रिटायरमेंट के बाद जब सुभाष जी और सरिता जी एक दूसरे के साथ वक्त बिताते ये बात रिचा की आंखों में खटकता था।
राहुल!” पापा जी को कुछ वक्त बाहर भी बिताना चाहिए अपने हमउम्र दोस्तों के साथ और मम्मी जी को इस उम्र में भजन-कीर्तन करना चाहिए” रिचा अक्सर ऐसी बातें पति राहुल से कहा करती थी। रिचा! ” पापा नौकरी के सिलसिले में हमेशा बाहर ही रहते थे और मम्मी हमलोगों की पढ़ाई के कारण यहां रहती थीं, दोनों ने कभी साथ में वक्त बिताया ही नहीं। हमेशा अलग-अलग रह कर अपनी – अपनी जिम्मेदारियों का निभाया है।आज उन्हें साथ रहने का मौका मिला है तो तुम्हें भी खुश होना चाहिए ” राहुल टिफिन और
लैपटॉप बैग उठाया और ऑफिस निकल गया।
रसोई में चाय बना रहीं सरिता जी को बहुत दुख हुआ कि “रिचा की सोच कैसी है? उम्र के इस पड़ाव में हम दोनों अगर एक दूसरे के साथ वक्त बिताते हैं तो बहू को क्या तकलीफ़ है” उदास मन से चाय की प्याली ले कर बागीचे में बैठ गईं।
अरे! भाई सुषमा जी ये क्या आप यहां हैं? मैं तो आपका इंतजार कर रहा था कि आप चाय लेकर मेरे पास आएंगी।”
सुषमा जी को परेशान देखकर सुभाष जी से रहा नहीं गया…
“आखिर बात क्या है? अभी तो आप ठीक थीं”…”जी आज मुझे अच्छा नहीं लगा की रिचा जब राहुल से ऐसी बातें कर रही थी।”
शाम को जब राहुल ऑफिस से आया तो सुभाष जी ने बुलाया… “राहुल मेरा एक मित्र अब मेरे साथ यहीं रहेगा।”
पापा! ” कमरे कहां हैं..एक आप लोगों का दूसरे में मैं और रिचा रहते हैं।”
बेटा! ” तुम लोग कहीं और घर ढूंढ लो क्योंकि इस उम्र में हम दोनो अपने हमउम्र वालों के साथ ही रहना चाहते हैं।”
रिचा को समझते देर नहीं लगी थी कि उसने जो कुछ सुबह कहा था जरूर पापा या मम्मी में से किसी ने सुना है। उसने बिना देर किए जल्दी से माफी मांगी…” मुझे माफ कर दीजिए आप दोनों। अभी हम लोग कहां जाएंगे?”
बेटा! ” मैंने पैसे कमाए तो तुम्हारी मम्मी ने एक – एक पाई जोड़ कर ये घर बनाया है और इस घर में हम कैसे रहते हैं ये निर्णय तुम नहीं लोगी।पूरी उम्र जिम्मेदारियों के तले हमने कभी साथ में वक्त नहीं बिताया और आज जीवन की इस संध्या में ना जाने कब किसका हांथ छोड़ कर निकल जाए ये कौन जानता है।” रिचा की आंखों से पश्चाताप के आंसू बह निकले। अपनी ही सोच पर बहुत शर्मिंदा थी। अब वो मम्मी पापा के घूमने – टहलने का खुद ही योजना बनाती। सभी खुशी-खुशी एक छत के नीचे रहने लगे।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी