दान – पुष्पा कुमारी “पुष्प” : Moral Stories in Hindi

“आप मुझे पाँच रुपए उधार दे सकती हैं क्या?”

बस का टिकट पंद्रह रूपए का था और उस लड़के के हाथ में उस इकलौते दस के नोट के अलावा उसके बटुए से एक पाँच सौ का नोट भी झांँक रहा था।

इधर बस कंडक्टर उसे पाँच रूपए के बदले पाँच सौ का छुट्टा देने को तैयार नहीं था।

बस कंडक्टर के इनकार करने के बाद उस लड़के ने बस के भीतर नजर दौड़ाई और आसपास के सीट पर बैठे सहयात्रियों से पाँच रूपए की मदद या पाँच सौ के छुट्टे की गुहार लगाई। लेकिन किसी ने आगे बढ़कर उसकी मदद नहीं की।

अंततः हार थककर वह पिछली सीट पर बैठी अपने मोबाइल पर नजरें गड़ाए सविता कि ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा था।

किसी और की तो पता नहीं लेकिन सविता के पर्स में सौ-पचास के कई नोटों के अलावा पाँच रूपए के दो सिक्के भी मौजूद थे। लेकिन उस लड़के की गुहार को अनसुनी कर वह अपनी सीट पर बैठी मोबाइल की स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रही।

तभी बस एक हल्के झटके के साथ एक स्टॉप पर रुक गई कई सहयात्री उतर गए और साथ ही साथ कुछ यात्री  उस बस पर सवार भी हुए।

बस में अभी-अभी सवार हुए यात्रियों में एक बुजुर्ग महिला भी थी।

बस में कोई खाली सीट ना देख वह बुजुर्ग महिला एक सीट का सहारा ले चलती बस में अपने लड़खड़ाते कदमों पर टिक कर खड़े रहने की भरसक कोशिश कर रही थी।

उस बुजुर्ग महिला पर नजर पड़ते ही वह लड़का जो अभी-अभी बस में मौजूद सहयात्रियों से पांँच रुपए की मदद मांग रहा था अपनी सीट छोड़ उठ खड़ा हुआ…

“अम्मा! आप यहांँ बैठ जाइए।”

आसपास सीट पर बैठे अन्य सहयात्री उस लड़के की दरियादिली देख कर भी अनदेखा किए अपनी-अपनी सीट पर जमे रहे।

सबसे पिछली सीट पर बैठी सविता भी उड़ती निगाहों से उस हमउम्र लड़के की दरियादिली को बेवकूफी का दूसरा रूप समझ मन ही मन यह सोच कर मुस्कुराई कि…

“आखिर टिकट लेकर बस में चढ़ा यात्री अपनी जमी-जमाई अच्छी-भली सीट किसी को यूंँही कहीं दरियादिली में देता है भला!”

तभी आसमान में बिजली कड़कने की आवाज सुनकर सविता ने बस से बाहर नजर दौड़ाई, बाहर बारिश शुरु हो चुकी थी।

अचानक अपने बड़े साइज के साइड बैग में हाथ डाल कुछ टटोलती सविता को याद हो आया कि उसकी छतरी तो ऑफिस में ही छूट गई है।

बाहर तेज बारिश शुरू हो गई थी और इधर स्टॉप पर पहुंचकर बस रुक गई थी।

हैरान-परेशान सविता अपने दुपट्टे का आंचल ओढ़े तेजी से बस से उतर कर बस स्टॉप के शेड़ के नीचे आ खुद को भींगने से बचाने का असफल प्रयास करने लगी।

वहां उस शेड़ के नीचे पहले से ही मौजूद अपने-अपने बस का इंतजार करते यात्रियों की भीड़ में राई रखने भर की जगह नहीं थी।

तभी सविता की नजर बस में उसके साथ ही सफर करने वाले उस हमउम्र सहयात्री पर गई।

अभी-अभी तेज हो चुकी बारिश में हाथ में छाता थामें वह भी उसके साथ ही उस बस से वहां उस नुक्कड़ पर उतारा था।

अचानक तेज बारिश और छतरी ऑफिस में ही छूट जाने के अहसास के साथ बस से उतर अपने दुपट्टे का आंचल ओढ़ उसे बारिश की बूंदों से बचने का असफल प्रयास करता देख वह लड़का अपनी छतरी उसकी ओर बढ़ाते हुए अचानक बोल उठा…

“सिस्टर! आप हमारी छतरी में आ जाइए।”

गलत-सही का विचार किए बिना वो बदन को सराबोर करती बारिश से बचने के लिए उसकी छतरी के भीतर आ गई।

वैसे तो वह दोनों उसी बस-स्टॉप से हर रोज अपने-अपने दफ्तर के लिए बस पकड़ते थे लेकिन दोनों एक दूसरे के लिए बिल्कुल अजनबी थे।

फिर भी उस हमउम्र लड़के ने बिना एक पल गंवाए उस भारी बारिश में भी अपनी छतरी उसे थमाकर कंधे पर लटके दफ्तर के बैग में से एक पन्नी निकाल उसमें झटपट अपने मोबाइल को लपेट यह कहते हुए उस छतरी से निकल गया की…

“मुझे यहां कुछ जरूरी काम है! आप यह छतरी लेकर अपने घर जाइए।”

निश्चय ही सविता उसकी छतरी अगले दिन लौटा देती फिर भी उसके पर्स में मौजूद सिक्के आपस में खनक कर उसका मखौल उड़ा रहे थे। 

उस घनघोर बारिश में एक अजनबी द्वारा उसके एकमात्र छतरी का दान पाकर वह स्तब्ध थी। छतरी थामें नुक्कड़ पर खड़ी वह उस उस दरियादिल अजनबी को तेज कदमों से सड़क पार कर एकमात्र खुली चाय की दुकान की ओर जाते हुए देखती रही।

#दान / (एक कहानी)

पुष्पा कुमारी “पुष्प”

 पुणे (महाराष्ट्र)

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