Moral stories in hindi : मृदुला विद्यालय से आते ही हांथ में टॉफी लेकर दादी के कमरे में गई,।दादी को टॉफियां बहुत पसंद थीं ।बीमारी की वज़ह से घर पर कुछ भी मीठा खाने से मनाही थी,।दादी अक्सर कहती मृदुला से”तेरे दादाजी रोज़ ऑफिस से आते समय मेरे लिए टॉफी , चॉकलेट या कुछ मिठाई ज़रूर लेकर आते थे।हंसकर कहते भी थे कि तुम बड़ी नहीं हुई अब तक।अब देख मुई शुगर की बीमारी ने मेरा मीठा खाना ही बंद करवा दिया।तेरी मां मना करती तो है पर मेरे ही अच्छे के लिए।
बीमार होकर मुसीबत ही बढ़ाऊंगी और क्या।तू ये जो रोज ख़ुद को मिली हुई टॉफी मुझे खिलाती है,शुगर बढ़ गया और घरवालों को पता चल गया,तो तेरी खैर नहीं।”किसी अबोध बाला की तरह दादी मृदुला को झूठी डांट पिलाती, फिर दोनों आधी-आधी टॉफी खाते। मृदुला बहुत छोटी थी,के जी में पढ़ती थी।दादी के साथ चिपकी रहती थी,मंगला को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं था।मां थी आखिर।बेटी पूरा समय दादी के साथ बिताएगी तो पढ़ेगी कब?बस सारा दिन सास को खरी-खोटी सुनाती रहती थी। यद्यपि सबके सामने बड़ा शालीन व्यवहार था उसका,सास के प्रति।
दो दिन पहले ही दादी बगीचे में गिर गईं।पैर की हड्डी टूटी थी, ऑपरेशन हुआ।अस्पताल से आते ही सुधीर(मृदुला के पिता)ने कहा एक दो बार,एक व्हील चेयर खरीदने के लिए।मंगला ने साफ मना कर दिया था यह कहकर कि अब इस उम्र में कहां जाना है उनको?
इतना मंहगा व्हील चेयर लेने की कोई जरूरत नहीं।जब घर पर मंगला अकेली होती,सास को सारा दिन खरी खोटी सुनाती रहती”इस उम्र में क्या जरूरत थी बगीचे में जाने की।अब बिस्तर पर तो पड़ी रहेंगी आप,और मुझे ही सेवा करनी पड़ेगी।बेटा और नातिन तो नहीं आएंगे करने।”मृदुला ने अक्सर सुनी थी घर में घुसते ही अपनी मां की बातें।दादी से पूछ ही लिया एक दिन “अच्छा दादी,तुमने तो मेरी बहुत सेवा की है बचपन से।तुम तो कभी गुस्सा नहीं होती थीं,फिर मां क्यों गुस्सा करतीं हैं तुम पर?तुम डांटती क्यों नहीं?”
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दादी अपनी लाडो को मां के खिलाफ जाना कैसे सिखाती?बच्ची के बालमन में मां के लिए उठ रहे विद्रोह को बड़े जतन से दबाते हुए कहती”गुड्डो मैंने तेरी सेवा की है,तेरी मां की तो नहीं की है ना।वो बिचारी सारा दिन दौड़ती रहती है,काम काज लेकर।मेरी सेवा करना उसके लिए कितना मुश्किल होता होगा,फिर भी बिचारी कर तो रही है। तकलीफ़ होती है जब उसे तो थोड़ा डांट लेती है मुझे,मां हूं ना उसकी।तू जब बड़ी होना,तब देखूंगी कितना करती है मेरी सेवा।नौकरी करेगी ना जब तू तब लाना मेरे लिए व्हीलचेयर।मुझे बिठाकर घुमाएगी तब तू??”
बोलते-बोलते दादी की आंखों में छलके आंसुओं को देख सकती थी मृदुला।
अगले दिन मंगला पार्षद चुनाव में प्रत्याशी होने के नाते प्रचार पर गई थी सुबह से।शाम होने को आई अब तक मृदुला का कोई पता नहीं।स्कूल तो तीन बजे खत्म हो जाता है,फिर क्यों नहीं पहुंची घर? सोचते-सोचते दादी ने अपने बेटे को भी फोन पर सूचित कर दिया।वह भी स्कूल जाकर ढूंढ़ने में लग गया।छह बजे शाम मंगला अपने साथ मृदुला का हांथ पकड़ कर खींचती हुई आई और चिल्लाने लगी”इसलिए मना करती हूं आपको,इसका दिमाग मत खाया करो।आज पता है पार्टी ऑफिस के बाहर खड़ी थी।क्यों रे तुझे अभी से चुनाव लड़ना है क्या?”
मृदुला चुप थी एकदम,दादी की ओर देख रही थी।दादी असहाय नेत्रों से नातिन की आंखों में प्रेम की सरलता देखकर रो पड़ी। झूठ-मूठ की डांट सुनाई मृदुला को कि आज के बाद कभी बाहर नहीं जाएगी बिना बताए।
अगले दिन मंगला जिस जगह प्रचार करने गई ,वह मृदुला के विद्यालय के पास ही थी।मंगला ने सोचा कि जाकर पता कर लें मृदुला की पढ़ाई के बारे में। विद्यालय जाने पर पता चला कि आज तो मृदुला आई ही नहीं विद्यालय।मंगला के होश उड़ गए।ये रोज-रोज बेटी आजकल कहां भटकने लगी?क्या चल रहा उसके दिमाग में?कोई उसे भड़का तो नहीं रहा मेरे खिलाफ(सास)?”
शाम को घर जाकर देखती हूं आज, दोनों नातिन और दादी को।समझ क्या रखा है मुझे? मृदुला के भी पंख निकल आएं हैं बहुत।”
तभी फोन की घंटी बजी और मंगला ने हैलो बोला ही था कि चिल्लाने लगी,क्या कह रहे हैं सर ,मेरी बेटी ऐसा कभी नहीं करेगी।आप यकीन मानिए मृदुला ऐसी लड़की है ही नहीं।”
घर आकर तो मंगला का आज पारा सांतवे आसमान पर था।पति और सास को बेटी का कारनामा बताया।मृदुला पार्टी ऑफिस में गई थी ,यह पता लगाने कि प्रचार में जो गरीबों को चीजें वितरित की जानी हैं,उनमें क्या-क्या दिया जाएगा? महामंत्री से ही सीधे कह आई है तुम्हारी बेटी कि अंकल व्हीलचेयर दिलवा दीजिए ना एक।मैं अपनी गुल्लक तोड़कर कुछ पैसे ही जमा कर पाई।दादी के लिए व्हीलचेयर खरीद नहीं सकती मैं।
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पूरा घर शांत हो गया था।दादी को तो विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि छोटी सी मृदुला यह भी कर सकती है।तभी पार्टी के महामंत्री अंदर दाखिल हुए अपने कुछ कार्यकर्ताओं के साथ।मंगला को सामग्री वितरित करने की जिम्मेदारी दी जा रही थी ,यही बताने आए थे।
अगले दिन सामान्य रूप से मंगला साड़ी,कंबल ,चादरें,जाते,बरसाती वितरित करती हुई ख़ुद को चुनाव में जितवाने की अपील भी कर रही थी।लाइन में आगे उसे मृदुला खड़ी दिखाई दी।मंगला को काटो तो खून नहीं।झट से बेटी को खींचकर पूछा”क्या कर रही तू यहां,गरीबों की लाइन में खड़ी होकर।कोई देखेगा तो क्या कहेगा?
मृदुला ने सादगी से कहा”हम भी तो गरीब ही हैं ना मां,तभी तो दादी के लिए एक व्हीलचेयर नहीं खरीद पा रहे।सारा दिन तुम उन्हें खरी खोटी सुनाती रहती है।मैं करूंगी उनके व्हीलचेयर का इंतज़ाम।”तभी पार्टी के महामंत्री ने एक व्हीलचेयर लाकर मृदुला को दिया और कहा”जाओ बेटा अपनी दादी को इसमें बिठाना और खूब घुमाना मज़े से।”
फिर मंगला की ओर देखकर बोले”आपकी छवि बाहर जितनी अच्छी है,घर के अंदर उतनी ही बुरी।आपको सीखना चाहिए अपनी बेटी से।मैं मजबूर हूं कि उसे पार्टी में शामिल नहीं कर सकता अभी।”
मंगला को अपनी खरी-खोटी का प्रसाद मिल चुका था।उसकी ख़ुद की बेटी ने अनोखा सबक सिखा दिया उसे।मंगला आज पहली बार शर्मिंदा हुई स्वयं से।
शुभ्रा बैनर्जी