आँसुओं के पीछे की हँसी – डॉ० मनीषा भारद्वाज :  Moral Stories in Hindi 

बाहर जम कर बारिश हो रही थी और अंदर वर्मा कम्पनी  के कार्यालय में सन्नाटा छाया है। खबर फैली है कि अत्यंत कठोर बॉस, श्री हरिश्चंद्र वर्मा का हृदयाघात से निधन हो गया है। नवीन, एक महत्वाकांक्षी उप-प्रबंधक, अपने कक्ष में खड़ा खिड़की से बाहर झरते मेघों को देख रहा है। उसका चेहरा शोक से मुरझाया है, परन्तु आँखों के कोनों में एक अजीब सी चमक है।  तभी उसका सहकर्मी और मित्र, राजीव, अंदर आता है।  

राजीव  दुःखी होकर बोला – नवीन… अभी अभी खबर आई। सच में… अकल्पनीय है। क्या कहूँ?  नवीन ने गहरी सांस लेते हुए, आँखें पोंछता हुए कहा – हाँ राजीव… हम सबके लिए एक अपूरणीय क्षति है। श्री वर्मा साहब… उसकी आवाज भरा गई  वह न सिर्फ़ बॉस थे, हमारे मार्गदर्शक थे। एक स्तम्भ टूट गया।  

राजीव बोला – सच कहा। उनकी दूरदर्शिता…  

नवीन ने राजीव के कंधे पर हाथ रखा और अचानक उत्साहित स्वर में बोला- बिल्कुल! और उसी दूरदर्शिता ने ही इस कंपनी को यहाँ तक पहुँचाया। याद है राजीव? पिछले प्रोजेक्ट पर उनका कितना भरोसा था हम पर…  

नवीन की आँखों से एक आँसू गिरता है, परन्तु उसके होंठों पर अनजाने में एक छोटी सी रेखा खिंच जाती है। राजीव उसे गौर से देखता है । 

राजीव ने सतर्क स्वर में कहा – हाँ… पर नवीन, तुम्हारी बात में एक अजीब सा उत्साह है?  

नवीन थोड़ा चौंककर, फिर शोक का मुखौटा चढ़ाते हुए बोला उत्साह? अरे नहीं राजीव! ये तो… संस्मरणों का भावावेग है। सोच रहा था, उनकी सीख हमेशा हमारे साथ रहेगी। इसके साथ एक और आँसू बहाता है ।

राजीव धीरे से बुदबुदाया  मानो तुम एक आँख से रो रहे हो और दूसरी से… कुछ और ही देख रहे हो।  

नवीन तिलमिलाकर बोला  ये कैसी बात करते हो राजीव! इस समय? श्रद्धा का समय है। मैं तो सोच भी नहीं सकता कि अब कंपनी का नेतृत्व कौन संभालेगा? ये सबसे बड़ी चिंता है।  

शाम ढलते ही वातावरण बदलता है। श्री वर्मा के निधन की खबर के बाद भी, नवीन ने शहर के एक उच्चस्तरीय रेस्तराँ में अपनी पदोन्नति के उपलक्ष्य में एक ‘छोटी सी’ गोपनीय पार्टी आयोजित की है। चमकदार लाइटें, उत्साही संगीत और हँसी-ठिठोली का माहौल है। नवीन, जिसकी आँखें अभी भी थोड़ी लाल हैं, एक कोने में अपने करीबी सहयोगी अमित के साथ खड़ा है। उसके चेहरे पर अब शोक नहीं, विजय की चमक है।  

अमित ने चमकते गिलास उठाते हुए कहा – बधाई हो बॉस! आखिरकार, ये पद तुम्हारे ही हक़ का था। वर्मा साहब… अब उनकी आत्मा को शांति मिले।  

नवीन फूले न समाते हुए, आवाज़ में उत्साह से भर कर पर थोड़ा गंभीर होकर  कहा – धन्यवाद अमित! हाँ, भगवान उनकी आत्मा को शांति दें। लेकिन सच कहूँ? थोड़ा कम आवाज़ में लेकिन झुककर बोला- एक बड़ी बाधा हटी है। वे हमेशा नए विचारों के आड़े आते थे। अब… अब मेरी दृष्टि साकार होगी!  

अमित हल्का सा ठिठका और कहा – पर सुबह तो तुम… बहुत दुखी लग रहे थे। तुम्हारे आँसू…  

नवीन हल्के से हँसते हुए, एक आँख की पलक झपकाते हुए बोला- अमित! ये जीवन का खेल है। शोक प्रकट करना भी एक कला है। सुबह वाला दुःख… सामाजिक अपेक्षा थी। कंपनी की संस्कृति के लिए ज़रूरी था। उसने अपने गिलास को घुमाते हुए फिर से कहा – ये मेरी सच्ची खुशी है! एक आँख शोक से भीगी, तो दूसरी अवसर की रोशनी से चमकी। क्या बुराई है?  

अमित असहज होकर बोला  पर नवीन… सच्चाई? भावनाओं का दोहरापन है यह तो…  

तभी दूर से राजीव नवीन को देखता है। उसकी हँसती हुई आँखें और उत्साहित चेहरा सुबह के शोकसंतप्त व्यक्ति से बिल्कुल भिन्न हैं। राजीव का चेहरा घृणा और करुणा से भर जाता है। वह पास आता है।  

राजीव ठंडी, कटु आवाज़ में बोला – तो यहाँ जश्न चल रहा है, ‘बॉस’? सुबह जिस व्यक्ति के लिए आँसू बहा रहे थे, उसकी राख भी अभी तक शायद ठंडी नहीं हुई होगी।  

नवीन ने  फिर से मुखौटा चढ़ाते हुए कहा  (लेकिन उत्साह छिपा नहीं पाया ) -राजीव! तुम भी आ गए? ये कोई जश्न नहीं… बस… कुछ करीबी लोगों को धन्यवाद दे रहा था। और वर्मा साहब… वे तो हमेशा मेरे दिल में रहेंगे। एक नकली गहरी सांस लेता है।  

राजीव तीखे स्वर में बोला- बस करो नवीन! ये नाटक बंद करो। देखो अपने चेहरे को! सुबह की लाल आँखें अब चमक रही हैं। वो आँसू… क्या वो भी उसी तरह पूर्वनियोजित थे जिस तरह ये पार्टी? क्या इंसानी रिश्ते, इंसानी शोक भी सिर्फ़ पद और लाभ के लिए हथियार हैं?  

नवीन रूखे स्वर में राजीव से कहता है – तुम भावुकता की बात करते हो। ये व्यापार की दुनिया है। भावनाएँ एक लक्जरी हैं जो हम वहन नहीं कर सकते। मैंने वह किया जो परिस्थिति ने मांगा। दिखावा? शायद। पर इसी दिखावे ने मुझे यहाँ पहुँचाया।  

राजीव उदासी से सिर हिलाते हुए कहता है –  पहुँचाया? या तुम्हारी आत्मा को एक और परत के मुखौटे से ढक दिया? एक आँख से सच का आँसू बहाना और दूसरी से झूठ की मुस्कान छिपाना… ये किस उद्देश्य की पूर्ति है, नवीन? क्या यही जीवन की सच्चाई है? कि सफलता के लिए अपनी मानवता को ही कुर्बान कर दो?  

राजीव बिना कुछ कहे मुड़ता है और चला जाता है। उसके जाने के बाद का सन्नाटा नवीन पर भारी पड़ता है। पार्टी का शोर अचानक खोखला लगने लगता है। नवीन शीशे के सामने खड़ा होता है। शीशे में वह अपने चेहरे को देखता है – थोड़ी सी लालिमा जो शोक का अवशेष हो सकती थी , और आँखों में वह चमक जो उपलब्धि की थी पर अब संदेह से डगमगा रही थी। 

नवीन अपने प्रतिबिंब से धीरे से बात करते हुए -एक आँख रोई… एक हँसी। पर क्या वो आँसू सच में थे? या सिर्फ़ सामाजिक नाटक का सजीव प्रदर्शन? और ये हँसी… क्या ये सच्ची प्रसन्नता है?  राजीव ने पूछा… ये किस उद्देश्य के लिए?  प्रतिबिंब में उसे सुबह रोते हुए अपना चेहरा और अब हँसता हुआ चेहरा एक साथ दिखाई देता है – एक विचित्र, विभाजित चेहरा।

नवीन करुण स्वर में कहता है क्या जीवन का उद्देश्य सिर्फ़ इस शिखर पर पहुँचना था? इस कीमत पर? जहाँ तुम्हारी खुशी भी एक अभिनय बन जाए? जहाँ सच्चा दुःख और सच्चा आनंद दोनों ही दफ़न हो जाएं… सिर्फ़ दिखावे की सफलता के नीचे? शायद… शायद राजीव सही था। इस आधी रोती, आधी हँसती दुनिया में… मैंने जीत तो देखी, पर अपनी आत्मा की आवाज़ कहीं गुम कर दी। और यह विजय…  यह किस चीज़ की विजय है?  

वह शीशे से मुंह फेर लेता है, उसकी आँखों में अब एक गहरी खालीपन और एक नया, भयावह प्रश्न था। बाहर बारिश अब भी झर रही थी, जैसे स्वयं आकाश ही उसकी सुबह के उन दिखावटी आँसुओं को सच्चाई से धो रहा हो।

डॉ० मनीषा भारद्वाज 

ब्याड़ा (पंचरुखी) पालमपुर

हिमाचल प्रदेश

Dr. Manisha  Bhardwaj

#मुहावरा प्रतियोगिता – एक आँख से रोने एक आँख से हँसे

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