Moral stories in hindi: सुबह सुबह खबर मिली पड़ोस वाली आंटी नही रही अचानक दर्द उठा और उन्हे बचा नही सके
मैं खबर सुनकर सदमे मैं थी मम्मी ,पापा मुझे बताकर उनके घर चले गए उन्हे सम्हालने जब तक रिश्तेदार आयेंगे तब तक हमारी जिम्मेदारी ही है वैसे भी दोनों घरों का आपसी रिश्ता बहुत पुराना और गहरा है ।
मुझे बार बार यही दुख हो रहा था की अंकल कैसे रहेंगे आंटी के बगैर और बच्चों का क्या होगा हालांकि इतने छोटे नही है पर मां के बिना तो जिंदगी मै कितना दुख होता है ।और मैं जोर से रो पड़ी बार बार आंटी से जुड़ी हुई बातें याद आ रही
अंकल कितना प्यार करते थे आंटी को एक पल भी शायद उनके बिना रहे हो कैसे रहेंगे और मैं ये सोच कर दर्द महसूस करने लगी।
दो दिन बाद मैं भी गई अंकल से मिलने वो एक जगह शांत बैठे थे बच्चे भी उनके पास बैठे हुए थे
घर आकर मम्मी के गले लग कर खूब रोई मम्मी आप हमें छोड़ कर कभी नही जाना ये दुख मैं बर्दास्त नही कर पाऊंगी ।
मम्मी चुप कराकर बोली बिटिया ये जीवन की सच्चाई है इस से मुंह नही मोड़ सकते जीवन मै दुख है तो पीछे सुख भी आता है बस हमें अपने दुख को भुलाकर जीना आना चाहिए अगर हम दुख को जिंदगी से हटाएंगे नही तो सुख अपना रास्ता कैसे बनाएगा ये याद रखना सुख ,दुख आगे पीछे ही रहते है दुख अपना रास्ता खुद बना लेता है लेकिन सुख के लिए हमें बनाना पड़ता है तुम धीरे धीरे इसे समझ जाओगी।
आज इस बात को छे महीने हो गए मैने देखा अंकल अब सामान्य हो गए बच्चे भी अपनी जिंदगी मै मशगूल हो गए ।
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अंकल ने खाना बनाना सीख लिया ऑफिस से आकर खाना बनाते ,फिर अपने दोस्तों के साथ बातचीत करने निकल जाते ,मुझे बड़ा दुख हुआ की ये लोग कितनी जल्दी आंटी को भूल गए ये तो पहले की तरह ही जी रहे हैं और मुझसे रहा नही गया एक दिन मैंने पापा से पूछा की अंकल को कोई दुख नही है आंटी के जाने का न उनके बच्चों को ऐसा लगता है
पापा बोले क्यों तुम्हे ऐसा क्यों लगता है क्योंकि वो हमेशा दुखी नही रहते अपने काम कर रहे है इसलिए ।
हां ??
देखो बेटा कभी कभी हमारा दुख दूसरे को सुख देने भूल जाते है ।
अंकल और उनके बच्चे अब आंटी के सपने पूरे करने मै अपने दर्द को भूल गए है आंटी ने मेहनत से बच्चों को बड़ा किया उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखा इस बात के लिए तुम्हारे अंकल ने खाना बनाना सीखा जब वो खाना बनाते है या बच्चों। को खिलाते है तो वो यही सोचते है आज वो कितनी सुख महसूस कर रही होगी की उसके बिना बच्चे को बही मिल रहा है ।
और बच्चे भी मां की खातिर अब और ज्यादा पढ़ाई पर ध्यान दे रहे है जो उनकी मां उन्हे बनाना चाहती थी बेटा सुख दुख जीवन का हिस्सा है बाद दुखी हो कर बैठने की जगह हम
सुख का रास्ता ढूंढे तो दुख मिट ही जाता है
अब मुझे समझ आ गया था सुख और दुख का मतलब अब मेरे दिल से अंकल के प्रति नफरत निकल गई और मैं भी सुख का आभास करने लगी ।
अंजना ठाकुर