बेटियां -वीरेंद्र बहादुर सिंह 

राजेश सिंह के यहां जब तीसरी बेटी अस्तु पैदा हुई तो उनकी मां सीमा देवी नर्सिंग होम की सीढियां चढ़ कर बहू स्मिता का हालचाल पूछने पहुंच गईं। उम्र होने की वजह से सीढ़ियां चढ़ने में वह थक गई थीं। फिर भी हांफते हुए वह बहू के पलंग तक पहुंच ही गई थीं। सास की हालत देख कर स्मिता परेशान हो उठी थी। उसने आदरपूर्वक कहा, “मां, आपने इतनी तकलीफ क्यों उठाई। आप न भी आतीं तो भी चलता।”

“नहीं बहूबेटा, आज तो तुम्हारा हालचाल पूछने आना जरूरी था।” सीमा देवी ने प्यार से स्मिता के सिर पर हाथ फेरते हुए गदगदित स्वर में कहा, “दो बेटियों के बाद तुम ने बेटे को जन्म दिया होता और मैं तुम्हारा हालचाल पूछने न आती तब चलता। पर तुम ने तीसरी बार भी बेटी को जन्म दिया है, इसलिए आई हूं। क्योंकि तुम्हें यह नहीं लगना चाहिए कि मुझे अच्छा नहीं लगा। तीसरी बेटी पैदा होने से तुम्हारा मन दुखी न हो, इसलिए मेरा आना जरूरी था।” 

“मां।” कह कर स्मिता खुश हो गई। केवल स्मिता ही नहीं, मां की बात सुन कर राजेश भी भावविभोर हो उठा था। दो बेटियां पैदा होने के बाद वह परिवार नियोजन के बारे में सोचने लगा था। पर मां के आग्रह पर उसने तीसरे बच्चे के बारे में विचार किया था। बेटा हो जाए तो अच्छा, न भी हो तो उसके लिए दुखी होने का सवाल ही नहीं उठता। धार्मिक प्रवृत्ति वाली सीमा देवी हमेशा कहतीं, “अपने हाथ में कुछ नहीं है। सब कुछ ईश्वर के अधीन है।” 

मां की इस बात को राजेश और स्मिता तख्ती की तरह मन में चिपका लिया था। मां के ये शब्द हमेशा दिशा दिखाते रहते थे। राजेश के व्यक्तित्व पर मां का पूरा प्रभाव था। पिता की मौत के बाद वह बचपन से ही मां के प्रभाव में रहा था। चचेरे भाई के प्रभाव में आकर उसमें रचनात्मक काम करने का

शौक जागा था। सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद इंटीरियर डिजाइनिंग करने लगा था। स्मिता के साथ विवाह करने के ढाई साल बाद राजेश पिता बने तो जिनके यहां काम करते थे, उन्होंने कहा था, “आपके यहां तो लक्ष्मी पधारी हैं। पहले बेटी आई है तो पैसा भी आएगा।”

उस बेटी का नाम रखा था प्राची। उसके पैदा होने के डेढ़ साल बाद दूसरी बेटी देवी पैदा हुई थी। प्राची के जन्म के साथ ही एक ज्योतिषी के कहे अनुसार, राजेश का भाग्योदय हुआ था। तीसरी बेटी अस्तु के पैदा होने के साथ ही ‘अस्तित्व’ होटल का जन्म हुआ था। बेटियों के बड़ी होने के साथ ही होटल

अस्तित्व की लोकप्रियता भी बढ़ती गई थी। तीन बेटियां होने के बावजूद राजेश ने कभी बेटे के बारे में नहीं सोचा। मां के शब्द हमेशा कान में गूंजते रहते थे, “अपने हाथ में कुछ नहीं है…”

जबकि अपने हाथ में जितना था, उतना राजेश ने मुसकराते हुए हमेशा बेटियों के लिए किया। तीनो बेटियों को उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित किया और हिम्मत दी थी। सात्विक भोजन का आग्रह किया और जीवन में उन्हें क्या करना है, इस बारे में उन्हेने कभी किसी तरह का दबाव नहीं डाला।

परिणामस्वरूप तीनों बेदियां अपनी अपनी तरह से, अपने अपने क्षेत्र में, अपनी अपनी काबलियत दिखाने में सफल रहीं। राजेश ञब शहर से बीस किलोमीटर दूर अपने फार्महाउस में रहते थे तो देवी जीप से अकेली शहर पढ़ने जाती थी। एक दिन देवी ने राजेश से कहा, “रास्ते मे मुझे कुछ हो जाए तो…?”

“बेटा, तुम ने झांसी की रानी के बारे में तो पढ़ा है न?” राजेश ने कहा, “गाड़ी में एक डंडा रखो। जिंदगी में मौत एक ही बार आती है। हिम्मत मत हारना।”

पिता की बात देवी ने मान ली। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ा। 

प्राची और देवी को नृत्य का शौक था। किसी ने कभी रोका नहीं। सीमा देवी का प्रभाव तीनों बेटियों पर भी था। लेकिन सब से छोटी पर कुछ अधिक। सभी का स्वभाव सेवाभाव का था। देवी तो किसी के हक के लिए लड़ने में जरा भी नहीं हिचकती थी। पर थोड़ा समझाने पर मान जाती। किसी की मदद करने का समय आता तो अपना काम छोड़ कर चली जाती। तोनों बेटियों ने मां को अपनी सास की सेवा करते देखा था, इसलिए उनमें भी यह गुण आ गया था। 

पढ़ाई के दौरान प्राची का परिचय परेश के साथ हुआ था। प्राची और परेश ने विवाह के बारे में सोचा। एक दिन प्राची ने राजेश से कहा, “पापा, मैं आपको एक व्यक्ति से मिलवाना चाहती हूं।”

“तो मिलवाओ न।” राजेश सिंह समझ गए। परेश मिलते ही उन्हें पसंद आ गया। उनकी कुंडली भी मिल गई। इंटीरियर डिजाइनर परेश और प्राची का विवाह हो गया। प्राची के विवाह में अस्तित्व के स्टाफ ने एक पैर खड़े हो कर काम किया। राजेश को उसी समय नहीं, उसके बाद भी कभी बेटे की कमी महसूस नहीं हुई। देवी का बिजनेसमैन प्रणव और अस्तु का टेक्सटाइल उद्योग से जुड़े चिराग के साथ विवाह हो गया।

बेटियों के विवाह के बाद घर सूना सूना लगने लगा। भले ही राजेश पहले से ही सोच रहे थे कि एक न एक दिन बेटियां विवाह के बाद ससुराल चली जाएंगीं। सारे मेहमान विदा हो गए। उनकी अनुपस्थिति में अहसास हुआ कि बेटियां तो बचपन से लेकर जवानी तक बाप की आंखों के सामने होती हैं। बेटी

के पैदा होते ही बाप के सिर में एक चैनल शुरू हो जाता है कि बेटी कैसी होगी? खूबसूरत होगी या बदसूरत होगी? नाजुक होगी? चालाक होगी? कैसे पढ़ेगी? कैसी सहेलियां मिलेंगी? धार्मिक होगी? शादी के बाद कैसी ससुराल मिलेगी? सुखी तो रहेगी न? इसी तरह के सवाल राजेश के दिमाग में भी चला करते थे और हर वक्त दिमाग में मथते रहते थे।

घर में जो होता है, बेटों-बेटियों के लिए दर्पण बन जाता है। माता-पिता का बात व्यवहार देख कर बच्चे सीखते हैं। राजेश ने इस बात को सहजता से स्वीकार कर लिया था। उन्होंने और उनकी पत्नी ने अपनी मां के लिए जो किया था, उससे उनकी बेटियां कुछ सीखें और ब्याह कर जिस घर में जाएं, उनके लिए कुछ कर गुजरने के बारे में सोचें।

बेटियों के ब्याह के समय ज्यादातर माता पिता की मानसिक स्थिति एक जैसी होती है। एक तो अपने यहां से जाती हैं उसका दुख, दूसरे जहां जाती हैं, वहां सुख नहीं मिला तो उसकी चिंता। राजेश और उनकी पत्नी स्मिता ने भी ऐसी ही किसी मानसिक स्थिति का सामना किया था। वे भले ही जानते थे

और मानते थे कि बेटियों के ससुराल जाने बाद घर खाली-खाली लगता है। बेटियों के साथ बिताया एक एक पल आंखों के सामने से चलचित्र की तरह खिसकता दिखाई देता है। बेटियों में प्रेम, स्नेह,

जिम्मेदारी और सहनशीलता का भाव अधिक होता है। उस भाव में डूब कर मां-बाप के साथ व्यवहार करती हैं। राजेश को हमेशा बेटियों के साथ बिताए पलों का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से कभी वह गुमसुम हो कर काम में व्यसाथ होने की कोशिश करते तो कभी आंखों में आंसुओं के तोरण बांध कर यादों में डूबे रहते।

तीसरी बेटी अस्तु का विवाह हुआ था तो राजेश के हृदय को दो बातें छू गई थीं। प्राची और देवी के बाद अस्तु भी ससुराल चली जाएगी? अस्तु के ससुर से गदगदित स्वर में कहा था, “मेरी बेटी से कोई गलती हो तो मुझसे कहिएगा। पर उसे संभालना। और दूसरी बात, मैंने विवाह न किया होता तो आज किसी जीव को दुखी न करना पड़ता। 

दो दिनों तक तो राजेश गंभीर रहे। बेटियों को फोन कर के दिल को समझाते रहे और मां के शब्दों को याद करते रहे कि ‘अपने हाथ में कूछ नहीं है, सब ईश्वर के अधीन है।’

वीरेंद्र बहादुर सिंह 

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