अनुभा ओ अनुभा… सास की आवाज सुनकर थकान से बोझिल ऑंखों को अनुभा ने जैसे ही खोला सामने अपनी सास को देखा। वे उसके अनुराग की निशानी को गोद मेें लिए ससुर जी के साथ खड़ी थीं। खुशी से चहक उठीं और बोलीं- देखो बेटी तुमने आज हमारे अनुराग को वापस हमारी गोद मेें देकर हमें ऐसी खुशी दी है कि “हमारी आँखों से बहने वाले दुख के आँसू अब खुशी के मोती बन गए।” यह अहसान हम जीवन भर नहीं चुका सकते।
अनुभा अपने सास-ससुर के चेहरे की खुशी देखकर अपना दुख भूल गई। उन दोनों ने उसका हालचाल पूछा और बच्चे से मिलवा कर उसे आराम करने के लिए कहकर दूसरे कमरे मेें चले गए।
उसने धीरे से आँखें बंद कर ली।उसकी आँखों से अश्रुधार बह
निकली और वह उन आँसुओं के सैलाब मेें यादों की नाव मेें सवार डूबने-उतराने लगी।
अनुराग अपनी शादी के लिए दो माह की छुट्टी लेकर घर आए थे। सब इंस्पेक्टर के पद पर उनकी पोस्टिंग धुर नक्सल क्षेत्र मेें थी। जहां आए दिन नक्सली किसी-न-किसी घटना को अंजाम देते हैं। कभी-कभी पुलिस जवानों पर गश्त के दौरान गोलीबारी करना या सड़क खोदकर बम लगा देना और पुलिस की गाड़ी गुजरने पर विस्फोट कर देना नक्सलियों की ऐसी कुत्सित मानसिकता के बीच पुलिस वाले अपनी ड्यूटी ईमानदारी के साथ करते हैं।
मेरे माता-पिता ने खूब धूमधाम से मेरी शादी अनुराग के साथ की थी। मैं ढेर सारे अरमान लेकर ससुराल आई थी। जैसा मैंने चाहा था वैसा ही जीवन साथी मुझे मिला। लंबा-चौड़ा, गठीला बदन,मधुर मुस्कान जो अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करने मेें सक्षम। अपने नाम के अनुरूप प्रेम, स्नेह,भक्ति और लगाव रखने वाले।’
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शादी की खुशी मेें मायके और ससुराल के रस्म-रिवाज निभाते-निभाते वक्त जैसे पंख लगाकर उड़ने लगा। एक दिन सुबह मैं उठना चाहकर भी नहीं उठ पाई तबियत कुछ ठीक नही लग रही थी। जब सास को पता चला तो उन्होंने मुझे आराम करने के लिए कहकर घर का पूरा काम स्वयं ही संभाल लिया।
कुछ समय पश्चात अनुराग मुझे डाॅक्टर के पास लेकर गए। उन्होंने चेकअप कर बताया कि मैं प्रेग्नेंट हूं , तो अनुराग की खुशी का ठिकाना न रहा। घर पहुँचकर सबको खुशखबरी सुनाई। सास-ससुर भी बहुत खुश हुए। अनुराग अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं तथा घर की सारी खुशियाँ उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है।
जैसे ही मैं अपने कमरे मेें पहुँची अनुराग ने मुझे गोद मेें उठा लिया और दो-तीन चक्कर लगा दिए। फिर वे अपने बच्चे के भविष्य के सपने बुनने लगे। बड़ा होने पर बेटा हो या बेटी मैं उसे पुलिस अफसर बनाऊँगा… मैं उनकी बात बीच मेें ही काटकर बोली- नहीं मुझे अपने बच्चे को पुलिस विभाग मेें नहीं भेजना है। उन्हें घर से दूर रहना पड़ता है और घर वाले हमेशा कोई अनहोनी न हो जाए इस दहशत के साए मेें जीते हैं।
अनुराग मेरी बात का जवाब देते हुए बोले- सुनो मेरी अनु , एक पुलिस वाले की पत्नी और शिक्षित होते हुए ऐसी बातें करना तुम्हें शोभा नही देता। हम अपने देश और उसके नागरिकों की सुरक्षा के लिए ही पुलिस बनते हैं। हमारे जज़्बे को पूरा देश सलाम करता है। अपने देश के लिए तो हम अपनी जान हथेली पर लेकर चलते हैं। अब बताओ क्या बनाना है? अपने बच्चे को।
मै अनुराग के सीने से लग गई और बोली- आपने जो सोचा है वही होगा। फिर मैने कहा- अपने बच्चे का क्या नाम रखेंगे? वे जैसे इसी प्रश्न के इन्तजार बैठे थे , झट से बोल पड़े- बेटी हुई तो अनुपमा और बेटा हुआ तो अनुपम। यदि तुम्हें यह नाम पसंद न हो तो,तुम ही बताओ क्या नाम रखेंगे ? मैने कहा मुझे भी ये नाम पसंद हैं क्योंकि हम दोनों के नाम भी अनु से ही शुरू होते हैं।
एक सप्ताह बाद अनुराग की छुट्टी समाप्त होने वाली थी। वे मुझे इस हाल मेें छोड़कर जाने की बात सोचकर उदास हो जाते थे। मुझे बिछड़ने का दुख न हो यह सोचकर बीच-बीच मेें छुट्टी लेकर आने की बात कहकर एक सप्ताह बाद वे हम सब से विदा लेकर बोझिल कदमों सेअपनी ड्यूटी पर चले गए ।
अनुराग के जाने के बाद मैं अपने कमरे मेें जाकर फूट-फूटकर रोई मुझे ऐसा लगा जैसे मैं एकदम अकेली रह गई हूँ। मेरे सास-
ससुर ने कुछ दिनों के लिए मुझे मायके भिजवा दिया। मुझे अपने सास-ससुर को छोड़कर, मायके मेें रहना उचित न लगा और मैं वापस अपने ससुराल आ गई। अनुराग ने भी तो उनके देखभाल की ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी है।
अनुराग शाम को ड्यूटी खत्म करके हमें फोन करते हम सबका हाल पूछते लगभग आधे घण्टे बात होती। हम बात करके ही खुश हो जाते। अभी उन्हें गए दस दिन ही हुए थे। शाम को हम सब उनके फोन का इंतजार कर रहे थे। शाम से रात हो गई लेकिन उनका फोन नहीं आया। हम सब सोच मेें पड़ गए, फिर एक दूसरे को सांत्वना देते रहे हो सकता है कोई जरूरी काम आ गया होगा इसलिए फोन नहीं आया। मैं रात भर सो न सकी मन मेें न जाने कैसे-कैसे बुरे-बुरे खयाल आ रहे थे।मैने ईश्वर को स्मरण करते हुए उनकी सलामती की दुआ मांगी।’
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सुबह लगभग सात बजे पुलिस गाड़ी दरवाजे पर आकर रुकी , मन आशंकित हो उठा। पुलिस अधिकारी ने बताया- नक्सलियों से मुकाबला करते हुए अनुराग ने नक्सलियों से घिरे अपने कई साथियों को सुरक्षित बाहर निकाला लेकिन ऐसा करते समय एक गोली उनके सीने मे लग गई फिर भी वे गोलियों का जवाब गोलियों से देते रहे।अत्यधिक खून बह जाने के कारण उन्हें बचाया नहीं जा सका। वे ” शहीद ” हो गए।
यह दुखद खबर सुनकर जैसे मैं पत्थर की मूरत बन गई। न रोई , न चिल्लाई, चुपचाप एकटक उनकी वीरता के किस्से सुनती रही। मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया। मैंने अपने सास-
ससुर को भी अपने बेटे की ‘शहादत’ पर नही रोने दिया बल्कि उनसे देश के लिए शहीद हुए बेटे के सम्मान मेें ‘शहीद अमर रहे’ के नारे लगवाए।
जैसे ही पुलिस की गाड़ी अनुराग के पार्थिव शरीर को लेकर पहुँची पूरा गाँव अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़ा। “शहीद अनुराग अमर रहे।” के नारे लगाते रहे। अनुराग के अंतिम दर्शन के लिए मुझे और उनके माता-पिता को ले जाया गया उनकी माँ बेहोश होकर गिर पड़ीं। लोगों ने उन्हें बड़ी मुश्किल से संभाला। मैं अनुराग के चेहरे को एकटक देखती रही, उन्हें अपनी आँखों मेें हमेशा के लिए बसा लेना चाहती थी।
अनुराग के अंतिम संस्कार मेें आस-पास के गाँव वाले भी शरीक हुए। ऐसा लग रहा था जैसे जन सैलाब उमड़ पड़ा हो।मैंने उनके सर पर हाथ रख मन ही मन शपथ ली कि मैं हमारे होने वाले बच्चे को पुलिस ही बनाऊँगी साथ ही मुझे मौका मिला तो मैं भी पुलिस विभाग मेें अपनी सेवा दूँगी और आपकी शहादत को व्यर्थ नहीं जाने दूँगी। अनुराग के मृतक संस्कार निपट जाने के एक सप्ताह बाद पुलिस विभाग के अफसर घर आकर उनके फंडों का चेक प्रदान करने के पश्चात अनुकंपा नियुक्ति के लिए मुझसे आवश्यक दस्तावेज ले गए।
मुझे हवलदार के रूप मेें नियुक्ति प्रदान की गई। मैं दो माह के गर्भ और अपने सास-ससुर को लेकर अपनी नियुक्ति वाले स्थान पर रहने लगी। मैं अपनी ड्यूटी के साथ-साथ अनुराग के कर्तव्यों को भी पूरा कर रही थी। आज मैंने अपने बेटे के रूप मेें अनुराग को फिर से पा लिया है। अनुराग मैने आपसे जो वादे किए थे उसे शिद्दत से पूरा कर रही हूँ और करती रहूँगी।
अचानक अपनी सास की आवाज सुनकर वह अपनी यादों की दुनिया से लौट आई। सास उसके लिए दवाइयां लेकर आई थीं। उन्होंने बड़े प्रेम से अनुभा को दवाइयां खिलाई। उसी समय बातचीत के दौरान उसने बताया कि अनुराग अपने बेटे का नाम अनुपम रखना चाहते थे तो वे सहर्ष उसका नाम अनुपम रखने को तैयार हो गयीं और बोलीं- ‘तुमने आज हमें हमारे बेटे के अंश के रूप मेें अनुपम उपहार दिया है।’
ऐसा कह उन्होंने अनुभा को गले से लगा लिया। दोनों की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे।
रचना स्वरचित है।
लेखिका- साधना वैष्णव।