डोली आ गई, माँ जल्दी करो, भाभी भैया कार से उतर चुके है, अभी तक आरती की थाल तैयार नहीं हुई, चलो हटो,
तुमसे न होगा
पूनम लगातार बोले जा रही थी। उसने फटाफट माचिस से दिए को जगाया। माँ को माचिस ही नहीं मिल
रही थी, बारात में जाते समय मेड संतोष को बोल के गए थे कि जब वो फ़ोन करे तो सब सामान तैयार रखे, लेकिन
संतोष बेचारी भी क्या करे, शादी वाला घर, इतने सारे काम। कोई उसे यहाँ आवाज़ लगा रहा है तो कोई वहाँ। किसी
को कुछ नहीं मिल रहा तो किसी को कुछ। काम वालियां तो दो और भी हैं, पर संतोष घर की पुरानी नौकरानी है। उसे
सब पता है, किसी की क्या ज़रूरत है, कौनसी चीज़ कहाँ पर रखी है, फिर भी कहीं न कहीं गड़बड़ हो ही रही है।
नई बहू रिनी का गृह प्रवेश हो गया। सब अच्छे से निबट गया। धीरे धीरे सब मेहमान भी चले गए। वैसे तो
शादी के लिए तीन दिन कहीं बाहर बुकिंग थी, सभी रस्में वहीं पर हुई। घरों में इतनी जगह भी नहीं होती और
आजकल यही चलन में है। कांतां प्रसाद के इकलौते बेटे वैभव की शादी बहुत धूमधाम से हुई । शादी में उनके भाई
और दो बहनों के परिवार के इलावा बहुत से रिशतेदार और मित्र भी शामिल हुए। माँ भावना के तो पाँव ही ज़मीन पर
नहीं पड़ते थे, और वैभव की दोनों छोटी बहने पूनम और पल्लवी भी बेहद खुश थी। भाभी के रूप में एक सहेली जो
मिल गई थी।दोनों बहने हर समय भाभी के आगे पीछे घूमती, उसकी हर ज़रूरत का ध्यान रखती। जलदी ही घर में
पीहू और साहिल का जन्म हो गया। दादा दादी की झोली तो जैसे ख़ुशियों से भर गई।
समय अपनी गति से चलता रहा। अगले कुछ सालों में पूनम और पल्लवी की भी शादी हो गई। पूनम तो उसी
शहर में थी, जबकि पल्लवी के ससुराल दूसरे शहर में थे। शादी के कुछ साल बाद तो पूनम और पल्लवी मायके काफी
आती रहती, लेकिन फिर कुछ कम हो गया और बाद में तो जैसे छूट ही गया। कुछ तो घर गृहस्थी की व्यस्तता और
कुछ रिशतों में दूरियाँ। समय के साथ साथ कांता प्रसाद और भावना बूढ़े हो चले थे। रिटायर तो कब के हो चुके थे।
उनकी पैंशन नहीं थी। एकमुश्त पैसा मिला तो छोटी बेटी की शादी में खर्च हो गया। वैभव और पूनम की शादी तो
उनकी नौकरी में ही हो गई थी, मगर पल्लवी की शादी बाद में हुई। एफ. डी. का ब्याज आ जाता था। भगवान का
शुक्र था कि ख़ुद का अच्छा, बड़ा और खुला मकान था। बढ़िया मान सम्मान वाला मध्यम वर्गीय परिवार था।
बात करते है बहू रिनी की। अच्छे घर की सुंदर, पढ़ी लिखी लड़की थी। तीन बहने और दो भाईयों में
मंझली थी। मायका उसी शहर में था। ससुराल में उसे भरपूर प्यार मिला। कहीं कोई कमी नहीं। दोनों बच्चों के जन्म
के समय हर तरह से उसका पूरा ख़्याल रखा गया था। शादी से पहले और कुछ समय बाद भी उसने प्राईवेट नौकरी
की थी, लेकिन बच्चों के बाद सब छूट गया। वैभव की अच्छी तनख़्वाह थी। रिनी का सारा परिवार उसी शहर में ही
था। यानि की दोनों बहनें , और दोनों भाई । एक भाई अलग रहता था और एक माँ बाप के साथ । पहले पहल तो
सब ठीक रहा लेकिन अब रिनी के स्वभाव में परिवर्तन होने लगा। चूँकि सास ससुर अब बूढ़े हो चले थे और और ससुर
की आमदन भी बहुत कम थी। उम्र के साथ साथ दवाइयों का खर्च भी बढ़ जाता है, और शरीर में ताकत कम हो जाती
है।
अब उसे नन्दों का आना भी नहीं सुहाता था। दोनों के दो दो बच्चे थे। पूनम तो लोकल ही थी तो
अक्सर आना जाना लगा रहता। भाभी के बदलते तेवर देखकर उसने अब आना बहुत कम कर दिया था, बेटियों का
मायके से मोह होना स्वाभाविक ही है। जहाँ उम्र के इतने साल गुज़ारे हो, वहाँ जाने का मन तो होता ही है। और फिर
माँ बाप को मिलने का मोह छूटे भी तो कैसे। पहले तो वो सपरिवार जाती थी, कई बार तो माँ उसके सास ससुर को
भी खाने पर बुला भेजती पर बदलते हुए हालात को देखकर वो अकेली ही एक दो घंटों के लिए आती । बच्चे जब
नाना नानी से मिलने की बहुत ही जिद करते तो लेकर आती और जलदी ही चली जाती। पीहू और साहिल बुआ के
बच्चों के साथ मिलकर बहुत खुश होते, खूब खेलते, मगर वो खुशी थोड़ी देर की होती। अब चार बच्चे इकटठ्ठे होंगे तो
धमाचौकड़ी मचाना, सामान इधर उधर फैलना थोड़ी बहुत गंदगी मचाना भी होगा, मगर रिनी से यह सब सहन न
होता। वो पूनम को बच्चों को तो कुछ न कहती, सारा ग़ुस्सा अपने बच्चों पर निकालती। यहाँ तक कि पिटाई भी कर
देती। पूनम सब समझती थी, इसलिए उसने आना जाना लगभग बंद ही कर दिया था। कई बार ममी पापा को कहा
कि वो उसके घर कुछ दिन चल कर रहें, लेकिन इस बात के लिए वो कभी तैयार न होते।
पूनम की ममी तो कभी कभार बेटे के साथ जा आई लेकिन पापा तो कभी दिन त्यौहार देने ही
गए होगें। रिनी भी बहुत कम जाती थी। बस यूँ समझो कि किसी के जन्मदिन या फिर राखी दीवाली पर ही रिशते
निभाने की रस्म अदा होती। जरूरी काम के लिए मोबाईल होता ही है। पल्लवी चूँकि दूसरे शहर में थी तो बच्चों की
छुट्टियों में आठ दस दिन के लिए आ जाती थी। रिनी से जब मेहमान नवाजी बर्दाश्त न होती तो वो किसी बहाने से
बच्चों को लेकर मायके चली जाती। एक दो बार जब ऐसा हुआ तो पल्लवी सब समझ गई। पहले तो जब पल्लवी
आती तो पूनम भी आ जाती। सब बच्चे बड़े कितने खुश होते थे। ममी पापा के चेहरे तो नाती पोतों को देखकर जैसे
अपनी बीमारी ही भूल जाते।अब बच्चे है तो फ़रमाइशों भी होंगीं, घूमना फिरना भी होगा। बच्चों का मामा मामी से भी
बहुत लगाव था। रिनी पहले करती भी बहुत थी। पूनम पल्लवी भी घर के काम में पूरा हाथ बँटाती थी। पूनम को घर
के कामों का बहुत शौक़ था, सिलाई कढ़ाई भी जानती थी। रिनी को ऐसा कुछ नहीं आता था। भले ही बाजार से सब
कुछ मिलता है, लेकिन हाथ से बनी चीजों की बात ही और होती है।
दूसरी तरफ पल्लवी को पार्लर का काम आता था। वो खाली समय में पूनम, रिनी का फेशियल, बालों
की मसाज, नेल पेंट आदि करती। यहाँ तक कि माँ के मना करने पर भी उसके बालों में कलर, मेहंदी, पेडीक्योर भी
कर देती। आठ दस दिन खुशी खुशी बीतते, फिर पल्लवी के पति लेने आ जाते तो दो दिन जरूर रूकते। और भी रौनक़
बढ़ जाती। सब खुशी खुशी चल रहा था। लेकिन पिछले साल से वैभव की माँ की तबियत खराब रहने लगी तो घर का
माहौल कुछ बदल सा गया। जब वैभव, पूनम और पल्लवी की शादी नहीं हुई थी तो उन्की दोनों बुआ भी भाई के घर
आती जाती थी, लेकिन दादा दादी के मरने के बाद कम हो गया, फिर धीरे धीरे बंद हो गया। वैभव की शादी के बाद
वो कभी नहीं आई। कोरियर से राखी आ जाती और मनीआर्डर से पैसे भेज दिए जाते। उस जमाने में मनीआर्डर का ही
चलन था। धीरे धीरे पैसे भेजने भी बंद हो गए, मगर दोनों बुआ की राखी जरूर आती थी। वैभव का कई बार मन होता
कि बुआ को मिले, वो आए पर बेटियाँ तभी आती है जब उनकी क़दर हो।यह ठीक है कि समय के साथ साथ हर कोई
अपनी घर गृहस्थी में रम जाता है, मगर यादें तो मन में रहती ही है, और औरतों के मन से तो पीहर की यादें कभी
जाती ही नहीं।
रिनी के बदले हुए व्यवहार को देखते हुए पूनम और पल्लवी का आना भी बहुत कम हो गया था
और कुछ उनके बच्चे भी अब बड़े हो रहे थे, घर की ज़िम्मेवारी , बच्चों की पढ़ाई , समय ही कहाँ था। पूनम आती भी
तो कुछ घंटों के लिए। दूसरी तरफ अब रिनी के मायकें वालों का आना जाना बहुत बढ़ गया था। ख़ास तौर पर रिनी
की बहनों का। हर हफ़्ते ही उनका मिलना जुलना चलता रहता। कभी शापिंग , तो कभी किट्टी, या फिर किसी का
जन्मदिन, एनीवरसरी। वैभव को इन सब से कोई एतराज नहीं था, लेकिन बहनों के साथ रिनी का व्यवहार उसे अच्छा
नहीं लगता था। उसने कई बार राखी पर पल्लवी को बुलाना चाहा परंतु वो टाल जाती। माँ बाबूजी की बीमारी पर ही
वो दो चार बार आई। राखी पर भी पूनम के घर वैभव ही जा आता, वहीं पर ही वो अपनी और पल्लवी की और से भी
राखी बाँध देती। रिनी से बात करने का कोई लाभ नहीं था, क्योंकि जब भी उसने बात की, घर में क्लेश ही हो गया।
माँ पापा मन मसोस कर रह जाते, परंतु उन्होनें वैभव को समझा दिया था। इसी बीच पल्लवी के सास ससुर के देहांत
होने पर सबको जाना पड़ा। न चाहते हुए जग दिखावे के लिए रिनी भी गई। इसी बीच पूनम के घर भी साल में एक
दो बार दिखावे के लिए जाना पड़ता।
तीनों सगे बहन भाईयों में नाम मात्र के रिशते ही बचे थे। समय के साथ साथ पीहू और साहिल बड़े हो
गए थे। वैभव की माता जी भी भगवान के घर चली गई। पापा की भी उम्र भी काफी हो चली थी, लेकिन उन्की सेहत
काफी अच्छी थी। वो किसी से कम ही बात करते थे, बहुत मन होता कि बेटियों , नातियों से मिले, लेकिन जा नहीं
पाते थे। अकेले में कई बर बहन भाईयों की याद आती, मगर किससे कहते। इस बीच एक बहन भी चल बसी थी। एक
भाई बहन थे जिनसे कभी कभार फ़ोन पर बात हो जाती।उनके बच्चे भी अपनी जिंदगी में व्यसत थे।बाईस साल की
उम्र में ही पीहू की शादी तय हो गई। उन्हीं दिनों करोना का प्रकोप छा गया। बहुत ही सादे ढ़ग से शादी हुई। बहुत
कम लोग आए, पूनम और पल्लवी दोनों ही नहीं गई। रिनी को अब मन ही मन महसूस हुआ कि परिवार क्या होता
है। असली ख़ुशियों का मजा तो अपनों के साथ ही मिलता है। अब उसे लगा कि काश पीहू की शादी धूमधाम से होती
और सबसे मिलना होता। ।दो साल बीत गए। करोना लगभग खतम हो गया। फिर से चहल पहल शुरू हो गई। राखी
का त्यौहार आया तो रिनी ने साहिल को कहा कि पीहू को लिवा लाए। पीहू मुंबई रहती थी, उसका फ़ोन आ गया कि
वो अपने पति के संग ख़ुद ही आ जाएगी। राखी से दो दिन पहले वैभव ने कहा कि उसे किसी जरूरी आफिस के काम
से जाना है, राखी वाले दिन आ जाएगा।
पीहू के आने की खुशी में रिनी ने न जाने क्या क्या तैयारियाँ कर रखी थी। करोना के चलते वो सिरफ दो
बार ही आई थी। रिनी बार बार वैभव को फ़ोन लगा रही थी कि वो कब आ रहा है। लेकिन उसका फ़ोन ही नहीं लग
रहा था। साहिल भी घर पर नहीं था।पीहू शहर में पहुँच चुकी थी। घंटी बजी तो भागकर रिनी ने दरवाज़ा खोला, पीहू
और दामाद जी को देखकर खिल गई, तभी पीछे से वैभव दिखा और साथ में पल्लवी और उसका पति। रिनी उन
सबको अंदर लिवा लाई तो इतने में ही साहिल के साथ पूनम और उसका पति भी आ गए। वैभव अभी बाहर ही था,
जब वो आया तो साथ में हाथ थामे हुए बुआ और चाचा भी थे।इतना सुंदर नज़ारा देखकर पापा जी की आखों से तो
गंगा जमुना बह चली। अभी बच्चों की टोली पीछे थी। रिनी ने किसी की सेवा में कसर नहीं छोड़ी। उसे पता चल गया
था कि जैसे उसे अपनी बेटी प्यारी है, वैसे बहने भुआ भी उसी घर का हिस्सा है। सभी को बनता सम्मान तो मिलना
ही चाहिए। असली खुशी तभी है। इस बार वो मायके नहीं गई, भाईयों को बुला भेजा। राखी का असली मतलब उसे
आज समझ में आया था।
विमला गुगलानी