ड्राइंग रूम में गहमागहमी का वातावरण था। लड़केवाले स्वाति को देखने आए थे। लड़का स्वयं अपने मम्मी-पापा के साथ आया था। स्वाति के मम्मी-पापा ने बड़ी ही
गर्म जोशी से उनका स्वागत किया ।
आइए मिश्रा जी आपका ही इंतजार कर रहे थे कहते हुए शुक्ला जी ने हाथ मिलाया और आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई।
अरे नहीं कैसी दिक्कत आराम से पहुंच गए। बैठने के बाद कुछ औपचारिक वार्तालाप हुआ उसके बाद लडके की मम्मी माधुरी जी बोलीं बहन जी अब बेटी को बुला लिजिए, सब्र नहीं हो रहा उससे भी मिल लें।
हां हां क्यों नहीं अभी लेकर आती हूं कहते हुए अंदर चली गईं।
लौटकर आईं तो स्वाति उनके साथ थी। जींस-टॉप पहने आई और बोली हलो एवरीवन,आप लोग कैसे हैं कहते हुए अपने पापा के पास बैठ गई। वातावरण में एकाएक चुप्पी सी छा गई। क्योंकि पारम्परिक रिवाज के अनुसार जहां वे एक ऐसी लड़की की कल्पना कर रहे थे जो समयानुसार साड़ी नहीं तो कम से कम सलवार सूट में आकर सबको नमस्ते कहती हुई बैठेगी।
माधुरी जी ने ही चुप्पी तोडी बेटी क्या कर रही हो।
आंटी मेरा ग्रेजुएशन पूरा हो गया है
एम बी ए कर रही हूं। वहीं जॉब के लिए भी तैयारी कर रही हूं।
स्वाति और नितिन एक दूसरे को चोर निगाहों से देख रहे थे और नजरें मिलते ही नजर झुका लेते मानो दोनों मौन ही एक दूसरे को तौल रहे हों कि वे एक दूसरे के योग्य हैं भी या नहीं।
तभी विनीता जी बोलीं बहन जी हमारी बेटी अपने पापा की बहुत लाडली है।इसे हमने बेटे की तरह पाला है। बहुत ही नाजों से इसका पालन -पोषण किया है।कभी एक गिलास पानी भी इसने अपने हाथों से लेकर नहीं पिया।जिस चीज पर हाथ रख दिया वह हमने इसे लेकर दी वे अपनी रौ में बोले जा रहीं थीं बिना यह सोचे कि वे यह बातें अपने जानकार लोगों के बीच नहीं बोल रहीं बल्कि लड़केवाले के सामने बोल रहीं हैं जो उनकी बेटी को शादी कर अपनी बहू बनाने आए हैं।
माधुरी जी बोलीं वो तो ठीक है बहन जी आजकल बेटे -बेटियों में कोई फर्क नहीं करते फिर भी शादी के बाद लड़की के कंधों पर घर गृहस्थी की जिम्मेदारी तो आ ही जाती है। क्या आपने अपनी बेटी को उस जिम्मेदारी को उठाने योग्य बनाया है।
बहनजी जब सिर पर पड़ेगी सब सीख जाएगी।
सीख तो जाएगी पर क्या उस जिम्मेदारी को उठाने में सक्षम हो पाएगी या घबरा कर भाग छूटेगी । कुछ छोटे -मोटे घरेलू कार्य तो कर लेती होगी जैसे चाय बनाना, कुछ खाना बनाना जो जीवन के लिए आवश्यक है।
नहीं बहन जी अभी तक उसने कोई काम नहीं किया जब जरुरत पड़ेगी तो करना सीख जाएगी।
उनकी बातों से मिश्रा परिवार को कुछ हताशा हुई।
मिश्रा जी बोले स्वाति बेटा तुम्हारा क्या विचार है शादी के बाद तुम घर गृहस्थी की जिम्मेदारी उठा पाओगी।
अंकल मुझे कुछ नहीं पता मैंने अभी तक ऐसा कोई काम नहीं किया सिवा पढ़ाई करने के। मम्मी-पापा ने ऐसा कुछ बताया ही नहीं। मैं तो सुबह देर से उठती हूं नौ बजे तक और तैयार होकर कॉलेज चली जाती हूं। चाय नाश्ता सब मम्मी तैयार रखतीं हैं ।
पर बेटा शादी के बाद जब तुम अपने पति के साथ अलग रहोगी जहां तुम लोगों का जॉब होगा तब कैसे मेनेज करोगी।
थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोली क्या कुक रखने से काम नहीं चलेगा।
कुक को भी तो बताना पड़ता है क्या बनाना है।जब तुम्हें कुछ मालूम ही नहीं है तो उससे कैसे काम करवाओगी।
बात तो आपकी सही है आंटी पर तब का तब देखेंगे क्या होगा अभी तो ऐसा कुछ सोचा नहीं है।
उसकी बातें सुन माधुरी जी काफी निराश हो गईं। फिर भी उन्होंने शुक्ला जी से कहा भाईसाहब बच्चों को भी बात करने का मौका दें।
हां हां क्यों नहीं स्वाति नितिन को अपने कमरे में ले जाओ वहीं बैठ कर इत्मीनान से बातें करो।
नितिन जब स्वाति के कमरे में गया तो कमरे की हालत देख कर स्तब्ध रह गया। पूरा कमरा अस्त-व्यस्त था। कहीं गंदे कपड़े पड़े थे।
नाश्ते की प्लेट भी वहीं टेबल पर किताबों के बीच पड़ी थी। किताबें भी कहीं टेबल पर, कहीं बेड पर बिखरी पड़ीं थीं। उसने जल्दी से कुर्सी पर से टॉवल हटाते हुए नितिन को बैठने को बोला और स्वयं पलंग पर कुछ जगह बना कर वहां बैठ गई, और सफाई देते हुए बोली आज मम्मी को समय नहीं मिला तो कमरा व्यवस्थित नहीं हो पाया।
नितिन बोला क्या तुम अपना कमरा भी मम्मी से साफ करवाती हो।
हां , मेरे कॉलेज जाने के बाद मम्मी पीछे से सब साफ़ और व्यवस्थित कर देतीं हैं।
नितिन को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि वह अपना कमरा स्वयं व्यवस्थित करता था। सुबह जल्दी उठने की आदत थी और सुबह की चाय वही बनाता था।
कुछ देर तक इधर-उधर की बातें करने के बाद वे ड्राइंगरुम में आ गए।
माधुरी जी ने उत्सुकता से उसकी ओर देखा तो वह कुछ नहीं बोला।
विनीता जी ने आखिर पूछ ही लिया बेटा स्वाति पसंद आई।
हां आंटी थोड़ा सोचने का समय दें। मम्मी अब चलें। हां बेटा चलो।हम आपस में सलाह कर आपको जबाब देते हैं कहकर परिवार रवाना हो गया।
रास्ते में कार में ही उन्होंने नितिन से पूछा बेटा क्या विचार है तुम्हारा।
मम्मी देखने में तो स्वाति अच्छी है किन्तु उसके रहने का तरीका, आदतें मेरे से एक दम भिन्न है। कैसे मेल खाएंगे।न वह कोई काम करना जानती है। चाय तक तो उसने आज तक नहीं बनाई।न सुबह समय पर उठेगी तो कैसे मैनेज होगा।उसका कमरा तक तो मम्मी साफ करतीं हैं तो आप ही बताइए वह घर में क्या करेगी। मम्मी मैं तो एडजस्ट नहीं कर पाऊंगा फिर जैसा आप लोग उचित समझें।
पापा बोले घर में रहेगी तो सीख जाएगी।
मम्मी कितना सीखेगी जब उसकी इच्छा होगी तब न।वह सुबह उठ नहीं सकती आगे कैसे सम्हालेगी।कल को बच्चे भी
होंगे तो कौन उन्हें देखेगा उससे ज्यादा काम तो मैंने अपने बेटे को सिखाया है।
वे अभी सोच -विचार में ही थे किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहे थे कि चार दिन बाद शुक्ला जी का फोन आ गया। अब तक तो आपकी बातें हो गई होंगी क्या निर्णय रहा भाईसाहब अवगत करायें।
उन्होंने फोन माधुरी जी को पकड़ा दिया बताओ।
वे बोलीं भाईसाहब स्वाति बेटी हमें बहुत पसंद आई उसमें कोई कमी नहीं है किन्तु फिर भी हम यह संबंध करने में इच्छुक
नहीं है कारण उसकी आदतें, व्यवहार उसके एक कुशल गृहिणी, पत्नी, मां बनने में बाधक हैं।काश विनीता बहन और आपने बेटी को बेटी की तरह ही पाला होता। उसे जीवन की सच्चाई से रूबरू कराया होता। जीवन में आवश्यक कार्य करने सिखाये होते। उसे आत्मनिर्भर बनाया होता ये क्या बात हुई कि बेटे की तरह पाला है।
मैंने तो अपने बेटे को भी घरेलू छोटे-मोटे आवश्यक कार्य सिखाये हैं। क्योंकि अब जमाना बदल गया है बेटे-बेटी दोनों काम काजी होते हैं सो पहले की तरह नहीं चलेगा कि केवल पत्नी ही घरेलू कार्यों के लिए जिम्मेदार हो।
आजकल बच्चे मिल कर काम करते हैं सो बेटों को भी कुछ काम आना चाहिए । आपने तो बेटी कुछ न सिखाकर उसकी ज़िन्दगी में स्वयं कांटे बिछा दिए। कैसे वह अपने वैवाहिक जीवन को निभा पाएगी और जब वह नहीं कर पाएगी तो उससे दूर भागना चाहेगी जिसकी परिणति तलाक के रूप में होगी माफ कीजिए यदि मैंने कुछ ज्यादा बोल दिया हो। किन्तु ठंडे मन से आप मेरी बात पर विचार अवश्य करें ।
स्वाति जैसे आपकी बेटी है मेरी भी है। उच्च शिक्षा, अच्छी नौकरी की जितनी जीवन में अहमियत हैं उतनी ही अहमियत जीवन में छोटे -छोटे कार्यों में आत्मनिर्भर बनने की भी है जिससे जीवन सुचारू रूप से चल सके। हमें ऐसी ही आत्म निर्भर लड़की की तलाश है जो मेरे बेटे के साथ जीवन में कंधे से कंधा मिलाकर चल सके जिससे उनकी गृहस्थी की गाड़ी डगमगाए नहीं।
यह संबंध न होने का हमें भी अफसोस है मैं स्वाति बेटा के सफल जीवन की कामना करती हूं। यदि आप लोग प्रयास करें तो थोड़ा बहुत सिखाना अभी भी संभव है।
यह जीवन के प्रति मेरी सोच है। यदि आपको बुरा लगा हो तो मैं पुनः क्षमा प्रार्थी हूं।
शिव कुमारी शुक्ला
जोधपुर राजस्थान
2-9-25
स्व रचित एवं अप्रकाशित
लेखिका बोनस प्रोग्राम **तृतीय कहानी