का एहसास होता है वो अपनापन जिसकी उसको बरसों से तलाश थी ।
वो गाँव में खुशी खुशी रहने लगते हैं एक दूसरे के दुख सुख में शरीक होते हुए।एक दूसरे की परेशानियां बाँटते हुए। क्योंकि इंसान अपने दुख सुख उसी के साथ बाँटता है जो दिल के सबसे करीब होते हैं उसके ही कन्धे पर सर रखकर रोता है जिसको अपना समझता है । जो एक दूसरे की परवाह करते हैं एक दूसरे की भावनाओं को समझते हैं। गांव में सबका अपनापन पार्वती जी स्वस्थ रहने लगती है अपने को अच्छा महसूस करने लगती है।
क्योंकि आधा इंसान बीमार तो तब ही हो जाता है जब वो अपने दुख दर्द किसी से व्यक्त नहीं कर पाता और अन्दर ही अन्दर घुटने लगता है।शहर में बहु बेटे की नजर अंदाजी उनमें घुटन पैदा कर रही थी। और गांव में लोगों का खून का रिश्ता न होते हुए भी सबका अपनापन उनको हंसी ख़ुशी जीवन जीने पर मजबूर कर देता है।
लेखिका – डॉ बीना कुण्डलिया