वर्मा जी की गिनती शहर के अमीर लोगों में हुआ करती थी वर्मा जी की बर्तन बनाने की फैक्ट्री थी, और वह अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए अक्सर छोटे-मोटे आयोजन किया करते रहते।
वर्मा जी के पिता जी ने शहर में काफी बड़ी हवेली बनवाई और मंदिर के साथ ही धर्मशाला भी जहाँ हर पूर्णिमा को भंडारा चला करता। वर्मा जी समाज सेवा भी खूब किया करते और सोचते उनके व्यापार में बढ़ोतरी उनकी मेहनत के साथ लोगों की दुआओं से ही हो रही है यह सोच भगवान को हमेशा धन्यवाद देते रहते सुबह से ही प्रभु की माया अपरंपार, प्रभु की माया अपरंपार है ,और हर किसी को जय श्री राम ,जय श्री राम कहते रहते।
जहां फैक्ट्री में वर्मा जी सबके मालिक होते वही प्रभु के दास बन जाते ,वर्मा जी के बड़े बेटे के तीन बेटियों के बाद बेटा हुआ तो खूब खुशियां मनाई गई ,वर्मा जी ने खूब दान किया सबको ,पोते का नाम विट्ठल रक्खा, ज्यादा लाड प्यार में विट्ठल थोड़ा जिद्दी और घमंडी होता जा रहा था ,पोते विट्ठल का स्वभाव वर्मा जी को सही नहीं लगता था ,सुधारने के लिए मन में विचार कर वर्मा जी ने विट्ठल के जन्मदिन पर शहर के बड़े-बड़े लोगों को बुलाया, जो विट्ठल के लिए महंगे महंगे गिफ्ट लेकर आए जिनको पाकर विट्ठल बहुत खुश हुआ और महंगे गिफ्ट को विट्ठल ने देने वालों को बहुत सम्मान दिया और सभी के साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया ,सबके साथ घर में सभी बहुत खुश थे ।
दूसरे दिन दादाजी ने विट्ठल से कहा चलो आज कुछ दूसरे मेहमानों के साथ तुम्हारा जन्मदिन मनाते हैं ,विट्ठल मन ही मन बड़ा खुश हुआ कि चलो आज और गिफ्ट मिलेंगे ।
अगले दिन दादाजी ने सुबह-सुबह गेहूं ,चावल, दाल और चीनी की एक-एक बोरी एक गाड़ी में रखवाई और बच्चों के खाने की खूब सारी चीज और खिलौने गाड़ी में रखवा कर विट्ठल के साथ घर से चले विट्ठल ने दादा जी से जानना चाहा कि हम कहां जा रहे हैं ,तो दादाजी ने कहा जब वहां पहुंच जाएंगे तब तुम्हें अपने आप पता चल जाएगा ।
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दादाजी ने शहर के बाहर एक धर्मशाला के आगे गाड़ी रोक दी जिसको कल्याणी अनाथालय नाम दे दिया गया था, वहां के लोगों ने दादाजी का अच्छे से आदर सत्कार किया ,दादाजी ने अपने साथ लाई हुई राशन के सामान की बोरिया को उतरवाने के लिए कहा जिसके लिए वहां के मैनेजर ने दादाजी को बहुत-बहुत धन्यवाद कहा ,दादाजी ने मैनेजर से बच्चों के लिए लाए गए खिलौने और खाने पीने की चीजे को उतरवा कर बच्चों में बांटने के लिए कहा ।
यह सब देख विट्ठल हैरान और परेशान हो गया दादाजी यह कैसा बर्थडे मनाया अपने बर्थडे पर तो गिफ्ट मिलते हैं और आप तो यहां सब कुछ दे रहे हैं दादाजी ने कहा यहां के बच्चे जो जो तुमको आशीर्वाद देंगे वह तब काम करेंगे जब यह तरह-तरह के खिलौने अपनी कीमत को खो चूकेगें और तब तुम इन सब के साथ खेल कर इन्हें छोड़ दोगे ,पर इन बच्चों के द्वारा दिया गया आशीर्वाद तुम्हें जीवन पर्यंत मिलेगा इनका यह आशीर्वाद तुम्हारी हर सफलता की राह में तुम्हारा सहगामी बनेगा। बच्चे विट्ठल भौतिक उपहार की कीमत होती है पर आशीर्वाद अनमोल होता है । विट्ठल को दादाजी की बातों के द्वारा दोनों तरह के उपहारों की कीमत समझ में आ चुकी थी।
जया शर्मा प्रियंवदा
#उपहार की कीमत नहीं दिल देखा जाता है