मुझे (नीता) अपने पत्थर दिल बाॅस की कहानी याद आ रही है,जिसे अपने शब्दों में बयां करने की कोशिश कर रही हूॅं। मेरे माता-पिता रोजगार के सिलसिले में मेरे जन्म से पहले ही अन्य राज्य से आकर मुंबई में बस गए।
मेरा जन्म मुंबई में ही हुआ है। बचपन से ही मुझे लोग खुबसूरत कहते थे। जैसे-जैसे मैं बड़ी हो रही थी, वैसे-वैसे मुझे भी अपने रूप का घमंड होता जा रहा था।मेरे मन में हीरोइन बनने के ख्वाब पलने लगें थे,जिस कारण मैं पढ़ाई पर विशेष ध्यान न देकर फैशन पर ही ज्यादा ध्यान देने लगी।
मेरा व्यवहार देखकर एक दिन पिताजी ने समझाते हुए कहा -“नीता बेटी! ख्वाबों की दुनियाॅं से हकीकत की धरती पर उतरकर देखो और सोचो।अंधी दौड़ में शामिल होने से जिंदगी बर्बाद हो जाती है!”
उस समय तो मुझे पिता की बातें बहुत बुरी लगीं, परन्तु एक-दो प्रयास में ही मुझे मायानगरी की हकीकत पता चल गई। यहाॅं जबतक कोई गाॅड फादर न हो,तब तक काम मिलना लगभग असम्भव ही है।
जल्द ही मायानगरी में फैले हुए फरेब से मेरा मोहभंग हो गया। मैंने फाइन आर्ट्स का डिप्लोमा और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का कोर्स कर लिया।कोर्स पूरा होने के बाद जगह-जगह मैं नौकरी के लिए साक्षात्कार देने लगी, परन्तु प्रत्येक जगह से मुझे निराशा ही मिलती, पर मैं भी निराश होकर बैठने वालों में से नहीं थी।
आज फिर एक जगह मुझे साक्षात्कार के लिए जाना था। वहाॅं पहुॅचने पर अभ्यर्थियों की भीड़ देखकर मेरी साॅंसें ऊपर नीचे धौंकनी की तरह चलने लगीं।अपनी बारी आने तक मैंने खुद को एक हद तक संयत कर लिया था। मैं जल्द ही साक्षात्कार के लिए बाॅस के समक्ष उपस्थित हो गई।बाॅस महिला थी।
बाॅस गीता मैम ने मुझसे कई सवाल किऍं।मेरे जबाव से संतुष्ट होकर उन्होंने कहा -“बधाई हो!कल से मेरे दफ्तर में तुम्हारा स्वागत है!मुझे उम्मीद है कि तुम अपना काम लगन और मेहनत से करोगी।कल तुम्हें काम समझा दिया जाएगा।”
नौकरी मिलने की खुशी में मेरे पैर जमीं पर नहीं पड़ रहे थे। आत्मनिर्भर बनने का एक अलग ही नशा है। आत्मनिर्भरता ही व्यक्ति में आत्मविश्वास जगाती हैं।रात भर मैं अपने बाॅस गीता मैम के बारे में ही सोचती रही।गीता मैम की उम्र करीब चालीस वर्ष होगी।
इतनी कम उम्र में ही उन्होंने एक मुकाम हासिल कर लिया था।उनके गरिमामयी व्यक्तित्व में गजब का तेज था। बिल्कुल दूधिया रंग,लम्बी कद-काठी,गोल चेहरा,टुड्डी पर काला तिल,बोलती ऑंखें, आत्मविश्वास से लबरेज चेहरा किसी को भी प्रभावित करने में सक्षम था।
अगले दिन कार्यस्थल पर पहुॅंचने पर सहयोगी शिखा ने मुझे काम के बारे में विस्तार से बताया।उसके बाद बाॅस के बारे में बताते हुए कहा -“हमारी बाॅस गीता मैम बहुत ही सख्त और पत्थर दिल हैं।काम में जरा-सी भी लापरवाही उन्हें पसन्द नहीं है।
बहुत ही अनुशासन प्रिय हैं। छोटी-छोटी गलतियों पर भी कर्मचारियों को सबके सामने जलील कर देती हैं। उन्हें उनकी औकात बताने से भी नहीं चूकती हैं।उनसे सॅंभलकर रहना।”
सहकर्मी शिखा की बातें सुनकर मैंने मन-ही-मन सोचा -“अभी मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है।जब दूसरी नौकरी मिलेगी,तब इस पत्थर दिल बाॅस से छुटकारा पा लूॅंगी।”
मैं दफ्तर में लगन से अपने काम में जुट गई। मैं गीता मैम के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थी, परन्तु शिखा की बातें सुनकर अंदर से भयभीत भी।मेरा काम एडवरटाइजमेंट के शो बिजनेस का था। धीरे-धीरे काम को समझकर लगनपूर्वक अपने काम करने लगी।
नए -नए तरह के काम में मुझे मजा आ रहा था।मेरी लगन से प्रभावित होकर गीता मैम मुझे अतिरिक्त काम भी सौंपने लगी।मुझे भी घर जाने की कोई जल्दी नहीं रहती। मैं काम द्वारा गीता मैम को प्रभावित करने की कोशिश करती।मेरे काम से खुश होकर मैम बस मेरी पीठ थपथपाकर कहती -“शाबाश नीता!”
मैं अपनी प्रशंसा में कुछ ज्यादा ही सुनना चाहती थी, परन्तु मैम बस अपनी कठोर कवच से बाहर निकलकर किसी की प्रशंसा नहीं करती।अब मुझे मैम के पत्थर दिल होने का एहसास होने लगा था। मैं भी बस काम से मतलब रखती थी।
मेरा करीबी दोस्त रोहित था। हम दोनों एक दूसरे से प्यार कर बैठे। दोनों के बीच का यह प्यार -इजहार जब परवान चढ़ा,तो मेल-मुलाकातें बढ़ने लगीं।हम एक-दूजे के साथ जीने-मरने की कसमें खाने लगें और शादी का इरादा कर बैठे।
छुट्टी के दिनों हम दोनों जमकर मस्ती करते थे। परिवावालों को कोई आपत्ति नहीं थी।हम दोनों एक ही नाव के मुसाफिर थे। रोहित भी मुंबई हीरो बनने आया था, परन्तु हारकर उसने भी दूसरी जगह एडवरटाइजमेंट विभाग में नौकरी कर ली थी।
कुछ दिनों बाद हमारी शादी होनेवाली थी। बड़ी मुश्किल से बाॅस ने शादी के लिए पन्द्रह दिन की छुट्टी की मंजूरी दी थी।अब मुझे इस दफ्तर में ही मन लगने लगा था। शादी और हनीमून के बाद एक बार फिर से मेरी ज़िन्दगी पटरी पर लौटने लगी।
शादी के बाद पहले दिन आने पर सभी सहकर्मियों ने मुझे बधाई दी। मैं दिन भर गीता मैम की बधाई का इंतजार करती रही। मैं मन-ही-मन सोच रही थी।
-” कोई इंसान इतना भी पत्थर दिल कैसे हो सकता है,जो अपने कर्मचारी के सुख-दुख से प्रभावित न हो? उन्होंने खुद शादी नहीं की तो क्या बधाई भी नहीं दे सकती हैं?”
लंच के समय सभी सहकर्मी गीता मैम की ही बात कर रहे थे।एक स्टाफ ने कहा -“मैम इतनी खूबसूरत हैं,मेरे विचार से किसी-न-किसी का दिल तो उनपर जरुर आया होगा?”
सहकर्मी शिखा ने कहा -” मैंने सुना है कि जिससे मैम की शादी होनेवाली थी,एक हवाई दुर्घटना में उसकी मौत हो गई। उसके बाद से उन्होंने शादी का विचार ही त्याग दिया।”
एक सहकर्मी हॅंसते हुए कहता है -“अब मैम के पत्थर दिल होने का कारण समझ में आ गया है!”
लंच के समय इस तरह की बातों से सभी का मन हल्का -फुल्का हो जाता है,वरना दफ्तर में तो जोर से बोलने और हॅंसने पर भी मैम की डाॅंट के भय की तलवारें टॅंगी रहतीं थीं ।
आशा के विपरीत शाम के समय गीता मैम ने मुझे शादी की बधाई के साथ-साथ प्यार की निशानी एक खुबसूरत ताजमहल भेंट की।मैम के प्रति मेरी धारणा कभी-कभी बदल भी जाती।मन कहता शायद उतनी भी पत्थर दिल नहीं हैं,जितना हम उन्हें समझते हैं!
धीरे-धीरे दफ्तर में मेरी पैठ बनती जा रही थी।किसी कंपनी की विज्ञापन होर्डिंग लगवाना, कैटलॉग बनवाना, क्लाइंट के साथ मीटिंग में बाॅस के साथ रहना ,सारी ड्यूटी मेरी थी।गीता मैम भी मुझपर भरोसा करने लगीं थीं, परन्तु मुझे कभी बोलकर एहसास नहीं करातीं।
कुछ समय पश्चात मुझे माॅं बनने का एहसास हुआ।मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।मेरी खुशी को भाॅंपते हुए मेरी माॅं ने कहा -” बेटी ! मातृत्व स्त्री के लिए सबसे खूबसूरत नेमत है।विधाता ने स्त्री -पुरुष को एक-दूसरे का पूरक दो आधार स्तम्भ के रुप में बनाया है, जिनके मिलने से ही सृष्टि गुंजायमान है।
नारी अपनी जान पर खेलकर मातृत्व का रस चखती है, इसलिए मातृत्व का एहसास स्त्री के जीवन का सबसे अनमोल खजाना है?”
आए दिन माॅं मुझे ढ़ेर सारी नसीहतें देती रहती। मैं भी डिलीवरी के कुछ दिन पूर्व तक कष्ट सहकर अपनी छुट्टियाॅं बचाती रहती,ताकि अपने बच्चे के साथ अधिक -से-अधिक समय बिता सकूॅं।पत्थर दिल बाॅस पर मुझे भरोसा नहीं था।
समय पूरा होने पर मैंने अपना मातृत्व अवकाश ले लिया। वक्त आने पर मैंने एक प्यारी -सी गुड़िया को जन्म दिया। मैंने पहली बार अपने उस संतान की सूरत देखी,जिसके स्पंदन को महसूस कर नौ महीने तक मातृत्व के समंदर में गोते लगाती रही।
बच्ची पर मातृत्व लुटाते हुए कब मातृत्व अवकाश खत्म हो गया,पता ही नहीं चला।लंबी छुट्टी के बाद दफ्तर जाते हुए मन बार-बार बच्ची के बाल-सुलभ क्रीड़ा में उलझ जाता।उसे छोड़कर जाने पर ऐसा एहसास हो रहा था,
मानो शरीर का कोई महत्त्वपूर्ण अंग छूट रहा हो।उसे घर में छोड़कर निकलते समय बार-बार पलटकर उसे ही देखती जा रही थी। रोहित ने कहा -“नीता!अब चलो भी।देर हो रही है।माॅं उसकी देखभाल अच्छी तरह कर लेगी।”
रोहित मुझे छोड़ते हुए अपने दफ्तर निकल गया।
काफी दिनों बाद दफ्तर जाने पर मुझे वहाॅं का माहौल बिल्कुल बदला-बदला नजर आ रहा था।मेरे स्थान पर एक नई लड़की रंजना आ गई थी।पहले दफ्तर में मेरी चलती थी,अब रंजना के नाम की तूती बजने लगी।मुझे उसके नीचे कर दिया गया था।
दफ्तर में मेरी दोस्त शिखा भी नहीं थी,जिससे कम-से-कम अपने दिल की बात तो कर लेती! अधिकांश कर्मचारी बदले हुए थे।एक तो दफ्तर का माहौल,दूसरा बच्ची पर ध्यान मुझे बेचैन कर रहा था।अब मुझ पर काम का कोई दबाव नहीं था। मैं पाॅंच बजे अपने काम खत्म करके घर चली जाती।
मुझे उम्मीद थी कि एक-दो दिन में गीता मैम मुझे फिर से सारे काम सौंप देंगी।एक दिन शाम में मैम ने मुझे अपनी केबिन में बुलाकर बच्ची के बारे में पूछा, परन्तु काम से सम्बन्धित कोई बात नहीं की।अब मुझे गीता मैम सचमुच पत्थर दिल लगने लगी थीं।
पहले दफ्तर में मुझसे पूछकर ही सारे काम होते थे,अब दफ्तर में मेरी कोई अहमियत नहीं रह गई थी।दिल तो चाह रहा था कि नौकरी से इस्तीफा ही दे दूॅं, परन्तु मुंबई जैसे शहर में पति-पत्नी दोनों का कमाना आवश्यक है।
मेरी मनःस्थिति को रोहित अच्छी तरह समझता था।एक दिन निराशा भरे लम्हों में मुझे समझाते हुए रोहित ने कहा -” नीता! मुश्किल भरे समय में इंसान को सहज और सरल बने रहना चाहिए, घबड़ाना नहीं चाहिए।तुम व्यर्थ ही स्वंय को अवसादग्रस्त कर रही हो। धैर्य और संयम रखो।समय के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा!”
मेरे पास धैर्य और संयम के सिवा चारा ही क्या था? कभी-कभी दिल में ख्याल आता कि एक स्त्री जब सफलता की ऊॅंचाईयों को छूना चाहती है,तब मातृत्व का हार प्रेम और बलिदान की माॅंग कर उसके पैरों को जकड़ लेती है।उसकी सारी महत्त्वकांक्षाऍं और सारे सपने धूलि-धूसरित होने लगते हैं।
फिर तमाम अंदेशों को अपने मस्तिष्क से झटकते हुए मातृत्व के अनोखे सुख का एहसास होने लगता है।जब बेटी किलकारियाॅं मारककर नन्हीं -नन्हीं बाॅंहों के साथ मेरी गोद में सिमट जाती है,उस समय सारे ब्रह्माण्ड की खुशियों को अपनी बाॅंहों में सिमटने का एहसास होता है।उसे खिलखिलाते हुए देखकर दफ्तर के सारे तनाव छू -मंतर हो जाते हैं।
कुछ समय से दफ्तर में फिर से ताल-मेल बिठाने की जद्दोजहद मेरे मन में चल रही थी।कुछ दिनों बाद दफ्तर में जानी-पहचानी आवाज कहीं हृदय की गहराईयों में रास्ता टटोलती हुई सतह पर आकर कानों में रस घोलने लगी।
स्मित मुस्कान के साथ सहकर्मी शिखा फिर से दफ्तर में उपस्थित थीं।शिखा के आ जाने से धीरे-धीरे मैंने परिस्थितियों के अनुसार ताल-मेल बिठाना सीख लिया। यदा-कदा मुझे अपनी पत्थर दिल बाॅस पर बहुत गुस्सा आता।मुझे महसूस होता कि माॅं बनने पर बाॅस ने मेरा पद अवनत (डिमोशन) कर दिया हो।
मैंने अपनी बेटी के जन्म के बाद निजी कारणों से कोई पार्टी नहीं दी थी। सहकर्मियों की माॅंगें लगातार बढ़ती जा रहीं थीं,
इस कारण मैंने एक छोटी-सी पार्टी रेस्टोरेंट में रखी थी।मुझे पता था कि बाॅस गीता मैम तो पार्टी में नहीं ही आऐंगी, फिर भी औपचारिकता के लिहाज से मैंने उन्हें पार्टी में शामिल होने का आमंत्रण दिया।मैम ने मुस्कुराते हुए कहा -“अवश्य आऊॅंगी!”
पार्टी वाले दिन आशा के विपरीत गीता मैम सबसे पहले आ गई। पार्टी शुरू होने में कुछ देरी थी,तब तक मैम तोतली जुबान में मेरी बेटी से ढ़ेर सारी बातें करतीं रहीं। उन्हें इस रुप में देखकर मैं हैरान थी।मुझे महसूस हो रहा था कि पत्थर दिल के नीचे एक नरम -सा पानी का झरना बह रहा हो!
मैंने बच्ची को गोद में लेते हुए कहा -” मैम!ये अभी से बहुत शैतान है! लोगों के इशारों को खूब समझती है!”
बच्ची से मिलते ही मैम के चेहरे की सारी कठोरता गायब हो चुकी थी। मासूमियत भरे अंदाज में उन्होंने कहा -“बच्चे शैतानी नहीं करेंगे,तो क्या तुम और हम जैसे करेंगे?”
उन्होंने बच्ची को एक बार फिर से अपनी गोद में ले लिया।कुछ समय बाद रोहित बच्ची को घुमाने ले गया।अभी लोगों का आना शुरू हो गया था।गीता मैम ने मुझे इशारों में नजदीक बुलाकर कहा -“मीता! मैं जानती हूॅं कि तुम मुझसे नाराज़ हो।
मैंने जान-बूझकर कुछ समय के लिए दफ्तर में तुम्हें हल्के काम दिऍं हैं,ताकि तुम अपनी बच्ची के साथ अधिक-से-अधिक समय बिता सको। मैंने बचपन में ही अपनी माॅं को खो दिया है, इसलिए चाहती हूॅं कि कोई भी बच्चा माॅं के प्यार से मरहूम न रहे।
मैं काम के मामले में थोड़ी सख्त अवश्य हूॅं,परन्तु कर्मचारियों के सुख-दुख पर भी मेरी दृष्टि बनी रहती है।पूरा स्टाफ ही मेरा परिवार है।कुछ समय पश्चात दफ्तर में तुम्हें पहले जैसी ही जगह मिल जाएगी।मुझे तुम्हारी काबिलियत पर पूरा भरोसा है!”
मैम के इस रूप को देखकर मैं अचंभित थी। मुझे एहसास हो गया कि नारियल की तरह उनका व्यक्तित्व ऊपर से कठोर और अंदर से नरम और मीठा है।मेरा मन मैम के प्रति पूर्वाग्रह को छोड़कर उनके अव्यक्त प्यार के प्रति श्रद्धा से नत हो गया। सचमुच व्यक्ति के सार्वजनिक और व्यक्तिगत चेहरा , व्यवहार में अंतर स्वाभाविक ही है।आम इंसान उसे समझ नहीं पाता है
और उसे पत्थर दिल इंसान समझ लेता है।अब मैम के प्रति मेरे मन के खेत में चंदन के पावन पेड़ लहलहाने लगें।मुझे एहसास हो चुका था कि मेरी बाॅस पत्थर दिल नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार इंसान हैं।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा ( स्वरचित)