चंद्रकांत और विमला जी की दो बेटियां थी। बड़ी मालिनी और छोटी नलिनी। छोटी को सब प्यार से नीलू कहते थे। चंद्रकांत जी इतना कमा लेते थे कि आराम से घर चल जाता था। फालतू खर्च और अधिक सुख सुविधाएं नहीं थीं।
एक बार मालिनी को ऐसा बुखार आया कि जाते-जाते मालिनी को भी साथ ले गया। उस समय वह 7 बरस की थी और नीलू 5 बरस की। चंद्रकांत और विमला बेटी के गम में डूब गए थे। अब उनका सारा ध्यान और प्यार नीलू की ओर आ गया था। इसीलिए वह थोड़ी लापरवाह और जिद्दी हो गई थी। पढ़ाई लिखाई से भी उसका ध्यान हटने लगा था। पहले तो माता-पिता ने बड़े प्यार से उसे समझाया और बाद में डांटा भी, डांट का सिर्फ इतना ही असर हुआ कि नीलू के पास होने लायक नंबर आ जाते थे। जैसे तैसे नीलू ने 12th पास कर ली। माता-पिता उसे आगे पढ़ाना चाहते थे, लेकिन नीलू का पढ़ने का मन नहीं था। उसे घूमना और सहेलियों के साथ बातें करना बहुत अच्छा लगता था।
तब हर कर उसकी मां ने कहा-“हर इंसान के पास कोई ना कोई हुनर होना ही चाहिए। अगर तुम पढ़ने नहीं चाहती हो तो सिलाई सीख लो। या कुछ और, जो तुम्हारा मन करे।”
नीलू सिलाई सीखने जाने लगी। वह तो मां के कहने पर जा रही थी, असल में उसका मन नहीं लगता था। कपड़ों की कटाई तो उसे बिल्कुल पल्ले ही नहीं पड़ती थी लेकिन सिलना उसे अच्छा लगता था। सीखते सीखते 6 महीने बीत गए लेकिन वह कपड़ों की कटाई नहीं सीख पाई। घर के कामों में भी उसकी खास रुचि नहीं थी। मां के समझाने पर पर उसने खाना बनाना सीख लिया था। माता-पिता को उसकी बहुत चिंता होती थी।
एक दिन उसकी मां ने कहा-“नीलू, कल को तेरी शादी होगी, तो क्या तू घर के लोगों को ऐसा खाना बनाकर खिलाएगी, जरा ध्यान से मन लगाकर स्वादिष्ट खाना बना।”
नीलू-“मां देख लेना, मेरी शादी अमीर घर में होगी, और हम कुक रख लेंगे।”
मां -“ज्यादा उड़ मत। हम मध्यम वर्गीय लोग हैं तेरी शादी भी ऐसेही घर में होगी। हम तेरी शादी किसी करोड़पति से नहीं करवा सकते और फिर वह करेगा भी क्यों? हर स्त्री को स्वादिष्ट खाना बनाना आना चाहिए।”
नीलू दिखने में सुंदर थी। कुछ समय बाद उसके लिए एक फैक्ट्री में काम करनेवाले सोहन का रिश्ता आया। वह सुपरवाइजर था। ठीक-ठाक कमा लेता था। सब कुछ तय हो गया और नीलू की शादी सोहन से हो गई। नीलू के माता-पिता ने अपनी तरफ से बहुत बढ़िया शादी की।
नीलू की दोनों जेठ जेठानियां बहुत मतलबी थे। नीलू को उसके माता-पिता की गरीबी का ताना मारते थे। सब कुछ देखकर भी पता नहीं क्यों चुप रहती थी, शायद दोनों बहुओं से डरती थीं। सोहन सब समझता था पर चुप रहता था।
नीलू को लगने लगा था कि दोनों जेठानियां उस पर हुकुम चलाती हैं। उसने सोचा कि मैं सोहन से कहूंगी कि मैं प्रेग्नेंट हूं, हमें अलग हो जाना चाहिए। डेढ़ साल हो गया है सब कुछ सहते सहते।
तभी शाम को अचानक खबर आई कि सोहन की फैक्ट्री में कोई हादसा हो गया है। किसी भारी मशीन का ऊपरी हिस्सा तीन लोगों पर आकर गिरा और तीनों वही खत्म हो गए, उनमें से एक सोहन भी था।
नीलू पर तो मानो पहाड़ टूट पड़ा। उसके माता-पिता भी दौड़े चले आए। उन्हें भी नीलू के गर्भवती होने का पता लगा तो उनकी चिंता और अधिक बढ़ गई।
सोहन की 13वीं हो जाने के बाद उन लोगों ने नीलू की ससुराल वालों से कहा-“अब आप लोग ही इसका सहारा है, इसका ध्यान रखिएगा।”
उन लोगों ने साफ इनकार कर दिया और कहा,” सोहन के मर जाने के बाद हमारा इससे क्या लेना-देना। इसे अपने साथ ले जाइए।”
नीलू के पिता को गुस्सा आ गया। उन्होंने कहा-“नीलू आपके घर की बहू है और मां बनने वाली है। आप अपनी जिम्मेदारी से कैसे पीछे हट सकते हैं। सोहन नहीं है तो क्या , उसके बच्चे को सारे हक मिलने चाहिए।”
बड़ी जेठानी -“बड़े आए हक मांगने वाले, शादी कैसे की थी, याद है ना, कंगले कहीं के। अब सिर्फ दो लोगों के बच्चों का ही सारा हक है। मेरे बच्चे और मेरे देवर के।” सास ने भी उनकी हां में हां मिलाई।
अपने माता पिता और पति का अपमान होते देखकर नीलू का स्वाभिमान उसे धिक्कारने लगा। उसने कहा-“पापा, आपको इनसे कोई हक मांगने की जरूरत नहीं है। मैं अपने आत्म सम्मान के साथ आत्मनिर्भर बनूंगी और अपने बच्चे को खुद पालूंगी और रही बात हक की, एक न एक दिन वह भी मैं लेकर रहूंगी, लेकिन भीख की तरह नहीं ।चलिए यहां से।”
नीलू माता-पिता के साथ आ गई। दोनों को यही चिंता थी कि नीलू ने समय रहते ना तो पढ़ाई की और ना कोई काम सीखा। न जाने इसका क्या होगा। हम लोग कब तक जीवित हैं, इसकी जिंदगी कैसे कटेगी।
एक महीना बीत चुका था। कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक दिन चिंता में डूबे चंद्रकांत जी रात को ऐसे सोए कि सुबह जागे ही नहीं। घर में एक ही कमाने वाला था, वह भी चला गया।
एक दिन नीलू ने अपनी मां से कहा-“मां मुझे कपड़ा बाजार ले चलो।”
मां -“पर नीलू बेटा, तुझे तो सिलाई आती नहीं, बेटी हम लोग पैसा बर्बाद करने की हालत में नहीं है। सोच समझ कर कदम उठाना।”
नीलू-“मां ,आपको तो सब कुछ आता है, जो समझ नहीं आएगा, आपसे सीखूंगी, आप मेरी मदद करोगी ना?”
मां-“मैं तो हर पल तेरे साथ हूं। चल उठ, मेरे पास भी कुछ रुपए हैं।”
दोनों मां बेटी बाजार से कार्टून के प्रिंट वाला बहुत सारा कपड़ा, पतली वाली फोम, प्लेन कपड़ा और कुछ चेन खरीद कर लाई।
नीलू ने अपनी मां से दो पुरानी साड़ियां मांगी। दोनों पुरानी साड़ियों को अस्तर की तरह इस्तेमाल किया। कार्टून प्रिंट का कपड़ा ऊपरी कवर बनाया और बीच में फोम लगाकर सुंदर सी हल्की-फुल्की छोटे बच्चों की रजाई तैयार कर दी और उसकी मां ने उसके चारों तरफ एक नरम सुंदर लेस लगाकर उसे सिल दिया। इस काम में नीलू को कटाई का ज्यादा झंझट नहीं करना पड़ा और फिर उसकी मां ने कपड़े के कुछ बैग सिल कर चेन लगा दी।
ऐसे कुछ पीस तैयार करके, नीलू की मां ने घर के बाहर रस्सी बांधकर उन पर तैयार सामान को लटका दिया। कीमत वाजिब होने के कारण आसपास के लोगों को सामान बहुत पसंद आया और सारा सामान तुरंत बिक गया। कुछ समय बाद पास के बाजार से एक दुकानदार ने 12 छोटी रजाई का आर्डर दिया। नीलू ने आर्डर पूरा किया। नीलू ने अब एक लड़की को काम पर रख लिया था क्योंकि वह अपने काम को 1 दिन भी बंद नहीं करना चाहती थी और उसे पता था कि किसी भी समय डिलीवरी हो सकती है। नीलू ने एक पुत्र को जन्म दिया।
नीलू अपने बच्चों की भी देखभाल करती थी और काम भी संभालती थी। उसकी मां भरपूर मदद करती थी। समय बिता अब उसका बेटा 2 साल का हो चुका था और नीलू आर्थिक रूप से सक्षम हो चुकी थी। उसने वकील से बात करके अपने ससुराल वालों पर अपना हिस्सा पाने के लिए केस कर दिया।
नीलू केस जीत गई। उन लोगों को नीलू का हिस्सा देना पड़ा। नीलू ने केस जीतने के बाद उन लोगों से कहा-“आज मेरे पास भगवान का दिया सब कुछ है, लेकिन आत्मसम्मान भी कोई चीज होती है। आप लोगों ने मेरे पिता का अपमान किया और दुख की घड़ी में मेरा साथ नहीं दिया। आप जैसे स्वार्थी लोगों से मैं हिस्सा लेकर क्या करूंगी। मैंने तो सिर्फ आप लोगों को सबक सीखाने के लिए और आपको आपकी गलती का एहसास करवाने के लिए केस किया था। मैं अपना हिस्सा आप लोगों को भीख के रूप में देती हूं, मेरे लिए आत्मसम्मान से बड़ा कुछ नहीं।” ऐसा कहकर नीलू चली जाती है।
स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली