दिशा संयुक्त परिवार में पल बढ़ रही थी तो उसका हर रिश्ते के प्रति बड़ा जुड़ाव था I पर अधिकतर जैसा सब घरों में होता है कि बच्चों का ज्यादा लाड़ दुलार अपने दादा दादी से ही होता है, तो यही हाल दिशा का भी था I वो अपने दादा दादी की बड़ी लाडली थी औऱ वो भी उन दोनों पर जान देती थी I दिशा की दादी बहुत अच्छी थीं, वो बिल्कुल आधुनिक समय में घुलमिल जाने वाली, पुरानी रीति रिवाजों को दरकिनार करने वाली, बच्चों के साथ उनके जैसी बातें करने वाली, बड़ों के ऊपर स्वयं का भार न महसूस होने देने वाली और अपने पति के लिए एक सफलतम पत्नी थीं I
दिशा के दादाजी जज थे,तो वह जैसे ही कोर्ट से लौटकर आते उससे पहले ही दादी गेट पर जाकर खड़ी हो जाती I दिशा उनके पीछे ही लगी रहती और हमेशा पूछती कि, “दादी बताओ न आपको कैसे पता चल जाता है कि दादाजी आने वाले हैं?”
दादी प्यार से हंस कर कहतीं, “बिटिया रानी बहुत साल हो गए तुम्हारे दादाजी को कोर्ट भेजते और आते समय दरवाजे पर खड़े होकर इंतजार करते हुए, अब तो आदत पड़ गयी है I कदम खुद ही बढ़ जाते हैं दरवाजे की तरफ और बस पांच मिनट के अंदर ही तुम्हारे दादाजी आ जाते हैं I “
दिशा अपने दादाजी से भी यही सवाल करती कि, “दादाजी, आप बताइये क्या दादी को कोई जादू आता है कि वो आपके आने के पहले ही गेट खोलकर खड़ी हो जाती हैं और आप पांच मिनट के अंदर ही आ जाते हैं I “
दादाजी भी हंस के बताते कि, “बेटा, तुम्हारी दादी का ये क्रम तो तबसे चल रहा है, जबसे वो शादी करके आयी थीं I वो सारे काम जल्दी जल्दी निबटाती थी और मुझे छोड़ने के लिए दरवाजे पर जरूर आती थीं, अगर कभी कोई जरूरी काम भी कर रहीं होतीं तो उसको छोड़ कर पहले मुझे भेजने के लिए आ जाती I और शाम को जब मैं घर पहुँचता था, तो दरवाजे पर ही खड़ी मिलती थी I कभी कभी तो मैं भी असमंजस में पड़ जाता था कि कैसे ये कभी चूकती नहीं है I”
ऐसे ही कई किस्से दिशा अपनी दादी औऱ दादा से सुना करती थी और मजे लिया करती, उसको बड़ा अच्छा लगता था अपने पापा और बुआ की बचपन की बातें जानकर I
एक बार गर्मी की छुट्टियों में घूमने का प्रोग्राम बन रहा था तो दादी की बड़ी इच्छा थी रामेश्वरम जाने की तो दादाजी ने दिशा के पापा से बात की और प्रोग्राम बन गया I
दिशा को बहुत मज़ा आ रहा था दादा दादी के साथ I वहां पहुंचकर वे सब लोग पहल चेन्नई गए, फिर मदुरै गए, फिर रामेश्वरम पंहुचे I सब लोग जब होटल में अपने कमरे में पहुंचे तो पता चला कि दादी को तेज बुखार हो गया और अस्थमा की दिक्कत बहुत ज्यादा बढ़ गयी I अब नयी जगह डॉक्टर का भी कुछ पता नहीं कि कौन सही है और कहां है तो दिशा के पापा ने अपने परिवार के डाक्टर को फोन लगाया और दादी की दवाएं ढूँढ कर लाए I दिशा देख रही थी कि दादाजी बहुत उदास बैठे हुए थे, तो दिशा उनसे बोली, “दादाजी आप क्यों परेशान हैं?पापा दवा ले आए हैं दादी एकदम सही हो जाएंगी I “
तो दादाजी ने उत्साहहीन उत्तर दिया, “बेटा, तुम्हारी दादी की बहुत दिनों से इच्छा थी यहां आने की, और अब जब यहाँ पहुंच पाए तो ये बीमार हो गयी l”
अगले दिन सब लोग मंदिर जाने को तैयार हुए तो दादी की हिम्मत नहीं पड़ रही थी जाने की, क्योंकि वहाँ मंदिर में लम्बी लाइन में खड़े रहना पड़ता है तो दिशा के पापा बोले कि, “हम लोग यहां एक दिन और रुक जाएंगे क्योंकि अभी आगे कन्याकुमारी भी जाना है और वापसी का रिजर्वेशन भी पक्का है I “
दिशा की दादी बोलीं, “जाओ तुम सब लोग दर्शन कर आओ, मुझे अगर शाम को कुछ तबियत सही लगी, तो मैं चलूँगी I “
सब लोग तो तैयार हो गए पर दादाजी नहीं चलने को तैयार हुए I दिशा के पापा ने बहुत कहा कि, “पिताजी आप चले जाइए, मैं अम्मा के पास रुक जाऊँगा, फिर मैं और अम्मा शाम को दर्शन कर आयेंगे। “
पर दादाजी वहाँ से हिलने को भी तैयार नहीं हुए और बोले, “तुम सब लोग जाओ, पर मैं नहीं जाऊँगा I मैं इन्हीं के साथ भगवान के दर्शन करूंगा और अगर इसकी तबियत नहीं ठीक होती है तो मैं ऐसे ही मन्दिर से लौट चलूंगा और मन्दिर में कदम नहीं रखूँगा I ये सिर्फ मेरी पत्नी ही नहीं मेरे जीवन के 57 सालों की वो साथी है,जिसने मेरे हर सुख दुख, उतार चढ़ाव में मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा l आज जब वो अस्वस्थ है तो मुझे सारा पुण्य अकेले नहीं कमाना I “
ये सुनकर दादी की आँखों में आँसू आ गए और शाम को बहुत हिम्मत करके अपने शरीर को घसीटते हुए वो चलने को तैयार हो गयीं और मंदिर पहुंची फिर धीरे-धीरे चलती हुई अंदर गयीं और दर्शन किए l
दादाजी को बड़ा सुकून मिला I पर दादाजी की इच्छा प्रातःकाल में होने वाले मणि दर्शन की भी थी, पर दादी की असमर्थता के कारण वो दर्शन नहीं कर पाए l दादी ने उनसे बहुत कहा पर उन्होने उत्तर दिया, “अगर भगवान भी लेने आ जाएं तो भी तुम्हें अकेले छोड़ कर नहीं जाऊँगा l”
दादी की तबीयत के कारण दिशा का परिवार रामेश्वरम के आगे नहीं गया और तीन दिन बाद वहीं से वापसी कर ली I
अपने घर आकर दादी के स्वास्थय में सुधार आने लगा और कुछ ही दिनों में वो स्वस्थ हो गयीं I
दिशा के दादा-दादी घर के पास ही रोज सुबह की सैर के लिए जाते थे I पर इधर कुछ दिनों से दादाजी का कोलेस्ट्राल कुछ बढ़ा हुआ था तो डॉक्टर ने उनको दोनों शाम को भी टहलने को बताया था I घर के पास ही एक पार्क था, तो दादाजी वहीं तक चले जाते थे I एक दिन दादाजी को लौटने में काफी देर हो गई तो दादी कुछ परेशान हो गयीं I उन्होने दिशा से कहा तो वो अपनी मम्मी के साथ भागती हुई पार्क की तरफ गयी तो देखा कि कुछ लोग दादाजी को उठाकर ला रहे हैं,पड़ोस के ही कुछ भले लोग थे I उन्होंने दिशा की मम्मी को बताया कि बाबूजी पार्क में बेहोश हो गए थे I दिशा के पापा ऑफिस से तुरंत आए और अपने पिता को अस्पताल ले गए, वहां पता चला कि बहुत देर हो गई, दादाजी को हार्ट अटैक पड़ा था I
ये सुनकर तो दादी जैसे पागल ही हो गयी थीं, वो न ही रो पा रहीं थीं,न कुछ बोल पा रहीं थीं, न कुछ समझ पा रहीं थीं कि ये क्या हो रहा है, ये सपना है या फिर हकीकत, एक दम बदहवास सी हो गयी थीं बेचारी I दिशा भी रोये जा रही थी ,एक तरफ दादाजी को खोने का दुख था और दूसरी तरफ दादी की असहनीय पीड़ा उससे देखी नहीं जा रही थी I
अंतिम संस्कार के लिए जब दादाजी को ले जाया जा रहा था तो दादी रो रोकर कहने लगी, “आप तो कहते थे कि अगर भगवान भी लेने आ जाएं तो मुझे अकेला छोड़कर नहीं जाओगे फिर कैसे अपना दिया वचन तोड़ दिया आपने….????अब दरवाजा हमेशा के लिये सूना हो गया, अब किसका इंतजार करुँगी मैं?? अब मैं भी जीकर क्या करूंगी जब आप ही लौटकर नहीं आओगे I “
दिशा की मम्मी और बुआ ने दादी को सम्भाला और बहुत समझाया ,पर ऐसे समय में कोई भला क्या समझ सकता है I
रात में दिशा की बुआ ने बहुत मनाने के बाद एक बिस्कुट और आधी कप चाय किसी तरह दादी को पिलाई I लगातार रोने और घबराहट के कारण दादी को अस्थमा का दौरा पड़ गया I जल्दी से उनको इनहेलर और दवाएं दी गई और दिशा की बुआ और मम्मी ने उनको बिस्तर पर लिटा दिया और दोनों खुद भी वहीं बैठ गयीं I रात में दिशा की बुआ, दादी के पास लेटी और दिशा की मम्मी उसी कमरे में जमीन पर चटाई बिछा कर लेट गयीं I आधी रात में दिशा की मम्मी ने उनको गुनगुना करके पानी पिलाया और लिटा कर खुद भी लेट गयीं I फिर वो सुबह जल्दी उठकर कमरे से बाहर निकल गयीं और काम देखने लगीं क्योंकि घर में कुछ रिश्तेदार थे और अभी 13 दिन तक दादाजी के सब मरणोपरांत कार्यक्रम होने थे I थोड़ी देर बाद आकर उन्होंने दिशा की बुआ को उठाया और दादी को भी उठाने की कोशिश की क्योंकि उनको दवा देनी थी पर दादी के शरीर में कोई हरकत न देखकर वो थोड़ा डर गयीं,तभी दिशा की बुआ बोलीं, “भाभी अम्मा का शरीर एक दम ठंडा पड़ गया है, भैया को बोलो जल्दी डॉक्टर को बुलाएं I “
दिशा के पापा जल्दी ही डॉक्टर को लेकर आ गए,डॉक्टर ने दादी को देखकर बताया कि “माताजी तो अब नहीं रहीं I “
ये सुनकर तो जैसे पूरे घर पर वज्रपात हो गया I दिशा के पापा फूट-फूटकर रोने लगे और बोले, “24 घंटों के अंदर ही मैं बिल्कुल अनाथ हो गया, माता पिता दोनों चले गए l”
दिशा पागलों की तरह बिलख रही थी, बुआ बेसुध हो रहीं थीं, मम्मी खड़ी सुबक रहीं थीं पर उस भाग्यविधाता ईश्वर के आगे सब नतमस्तक थे, आखिर जन्म और मृत्यु पर किसका जोर है l
पर दिशा के मन में बार बार यह बात आ रही थी कि दादाजी ने अपना वादा नहीं तोड़ा, थोड़ा देर से ही सही पर अपनी अर्धांगिनी को अपने पास बुला ही लिया, उनको यहाँ अकेला नहीं छोड़ा l
उनके प्यार, विश्वास और अद्भुत समर्पण को वो मन ही मन प्रणाम कर रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि अब अगर उनको नया जन्म देना तो भी कभी एक दूसरे से अलग न करना….. llllllll
सिन्नी पाण्डेय